मैक्सिको और भारत में हाल में हुए संसदीय चुनाव में सत्तारूढ़ पार्टियों ने अपने चुनाव अभियान की शुरूआत एक ही तरह से की. भारतीय जनता पार्टी के नेता और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मैक्सिको में मोरेना पार्टी के लीडर एंड्रेस मैनुअल लोपेज़ ओब्रेडोर, जिन्हें उनके नाम के शुरुआती अक्षरों AMLO से जाना जाता है, अपने-अपने देशों के सबसे लोकप्रिय लीडर हैं. अमेरिका की मॉर्निंग कंसल्ट सर्वेक्षण कंपनी के मुताबिक पूरी दुनिया में इन दोनों नेताओं की अप्रूवल रेटिंग सबसे ज़्यादा है, मोदी की 70 प्रतिशत और AMLO की 62 प्रतिशत. ऐसे में इस बात पर कोई आश्चर्य नहीं हुआ जब इन दोनों नेताओं की लोकप्रियता चुनावी नतीज़ों में तब्दील हुई और इनकी पार्टियां चुनाव जीतीं. हालांकि उन्हें रोकने के लिए विपक्षी पार्टियों ने एक संयुक्त गठबंधन बनाया था, जिससे चुनाव में इन्हें कड़ा मुकाबला दिया जा सके लेकिन दोनों ही देशों में सत्तारूढ़ पार्टियों ने फिर से सरकार बनाई. भारत में नरेंद्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बने लेकिन मैक्सिको के संविधान के मुताबिक कोई भी नेता सिर्फ 6 साल यानी एक कार्यकाल तक ही राष्ट्रपति रह सकता है. ऐसे में AMLO दोबारा राष्ट्रपति नहीं बन सकते थे लेकिन उनकी पार्टी की उम्मीदवार क्लाउडिया शीनबाम आसानी से चुनाव जीतकर राष्ट्रपति बनीं. लेकिन दोनों देशों की समानताएं यही ख़त्म हो जाती है. दोनों देशों की सरकारें अब बिल्कुल अलग रास्ते पर चल रही हैं.
एक स्थानीय रिपोर्ट के मुताबिक मैक्सिको में शीनबाम और उनके नई मंत्रिमंडल की अप्रूवल रेटिंग 80 प्रतिशत है. यहां तक कि मैक्सिको के व्यापारिक समूह भी शीनबाम सरकार को लेकर काफी आशावादी हैं, जबकि AMLO के साथ कई मुद्दों पर उनका टकराव होता रहता था.
विशाल जीत के बावजूद शीनबाम के सामने कई चुनौतियां हैं. पहली चुनौती तो एंड्रेस मैनुअल लोपेज़ ओब्रेडोर के छाया से बाहर निकलने की है. आलोचक उन्हें AMLO की प्रतिनिधि (प्रॉक्सी) बताते हैं लेकिन हक़ीकत ये है कि मैक्सिको सिटी की सरकार के मुखिया के तौर पर कोविड-19 महामारी का बेहतरीन तरीके से सामना कर शीनबाम अपनी योग्यता साबित कर चुकी हैं. इस महामारी से निपटने में शीनबाम ने वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाया, जो संघीय सरकार के ढुलमुल रवैये से अलग था. राष्ट्रपति के तौर पर उन्होंने पहला काम ये किया कि जिन भी लोगों को कैबिनेट में लिया है, उनमें से ज़्यादातर टेक्नोक्रेट्स हैं. उनकी अपनी पेशेवर साख है. एक स्थानीय रिपोर्ट के मुताबिक मैक्सिको में शीनबाम और उनके नई मंत्रिमंडल की अप्रूवल रेटिंग 80 प्रतिशत है. यहां तक कि मैक्सिको के व्यापारिक समूह भी शीनबाम सरकार को लेकर काफी आशावादी हैं, जबकि AMLO के साथ कई मुद्दों पर उनका टकराव होता रहता था. कॉन्सेजो कोऑर्डिनाडोर एंप्रेसरियल (व्यापार समन्वय परिषद) के अध्यक्ष फ्रांसिस्को सर्वेंट्स और वॉलमार्ट इंटरनेशनल की अध्यक्ष और सीईओ कैथरीन मैक्ले के साथ उनकी कारोबारियों के साथ उनकी शुरुआती मीटिंग में इसकी झलक भी दिखी.
मैक्सिको के सामने क्या चुनौतियां?
शीनबाम के सामने दूसरी बड़ी चुनौतियों में सुरक्षा, नशीले पदार्थों की तस्करी, अवैध आप्रवासन और उच्च बजट घाटा शामिल है. एक हालिया सर्वेक्षण के मुताबिक मैक्सिको के 51 प्रतिशत नागरिक चाहते हैं कि शीनबाम सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दें, लेकिन दुर्भाग्य ये है कि सुरक्षा की समस्या का कोई आसान समाधान नहीं है. अब इसे अच्छा कहें या बुरा लेकिन मैक्सिको की भौगोलिक स्थिति ने उसका भाग्य काफी हद तक तय कर दिया है. अमेरिका और लैटिन अमेरिका के देश मेक्सिको के पड़ोसी हैं. जब तक अमेरिकी लोग बड़ी मात्रा में अवैध और नशीले पदार्थों के सेवन करते रहेंगे तब तक मैक्सिको के ही रास्ते दक्षिण अमेरिका से ड्रग्स अमेरिका जाते रहेंगे. मैक्सिको का कोई भी राष्ट्रपति आज तक नशीले पदार्थों और इसके साथ बड़े पैमाने पर होने वाली हिंसा को रोकने का स्थायी हल नहीं तलाश सका है.
