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Published on Oct 03, 2025 Updated 1 Hours ago

मल्टी-डोमेन ऑपरेशन (MDO) युद्ध में एक मूलभूत बदलाव को दिखाता है जहां सफलता हथियारों के प्लेटफॉर्म या सैन्य ताकत पर कम और तकनीक, सूचना एवं नेतृत्व को एकीकृत करने पर ज़्यादा निर्भर करती है.

तकनीकी युद्धाभ्यास: MDO के युग में सैन्य रणनीति की नई परिभाषा

तकनीकी प्रगति युद्ध के चरित्र को मौलिक रूप से नया आकार दे रही है और ये विशुद्ध सैनिकों की शक्ति और सैन्य ताकत से हटकर सूचना में वर्चस्व, सटीकता और गति की तरफ ध्यान केंद्रित कर रही है. साइबर, अंतरिक्ष, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और ऑटोनॉमस सिस्टम जैसे उभरते क्षेत्र युद्ध की योजना बनाने और लड़ने के तरीके को फिर से परिभाषित कर रहे हैं. आधुनिक संघर्ष अब अलग-अलग क्षेत्रों में उन्नत तकनीकों को एकीकृत करने की मांग करते हैं जिससे अनुकूलनशीलता और इनोवेशन पारंपरिक लड़ाई की ताकत की तरह ही महत्वपूर्ण बन जाते हैं. ये बदलाव पिछले दिनों आर्मी वॉर कॉलेज में आयोजित कार्यक्रम “रण संवाद- 2025” का मुख्य विषय था. यहां युद्ध की बदलती प्रकृति पर गहन रूप से चर्चा की गई. 

आधुनिक संघर्ष अब अलग-अलग क्षेत्रों में उन्नत तकनीकों को एकीकृत करने की मांग करते हैं जिससे अनुकूलनशीलता और इनोवेशन पारंपरिक लड़ाई की ताकत की तरह ही महत्वपूर्ण बन जाते हैं. ये बदलाव पिछले दिनों आर्मी वॉर कॉलेज में आयोजित कार्यक्रम “रण संवाद- 2025” का मुख्य विषय था. यहां युद्ध की बदलती प्रकृति पर गहन रूप से चर्चा की गई. 

कार्यक्रम के दौरान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ऑपरेशन सिंदूर को “तकनीक से प्रेरित युद्ध की एक अद्भुत प्रदर्शनी” बताकर प्रशंसा की. इस भावना को दोहराते हुए चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान ने अपने भाषण में इस बात पर ज़ोर दिया कि “तकनीक में बेहतरी के लिए अलग-अलग क्षेत्रों में तेज़ और निर्णायक संयुक्त प्रतिक्रिया की आवश्यकता है.” इस कार्यक्रम का एक परिणाम मल्टी-डोमेन ऑपरेशन के लिए साझा डॉक्ट्रिन का जारी होना था जो ज़मीन, समुद्र, हवा, अंतरिक्ष, साइबर और संज्ञानात्मक (कॉग्निटिव) डोमेन के एकीकरण को संस्थागत बनाती है. ये एक व्यापक वैश्विक रुझान को दर्शाता है जहां सेनाएं इस बात का फिर से आकलन कर रही हैं कि तकनीक कैसे रणनीति, अभियान और नेतृत्व को आकार देती है. वैसे तो तकनीक को शामिल करना कोई नई चीज़ नहीं है लेकिन आज के समय में इसकी आवश्यकता अधिक है, दायरा विस्तृत है और परिणाम गंभीर हैं. 

अब MDO के इर्द-गिर्द इतना शोर क्यों? 

आज मल्टी-डोमेन ऑपरेशन (MDO) को अपनाने की आवश्यकता इस तथ्य से उत्पन्न होती है कि तकनीकी और परिचालन से जुड़े बदलाव अब अलग-थलग नहीं हो रहे हैं बल्कि एक साथ मिलकर विघटनकारी गति से सामने आ रहे हैं. AI, साइबर, अंतरिक्ष, रोबोटिक्स और सूचना युद्ध में प्रगति अलग-अलग क्षेत्रों के बीच पारंपरिक सीमाओं को ध्वस्त कर रही है और ऐसे अस्थिर युद्ध क्षेत्र का निर्माण कर रही है जहां सभी क्षेत्रों में एकीकरण के बिना एक क्षेत्र में सर्वोच्चता का कोई अर्थ नहीं है. ये मेल-जोल तुरंत अनुकूलन की मांग करती है क्योंकि देर होने से सशस्त्र बल ऐसे दुश्मनों के सामने असुरक्षित हो जाते हैं जो पहले से ही इन बदलावों का लाभ उठा रहे हैं. 

