ग्रुप ऑफ ट्वेंटी (G20) के स्थायी सदस्य के रूप में अफ्रीकन यूनियन (AU) का आगे बढ़ना वैश्विक आर्थिक शासन व्यवस्था के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है. ये ऐतिहासिक घटनाक्रम अफ्रीका महादेश के तेज़ी से बढ़ते असर पर ज़ोर डालता है और एक उभरती वैश्विक शक्ति के रूप में उसकी क्षमताओं को स्वीकार करता है. G20, जिसकी दुनिया के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में लगभग 85 प्रतिशत और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में 75 प्रतिशत से ज़्यादा की हिस्सेदारी है, की ऐतिहासिक रूप से इस बात के लिए आलोचना होती रही है कि उसमें समावेशी प्रतिनिधित्व की कमी है, ख़ास तौर पर ग्लोबल साउथ (विकासशील देश) से. AU की सदस्यता समावेशिता के एक नए युग की शुरुआत करती है और ये प्रतिनिधित्व की कमी को दूर करने की तरफ एक छलांग है. साथ ही AU की सदस्यता इस महत्वपूर्ण आर्थिक मंच के भीतर अफ्रीका के 55 देशों की सामूहिक आवाज़ को तेज़ करने का भरोसा देती है.
G20 से अफ्रीका का जुड़ना उसके निर्विवाद आर्थिक भरोसे की स्वीकार्यता को दिखाता है. अफ्रीकी देशों की साझा GDP लगभग 3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के करीब है और उसके पास प्राकृतिक संसाधन भरपूर मात्रा में हैं जिनमें 60 प्रतिशत विश्व की नवीकरणीय ऊर्जा की क्षमता और कम कार्बन वाली तकनीकों के लिए अहम खनिजों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा शामिल हैं. ये स्थिति अफ्रीका महादेश को वैश्विक अर्थव्यवस्था और सतत ऊर्जा की तरफ बदलाव में एक आवश्यक साझेदार के तौर पर पेश करती है.
मददगार गठबंधन
महादेश का जनसांख्यिकीय रुझान (डेमोग्राफिक ट्रेंड) एक महत्वपूर्ण अवसर पेश करता है. एक अनुमान के मुताबिक 2050 तक यहां की जनसंख्या दोगुनी हो जाएगी जो विश्व के उम्रदराज होने के चलन के उलट तेज़ी से बढ़ते युवा कामगारों के युग की शुरुआत करेगी. अफ्रीका की मानवीय पूंजी अधिक उत्पादकता और आर्थिक विकास की संभावना पेश करती है. फिर भी यहां काफी संख्या में नौकरियों के निर्माण और मानवीय पूंजी की क्षमता का उपयोग करने के लिए उचित माहौल को बढ़ावा देने की आवश्यकता है.
रेखाचित्र 1: सब-सहारन अफ्रीकी देशों में उम्र के हिसाब से जनसंख्या का वितरण, 2050 का अनुमान
स्रोत: चार्लसन एट अल, संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या डेटा
अफ्रीका विश्व में सबसे युवा आबादी का दावा करता है और सब-सहारन अफ्रीका (सहारा रेगिस्तान के दक्षिण में स्थित देश) की 70 प्रतिशत आबादी 30 साल से कम उम्र के लोगों की है. जनसंख्या के मामले में ये लाभ की स्थिति अफ्रीका की तरक्की के लिए बहुत ज़्यादा संभावना रखती है. हालांकि ये इस बात पर निर्भर है कि इस युवा पीढ़ी को अपनी क्षमता को महसूस करने के लिए पूरी तरह से सशक्त किया जाए. बेरोज़गारी और सीमित मौकों जैसी चुनौतियों का सामना करने के बावजूद अफ्रीका के युवा अपने समुदाय के लिए महत्वपूर्ण योगदान देते हैं. वो न्याय एवं समानता की वकालत करते हैं और यहां तक कि संघर्ष से प्रभावित क्षेत्रों में शांति को भी बढ़ावा देते हैं.
इसके अलावा G20 में AU का बढ़ा हुआ दर्जा इस महादेश के विकास में अड़चन बनने वाली गंभीर चुनौतियों का समाधान करने में एक निर्णायक मंच के तौर पर काम करता है. अवैध वित्तीय प्रवाह (फाइनेंशियल फ्लो), जिसका अनुमान 88.6 अरब अमेरिकी डॉलर सालाना है, अफ्रीका के संसाधनों पर एक महत्वपूर्ण बोझ है जो यहां के आर्थिक विकास को बाधित करता है और सतत विकास लक्ष्यों (SDG) एवं AU के अपने एजेंडा 2063 की तरफ प्रगति में रुकावट डालता है. G20 की नीति पर असर डालने की क्षमता इन वित्तीय प्रवाहों को रोकने और संसाधनों को अफ्रीका के विकास की तरफ ले जाने में मददगार हो सकती है.