इन चुनौतियों के बावजूद मैक्सिको के कुछ उजले पक्ष भी हैं. मैक्सिको में गरीबी मापने के बहुआयामी मानदंड (इसमें आय के अलावा भोजन, शिक्षा और स्वास्थ्य तक पहुंच भी शामिल है) के मुताबिक गरीबी दर 10 प्रतिशत घट गई है. 2014 में ये 46 प्रतिशत थी, जो 2024 में कम होकर 36 प्रतिशत रह गई. गरीबी दर में कमी की सबसे बड़ी वज़ह न्यूनतम मज़दूरी में लगातार हो रही वृद्धि है. पिछली सरकार के 6 साल के कार्यकाल में न्यूनतम मज़दूरी 19 फीसदी बढ़ी. दिसंबर 2018 में मैक्सिको स्टॉक एक्सचेंज का सेंसेक्स 41,640 अंक था, जो राष्ट्रपति के तौर पर AMLO के कार्यकाल के बाद जुलाई 2024 में 52,883 अंक तक पहुंच गया. इसी का नतीजा है कि आज मैक्सिको की अर्थव्यवस्था दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया और स्पेन की इकोनॉमी को पीछे छोड़ चुकी है. पिछले कुछ समय से मैक्सिको की अर्थव्यवस्था में चीन की वैल्यू चैन से दूर होकर रीऑर्डरिंग (फिर से व्यवस्थित करना) की प्रवृत्ति देखी जा रही है. इसका भी उसे फायदा मिल रहा है. इस रणनीति को अमेरिका ने 'फ्रेंडशोरिंग' का नाम दिया है. यहां मैक्सिको के हित सीधे भारत से जुड़ते हैं. दोनों देश आर्थिक कूटनीति में साझेदार हैं.
मैक्सिको-भारत सहयोग के साझा आधार
मैक्सिको लंबे समय से भारतीय कंपनियों के लिए बड़े निवेश की पसंदीदा जगह रहा है, खासकर ऑटो पार्ट्स, टेक्नोलॉजी और फार्मास्यूटिकल सेक्टर में भारतीय कंपनियों ने मैक्सिको में काफी निवेश कर रखा है. एक अनुमान के मुताबिक भारतीय कंपनियों ने मैक्सिको में 4 अरब डॉलर का निवेश किया है और 60,000 लोगों को रोज़गार दे रखा है. मैक्सिको की भी कई कंपनियों की नज़र भारतीय बाज़ार पर है. ब्रेडमेकर कंपनी बिंबो, सिनेमा ऑपरेटर सिनेपोलिस और शिक्षा-मनोरंजन की किडज़ेनिया जैसी मैक्सिको की कंपनियों भारतीय बाज़ार में अपने सेक्टर में अग्रणी हैं. करीब तीन दर्जन मैक्सिकन कंपनियों, ऑटोमोबाइल सेक्टर में भी, ने भारतीय बाज़ार में निवेश किया है. पिछले दो दशक में ये निवेश बढ़कर करीब एक अरब डॉलर हो चुका है.
सरकार चलाने का शीनबाम और मोदी चाहे जो भी रास्ता चुनें लेकिन बात जब व्यापार और निवेश की आएगी तो दोनों को मिलकर एक साझा आधार तलाशना होगा क्योंकि ये दोनों देशों के लिए फायदेमंद होगा.
सरकार चलाने का शीनबाम और मोदी चाहे जो भी रास्ता चुनें लेकिन बात जब व्यापार और निवेश की आएगी तो दोनों को मिलकर एक साझा आधार तलाशना होगा क्योंकि ये दोनों देशों के लिए फायदेमंद होगा. 2022-23 में तो भारत और मैक्सिको का व्यापार 9 अरब डॉलर के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया था, जो पड़ोसी देशों जैसे कि नेपाल, कनाडा या स्पेन से ज़्यादा है. दोनों देश अपने-अपने क्षेत्रों में अग्रणी है. भारत दक्षिण एशिया और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र का मुख्य देश है तो मैक्सिको भी लैटिन अमेरिकन देशों में इकोनॉमिक पावरहाउस है, जिसे अमेरिका के करीबी होने का बहुत फायदा मिला है. दोनों देशों में नई चुनी गई सरकारें जी-20 जैसे द्विपक्षीय मंचों के साथ-साथ विकासशील दुनिया की भी प्रतिनिधि हैं. भारत और मैक्सिको भले ही अलग-अलग सियासी रास्तों पर चलते दिख रहे हैं लेकिन वो विकास के एक जैसे सकारात्मक नतीजे चाहते हैं.
हरि सेशासाई ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च फैलो हैं
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