आज के समय में हम देखते हैं कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, साइबर, क्वांटम कंप्यूटिंग, हाइपरसोनिक, अनमैन्ड सिस्टम, स्पेस एसेट, बायोटेक्नोलॉजी और बिग डेटा जैसी तकनीकें एक ही समय में परिपक्व हो रही हैं.

आधुनिक युद्ध का स्वरूप कई विघटनकारी बदलावों से नया रूप ले रहा है जिससे मल्टी-डोमेन ऑपरेशन (MDO) एक तत्काल आवश्यकता बन गया है. पहले की क्रांति एक या दो प्रमुख इनोवेशन से प्रेरित होती थी लेकिन अब ऐसा नहीं है. आज के समय में हम देखते हैं कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, साइबर, क्वांटम कंप्यूटिंग, हाइपरसोनिक, अनमैन्ड सिस्टम, स्पेस एसेट, बायोटेक्नोलॉजी और बिग डेटा जैसी तकनीकें एक ही समय में परिपक्व हो रही हैं. उनका मेल-जोल एक शक्तिशाली “सिस्टम ऑफ सिस्टम्स” का प्रभाव उत्पन्न कर रहा है जहां विघटन की आशंका अलग-अलग हिस्सों के जोड़ से बहुत अधिक होती है. इसके साथ-साथ युद्ध और शांति के बीच की सीमाएं तेज़ी से धुंधली होती जा रही हैं. संघर्ष अब पारंपरिक युद्ध के मैदानों तक सीमित नहीं रह गया है; साइबर घुसपैठ, दुष्प्रचार अभियान और अंतरिक्ष में निषेध अभियान अब खुले संघर्ष की सीमा के नीचे लगातार चलते रहते हैं जिससे वैश्विक स्तर पर समाज, अर्थव्यवस्थाएं और राजनीति प्रभावित होती हैं. 

तकनीकी बदलाव की गति जटिलता की एक और परत जोड़ती है. डिजिटल सिस्टम पारंपरिक सैन्य प्लैटफॉर्म की तुलना में बहुत तेज़ी से विकसित होते हैं और जो सेना बदलने में नाकाम होती है, उसके सामने तेज़ी से पुराना हो जाने का ख़तरा है. इसके अलावा, अलग-अलग क्षेत्रों की तेज़ी से एक-दूसरे पर बढ़ती निर्भरता के कारण डॉक्ट्रिन और कमान संरचना पर फिर से विचार करने की आवश्यकता है. उदाहरण के लिए, रडार को निष्क्रिय करने वाला साइबर हमला सटीक हवाई हमले को सक्षम बना सकता है. इससे ये पता चलता है कि एक क्षेत्र दूसरे क्षेत्र में परिणामों को तुरंत प्रभावित कर सकता है. इस संदर्भ में सूचना जीत को तय करने वाली प्रमुख निर्धारक बन गई है. जहां एक समय में सैन्य शक्ति और पैंतरेबाज़ी का दबदबा होता था, वहां अब सूचना में वर्चस्व सफलता तय करता है. जो पक्ष नज़र रख सकता है, दिशा-निर्देश दे सकता है, निर्णय ले सकता है और तेज़ी से कार्रवाई कर सकता है, उसे निर्णायक बढ़त हासिल होती है. 

