Author : Nandan Dawda

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Published on Mar 19, 2024 Updated 0 Hours ago

प्राइवेट गाड़ियों में बेतहाशा बढ़ोतरी ने भारतीय शहरों में पार्किंग की बड़ी समस्या खड़ी कर दी है. पार्किंग स्पेस की मांग बढ़ती जा रही है.

भारतीय शहरों में सड़क पर पार्किंग की समस्या से कैसे निपटें?

भारत में निजी गाड़ियां तेज़ी से बढ़ रही हैं. गाड़ियों की संख्या में बढ़ोत्तरी की सबसे बड़ी वजह लोगों का जीवनस्तर सुधरना है. अलग-अलग आय वर्ग के लोग भी गाड़ी खरीदने में सक्षम हुए हैं. दोपहिया और चौपहिया वाहनों में बढ़ोत्तरी से सड़क पर ट्रैफिक का दबाव बढ़ रहा है. 2019 तक भारत में 295.8 मिलियन यानी करीब 30 करोड़ गाड़ियों का रजिस्ट्रेशन हो चुका था. 2009 से 2019 के बीच गाड़ियों के रजिस्ट्रेशन में 9.91 प्रतिशत की सालाना वृद्धि हुई. 2019 में कुल रजिस्टर्ड गाड़ियों में 75 फीसदी दोपहिया वाहन थे. दोपहिया वाहनों में 10.47 प्रतिशत की सालाना बढ़ोत्तरी हुई जबकि चौपहिया वाहनों में ये वृद्धि दर 10.29 फीसदी रही. 

2018-19 में देशभर में करीब 48 मिलियन गाड़ियां रजिस्टर्ड हुईं. सबसे ज्यादा 11.4 मिलियन गाड़ियों का रजिस्ट्रेशन दिल्ली में हुआ. इसके बाद फरीदाबाद में 8.6 मिलियन, बेंगलुरु में 8.1 मिलियन, चेन्नई में 6 मिलियन जबकि अहमदाबाद में 4.3 मिलियन गाड़ियां रजिस्टर्ड की गई. 2019 में रजिस्टर्ड हुई कुल गाड़ियों में 41.49 प्रतिशत की भागीदारी इन पांच शहरों की थी. खास बात ये है कि दोपहिया वाहनों की खरीदरी में जबरदस्त उछाल देखने को मिल रहा है. 1951 में कुल गाड़ियों में दोपहिया वाहनों की हिस्सेदारी 8.8 फीसदी थी जो 2019 में बढ़कर 79 प्रतिशत हो गई. इस आंकड़े से ये भी पता चल रहा है कि वक्त बदलने के साथ गाड़ियों को लेकर लोगों की पसंद कैसे बदल रही है. 

पार्किंग की सबसे ज्यादा समस्या उन जगहों पर होती है, जहां सबसे ज्यादा ऑफिस होते हैं. जिन्हें हम सेंट्रल बिजनेस डिस्ट्रिक्ट भी कहते हैं. 

यहां पर ये याद रखना ज़रूरी है कि हर गाड़ी को एक तयशुदा पार्किंग की जगह भी चाहिए. फिर चाहे गाड़ी घर में हो, ऑफिस में, बाज़ार में या किसी और जगह. एक गाड़ी आम तौर पर 23 घंटे खड़ी रहती है. पार्किंग की सबसे ज्यादा समस्या उन जगहों पर होती है, जहां सबसे ज्यादा ऑफिस होते हैं. जिन्हें हम सेंट्रल बिजनेस डिस्ट्रिक्ट भी कहते हैं. भीड़ भाड़ वाली जगहों जैसे कि शॉपिंग सेंटर्स में भी यही समस्या दिखती है. ज्यादातर बड़े और छोटे शहरों में सरकारी और प्राइवेट ऑफिस, शॉपिंग सेंटर और बड़े धार्मिक स्थल आसपास ही होते हैं. ऐसे में इन इलाकों में हर वक्त पार्किंग की समस्या बनी रहती है. चूंकि दोपहिया वाहन खरीदने और इन्हें चलाने में कम खर्च आता है, इसलिए मध्यम और छोटे शहरों में अब दोपहिया वाहन लोगों के आने-जाने के मुख्य साधन हो गए हैं. 

निजी वाहनों में हुई ज़बरदस्त बढ़ोत्तरी से पार्किंग की समस्या एक बड़ी चुनौती बन गई है. पार्किंग की मांग जिस तेज़ी से बढ़ रही है, उसने बड़ा संकट पैदा कर दिया है.

भारतीय शहरों में पार्किंग की क्या स्थिति?

भारत के ज्यादातर शहरों में पार्किंग के लिए जगह कम पड़ती जा रही है. इसके दुष्परिणाम भी दिखने लगे हैं. प्रदूषण बढ़ रहा है. गलियों में और फुटपाथों में जिस तरह बेतरतीब ढंग से गाड़ियां खड़ी की जाती हैं उससे सड़क पर और पैदल चलने के जगह कम पड़ रही है. 