AU की सदस्यता जलवायु परिवर्तन को लेकर दुनिया की प्रतिक्रिया को तय करने में अफ्रीका की स्थिति भी मज़बूत करती है. जलवायु परिवर्तन ऐसी घटना है जिसको लेकर वो पूरी तरह असुरक्षित है जबकि वैश्विक उत्सर्जन में वो न्यूनतम योगदान देता है. G20 के माध्यम से AU अब जलवायु सामर्थ्य और स्थिरता में अफ्रीका के हितों को बढ़ा सकता है और ये सुनिश्चित कर सकता है कि जलवायु को लेकर दुनिया की पहल अफ्रीकी देशों की अनूठी चुनौतियों और योगदान पर विचार करे. इसके अलावा AU के शामिल होने से ये उम्मीद भी की जाती है कि वो G20 के देशों से अपने निर्यात राजस्व में बढ़ोतरी करेगा जो पिछले दशक के दौरान तुलनात्मक रूप से धीमा हो गया था.
रेखाचित्र 2: अफ्रीका से G20 के आयात की कीमत (अरब अमेरिकी डॉलर में)
स्रोत: डेवलपमेंट रिइमैजिन्ड
G20 के भीतर AU का प्रभावी योगदान उसकी तरफ से एक साझा मोर्चा पेश करने की उसकी क्षमता पर निर्भर करता है. अपने सदस्य देशों के अलग-अलग हितों में सामंजस्य स्थापित करके वो सार्थक रूप से वैश्विक फैसलों को प्रभावित कर सकता है. अफ्रीकन यूनियन कमीशन और उसका आर्थिक विकास, व्यापार, पर्यटन उद्योग और खनिज विभाग G20 के अलग-अलग तकनीकी वर्किंग ग्रुप में अफ्रीका के हितों को अच्छी तरह से बताने और उनकी नुमाइंदगी करने में निर्णायक होंगे.
AU की G20 सदस्यता का अफ्रीकी नेताओं की तरफ से गर्मजोशी से स्वागत अफ्रीका की वैश्विक स्थिति को आगे बढ़ाने के लिए इस नए दर्जे का लाभ उठाने की सामूहिक इच्छा का संकेत देता है.
दक्षिण अफ्रीका की आगामी अध्यक्षता
जैसे-जैसे AU 2025 में दक्षिण अफ्रीका की G20 अध्यक्षता के लिए तैयार हो रहा है, वैसे-वैसे ये महादेश एक अधिक न्यायसंगत वैश्विक वित्तीय संरचना की तरफ अंतरराष्ट्रीय चर्चा को आगे बढ़ाने के कगार पर खड़ा हो रहा है. G20 के भीतर इस नई भूमिका से उम्मीद की जाती है कि ऐसे नीतिगत सुधारों को बढ़ावा मिलेगा जो ग्लोबल साउथ की विकास से जुड़ी आवश्यकताओं के अधिक अनुरूप हो. संभावना ये है कि इससे अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था पर परिवर्तनकारी प्रभाव की शुरुआत होगी.
उम्मीद की जाती है कि अपनी G20 अध्यक्षता को लेकर दक्षिण अफ्रीका का नज़रिया उभरते बाज़ारों एवं विकासशील देशों की आवश्यकताओं पर ध्यान जारी रखने के साथ भारत और ब्राज़ील की अतीत की अध्यक्षताओं की उपलब्धियों को आगे बढ़ाने का है. इसमें खाद्य एवं ऊर्जा सुरक्षा, असमानता, कर्ज़ को लेकर असुरक्षा, बहुपक्षीय विकास बैंकों (मल्टीलेटरल डेवलपमेंट बैंक) में सुधार और जलवायु वित्त जैसे विरासत में मिले मुद्दे शामिल हैं. 2030 तक SDG के लक्ष्यों को पूरा करने में मौजूदा कमी को देखते हुए वित्तीय रूप से सतत विकास और जलवायु परिवर्तन के लक्ष्यों के बीच संतुलन भी एक प्राथमिकता है.
अंत में, AU की G20 सदस्यता अफ्रीका के लिए अपने विकास से जुड़े एजेंडे और व्यापक वैश्विक हितों- दोनों को आगे बढ़ाने के लिए अपने नए हासिल असर का इस्तेमाल करने की एक स्पष्ट अपील है. इस महादेश के प्रतिनिधित्व से आर्थिक, जलवायु और वित्तीय नीति पर संवाद को नया रूप मिलना तय है, साथ ही इसमें AU के सदस्य देशों के लिए शानदार लाभ लाने की भी क्षमता है. वैश्विक आर्थिक भागीदारी में आगे की तरफ ये कदम सभी के लिए एक प्रगतिशील, न्यायसंगत और टिकाऊ भविष्य को आकार देने में सक्रिय रूप से योगदान करने के लिए अफ्रीका की तैयारी को दिखाता है.
सौम्य भौमिक ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में एसोसिएट फेलो हैं.
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