अंत में, युद्ध अब प्लैटफॉर्म केंद्रित होने से नेटवर्क केंद्रित मानक की तरफ बदल रहा है. अतीत में सैन्य बढ़त बेहतरीन हथियार के प्लैटफॉर्म से मिलती थी लेकिन आज ये सभी हथियारों को एकजुट, एक-दूसरे से जुड़ी ताकत में सुव्यवस्थित एकीकरण में है. पहले की प्रणालियां व्यक्तिगत रूप से चाहे कितनी भी उन्नत क्यों न हों लेकिन ये अलग-अलग क्षेत्रों में अच्छी तरह से एकीकृत दुश्मन के सामने बेअसर साबित हो सकती हैं. ये रुझान मिलकर सैन्य सोच-विचार में मौलिक परिवर्तन की मांग करते हैं जिससे सशस्त्र बलों के लिए भविष्य के संघर्ष की रूप-रेखा के तौर पर MDO को अपनाना एक मजबूरी है. 

MDO की तरफ तकनीकी बदलाव मुश्किल क्यों साबित हो रहा है 

वैसे तो मल्टी-डोमेन ऑपरेशन (MDO) को अपनाने के पीछे ज़ोरदार तर्क हैं लेकिन दुनिया भर की सेनाएं इस धारणा को वास्तविकता में बदलने में महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करती हैं. ये बाधाएं संस्थागत, तकनीकी, मानवीय और वित्तीय हैं. विरासत में मिले सिद्धांतों और संस्थागत जड़ता के कारण अक्सर धीमी प्रगति होती है क्योंकि बदलाव स्थापित पदानुक्रमों और परिचालन से जुड़ी आसानी को बाधित करते हैं. अलग-अलग क्षेत्रों में एकीकरण भी उतना ही जटिल है क्योंकि साइबर और अंतरिक्ष के प्रभाव अक्सर दिखते नहीं हैं, उनको मापना कठिन है और वास्तविक समय में संयुक्त डेटा फ्यूज़न की आवश्यकता होती है जो कि एक बहुत बड़ी तकनीकी और सैद्धांतिक चुनौती है. 

तकनीक में खामी इस बदलाव को और मुश्किल बनाती है. विरासत में मिले कई प्लेटफार्म में डिजिटल सिस्टम के साथ अनुकूलन की कमी है और उन्हें अपग्रेड करना कठिन है जबकि भू-राजनीतिक शत्रुता की वजह से अत्याधुनिक तकनीकों तक पहुंच नहीं मिल पाती है. इससे रक्षा तकनीक में आत्मनिर्भरता एक अनिवार्य आवश्यकता हो जाती है. मानवीय मोर्चे पर पारंपरिक योद्धा युद्ध अभ्यास और हथियार चलाने में प्रशिक्षित होते हैं लेकिन MDO के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, साइबर, स्पेस सिस्टम और डेटा एनालिटिक्स में दक्षता की आवश्यकता होती है. ये ऐसे कौशल हैं जिन्हें बड़ी सेनाओं में शामिल करना मुश्किल है. 

कमान और नियंत्रण संरचना में भी बदलाव की ज़रूरत है. निर्णय लेने के लिए बनाए गए पारंपरिक पदानुक्रम MDO की मांग के अनुसार विकेंद्रित और चुस्त दृष्टिकोण के लिए बहुत कठोर और धीमे हैं. स्वायत्तता और स्पष्टता के बीच सही संतुलन बनाना एक कठिन काम है. अंत में, वित्तीय दबाव बोझ में बढ़ोतरी करते हैं. सेनाओं को पारंपरिक ताकत बनाए रखते हुए आधुनिक क्षमताओं में भारी निवेश करना चाहिए. इससे पहले से ही सीमित बजट पर और अधिक दबाव पड़ेगा. 

संक्षेप में कहें तो MDO के लिए केवल तकनीकों को शामिल करने से बहुत ज़्यादा की आवश्यकता है. इसके लिए सिद्धांत, संगठन, मानवीय पूंजी और नेतृत्व की संस्कृति में मौलिक बदलाव करना होगा. 

