भारत के साथ संयुक्त रूप से समुद्री सर्वेक्षण के समझौते को ख़त्म करने का मालदीव का हालिया फ़ैसला, भारत के मीडिया में काफ़ी विवाद का विषय बना हुआ है. दोनों देशों के बीच इस समझौते पर 2019 में उस वक़्त दस्तख़त हुए थे, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मालदीव के दौरे पर गए थे. ये समझौता दोनों देशों के रक्षा संबंधों का एक प्रतीक था. मालदीव ने इस समझौते से ख़ुद को अलग करने से कुछ हफ़्ते पहले ही भारत से औपचारिक रूप से मांग की थी कि वो अपने सैनिकों को मालदीव से वापस बुला ले. शायद भारत के साथ रक्षा संबंधों को लेकर अपनी चिंताओं को जताते हुए ही मालदीव ने दिसंबर 2023 में हुए कोलंबो सिक्योरिटी डायलॉग में भी हिस्सा नहीं लिया था.
राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू ने मालदीव के किसी भी राष्ट्रपति के पहले दौरे पर भारत आने की लंबे समय से चली आ रही परंपरा को तोड़ते हुए, पिछले महीने तुर्की का दौरा किया था, और अब वो चीन के दौरे पर हैं.
मालदीव और भारत के रिश्तों में भरोसे की ये कमी अब साफ़ तौर पर नज़र आ रही है. मुहम्मद मुइज़्ज़ू के राष्ट्रपति चुने जाने के बाद से ही मालदीव की तरफ़ से जानबूझ कर भारत से दूरी बनाने की कोशिश की जा रही है, जिसकी शायद अपेक्षा भी थी. मुइज़्ज़ू, ‘इंडिया आउट’ अभियान के दम पर चुनाव जीतकर राष्ट्रपति बने थे और उन्होंने इस नारे को अपनी विदेश नीति का एक प्रमुख स्तंभ बना लिया है. राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू ने मालदीव के किसी भी राष्ट्रपति के पहले दौरे पर भारत आने की लंबे समय से चली आ रही परंपरा को तोड़ते हुए, पिछले महीने तुर्की का दौरा किया था, और अब वो चीन के दौरे पर हैं. ऐसा करके उन्होंने खुले तौर पर ये संकेत दिया है कि मालदीव की नई सरकार की प्राथमिकताओं में भारत निचली पायदान पर आता है.
भारत-मालदीव संबंध
अपने इन क़दमों से शायद मालदीव दुनिया को ये यक़ीन दिलाना चाहता है कि वो मुश्किल हालात में अपने देश की स्वायत्तता को स्थापित कर रहे हैं. क्योंकि, दो क्षेत्रीय ताक़तें चीन और भारत इलाक़े में अपना दबदबा क़ायम करने के लिए एक दूसरे से होड़ लगा रहे हैं. मगर सच्चाई ये नहीं है. दक्षिण एशिया के अन्य देशों द्वारा अक़्लमंदी दिखाते हुए, चीन और भारत के बीच रिश्तों में संतुलन स्थापित करनी कोशिश की जा रही है. लेकिन, मालदीव ने ऐसा करने के बजाय पूरी तरह चीन के पाले में जाने का फ़ैसला कर लिया है. मुइज़्ज़ू प्रशासन ने जिस तरह समुद्र के साझा सर्वेक्षण के समझौते के नवीनीकरण से इनकार दिया, उसकी वजह राष्ट्रपति का देश की संप्रभुता का ख़याल करने के बजाय, उनके चीन के साथ ख़ास रिश्ते अधिक हैं. ऐसा लगता है कि भारत के समुद्री सर्वेक्षण वाले जहाज़ों को मालदीव की समुद्री सीमा से बाहर करने का मक़सद, अपने आस-पास के समुद्री क्षेत्र में चीन को समुद्री सर्वेक्षण करने में मदद करने का है.
लेकिन, भारत में मालदीव को लेकर हो रही परिचर्चाओं में कुछ अहम तथ्यों की अनदेखी की जा रही है. पहला, हाइड्रोग्राफिक सर्वे से जुटाए गए आंकड़े सामान्य नहीं होते. अन्य तमाम आंकड़ों की तरह समुद्र के सर्वेक्षण से जुटाया गए डेटा को भी असैन्य के साथ साथ सैन्य मक़सद से इस्तेमाल किया जा सकता है. जानकार कहते हैं कि ये आंकड़े असैन्य मक़सद, जैसे कि जहाज़ों की आवाजाही को सुगम बनाने, समुद्री वैज्ञानिक रिसर्च करने और पर्यावरण की निगरानी में बहुत काम आते हैं. लेकिन, इन आंकड़ों से सैन्य मक़सद भी साधे जा सकते हैं, जैसे कि किसी भी देश के तटीय संस्थानों और समुद्र में युद्ध लड़ने की क्षमता पर नज़र रखना.
