Author : Sean Andrews

Expert Speak Raisina Debates
Published on Mar 19, 2025 Updated 0 Hours ago

साझेदारी बढ़ाने के लिए और क्षेत्रीय स्थिरता एवं सुरक्षा की चुनौतियों से निपटने के लिए ऑस्ट्रेलिया को अपने समुद्री भूगोल और क्वॉड में भागीदारी का फायदा उठाना चाहिए.

#QUAD के भीतर समुद्री सहयोग: नए रास्तों की तलाश

Image Source: Getty

ये लेख रायसीना एडिट 2025 सीरीज़ का हिस्सा है. 


क्वॉड ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिका के बीच एक कूटनीतिक साझेदारी है जो समावेशी और समर्थ इंडो-पैसिफिक को खुला, स्थिर और समृद्ध बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है. ये ऑस्ट्रेलिया की विदेश नीति का एक प्रमुख स्तंभ है और दक्षिण-पूर्व एशिया, प्रशांत और हिंद महासागर के साझेदारों समेत उसके द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और बहुपक्षीय सहयोग में मददगार है. 

जैसे-जैसे दुनिया समुद्री सुरक्षा की जटिलताओं का सामना कर रही है, वैसे-वैसे ये साफ होता जा रहा है कि क्वॉड की रूप-रेखा के भीतर ऑस्ट्रेलिया का रणनीतिक दृष्टिकोण उभरते ख़तरों और चुनौतियों के प्रति एक बहुमुखी और गतिशील प्रतिक्रिया आवश्यक बनाता है. अपने समुद्री भूगोल का लाभ उठाकर और मज़बूती साझेदारी को बढ़ावा देकर ऑस्ट्रेलिया क्षेत्रीय स्थिरता और सुरक्षा के मामले में अपना योगदान बढ़ा सकता है. 

जैसे-जैसे दुनिया समुद्री सुरक्षा की जटिलताओं का सामना कर रही है, वैसे-वैसे ये साफ होता जा रहा है कि क्वॉड की रूप-रेखा के भीतर ऑस्ट्रेलिया का रणनीतिक दृष्टिकोण उभरते ख़तरों और चुनौतियों के प्रति एक बहुमुखी और गतिशील प्रतिक्रिया आवश्यक बनाता है.

ये लेख क्वॉड की समुद्री सुरक्षा की पहल को आगे बढ़ाता है और अधिक सहयोग के लिए अवसर को उजागर करता है. वर्तमान में विदेश नीति से जुड़ी चार पहल समुद्री सुरक्षा को लेकर ऑस्ट्रेलिया की अवधारणा को सहारा देती हैं. पहली पहल है व्यापक इंडो-पैसिफिक में जापान, कोरिया और भारत जैसे साझेदारों के साथ व्यावहारिक भागीदारी और सहयोग का विस्तार. दूसरी पहल है पैसिफिक पेट्रोल बोट स्कीम- जिसे पैसिफिक समुद्री सुरक्षा कार्यक्रम के रूप में नई शक्ल दी गई है- जो इस क्षेत्र में ऑस्ट्रेलिया के रक्षा सहयोग के लिए एक प्रमुख कार्यक्रम बना हुआ है. तीसरी पहल है संयुक्त राष्ट्र (UN) और अमेरिका के नेतृत्व में अभियानों, जिनमें समुद्री सुरक्षा का अभियान शामिल है, के लिए ऑस्ट्रेलिया की प्रतिबद्धता. इसके अलावा, समान विचार वाले दोस्तों की तरह इंडो-पैसिफिक में आवाजाही की स्वतंत्रता और क़ानून के शासन के माध्यम से समुद्र तक पहुंच को बनाए रखने में  ऑस्ट्रेलिया और क्वॉड के साझेदारों के स्थायी हित हैं. ऑस्ट्रेलिया फाइव पावर डिफेंस अरेंजमेंट को लेकर भी प्रतिबद्ध है जिसमें मलेशिया और सिंगापुर जैसे साझेदार शामिल हैं. अंत में, समुद्री सुरक्षा को ट्रैक 1 कूटनीति के कार्यक्रम के स्तर तक बढ़ाया गया है जिसे तहत इंडो-पैसिफिक को प्राथमिकता दी गई है. 