सैन्य रणनीति पर फिर से विचार 

क्लाजविट्ज़ और जोमिनी जैसे पारंपरिक विचारक रणनीति की परिभाषा भूमि, समुद्र और वायु में सशस्त्र बलों के उपयोग के संदर्भ में देते हैं. लेकिन आज के समय में ये परिभाषा पर्याप्त नहीं है; रणनीति में अब साइबर, अंतरिक्ष और सूचना के माहौल का भी ध्यान रखना होगा. ये ऐसे क्षेत्र हैं जहां हो सकता है कि ताकतों का स्वरूप सेना जैसा न हो जैसे कि हैकर, वाणिज्यिक सैटेलाइट और सोशल मीडिया इन्फ्लूएंसर. आधुनिक परिभाषा ये होनी चाहिए: “शांति, संकट और युद्ध में राजनीतिक उद्देश्यों को हासिल करने के लिए किसी देश की सेना और उससे जुड़ी क्षमताओं- जिसमें भूमि, समुद्र, वायु, अंतरिक्ष, साइबर और सूचना परिवेश शामिल हैं- के पूरे विस्तार को उपयोग करने की कला और विज्ञान. ये लाभ उत्पन्न करने के लिए, शत्रु को विकल्प से नकारने के लिए और राष्ट्रीय नीति के अनुसार संघर्ष की दिशा को आकार देने के लिए इन सभी क्षेत्रों में परिचालनों को एकीकृत करता है और गतिज एवं गैर-गतिज साधनों को मिलाता है.” 

इस तरह MDO के लिए तकनीक के समावेशन से अधिक की आवश्यकता है. इसके लिए सिद्धांत, संगठन और नेतृत्व की संस्कृति में आमूलचूल बदलाव की ज़रूरत है क्योंकि युद्ध की प्रकृति तेज़ी से बदल रही है. सिलसिलेवार अभियान, स्पष्ट युद्ध क्षेत्र और कठोर पदानुक्रमों पर ज़ोर देने वाले पारंपरिक सिद्धांत अब उस युग में पर्याप्त नहीं हैं जहां साइबर, अंतरिक्ष, सूचना और गतिज अभियान लगातार एक-दूसरे से जुड़ते हैं. प्रभावी बने रहने के लिए सैन्य रणनीति को क्षेत्र विशिष्ट सोच की जगह एकीकृत, अनुकूलित और नेटवर्क प्रेरित दृष्टिकोण की तरफ बदलना होगा. 

भारत एक जटिल सुरक्षा माहौल का सामना कर रहा है जहां एक तरफ आक्रामक चीन आधुनिक साइबर, अंतरिक्ष और मिसाइल क्षमताओं के साथ मौजूद है, वहीं दूसरी तरफ अस्थिर पाकिस्तान दुष्प्रचार और आतंकवाद समेत एक अलग तरह के युद्ध का लाभ उठा रहा है.

भारत के लिए ये पुनर्विचार विशेष रूप से आवश्यक है. भारत एक जटिल सुरक्षा माहौल का सामना कर रहा है जहां एक तरफ आक्रामक चीन आधुनिक साइबर, अंतरिक्ष और मिसाइल क्षमताओं के साथ मौजूद है, वहीं दूसरी तरफ अस्थिर पाकिस्तान दुष्प्रचार और आतंकवाद समेत एक अलग तरह के युद्ध का लाभ उठा रहा है. भारत को विरासत में मिले  प्लेटफ़ॉर्म और सेवा केंद्रित संरचना उस समय परिचालन से जुड़ी गति को कम करने का ख़तरा पैदा कर रही है जब भारत के शत्रु MDO जैसी धारणा के साथ पहले से ही प्रयोग कर रहे हैं. सैद्धांतिक और सांगठनिक सुधार के बिना सर्वश्रेष्ठ तकनीकी ख़रीदारी भी एक निर्णायक लाभ देने में विफल हो सकती हैं. 

इतना ही महत्वपूर्ण मानवीय और नेतृत्व का पहलू है. भारत के सशस्त्र बलों को संयुक्त कमान में सामंजस्य बनाए रखते हुए विकेंद्रित और चुस्त निर्णय लेने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए. नेतृत्व करने वालों को सिर्फ युद्ध अभ्यास और सैन्य ताकत ही नहीं बल्कि AI, डेटा एनालिटिक्स, साइबर रक्षा और अंतरिक्ष अभियानों की भी जानकारी रखनी होगी. वित्तीय मजबूरियां इस बदलाव को और भी आवश्यक बना देती हैं- भारत अपने विरोधियों से खर्च के मामले में आगे नहीं बढ़ सकता, इसलिए उसे उनसे अधिक सोचना होगा और उनसे अधिक एकीकरण करना होगा. 

