जैसे-जैसे हिंद महासागर में स्थित द्वीपीय समूहों का देश मालदीव चुनाव की तरफ़ बढ़ रहा है, वैसे-वैसे चुनाव अभियान का फोकस कोविड के बाद बढ़ रही घरेलू चिंताओं के बदले ‘बाहरी कारणों’ की तरफ़ तेज़ हो रहा है. मालदीव में राष्ट्रपति का चुनाव अगले साल की तीसरी तिमाही से पहले नहीं है और हम देख सकते हैं कि भारत विरोधी/चीन विरोधी अभियान का राजनीतिक चर्चाओं में दबदबा है जबकि मुद्दे कई और भी हैं जैसे कि एक तरफ़ राजनीतिक भ्रष्टाचार के आरोप हैं तो दूसरी तरफ़ अभूतपूर्व विकास की गतिविधियां.
मालदीव में राष्ट्रपति का चुनाव अगले साल की तीसरी तिमाही से पहले नहीं है और हम देख सकते हैं कि भारत विरोधी/चीन विरोधी अभियान का राजनीतिक चर्चाओं में दबदबा है
दो घटनाओं ने मौजूदा मिज़ाज को बढ़ाया है. पहली घटना राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह के द्वारा एक आदेश को लागू करना है जिसके तहत विपक्षी पीपीएम-पीएनसी गठबंधन के ‘इंडिया आउट’ अभियान पर पाबंदी लगा दी गई है. इस फ़ैसले ने वर्तमान परिस्थिति की असंभावना को रेखांकित किया है. दूसरी घटना सोलिह की सत्ताधारी मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी (एमडीपी) के अध्यक्ष मोहम्मद ‘अन्नी’ नशीद, जो संसद के स्पीकर भी हैं, के द्वारा भारत की राजधानी दिल्ली में एक बार फिर से चीन के ‘कर्ज़ जाल’ का विरोध है. चीन से ये कर्ज़ विरोधी नेता और पीपीएम के प्रमुख अब्दुल्ला यामीन की पूर्ववर्ती सरकार (2013-18) के दौरान लिया गया था.
पाबंदी और उसके बाद
‘इंडिया आउट’ अभियान पर पाबंदी लगाने वाली राष्ट्रपति की आज्ञा इसलिए ज़रूरी हो गई क्योंकि यामीन गुट के द्वारा चलाया जा रहा बेबुनियाद प्रदर्शन मालदीव के लिए शर्मिंदगी का कारण बन गया था. कोविड के बाद के दौर में मालदीव की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए भारी मात्रा में बाहरी फंडिंग और बड़ी संख्या में विदेशी पर्यटकों की वापसी की ज़रूरत है. लेकिन मुख्य विपक्षी पार्टी के द्वारा मालदीव के सबसे नज़दीकी पड़ोसी और सबसे ज़्यादा सहायता देने वाले देश के ख़िलाफ़ कभी ख़त्म नहीं होने वाले अभियान दूसरे देशों और उनके पर्यटकों को मालदीव में अपने भविष्य को लेकर ग़लत संकेत दे रहे थे. इससे भी ज़्यादा हैरानी की बात ये है कि यामीन गुट अपने भारत विरोधी नारे को अदालत में ले जाने के बदले मालदीव के अलग-अलग हिस्सों तक ले गया. माले की आपराधिक मामलों की अदालत ने सफ़ाई दी है कि ‘इंडिया आउट’ अभियान पर पाबंदी लगाने वाले उसके अप्रैल के हुक्म में कई बातें शामिल हैं जैसे कि ग़लत वाक्य विन्यास और दीवारों पर चित्र के सहारे प्रदर्शन. ये ऐसे तरीक़े थे जिनका इस्तेमाल प्रदर्शनकारी कर रहे थे. हालांकि, इस बात को लेकर भी स्पष्टता नहीं है कि यामीन गुट ने सर्वोच्च अदालत का रुख़ क्यों नहीं किया. अगर वो अपने अभियान को लेकर इतने पक्के थे तो वो ‘अभिव्यक्ति और एक जगह इकट्ठा होने की स्वतंत्रता’ के उल्लंघन का आरोप लगाकर सर्वोच्च अदालत में अपील कर सकते थे.
‘इंडिया आउट’ अभियान पर पाबंदी लगाने की आज्ञा लागू करते समय राष्ट्रपति सोलिह ने स्पष्टीकरण दिया कि इससे 2008 में देश के पहले बहुदलीय लोकतंत्र के संविधान के तहत सुनिश्चित अधिकारों का उल्लंघन नहीं होता है.