पार्किंग को लेकर अब तक जो अध्ययन हुए हैं, उससे हालात की गंभीरता का अंदाज़ा लगाया जा सकता है. एक अध्ययन के मुताबिक सड़क किनारे पार्किंग की वजह से कोलकाता में सड़क की जगह में 35 प्रतिशत, दिल्ली में 14 प्रतिशत, जयपुर में 56 प्रतिशत और कानपुर में 45 प्रतिशत की कमी आई है. गुजरात के गोधरा जैसे छोटे शहर में भी सप्लाई की तुलना में पार्किंग स्पेस की मांग ढाई गुना ज्यादा है. यही हाल दूसरे शहरों का भी है. भारत के ज्यादातर शहरों में पार्किंग स्पेस की मांग की तुलना में इसकी आपूर्ति आधी या उससे कम है. 

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट के एक रिसर्च में ये सामने आया कि शहर के आकार और गाड़ियों की संख्या में बढ़ोत्तरी की दर के हिसाब से देखें तो पार्किंग की मांग बढ़ती ही जा रही है. अगर दिल्ली की बात करें तो यहां पार्किंग की समस्या खत्म करने के लिए 310 फुटबॉल के मैदानों जितनी अतिरिक्त जगह चाहिए. इसी तरह चेन्नई में 100 और चंडीगढ़ में 50 फुटबॉल मैदानों की जितनी अतिरिक्त जगह मिलने से पार्किंग की समस्या का समाधान हो पाएगा. 

 

पार्किंग समस्या को अभी कैसे संभाला जा रहा है?

पार्किंग की समस्या नगर निकायों के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई है, खासकर उन जगहों पर जहां ऑफिस ज्यादा हैं. राष्ट्रीय शहरी परिवहन नीति 2006 (NUTP) में इस बात पर ज़ोर दिया गया था कि पार्किंग फीस का निर्धारण उस जगह की बाज़ार कीमत के हिसाब से होना चाहिए. इस नीति में ये भी सिफारिश की गई थी कि प्रशासन को गाड़ियों को एक निश्चित जगह पार्क करके सार्वजनिक परिवहन इस्तेमाल को बढ़ावा देना चाहिए. इसके अलावा जगह और घंटे के हिसाब से पार्किंग फीस की अलग-अलग दर और बहुमंजिला पार्किंग बनाने की बात भी कही गई है. राष्ट्रीय सतत आवास मिशन में शहरी परिवहन की जो रूपरेखा, उद्देश्य और कार्य योजना बनाई गई है, उसमें भी पार्किंग समस्या को लेकर बात की गई है. इसमें भी एक पार्किंग पॉलिसी बनाने पर ज़ोर दिया गया है जिससे पार्किंग स्पेस की मांग में कमी आए. पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम और नियंत्रण) प्राधिकरण ने सुप्रीम कोर्ट को दिए अपने आवेदन में भी यही बात कही थी. 2006 में राष्ट्रीय शहरी परिवहन नीति पर चर्चा के दौरान भी उसने अपना ये पक्ष रखा था. 

भारत के ज्यादातर शहरों में पार्किंग स्पेस की मांग की तुलना में इसकी आपूर्ति आधी या उससे कम है. 

इसी के बाद कई शहरों में पार्किंग नीति बनाई गई. सूरत, अहमदाबाद, दिल्ली, पुणे, कोलकाता, बेंगलुरु और चंडीगढ़ समेत कई शहरों ने अपनी स्थानीय ज़रूरतों के हिसाब से पार्किंग पॉलिसी बनाई. लेकिन इन पार्किंग नीतियों का अध्ययन करने के बाद ये बात सामने आई कि ये काफी अव्यवस्थित हैं. हालांकि इन नीतियों को स्थानीय ज़रूरतों के हिसाब से बनाया गया लेकिन फिर भी ये नीतियां उन उद्देश्यों को पूरा नहीं कर पा रही, जिसके लिए ये बनाई गईं थीं. 

क्या किए जाने की ज़रूरत है?

पार्किंग की समस्या को सुलझाने के लिए शहरी निकाय जिस तरह उन शहरों की ज़रूरतों के हिसाब से नीतियां बना रहा है, वो एक महत्वपूर्ण पहल तो है लेकिन चिंता की बात ये है कि ये नीतियां कारगर साबित नहीं हो पा रही हैं. नीतियां बनाने और उनके क्रियान्वयन में संतुलन नहीं बैठ पा रहा है. ऐसे में अगर पार्किंग नीति और उसके उद्देश्य में स्पष्टता लाई जाए, उनमें सामंजस्य बिठाया जाए तो इस समस्या में कमी लाई जा सकती है. 