समुद्री ताकतें

समुद्र दुनिया के दो-तिहाई हिस्से में मौजूद है और सुरक्षित समुद्री क्षेत्र के बिना एक-दूसरे से जुड़ी दुनिया का अस्तित्व नहीं हो सकता है. आख़िरी दो वैश्विक समुद्री ताकतों यानी यूनाइटेड किंगडम (UK) और अमेरिका ने विश्व व्यवस्था को काफी हद तक तय किया है. अमेरिका के नौसेना अभियानों के प्रमुख एडमिरल निमित्ज़ ने 1947 की अपनी रिपोर्ट में कहा था कि समुद्र के नियंत्रण में अमेरिका का स्थायी हित है. पहला हित ये है कि समुद्र पर नियंत्रण से न सिर्फ राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित हुई बल्कि ‘अलग-अलग देशों के बीच संतुलन और स्थिरता के निर्माण और उसे बनाए रखने’ में भी सहायता मिली. इसके अलावा, समुद्र पर नियंत्रण ने हर देश को संयुक्त राष्ट्र की रूप-रेखा से संचालित उसकी सुरक्षा की संरचना पर आधारित समृद्धि को हासिल करने की अनुमति दी. आधुनिक बातचीत में इसे वैश्विक अभ्यास समुदाय के रूप में परिभाषित किया गया है जिसके समुद्र में साझा स्थायी हितों में महासागर तक पहुंच बनाए रखना और संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून सम्मेलन (UNCLOS) के माध्यम से कानून का शासन स्थापित करना शामिल है. सात दशकों के बाद भी वैश्विक काम-काज की प्रणाली अभी भी समुद्र आधारित घटना बनी हुई है. 

ये दो साझा हित ऑस्ट्रेलिया के लिए भी सत्य हैं. इसके अलावा, समुद्री सुरक्षा के बारे में इस देश का दृष्टिकोण देश और विदेश में बहुराष्ट्रीय-बहुएजेंसी सहयोग के लाभों को स्पष्ट करता है. सहयोग वाले दृष्टिकोण के माध्यम से सफलता हासिल होगी और राष्ट्रीय, क्षेत्रीय एवं वैश्विक इकोसिस्टम, जिसमें प्रमुख नागरिक संस्थाएं शामिल हैं, से नौसैनिक सुरक्षा के भागीदारों को एक साथ लाया जाएगा. अकेले ऑस्ट्रेलिया में 20 विभाग और एजेंसियां समुद्री सुरक्षा में शामिल हैं. 

समुद्री रणनीति के कुछ समर्थक लगातार इस बात पर ज़ोर देते रहते हैं कि विश्व की अधिकांश जनसंख्या समुद्र के किनारे रहती है और दुनिया का व्यापार समुद्र के रास्ते होता है जिससे नए ख़तरे पैदा हो सकते हैं. ये समुद्री सच्चाई निरंतरता का प्रतिनिधित्व करती है और यही वो संदर्भ है जो माहन और कॉर्बेट के विकासशील सिद्धांत की बुनियाद है. लेकिन नए ख़तरों की पहचान करना उपयोगी है. इसका मतलब है सहयोग के रास्तों एवं तरीकों का पता लगाना और ‘समुद्र में अच्छी व्यवस्था’ को बनाए रखना. आज दुनिया में मछली के भंडार पर दबाव, समुद्री कचरे का क्षेत्र (पूर्वी और पश्चिमी प्रशांत महासागर में), जलवायु परिवर्तन, समुद्री डकैती और समुद्र में दूसरे अपराध रोज़ाना होते हैं. ये एक अवसर पेश करता है. इंसानियत का इरादा धरती को बचाना है लेकिन इसके बावजूद वो धरती के दो-तिहाई हिस्से यानी दुनिया के महासागरों की अनदेखी करती है. 

समुद्री रणनीति के कुछ समर्थक लगातार इस बात पर ज़ोर देते रहते हैं कि विश्व की अधिकांश जनसंख्या समुद्र के किनारे रहती है और दुनिया का व्यापार समुद्र के रास्ते होता है जिससे नए ख़तरे पैदा हो सकते हैं. ये समुद्री सच्चाई निरंतरता का प्रतिनिधित्व करती है और यही वो संदर्भ है जो माहन और कॉर्बेट के विकासशील सिद्धांत की बुनियाद है.

लेकिन ऑस्ट्रेलिया और क्वॉड घरेलू स्तर पर और इस क्षेत्र में ‘समुद्र में अच्छी व्यवस्था’ प्रदान करने के उद्देश्य से समुद्री सुरक्षा की नीति से जुड़ी पहल और विचारों की लगातार समीक्षा, खोज-बीन और पड़ताल करने के लिए बौद्धिक क्षमता को अधिकतम कैसे करते हैं? उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नेटो) से विचार लेते हुए समुद्री सुरक्षा पर केंद्रित एक सेंटर ऑफ एक्सीलेंस (उत्कृष्टता केंद्र) इस मामले में महत्वपूर्ण हो सकता है. 