दूसरा, चीन द्वारा समुद्र की तलहटी के सर्वेक्षण और समुद्री डेटा का इस्तेमाल साफ़ तौर पर अपने सामरिक एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए किया जाता है. चीन का समुद्री अनुसंधान का कार्यक्रम बेहद व्यापक है. इसमें ‘वैज्ञानिक रिसर्च’ करने के जहाज़ भी शामिल हैं. विशेष रूप से शि यान क्लास के समुद्री सर्वेक्षण करने वाले जहाज़ों को हिंद महासागर में तैनात किया जाता रहा है. इसके अलावा, चीन खुफिया जानकारी जुटाने और निगरानी के लिए युआन वांग श्रेणी के जहाज़ों को भी नियमित रूप से हिंद महासागर में भेजता रहा है. आम तौर पर चीन के इन जहाज़ों की मौजूदगी पर किसी की नज़र नहीं जाती, क्योंकि, पूरी दुनिया के महासागरों में चीन के जहाज़ों की मौजूदगी बढ़ती जा रही है.
तीसरा और सबसे अहम पहलू ये है कि समुद्री सर्वेक्षण औऱ निगरानी का काम, सुदूर समुद्री इलाक़ों में चीन की नौसेना (PLAN) की सामरिक रणनीति में अहम योगदान देता है. चीन के समुद्री सर्वेक्षण, उसके पनडुब्बी रोधी युद्धक क्षमताओं को मज़बूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. भारत के पर्यवेक्षक मानते हैं कि, समुद्र के तापमान का आकलन करने और समुद्री धाराओं और भंवरों जैसी अन्य गतिविधियों की जानकारी जुटाने का मक़सद, सोनार के काम को बेहतर बनाना और दुश्मन की पनडुब्बियों का सुराग लगाना होता है. इससे नौसैनिक जहाज़ों के लिए ऐसे सिस्टम विकसित करने में भी मदद मिलती है, जिससे चीन की पनडुब्बियां समुद्र में अपना सुराग लगने देने से बच जाती हैं और समुद्री जंग की सूरत में अपनी धार को और तेज़ कर पाती हैं. पिछले साल जिस तरह चीन ने श्रीलंका और मालदीव से बार बार अपने समुद्री रिसर्च के जहाज़ों को बंदरगाह पर खड़े होने देने की गुज़ारिश की, उससे चीन के इरादे साफ़ ज़ाहिर होते हैं.
भारतीय नौसेना, विदेशी जहाज़ों के समुद्र तल के नीचे की गतिविधियों को ट्रैक कर सकती है. चीन के समुद्री वैज्ञानिकों को पता है कि, हिंद महासागर के द्वीपीय देशों के समुद्री क्षेत्र में उनके महासागरीय सर्वेक्षण में, भारत के हाइड्रोग्राफिक अभियान दखल दे सकते हैं.
हालांकि, दक्षिण एशिया के दोस्त देशों के समुद्री क्षेत्र में चीन के महासागरीय सर्वेक्षण में, इस इलाक़े में मौजूद भारत के हाइड्रोग्राफिक सर्वे वाले जहाज़ों की वजह से खलल पड़ता है. भारतीय नौसेना, विदेशी जहाज़ों के समुद्र तल के नीचे की गतिविधियों को ट्रैक कर सकती है. चीन के समुद्री वैज्ञानिकों को पता है कि, हिंद महासागर के द्वीपीय देशों के समुद्री क्षेत्र में उनके महासागरीय सर्वेक्षण में, भारत के हाइड्रोग्राफिक अभियान दखल दे सकते हैं.
इस बीच, इस बात की अटकलें काफ़ी तेज़ हैं कि चीन, मालदीव में एक नौसैनिक अड्डा विकसित करना चाहता है. 2018 में चीन ने माले के उत्तर में स्थित मकुनुधू जज़ीरे पर एक समुद्री पर्यवेक्षण केंद्र स्थापित करने की योजना बनाई थी. मालदीव का ये द्वीप, लक्षद्वीप द्वीप समूहों से ज़्यादा दूर नहीं है. मालदीव के विपक्षी नेताओं ने चीन के इस पर्यवेक्षण केंद्र के संभावित सैन्य उपयोग को लेकर आशंकाएं जताई थीं, क्योंकि इसमें पनडुब्बी का एक ठिकाना बनाने का भी प्रस्ताव था. अभी तो इस बात के सबूत नहीं दिखे हैं कि चीन ने उस प्रस्ताव को दोबारा ज़िंदा किया है. लेकिन, पर्यवेक्षकों का मानना है कि हाल की घटनाओं को देखते हुए, इसकी संभावना से इनकार भी नहीं किया जा सकता है.