यहां ये याद रखना भी ज़रूरी है कि सिर्फ नीतियां बनाना ही काफी नहीं है. नगर निगमों को चाहिए कि वो पार्किंग मैनेजमेंट कमेटी बनाए जो इन नीतियों को प्रभावी तरीके से लागू कर सकें. इस काम में उन्हें प्राइवेट एजेंसियों की मदद भी लेनी चाहिए. खासकर अवैध पार्किंग की समस्या से निपटने और पार्किंग फीस वसूलने में प्राइवेट कंपनियों की मदद ली जा सकती है. पार्किंग नीति में इस बात का स्पष्ट तौर पर उल्लेख होना चाहिए कि किस एजेंसी की क्या जिम्मेदारी है. ये बताना चाहिए कि पार्किंग ठेकेदार जुर्माना वसूलने के लिए अधिकृत है या नहीं. स्थानीय निकाय और ट्रैफिक पुलिस के काम का साफ-साफ बंटवारा होना चाहिए. इससे इनके बीच समन्वय भी ठीक होगा. काम का दोहराव भी नहीं होगा. 

अगर कोई नगर निगम पार्किंग के काम में प्राइवेट एजेंसियों को शामिल नहीं करना चाहती तो फिर उनके ये ज़रूरी हो जाता है कि वो खुद इस दिशा में बड़ी पहल करे.  ओला मोबिलिटी इंस्टीट्यूट (OMI), इंस्टीट्यूट फॉर ट्रांसपोर्टेशन एंड डेवलपमेंट पॉलिसी (ITDP) और सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) भी अपनी तरफ से पार्किंग समस्या के समाधान के लिए सुझाव दे रहे हैं. लेकिन सबसे ज़रूरी ये है कि स्थानीय निकाय से जुड़े लोगों को इस बारे में ट्रेनिंग देने के साथ-साथ व्यावहारिक काम करके भी दिखाना चाहिए. तभी मध्यम और छोटे शहरों में पार्किंग को लेकर प्रभावी नीतियां बन सकेंगी और उनका असरदार तरीके से क्रियान्वयन हो सकेगा. 

खासकर अवैध पार्किंग की समस्या से निपटने और पार्किंग फीस वसूलने में प्राइवेट कंपनियों की मदद ली जा सकती है. पार्किंग नीति में इस बात का स्पष्ट तौर पर उल्लेख होना चाहिए कि किस एजेंसी की क्या जिम्मेदारी है.

स्थानीय निकायों को एक और काम करना चाहिए. पार्किंग समस्या पर नीति बनाने से पहले आम लोगों की राय भी लेना चाहिए. सर्वे करके ये जानना चाहिए कि पार्किंग को लेकर लोगों की क्या चिंताएं हैं, क्या उम्मीदें हैं. नीतियां आम नागरिकों की राय के हिसाब से होंगी, तभी वो अपने उद्देश्य में कामयाब हो पाएंगी. 

स्थानीय निकायों को पार्किंग नीति का निर्धारण इस तरह करना चाहिए कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके. यहां ये भी ध्यान रखना ज़रूरी है कि सार्वजनिक परिवहन सेवा सुरक्षित हो, सुविधाजनक हो, समय पर संचालित होती हो और सस्ती भी हो. अगर मौजूदा स्थिति को देखें तो पार्किंग की जगह की असली कीमत और उस हिसाब से पार्किंग फीस के निर्धारण में काफी अंतर है. प्राइवेट गाड़ियों के मालिकों को ज्यादा पार्किंग फीस नहीं चुकानी पड़ती. इसीलिए वो निजी वाहन का इस्तेमाल करते हैं. इससे शहरों पर बोझ बढ़ता है. ट्रैफिक जाम की समस्या पैदा होती है. 

सस्ती पार्किंग फीस की वजह से स्थानीय निकायों को आर्थिक नुकसान तो होता ही है साथ ही ज्यादा गाड़ियों के इस्तेमाल से पर्यावरण पर भी बुरा असर पड़ता है. पार्किंग स्पेस की मांग बढ़ती जाती है. हालांकि अगर पार्किंग फीस बढ़ाई जाती है तो इससे नगर निकायों की आय तो बढ़ेगी लेकिन सिर्फ आय बढ़ाने के लिए हरित क्षेत्र को पार्किंग एरिया में बदलने की प्रवृत्ति को हतोत्साहित करना चाहिए. इतना ही नहीं इस बात को भी सुनिश्चित करना चाहिए कि पार्किंग फीस से जो आय हो रही है उसका इस्तेमाल शहरों में सार्वजनिक परिवहन की व्यवस्था को सुधारने और उसका विकास करने में होना चाहिए. बिना ईंधन के चलने वाले परिवहन साधनों (नॉन मोटराइज्ड ट्रांसपोर्टेशन, NMT) को बढ़ावा देने में ये रकम खर्च करनी चाहिए.

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