व्यावहारिक रूप से सेंटर ऑफ एक्सीलेंस एक काम-काजी क्षेत्र में विशेषज्ञता रखता है और विशेषज्ञ शिक्षा, विश्लेषण, सैद्धांतिक विकास, अवधारणा विकास और प्रयोग के स्तंभों पर ध्यान देते हैं. 

समुद्री सुरक्षा और ऑस्ट्रेलिया

समुद्री सुरक्षा के दायरे को एक व्यापक रूप देने की आवश्यकता होगी. समुद्री प्रकृति के मुद्दे आपस में जुड़े हुए हैं और इसका कोई आसान समाधान नहीं है. ये समझने योग्य और तार्किक रूप से सही है कि किसी भी मैरीटाइम सिक्युरिटी सेंटर ऑफ एक्सीलेंस: इंडो-पैसिफिक (MSCEIP) जैसी सोच को सरकारों, उद्योग, प्राइवेट सेक्टर और शैक्षिक समुदाय से तालमेल के चुनौतीपूर्ण काम पर विचार करने की ज़रूरत होगी ताकि साथ आने और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में सुरक्षित समुद्री माहौल में योगदान करने के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके. ये वास्तव में समुद्र में ‘अच्छी व्यवस्था’ में योगदान करने का एक अंतरराष्ट्रीय प्रयास है. 

किसी भी संभावित MSCEIP का उद्देश्य महत्वाकांक्षी होगा. विचार के योग्य दो प्रमुख क्षेत्र हैं समुद्री सुरक्षा के ख़तरे और समुद्री सुरक्षा के अभियान. ये कूटनीति से लेकर पुलिस कार्रवाई तक कई विकल्पों का प्रतिनिधित्व करते हैं. 

हालांकि शिक्षा, विश्लेषण, सैद्धांतिक विकास, अवधारणा विकास और प्रयोग के स्तंभों पर धारणात्मक रूप से विचार करते हुए MSCEIP सिद्धांत बनाने वालों और अभ्यास करने वालों- दोनों को विशेषज्ञता प्रदान करेगा. ये समुद्री प्रकृति के मुद्दे पर केंद्रित एक शैक्षिक अनुसंधान केंद्र और समुद्री सुरक्षा में अभ्यासकर्ताओं को प्रशिक्षण देने वाला समन्वय केंद्र है. सफलता के लिए ये ज़रूरी होगा कि केंद्र उपयुक्त सरकार, निजी क्षेत्र, उद्योग और शैक्षिक जगत के हितधारकों के बीच तालमेल की सुविधा मुहैया कराए.   

समुद्री प्रकृति के मुद्दे पर केंद्रित एक शैक्षिक अनुसंधान केंद्र और समुद्री सुरक्षा में अभ्यासकर्ताओं को प्रशिक्षण देने वाला समन्वय केंद्र है. सफलता के लिए ये ज़रूरी होगा कि केंद्र उपयुक्त सरकार, निजी क्षेत्र, उद्योग और शैक्षिक जगत के हितधारकों के बीच तालमेल की सुविधा मुहैया कराए.   

ऑस्ट्रेलिया एक समुद्री देश है जिसके चारों तरफ समुद्र है. ये अमेरिका के भू-रणनीतिकार निकोलस स्पाइकमैन के द्वारा बताए गए 'एशियाई भूमध्यसागर' का दक्षिणी क्षेत्र है. 1968 में ऑस्ट्रेलिया की यात्रा के दौरान भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ऑस्ट्रेलिया के समुद्री भूगोल के फायदों के बारे में बताया था. प्रधानमंत्री के भाषण का आधार ये था कि ऑस्ट्रेलिया को एक समुद्री क्षेत्र के ऊपर दूसरे क्षेत्र को नहीं चुनना चाहिए बल्कि सहयोग और तालमेल के लिए समानता का पता लगाना चाहिए. ऑस्ट्रेलिया एक ऐसा देश है जिसके चारों तरफ एक-दूसरे से जुड़े लेकिन फिर भी अलग-अलग समुद्री क्षेत्र हैं. MSCEIP जैसी अवधारणा के माध्यम से सोची गई संस्था देश और हमारे साझेदारों के अग्रणी समुद्री विचारकों और इस क्षेत्र में काम करने वालों को उपयोग में लाने और जोड़ने का अवसर प्रस्तुत करती है जिसका साझा लक्ष्य शब्दों और काम-काज के ज़रिए 'समुद्र में अच्छी व्यवस्था' बनाए रखना है ताकि एक खुले और सुरक्षित इंडो-पैसिफिक में सार्थक योगदान हो सके.


सीन एंड्रयूज़, CSC, PhD ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी के नेशनल सिक्युरिटी कॉलेज में सीनियर मेरिटाइम फेलो हैं. 

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