जहां तक मालदीव की बात है तो, उसको लगता है कि भारत का हाइड्रोग्राफिक सर्वेक्षण एक तरह से खुफिया जानकारी जुटाने का अभियान है. मालदीव की ये आशंकाएं पूरी तरह से निराधार भी नहीं हैं. इसलिए नहीं कि मालदीव के समुद्री क्षेत्र में भारत की गतिविधियां संदिग्ध हैं. बल्कि इसलिए कि हाइड्रोग्राफी के लिए जो क़ानून और वैधानिक ढांचे हैं, वो सैन्य सर्वेक्षणों के लिए बने नियमों से अलग नहीं हैं. संयुक्त राष्ट्र के समुद्र से जुड़े क़ानूनों की संधि (UNCLOS) साफ़ तौर से किसी भी तटीय देश को अपने विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) से आगे के दायरे में हाइड्रोग्राफिक सर्वे या फिर सैन्य सर्वेक्षण के नियमन का अधिकार नहीं है; कोई भी देश अपने विशेष आर्थिक क्षेत्र में ही समुद्री वैज्ञानिक रिसर्च के नियम बना सकता है. इसका मतलब ये है कि गहरे समुद्र में हाइड्रोग्राफी करने वाली विदेशी समुद्री एजेंसियां किसी भी तटीय देश के विशेष आर्थिक क्षेत्र से बाहर के इलाक़े में आंकड़े जुटाने के लिए स्वतंत्र है. मालदीव के लिए ये पहलू चिंताजनक है.
मालदीव के लिए अच्छा होगा कि वो भारत के समुद्री सहायता के रिकॉर्ड पर एक नज़र डाल ले; भारतीय नौसेना की पहचान क्षेत्रीय संकटों के दौरान सबसे पहले मदद देने की रही है और दक्षिण एशिया के बहुत से सुरक्षा साझीदार भारतीय नौसेना को पसंद करते हैं.
आगे की राह
इस मसले को तब और बेहतर ढंग से समझा जा सकता है, जब हम ये देखते हैं कि हाइड्रोग्राफी का मक़सद सिर्फ़ जानकारी के लिए किसी क्षेत्र की भौगोलिक और भूगर्भीय गतिविधियों के आंकड़े जुटाना नहीं होता. इसके बजाय, हाइड्रोग्राफिक सर्वेक्षण एक ख़ास तरह की ज़रूरत पूरी करने वाला होता है, जिसकी मांग समुद्र के इकोलॉजिस्ट, वैज्ञानिक और समुद्री उद्योग से जुड़ी संस्थाएं भी कर सकती हैं और राष्ट्रीय सुरक्षा की नीतियां बनाने वाले सैन्य रणनीतिकार भी कर सकते हैं. इससे इस तथ्य की अनदेखी नहीं हो सकती कि बहुत से देशों की नौसेनाएं और ख़ास तौर से भारतीय नौसेना का अपने पास पड़ोस के इलाक़ो में हाइड्रोग्राफिक सर्वेक्षण का शानदार रिकॉर्ड रहा है. भारतीय नौसेना 1990 के दशक से ही मॉरीशस को हाइड्रोग्राफिक सर्वे में मदद करती रही है और उसके व्यापक विशेष आर्थिक क्षेत्र के आंकड़े जुटाकर क्षमता निर्माण में और यहां तक कि मॉरीशस के हाइड्रोग्राफर्स के कौशल विकास के लिए हाइड्रोग्राफी की एक इकाई स्थापित करने में मदद करती आई है.
मालदीव के लिए अच्छा होगा कि वो भारत के समुद्री सहायता के रिकॉर्ड पर एक नज़र डाल ले; भारतीय नौसेना की पहचान क्षेत्रीय संकटों के दौरान सबसे पहले मदद देने की रही है और दक्षिण एशिया के बहुत से सुरक्षा साझीदार भारतीय नौसेना को पसंद करते हैं. मालदीव को पता होना चाहिए कि उसके लिए समुद्री जानकारी और सुरक्षा बढ़ाने का सबसे अच्छा विकल्प भारत के साथ साझेदारी ही है. राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू सिर्फ़ अपने राजनीतिक समीकरण साधने के लिए चीन के साथ सामरिक दोस्ती बढ़ाना चाहते हैं. उन्हें पता होना चाहिए कि महासागरीय सर्वेक्षणों को भारत नहीं, चीन ही हथियार बनाता है. मालदीव के आस-पास के समुद्री क्षेत्र में चीन की सैन्य और असैन्य उपस्थिति, उसके लिए घातक साबित हो सकती है.
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