‘इंडिया आउट’ अभियान पर पाबंदी लगाने की आज्ञा लागू करते समय राष्ट्रपति सोलिह ने स्पष्टीकरण दिया कि इससे 2008 में देश के पहले बहुदलीय लोकतंत्र के संविधान के तहत सुनिश्चित अधिकारों का उल्लंघन नहीं होता है. राष्ट्रपति की आज्ञा और/या अदालत के हुक्म का उल्लंघन करने पर जुर्माने को लेकर स्पष्टता भी है. साथ ही ये भी पता है कि पाबंदी के तहत राष्ट्रपति चुनाव से पहले होने वाली राजनीतिक रैलियों में दिया गया भाषण आता है या नहीं. यामीन गुट ने कोई वैकल्पिक अभियान का मंच और/या नारा तैयार नहीं किया है जिसका ये मतलब है कि वो क़ानूनी पाबंदी की अवहेलना, गिरफ़्तारी देकर, इत्यादि के ज़रिए ‘इंडिया आउट’ अभियान को चलाना जारी रखेगा. क्या ऐसी स्थिति में चुनाव आयोग (ईसी) छोटे या बड़े स्तर पर कोई क़दम उठाएगा- अगर हां तो कैसे और कितना बड़ा?
इसी तरह विपक्षी पीपीएम-पीएनसी के सदस्यों ने संसद की ‘241 राष्ट्रीय सुरक्षा समिति’ का रुख़ किया है. उन्होंने आरोप लगाया है कि यामीन की सुरक्षा को ख़तरा है. इसकी वजह एक सोशल मीडिया पोस्ट बताई गई है जिसमें एक युवक ने यामीन को उनके भारत विरोधी रवैये के लिए धमकी दी है. इस समिति को पहले ही स्पीकर नशीद पर ख़तरे के बारे में बताया जा चुका है. नशीद के परिवार ने 6 मई 2021 के बम हमले की बरसी पर माले धमाके में ‘फंडिंग करने वाले लोगों’ की पहचान की अपनी मांग को दोहराया है. इस बीच पुलिस ने यामीन को एक युवक के द्वारा धमकी के मामले में छानबीन की है. धमकी देने वाले युवक की पहचान आदम आसिफ़ के तौर पर हुई है जो एक छोटे से संगठन ‘मालदीव यूथ फोर्स’ की अगुवाई करता है.
नशीद ने अपनी दिल्ली यात्रा के दौरान भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल से भी मुलाक़ात की. ऐसे बहुत कम मौक़े आते हैं जब किसी दूसरे देश का ग़ैर-सरकारी नेता सार्वजनिक रूप से भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार से मिलता है. इस मुलाक़ात के दौरान नशीद ने डोभाल को ‘भू-राजनीति का ग्रैंडमास्टर’ बताया.
क्या बीआरआई में शामिल होना एक ग़लती थी?
स्पीकर नशीद, जो मालदीव के पहले लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित राष्ट्रपति थे (2008-12), ने अपनी दिल्ली यात्रा के दौरान वार्षिक रायसीना डायलॉग को संबोधित करने के अलावा भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर से भी मुलाक़ात की. नशीद ने अपनी दिल्ली यात्रा के दौरान भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल से भी मुलाक़ात की. ऐसे बहुत कम मौक़े आते हैं जब किसी दूसरे देश का ग़ैर-सरकारी नेता सार्वजनिक रूप से भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार से मिलता है. इस मुलाक़ात के दौरान नशीद ने डोभाल को ‘भू-राजनीति का ग्रैंडमास्टर’ बताया. लोकसभा के स्पीकर ओम बिरला के साथ नशीद की मुलाक़ात के दौरान दोनों नेताओं ने भारत-मालदीव संसदीय मैत्री समूह के गठन का निर्णय लिया. ये सभी क़दम मालदीव में भारत के द्वारा फंड किए जा रहे बड़े आधारभूत ढांचों और सामाजिक परियोजनाओं के अलावा हैं. सोलिह सरकार के सत्ता में आने के बाद ख़ास तौर पर भारत की तरफ़ से इन परियोजनाओं को लेकर तेज़ी आई है. हाल के वर्षों में नशीद का दिल्ली दौरा उनके चीन विरोधी, यामीन विरोधी बयानों के लिए ज़्यादा मशहूर रहा है. उन्होंने एक के बाद एक कई मीडिया इंटरव्यू के दौरान अपने देश में चलाए जा रहे ‘इंडिया आउट’ अभियान को ‘मनगढ़ंत मुद्दा’ बताया और बार-बार इस बात की तरफ़ ध्यान दिलाया कि बड़ी तादाद में भारतीय डॉक्टर, नर्स, शिक्षक और दूसरे पेशेवर मालदीव की सेवा कर रहे हैं. नशीद ने दावे के साथ कहा कि यामीन का ‘इंडिया आउट’ अभियान ‘नफ़रती अपराध’ की तरह है और इससे नस्लवाद का पता चलता है.
