Published on Aug 30, 2022 Updated 0 Hours ago

एक ओर जहां नशीद ने अपने बहुचर्चित प्रस्ताव को ‘ठंडे बस्ते’ में डाल दिया है, वहीं यामीन ने ‘भारत बाहर जाओ’ अभियान से दूरी बना ली है.

मालदीव: 2023 के राष्ट्रपति चुनाव के लिए सोलिह की उम्मीदों को मिला बल

मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी (एमडीपी) की राष्ट्रीय कांग्रेस की बैठक उम्मीदों के विपरीत बगैर किसी ‘कार्रवाई’ के संपन्न हो गई. इस बैठक में राष्ट्रीय कांग्रेस ने राष्ट्रपति इब्राहिम ‘इबू’ सोलिह के नेतृत्व में अपना अभेद्य भरोसा भी व्यक्त किया. इसके साथ ही अब फिलहाल ऐसा लगता है कि सोलिह के लिए पार्टी की मुख्य बैठक में अगले वर्ष होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में दोबारा खड़ा होने के लिए समर्थन हासिल करने का रास्ता भी साफ हो गया है. वैसे वे चाहते भी यही थे कि पार्टी की प्राथमिकता  ही उन्हें इस चुनाव के लिए अपना समर्थन दे. ऐसा इसलिए भी लगता है क्योंकि उनके मित्र से प्रतिद्वंद्वी बने संसद के स्पीकर और पार्टी अध्यक्ष मोहम्मद ‘अन्नी’ नशीद ने कांग्रेस के समापन सत्र में संसदीय योजना को अपनाने से जुड़े अपने बहुचर्चित प्रस्ताव को ठंडे बस्ते में डालने का फैसला करते हुए उनकी राह आसान कर दी. अब देखना यह है कि क्या नशीद राष्ट्रपति चुनाव को लेकर पार्टी की मुख्य बैठक में स्वयं चुनाव में खड़े होने की दावेदारी पेश करेंगे या फिर वे अपने किसी प्रतिनिधि को मैदान में उतारेंगे. नेशनल कांग्रेस की बैठक के बाद जल्द ही होने वाली इस बैठक को लेकर सोलिह कुछ सप्ताह पहले ही अपनी उम्मीदवारी की घोषणा कर चुके हैं.

सोलिह के लिए पार्टी की मुख्य बैठक में अगले वर्ष होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में दोबारा खड़ा होने के लिए समर्थन हासिल करने का रास्ता भी साफ हो गया है. वैसे वे चाहते भी यही थे कि पार्टी की प्राथमिकता  ही उन्हें इस चुनाव के लिए अपना समर्थन दे.

21 अगस्त 2022 को समाप्त हुई पार्टी कांग्रेस की तीन दिवसीय बैठक के समापन सत्र में नशीद, जो पहले ही मीडिया के माध्यम से सोलिह की शासन व्यवस्था में परिवर्तन को लेकर बदलाव संबंधी प्रस्ताव को वापस लेने की अपील ठुकरा चुके थे, ने मतदान को लेकर चल रही चर्चा में अपनी बात रखने के लिए मंच पर पहुंचते ही यह घोषणा कर दी कि वे अपने ‘प्रस्ताव को रोक’ रहे हैं. उन्होंने कहा कि वे ऐसा इस संबंध में राष्ट्रपति समेत अन्य के साथ अपने प्रस्ताव पर और चर्चा करने के लिए कर रहे हैं. हालांकि टीम नशीद के एक सदस्य ने पहले दावा किया था कि पार्टी प्रमुख ने अपना प्रस्ताव वापस नहीं लिया है और इस पर मतदान होगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