संक्षेप में कहें तो भारत के लिए MDO का अर्थ केवल तकनीक अपनाना नहीं है बल्कि ये तेज़ी से बदलते युद्ध के मैदान में अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए, प्रतिरोध उत्पन्न करने के लिए और निर्णायक प्रभाव सुनिश्चित करने के लिए सैन्य रणनीति में बदलाव करना है.  

MDO के युग में “युद्ध अभ्यास” की फिर से परिभाषा 

पारंपरिक रूप से युद्ध अभ्यास का अर्थ भौतिक बलों यानी सैन्य टुकड़ी, टैंक, जहाज़ों और एयरक्राफ्ट की जान-बूझकर आवाजाही और उन्हें तैनात करना है ताकि किसी क्षेत्र पर कब्ज़ा किया जा सके और निर्णायक रणनीतिक लाभ की स्थिति उत्पन्न की जा सके. मल्टी-डोमेन ऑपरेशन के युग में युद्ध अभ्यास का विस्तार एक अधिक व्यापक, बहुआयामी धारणा तक है जो भौतिक गति को सूचना के प्रवाह, साइबर प्रभाव और अंतरिक्ष आधारित सेंसिंग के साथ मिलाता है. इन बदलावों के अपने परिचालन से जुड़े अर्थ हैं. 

भौतिक से बहुआयामी तक: युद्ध अभ्यास अब केवल सड़कों, समुद्र और हवाई गलियारों तक ही सीमित नहीं है बल्कि ये नेटवर्क, ऑर्बिट और इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेवलेंथ के माध्यम से चलता है. युद्ध क्षेत्र में आगे बढ़ने वाली ब्रिगेड को आक्रमण का संकेत देने वाले अंतरिक्ष के एसेट, वास्तविक समय में निशाना साधने वाले ISR (इंटेलिजेंस, सर्विलांस और रिकोनिसेंस) ड्रोन और दुश्मन के C2 (कमांड और कंट्रोल) में खलल डालने वाली या हवाई सुरक्षा को कमज़ोर करने वाली टीम के साथ जोड़ा जाएगा. सेंसर फीड, साझा नक्शे और भविष्य बताने वाले विश्लेषण के साथ आने वाली सूचनाएं आवाजाही की अदृश्य धमनियां बन जाती हैं जो भौतिक इकाइयों को बहुत अधिक परिस्थितिजन्य जागरूकता के साथ मार्गदर्शन करती हैं. इसलिए परिचालन की योजना को इन विभिन्न परतों पर प्रभाव को निर्देशित करना चाहिए ताकि एक-दूसरे के साथ संघर्ष के बदले भौतिक प्रगति और डिजिटल परिचालन आगे बढ़ सकें.  

गति से प्रभाव तक: आधुनिक युद्ध अभ्यास मात्रा को फिर से स्थापित करने की तुलना में गतिज या गैर-गतिज निर्णायक प्रभाव उत्पन्न करने की क्षमता को महत्व देते हैं. दुश्मन के साजो-सामान के नेटवर्क में साइबर पेलोड की पूर्व स्थिति बनाना, दुश्मन के सेंसर को गलत दिशा में ले जाने के लिए झूठा डेटा भेजना या आक्रमण से पहले सैटेलाइट के लिंक को कमज़ोर करना आक्रमण करने वाली टुकड़ी की तरह ही निर्णायक हो सकता है. पहले से योजना बनाकर ये गैर-भौतिक कार्रवाई भौतिक आगमन से पहले युद्ध के मैदान को आकार देती हैं जिससे ख़तरा कम होता है और सेना का प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है. इसलिए सैन्य कमांडरों को प्रभाव की समय-सीमा के संदर्भ में सोचना चाहिए और ऐसे अभियान तैयार करने चाहिए जो साइबर, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध, सूचना परिचालन और मारक क्षमता को व्यवस्थित कर सकें ताकि अभियान से जुड़े लाभ व्यापक हो सकें. 