चीन के बारे में नशीद ने कहा कि उसने विकासशील देशों में जिन परियोजनाओं की फंडिंग की, उनकी क़ीमत में ‘जानबूझकर बढ़ोतरी’ की. नशीद ने ये भी कहा कि यामीन के शासन में “बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) में हमारा शामिल होना एक ग़लती थी”.नशीद को ये भी लगा कि भारत विरोधी अभियान के पीछे चीन का हाथ था. एमडीपी के दूसरे नेता जैसे कि अनुभवी सांसद इब्राहिम शरीफ़ भी इस बात पर ज़ोर देते रहे हैं कि “मालदीव की स्वतंत्रता और प्रादेशिक अखंडता की रक्षा करने के लिए भारत की मदद महत्वपूर्ण है’. दिलचस्प बात ये है कि किसी सबूत या औचित्य के बिना भारत पर निशाना साधने के बाद भी यामीन किसी न किसी तरह से चीन को लेकर दृढ़तापूर्वक शांत रहे हैं. शायद यही वजह है कि चीन की मौजूदा राजदूत को मालदीव के साथ अपने संबंधों का बचाव करने को मजबूर होना पड़ा है.
पिछले कुछ समय से सोलिह गुट के साथ जुड़े लोगों ने इस लड़ाई को विरोधी खेमे तक ले जाने की शुरुआत भी की है. इसके लिए उन्होंने नशीद के क़रीबी लोगों पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है. साथ ही ये भी आरोप लगा रहे हैं कि सरकारी ठेकों को लागू करने नशीद के क़रीबी लोगों का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा है.
दिल्ली में मीडिया के साथ नशीद के इंटरव्यू के बाद माले में चीन की राजदूत वांग लिशिन ने दोहराया कि “मालदीव की ज़मीन पर चीन के कब्ज़े का आरोप पूरी तरह से बदनाम करने की कोशिश है”. इस घटनाक्रम के दौरान राजदूत लिशिन ने यामीन के राष्ट्रपति कार्यकाल को दूर रखा. उन्होंने कहा कि (जल्दबाज़ी में किए गए) यामीन के ज़माने के द्विपक्षीय मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) को लेकर मालदीव का ख़राब प्रदर्शन ‘चीन के कारोबार को चिंतित करता है और उन्हें इस बात का शक है कि एक अनिच्छुक देश में उनका निवेश सुरक्षित रहेगा या नहीं’.
बढ़ते घरेलू विवाद
मालदीव में लोकतंत्र की जड़ें अभी भी गहरी नहीं हैं और एमडीपी को अभी भी लोकतंत्र के प्रतीक के रूप में देखा जाता है. लेकिन मई के तीसरे हफ़्ते में एमडीपी के अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए अभियान की समय सीमा ने पार्टी की मुश्किलों को बढ़ा दिया है.
आर्थिक विकास मंत्री फैयाज़ इस्माइल के अलावा सांसद इम्तियाज़ फ़हमी, जिन्हें क्रमश: सोलिह और नशीद के साथ जोड़ा जाता है, चुनाव मैदान में हैं. हालांकि, सोलिह और नशीद में से किसी ने भी अभी तक औपचारिक तौर पर उनकी उम्मीदवारी का समर्थन नहीं किया है. पिछले साल के आख़िर में पार्टी की जनरल काउंसिल के चुनाव में बड़े अंतर से सोलिह गुट की जीत, उसके बाद इस साल की शुरुआत में सदन के नेता के पद पर कब्ज़ा और अब अगर अध्यक्ष के पद पर सोलिह गुट की जीत होती है तो नशीद को रक्षात्मक मुद्रा में आना पड़ सकता है. वहीं अगर कई वर्षों से पार्टी के निर्वाचित अध्यक्ष रहे नशीद के क़रीबी इम्तियाज़ फ़हमी पार्टी के अध्यक्ष बने तो सोलिह को रक्षात्मक रुख़ अख्तियार करना पड़ेगा. एमडीपी के दोनों गुट सार्वजनिक रूप से एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं. इसकी वजह से पार्टी को शर्मिंदगी का सामना करना पड़ रहा है और पिछले एक दशक या ज़्यादा समय से पार्टी के ग़ैर-कैडर समर्थकों की बड़ी संख्या इससे नाराज़ हैं. रिश्वतखोरी विरोधी अपने रुख़ को जारी रखते हुए नशीद ने एक ‘साफ़-सुथरे उम्मीदवार’ को पार्टी अध्यक्ष के तौर पर चुनने की अपील की है.