यह सब कुछ इसके बावजूद हुआ कि नशीद ने संकेत दिया था कि यदि जनमत संग्रह नहीं हुआ तो वे ‘एमडीपी’ को छोड़ देंगे. ऐसा करते हुए नशीद ने अपरोक्ष रूप से चुनाव आयोग अध्यक्ष फवाद तौफिक के उस बयान को चुनौती दी थी, जिसमें तौफिक ने कहा था कि जनमत संग्रह के लिए 100 मिलियन एमवीआर खर्च होंगे (कोविड के बाद उपजे आर्थिक संकट के इस दौर में), और कहा था कि आप किसी भी कारण से नागरिकों को जनमत संग्रह से वंचित नहीं रख सकते. इसके पहले भी उन्होंने दावा किया कि था कि संभवत: अगले वर्ष फरवरी में होने वाले जनमत संग्रह का संक्रमणकालीन चरण आरंभ हो जाएगा और इसे लेकर हो रही बहस में राष्ट्रपति शामिल नहीं हैं, अत: सोलिह को इससे दूर रहना चाहिए.

अभी यह निष्कर्ष निकाल लेना तो काफी मुश्किल है कि क्या संसदीय योजना को किसी अन्य मंच पर कोई और सही वक्त देखकर उठाया जाएगा या नहीं, लेकिन इतना तो साफ है कि एमडीपी के भीतर इस मुद्दे के भविष्य पर मुहर लग चुकी है. आश्चर्यजनक रूप से चिरप्रतिद्वंद्वी और पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने नशीद के प्रस्ताव को संकल्पना के रूप में योग्य मानकर समर्थन किया था, लेकिन कहा था कि जनमत संग्रह में मालदीव के नागरिकों का इसे समर्थन नहीं मिलेगा.

ऐसे में यह कहा जा सकता है कि नशीद खेमे ने बस विस्फोट की धीमी जांच को लेकर पार्टी कांग्रेस में जो आरोप लगाया था उसे लेकर गंभीरता से कोई बात ही नहीं हुई.

एमडीपी के अधिकांश नेता, जिसमें पार्टी के अध्यक्ष और आर्थिक मामलों के मंत्री फैयाज इस्माइल और सहयोगी दल जैसे जम्हुरी पार्टी के गासीम इब्राहिम और गृह मंत्री शेख इमरान ने नशीद के प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया था. विदेश मंत्री अब्दुल्ला शाहिद, जिन्हें नशीद ने सोलिह के खेमे में कील ठोंकने के उद्देश्य से राष्ट्रपति पद के लिए एक अच्छा उम्मीदवार बताया था, और जो यूएनजीए अध्यक्ष के रूप में अपने निर्वाचित कार्यकाल का एक वर्ष पूरा करने जा रहे हैं, ने भी इस विचार का समर्थन किया था. इसी प्रकार विपक्षी एमडीए के अहमद शियाम और एमएनपी के कर्नल (सेवानिवृत्त) मोहम्मद नाजीम भी ऐसा करने वालों में शामिल थे.

आगे की राह 

पार्टी की बैठक में सोलिह ने अपने समापन संबोधन में कहा था कि, “कैसे कांग्रेस की बैठक तनाव के साथ आरंभ हुई, लेकिन अब एक उदाहरणात्मक अंदाज में संपन्न हो रही है.” उद्घाटन दिवस के मौके पर राष्ट्रपति ने कहा था कि, “मतभेदों के बावजूद पार्टी आगे बढ़ेगी” लेकिन यह संकेत नहीं दिया था कि यह एकता के साथ आगे बढ़ेगी अथवा नहीं. भले ही आसानी से नहीं, लेकिन निर्णायक कांग्रेस की बैठक के लिए सोलिह को ही श्रेय दिया जाना चाहिए, क्योंकि उन्होंने ही किसी गुढ़ नेता के तौर तरीके अपनाते हुए कुशलता के साथ सख्ती बरतते हुए अपने समर्थकों को किसी भी मौके पर किसी भी कारण को लेकर अतिउत्साही होने का अवसर प्रदान नहीं किया था.  