सीधी रेखा से व्यापक प्रसार तक: अतीत के सिद्धांत एक निर्णायक बिंदु पर ताकत को केंद्रित करने पर ज़ोर देते थे लेकिन MDO वितरण, नेटवर्क से जुड़ी स्वायत्तता और पहुंच पर ध्यान देते हैं. छोटी, बिखरी हुई इकाइयां (रिमोट सेंसर, घूमने वाले हथियार, ISR टीम और स्वायत्त प्रणालियां) मज़बूत नेटवर्क और लंबी दूरी की मारक क्षमता के साथ जोड़े जाने पर बहुत अधिक प्रभाव हासिल कर सकती हैं. वितरित बल दुश्मन के लक्ष्य को जटिल बना देते हैं और एक साथ कई तरह की दुविधाएं  उत्पन्न करते हैं: रक्षा करें, ड्रोन के झुंड का पीछा करें या सूचना अभियान का मुकाबला करें. इसके लिए मज़बूत, लो-लेटेंसी कम्युनिकेशन, सौंपे गए अधिकार में भरोसा और ऐसे सिद्धांतों की आवश्यकता होती है जो बिखराव को कमज़ोरी के बदले ताकत बढ़ाने के रूप में स्वीकार करें. 

अभियान से जुड़े अर्थ: फिर से परिभाषित इस युद्धाभ्यास को लागू करने के लिए सेनाओं को संयुक्त नियोजन के उपकरणों, विभिन्न क्षेत्रों के प्रशिक्षण, समर्थ C2 संरचनाओं और ऐसे सिद्धांत में निवेश करना होगा जो गतिज और गैर-गतिज कार्रवाइयों को एक ही अभियान के हिस्से के रूप में क्रमबद्ध करते हैं. नेतृत्व करने वालों को अधिकार सौंपने, नेटवर्क पर विश्वास करने और विशुद्ध भौगोलिक चरणों की तुलना में प्रभावों की व्यवस्थित समय सीमा में सोचने को लेकर सहज होना चाहिए. 

संक्षेप में कहें तो MDO में युद्ध अभ्यास अलग-अलग भौतिक और वर्चुअल क्षेत्रों में व्यवस्थित प्रभावों की कला बना जाता है जहां समय, सूचना और एकीकरण उतना ही मायने रखता है जितना कि मात्रा और गति. 

अगर रणनीति अब भौतिक और वर्चुअल क्षेत्रों तक फैली हुई है तो रणनीति बनाने वालों को केवल परिचालन से जुड़ी कला और साजो-सामान में ख़ुद को पारंगत नहीं बनाना चाहिए बल्कि उन्हें बदलना चाहिए.

निष्कर्ष 

अगर रणनीति अब भौतिक और वर्चुअल क्षेत्रों तक फैली हुई है तो रणनीति बनाने वालों को केवल परिचालन से जुड़ी कला और साजो-सामान में ख़ुद को पारंगत नहीं बनाना चाहिए बल्कि उन्हें बदलना चाहिए. रणनीति बनाने वालों को तकनीकी रूप से भी कुशल होना होगा; उन्हें आक्रामक/रक्षात्मक साइबर, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध (EW), डेटा सुरक्षा को अमल में लाने के योग्य होना होगा. साथ ही अंतरिक्ष सक्षम ISR को व्यवस्थित करने, AI आधारित हमलों, निर्णय समर्थन एवं स्वायत्त प्रणालियों का समन्वय करने, नैरेटिव नियंत्रण एवं सोशल मीडिया तिकड़म को निर्धारित करने, विभिन्न क्षेत्रों में तालमेल स्थापित करने, अलग-अलग युद्ध की जगह नेटवर्क सिस्टम तैयार करने में सक्षम होना चाहिए.  

जैसा कि रण संवाद 2025 और भारत के नए सिद्धांत से पता चलता है, सैन्य नेतृत्व का भविष्य केवल युद्ध की कला नहीं बल्कि तकनीक के विज्ञान में भी पारंगत होने में है. यदि अंतिम सदी उन जनरल के नाम थी जो सेनाओं के युद्ध अभ्यास पर ज़ोर देते थे तो आने वाली सदी ऐसा नेतृत्व करने वालों की होगी जो तकनीक पर नियंत्रण करते हैं. 


लेफ्टिनेंट जनरल करणबीर सिंह बराड़, PVSM, AVSM (सेवानिवृत्त) वर्तमान में IITM प्रवर्तक के विशिष्ट रणनीतिक सलाहकार हैं. 

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