घरेलू राजनीति और चुनाव अभियानों में बाहरी देशों की चर्चा के अपने अलग नतीजे होते हैं. इसका एक उदाहरण पाकिस्तान है. पाकिस्तान में ऐसे जानकार हैं जो कहते हैं कि अगर कश्मीर मुद्दे का समाधान करके भारत को मुख्य मुद्दे के तौर पर हटा दिया गया तो पाकिस्तान अपने अंतर्विरोधों के बोझ के तले दब जाएगा.
सरकार (यानी सोलिह गुट) ने नशीद के आरोपों का मुंहतोड़ जवाब दिया है, बताया गया है कि कैसे राष्ट्रपति ने भ्रष्टाचार के दोषियों को अपने पद से हटाया है. पिछले कुछ समय से सोलिह गुट के साथ जुड़े लोगों ने इस लड़ाई को विरोधी खेमे तक ले जाने की शुरुआत भी की है. इसके लिए उन्होंने नशीद के क़रीबी लोगों पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है. साथ ही ये भी आरोप लगा रहे हैं कि सरकारी ठेकों को लागू करने नशीद के क़रीबी लोगों का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा है. हाल के दिनों में डिप्टी स्पीकर इवा अब्दुल्ला ने दोहराया है कि राष्ट्रपति के नामांकन के लिए नशीद पार्टी में दावेदारी करेंगे. सोलिह गुट की तरफ़ से पार्टी अध्यक्ष पद के उम्मीदवार फ़ैयाज़ ने दावा किया है कि राष्ट्रपति उम्मीदवार को चुनने का ये सही समय नहीं है. वहीं राष्ट्रपति ने अभी तक अपनी उम्मीदवारी का एलान नहीं किया है.
सहयोगी फ़ैसला नहीं ले पा रहे
सोलिह गुट इस बात से नाराज़ था कि अपने पूर्व निर्धारित भारत दौरे से पहले नशीद ने एलान कर दिया कि एमडीपी को गठबंधन सरकार से अलग हो जाना चाहिए. इस घोषणा से पहले नशीद ने ये भविष्यवाणी की कि पार्टी राष्ट्रपति चुनाव जीतने के लिए ज़रूरी 50 प्रतिशत वोट शेयर हासिल नहीं कर पाएगी. एमडीपी की लगातार अंदरुनी खींचतान से नाराज़ उसके तीन सहयोगी गठबंधन जारी रखने को लेकर किसी भी निर्णय से पहले राष्ट्रपति चुनाव के उम्मीदवार पर सोलिह और उनकी पार्टी के फ़ैसले का इंतज़ार कर रहे हैं. लेकिन अलग-अलग रूप से देखें तो सभी तीन दलों ने तब तक सोलिह के नेतृत्व का समर्थन देने का वादा किया है. इसमें एक उलझन है जो कि राजनीतिक अस्थिरता की सामान्य समझ को कटु बना सकती है, ख़ास तौर पर अगर आपराधिक अदालत विपक्ष के नेता यामीन को मनी लॉन्ड्रिंग के दो मामलों में जेल भेजती है. ऐसा होने पर यामीन राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य हो जाएंगे. राष्ट्रपति चुनाव में दावेदारी को लेकर मुक़ाबले- अगर यामीन को अयोग्य ठहराया जाता है तभी- के साथ पीपीएम-पीएनसी गठबंधन में भी राष्ट्रपति चुनाव से पहले कुछ हद तक उथल-पुथल मच सकती है.
निष्कर्ष
ऐसे परिस्थितियों में भारत और चीन के द्वारा मालदीव की सामाजिक और राजनीतिक चर्चाओं में काफ़ी हद तक जगह बनाए रखना जारी रहेगा. चर्चा की बाक़ी जगह नशीद गुट की तरफ़ से संसद के भीतर और बाहर अपनी ही पार्टी की सरकार की लगातार आलोचना ले लेगी. घरेलू राजनीति और चुनाव अभियानों में बाहरी देशों की चर्चा के अपने अलग नतीजे होते हैं. इसका एक उदाहरण पाकिस्तान है. पाकिस्तान में ऐसे जानकार हैं जो कहते हैं कि अगर कश्मीर मुद्दे का समाधान करके भारत को मुख्य मुद्दे के तौर पर हटा दिया गया तो पाकिस्तान अपने अंतर्विरोधों के बोझ के तले दब जाएगा. मालदीव की राष्ट्रीय पहचान के लंबे इतिहास को देखते हुए ये सच है कि मालदीव की तुलना पाकिस्तान से नहीं की जा सकती. लेकिन न तो इसे हल्के में लिया जाना चाहिए न ही भीतर से इसको चुनौती देनी चाहिए.
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