शायद मानसिक संतुलन के इसी प्रदर्शन के कारण सोलिह को पार्टी, जो पूरी तरह नशीद के कब्जे में थी, को अपने पक्ष में करने में सहायता मिली. नशीद, एक ऐसे प्रतिद्वंद्वी का सामना करने के लिए तैयार नहीं थे, जो प्रतिक्रिया न देता हो और इसी वजह से दूसरे को भड़काने की बजाय वह उसे निरर्थक बना देता हो. शायद इसी प्रक्रिया की वजह से अपने कुछ चुनिंदा समर्थकों के अतिउत्साह से प्रेरित होकर बेसब्रे नशीद, सोलिह के राष्ट्रपति पद के चार वर्षो में हर बार कोई न कोई गलत आकलन करते चले गए. और इसी वजह से पिछले वर्ष बम विस्फोट में घायल होने के बाद उनके पक्ष में सहानुभूति की जो लहर चली थी और जिसने उनके पुराने आकर्षण को लौटा दिया था, बगैर किसी को पता चले खत्म हो गई. उदाहरण के तौर पर पार्टी कांग्रेस में उन्होंने निचले स्तर के कुछ प्रतिनिधियों के चुनाव की वैधता पर सवाल खड़े किए तो उन्हें प्रतिनिधियों की रोषभरी नारेबाजी का सामना करना पड़ा, परिणामस्वरूप उन पर अपनी बात समाप्त करने से पहले ही आधे में भाषण समाप्त करने की नौबत आ गई.

ऐसे में यह कहा जा सकता है कि नशीद खेमे ने बस विस्फोट की धीमी जांच को लेकर पार्टी कांग्रेस में जो आरोप लगाया था उसे लेकर गंभीरता से कोई बात ही नहीं हुई. इसी तरह पूर्व में नशीद ने सोलिह के मंत्रियों पर भ्रष्टाचार को लेकर जो आरोप लगाए थे उनको लेकर ही कोई बात हुई, क्योंकि ‘समलैंगिक कांड’, जिसमें नशीद के अधिवक्ता भाई नाजीम सत्तार को भी गिरफ्तार किया गया था, भी अनेक लोगों को शर्मिदा कर रहा था. पार्टी के अंदरुनी मामलों पर ध्यान केंद्रित होने की वजह से  ही ‘इस्लामिक कट्टरता’, आईएसआईएस की मौजूदगी और सरकार को घेरने के लिए नशीद खेमे के पसंदीदा मॉड्यूल के मुद्दे को लेकर ही कोई बात हुई चाहे वह एमडीपी की हो या फिर पूर्व के विरोधियों की.

राष्ट्रपति के रूप में नशीद ने 2008 में, उस गठबंधन को  जिसने उन्हें चुनाव जीतने में सहायता की थी, उसे ही नष्ट करने की कोशिश की थी और दूसरे चरण में इसी वजह से ऐसी स्थिति उपजी थी

और तो और दूसरे पक्ष ने भी कांग्रेस की शुरुआत से पहले नशीद को स्पीकर के रूप में हटाने को लेकर कोई बात नहीं की, बाजवूद इसके कि नशीद ने दावा किया था उनके पास राष्ट्रपति सोलिह के व्याभिचार करने के सचित्र सबूत मौजूद हैं. नशीद ने संयोग से यह कथित दावा किया था कि उनके पास सचित्र सबूत मोबाइल में मौजूद हैं. लेकिन माले के एक पत्रकार से बात करते हुए नशीद ने स्वीकार किया था कि लंदन के एक रेस्तरां में वह मोबाइल उनसे किसी ने छीन लिया था, लेकिन इस बात को लेकर उन्होंने यूनाइटेड किंगडम में कोई आधिकारिक शिकायत पुलिस में दर्ज नहीं करने का निर्णय लिया था. यह संयोग ही है कि मालदीव की पुलिस ने नशीद की उस शिकायत पर भी आगे कोई कार्रवाई नहीं की है, जिसमें उन्होंने सोलिह पर व्याभिचार का आरोप लगाया था. 

गठबंधन की पहेली

कांग्रेस के आयोजन का वक्त पास आते- आते ही खासतौर पर नशीद ने यह जोर देकर कहा था कि अगर एमडीपी ने संसदीय प्रणाली नहीं अपनाई तो पार्टी अपने 42 प्रतिशत समर्थकों का विश्वास खो देगी और यह सोचना कि गठबंधन जारी रहेगा किसी मृगतृष्णा जैसा ही होगा. लेकिन कांग्रेस में कोई भी उनकी बात का समर्थन करता नहीं दिखा, जहां उन्होंने संकेत दिया था कि यदि जनमत संग्रह नहीं हुआ तो वे पार्टी में नहीं रहेंगे. यही उनकी समस्या थी कि वे पार्टी, संसद, सरकार और संवैधानिक मंच के बीच कोई खास फर्क किए बगैर अपनी योजनाओं पर बिना किसी परीक्षण के अपनी बात रखते रहे.

शायद, सोलिह ने अपने बचपन के मित्र और राजनीतिक पथप्रदर्शक को कांग्रेस में जवाब देते हुए यह भरोसा जताया था कि गठबंधन न केवल जारी रहेगा, बल्कि और अधिक वोट” हासिल करेगा. हालांकि उनका निहितार्थ वाला यह बयान कि “एमडीपी का जन्म उस वक्त हुआ, जब अत्याचार ने सीमा पार कर दी थी”, में एमडीपी के तीन सहयोगियों में से एक को नाराज करने की क्षमता थी. मौमून रिफॉर्म मूवमेंट (एमआरएम) के संस्थापक और पूर्व राष्ट्रपति मौमूद अब्दुल गयूम, 1978 से 2008 के बीच सत्ता में थे, जब कथित ‘अत्याचार’ हुआ था.

राष्ट्रपति के रूप में नशीद ने 2008 में, उस गठबंधन को  जिसने उन्हें चुनाव जीतने में सहायता की थी, उसे ही नष्ट करने की कोशिश की थी और दूसरे चरण में इसी वजह से ऐसी स्थिति उपजी थी कि उनकी सरकार अपने कार्यकाल के संपूर्ण दौर में संसद में अल्पमत में ही रही थी. यह एक ऐसी बचने योग्य बाधा थी, जिसकी वजह से ‘जीएमआर मुद्दे’ जैसे विवाद हुए, जिसने उनकी सरकार को प्रभावित करने के अलावा भारत जैसे महत्वपूर्ण देश के साथ मालदीव के संबंधों पर भी असर डाला.

इसी प्रकार 2018 के राष्ट्रपति चुनाव में, जिसमें सोलिह ने साझा उम्मीदवार के रूप में विजय हासिल की थी, जब गठबंधन आकार ले रहा था तब भी नशीद ने इसका विरोध किया था और कहा था कि अगले माह में होने वाले संसदीय चुनाव में यह गठबंधन जारी नहीं रहेगा. एमडीपी ने उस वक्त 87 में से 65 संसदीय सीटों पर जीत दर्ज की, इसमें से अधिकांश बेहद कम वोटों से, और इसने नशीद के पार्टी समर्थकों और मतदाताओं में विश्वास को मजबूत किया था. हालांकि पार्टी के अन्य वरिष्ठ सदस्यों ने इस बात की ओर भी ध्यान आकर्षित किया है कि पार्टी ने कभी भी अपने दम पर 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट हासिल नहीं किया है, जो सीधे तौर पर राष्ट्रपति चुनाव जीतने के लिए आवश्यक होता है.

यामीन के गुमशुदा टी-शर्ट्स

उल्लेखनीय है कि विपक्षी राष्ट्रपति उम्मीदवार यामीन भी पिछले दो वर्षो के अपने ‘भारत बाहर/भारतीय सेना बाहर’ के पसंदीदा अभियान से दूर होते दिखाई दे रहे हैं. 19 अगस्त 2022 को हुई पीपीएम-पीएनसी रैली में, जिसमें यासीन को आधिकारिक रूप से राष्ट्रपति पद की दावेदारी दी गई थी, आए समर्थकों ने पार्टी की पारंपरिक गुलाबी टाई पहन रखी थी और पिछले कुछ माह से पहन रहे ‘भारत बाहर’ के नारे लिखी लाल टी-शर्ट नदारद दिखाई दी. यासीन ने भी राष्ट्रपति पद की दावेदारी स्वीकारते हुए अपने संबोधन में सीधे भारत का नाम तो नहीं लिया, लेकिन यह जरूर कहा कि “देश की सार्वभौमिकता के लिए खतरा बनने वाले हर समझौते को खारिज करना आवश्यक है.” लेकिन उन्होंने अपने इस बयान पर और ज्यादा विस्तार से बात नहीं की.

यासीन ने भी राष्ट्रपति पद की दावेदारी स्वीकारते हुए अपने संबोधन में सीधे भारत का नाम तो नहीं लिया, लेकिन यह जरूर कहा कि “देश की सार्वभौमिकता के लिए खतरा बनने वाले हर समझौते को खारिज करना आवश्यक है.”

इसके स्थान पर यासीन ने, जैसा कि होना चाहिए था, सोलिह सरकार पर निशाना साधा और आरोप लगाया कि उनकी सरकार ने ‘कोई काम नहीं’ किया है. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सोलिह सरकार भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद में लिप्त है. उन्होंने दावा किया कि वर्तमान सरकार ने “इस प्यार के मौसम में उनकी सरकार द्वारा छोड़ी गई देश की तिजोरी को खाली कर दिया है.” प्यार के मौसम की बात करते हुए उन्होंने युवाओं पर ध्यान केंद्रित किया और कहा कि चुनाव के इस दौर में नौकरियां पैदा करने का सीधा-सा अर्थ यह है कि भ्रष्टाचार हो रहा है. इसके बावजूद वर्तमान सरकार ने 2018 में सत्ता में आने के बाद से अब तक केवल 4000 नौकरियां ही उपलब्ध करवाई हैं. युवा मामलों के मंत्री मालूफ ने इस दावे को तुरंत खारिज करते हुए कहा सरकार ने 17,000 से ज्यादा नौकरियां दी हैं.

यामीन समर्थक मीडिया का एक वर्ग, सूचना आयुक्त से मिल विभिन्न जवाबों को आधार बनाकर रोजाना ही वरिष्ठ मंत्रियों और पार्टी नेताओं से जुड़े लोगों की ‘राजनीतिक नियुक्तियों’ का मामला उठा रहा है. ये नियुक्तियां देश के विदेशी दूतावासों में की गई हैं, जिसे अब भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद की संज्ञा दी जा रही है. हाल ही में उस वर्ग ने, सोलिह के रिश्तेदारों का एक आवासीय परियोजना से संबंध होने का दावा करते हुए यह दर्शाने की कोशिश की है कि यह एक तरह का घोटाला है. अब यह देखना बाकी है कि यदि विपक्ष इन सभी मुद्दों को जोड़कर अपने प्रचार का आधार बनाने में सफल हो जाता है तो इसका पार्टी समर्थकों और मतदाताओं पर क्या असर होगा.

पीपीएम के एक वरिष्ठ नेता ने लंबित अदालती मामलों का जिक्र करते हुए कहा कि, ‘यदि जैसा कि आरोप लगाया गया है यामीन ने सरकार के ‘एमएमपीआरसी घोटाले’ में धन चुराया है तो अब तक इस धन का पता लग जाना चाहिए था. हकीकत यह है कि इस मामले में दो आपराधिक मामले अब भी लंबित हैं, जिसमें से एक में निचली अदालत का फैसला अगले माह आने वाला है, जबकि एक अन्य मामले में अहम सुनवाई की शुरुआत होनी है. सर्वोच्च न्यायालय ने यामीन के खिलाफ काले धन को वैध करने के पहले तीन मामलों में उन्हें तकनीकी आधार पर बरी कर दिया है, जबकि उन्हें नए मामलों में अपनी दोषमुक्ति हासिल करनी है, ताकि वह अगले वर्ष होने वाले राष्ट्रपति के चुनाव में उतर सकें.

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