मालदीव आयात पर निर्भरता वाला एक खुली अर्थव्यवस्था का देश है. जीडीपी में आयात की हिस्सेदारी 61 फीसदी जबकि निर्यात की हिस्सेदारी 11 से 15 प्रतिशत के बीच है. मालदीव से आम तौर पर मछली और उससे जुड़े उत्पादों का ही निर्यात होता है, लेकिन मालदीव की खासियत है पर्यटन उद्योग. पर्यटन से जुड़ी सेवाओं से हुई कमाई और प्रवासियों द्वारा भेजे गए पैसे की मालदीव की जीडीपी में करीब 34 प्रतिशत की हिस्सेदारी है.
मालदीव की भुगतान संतुलन की स्थिति मध्यम और दीर्घकालिक ऋणों के हिसाब से तय होती है. प्रत्यक्ष निवेश का भी इसपर असर दिखता है. मालदीव के सार्वजनिक क्षेत्र पर कुल जीडीपी का 110 प्रतिशत ऋण है. मालदीव उन गिने-चुने देशों में शामिल है, जहां विनिमय नियंत्रण के लिए कोई कानून नहीं है. मालदीव के नागरिकों और अनिवासियों को इस बात की आज़ादी है कि वो कितना भी पैसा मंगवा सकते हैं या बाहर भेज सकते हैं. ऐसी ही छूट उन्हें विदेशी मुद्रा खाते रखने में भी मिली है. इसके लिए उन्हें किसी मंजूरी की ज़रूरत नहीं है. हालांकि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए सरकार से मंजूरी लेनी ज़रूरी है लेकिन इस निवेश पर जो लाभ होता है, उसे बाहर भेजने में किसी तरह की पाबंदी नहीं है.
मालदीव उन गिने-चुने देशों में शामिल है, जहां विनिमय नियंत्रण के लिए कोई कानून नहीं है. मालदीव के नागरिकों और अनिवासियों को इस बात की आज़ादी है कि वो कितना भी पैसा मंगवा सकते हैं या बाहर भेज सकते हैं.
मालदीव की राजकोषीय नीति में आयात शुल्क की अहम भूमिका है. सरकार को सबसे ज्यादा राजस्व इसी से मिलता है. टैक्स के ढांचे में बदलाव करते हुए सरकार अब कॉरपोरेट प्रॉफिट टैक्स लाने की भी तैयारी कर रही है. लेकिन फिलहाल मालदीव की अर्थव्यवस्था जिस तरह आयात पर निर्भर है, उसने सरकार के सामने व्यापार और चालू खाते में घाटे को लेकर कई चुनौतियां भी पेश कर दी हैं.
इन चुनौतियों में बाहरी संकट से अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले असर, विनिमय दर में तेज़ी से उतार-चढ़ाव जैसे ख़तरे शामिल हैं. यही वजह है कि अब मालदीव की अर्थव्यवस्था में विविधता लाने की ज़रूरत महसूस होने लगी है.
Table 1: Import Duty (as a share of revenue)
Period |
Tax Revenue (in million MVR) |
Import Duty (in million MVR) |
Share of import duty in revenue |
2018 |
15833.91 |
3148.846 |
19.88673 |
2019 |
16530.52 |
3412.275 |
20.64227 |
2020 |
10959.21 |
2263.646 |
20.6552 |
2021 |
14681.61 |
2843.03 |
19.36457 |
2022 |
19528.46 |
3497.234 |
17.9084 |
2023 |
24003.33 |
3511.037 |
14.62729 |
2024 |
25618.38 |
4022.691 |
15.70237 |
Source: Maldives Monetary Authority
मालदीव को इस बात का अंदाज़ा है कि आयात पर निर्भर अर्थव्यवस्था होने की वजह से उसका चालू खाता घाटा हमेशा बना रहेगा. मालदीव में सबसे ज्यादा आयात पेट्रोलियम उत्पादों, बिजली से जुड़ी मशीनरी और खाने-पीने के सामान का होता है. मालदीव के पास खेती करने लायक ज़मीन नहीं है, इसलिए अनाज की कीमतों में अचानक बढ़ोतरी का ख़तरा बना रहता है. सरकार अपना खर्च चलाने के लिए जिस तरह आयात शुल्क पर निर्भर है, उसे देखते हुए ऐसी नीति बनाना ज़रूरी है जिससे नियमित आय तो हो लेकिन आयात की दरें प्रतिस्पर्धी हों.
कहां से होता है आयात और चीन से मुक्त व्यापार समझौता
मालदीव का 83 फीसदी आयात एशियाई देशों से होता है. 2022 में कुल आयात का 18 फीसदी ओमान से किया गया. भारत और चीन की हिस्सेदारी 14 और 11 प्रतिशत की है. मालदीव को चीन बने-बनाए सामान का निर्यात करता है. निर्माण के क्षेत्र में चीन का मुकाबला भारत से है. जनवरी से जून 2023 के बीच मालदीव के कुल आयात में चीन की हिस्सेदारी 12 प्रतिशत थी. चीन से मालदीव ट्रांसफॉर्मर्स, एयर कंडीशनर, मोटरबोट्स, ट्रक और बना-बनाया सामान आयात करता है. जनवरी 2024 में मालदीव और चीन ने अपने द्विपक्षीय व्यापार समझौते को आगे बढ़ाते हुए व्यापक सामरिक सहयोग में साझेदारी का फैसला किया. इसमें पर्यटन क्षेत्र में सहयोग समेत 20 मुख्य समझौते हैं. इन समझौते में आपदा में जोखिम कम करना, समुद्री संसाधनों का बेहतर दोहन और डिजिटल अर्थव्यवस्था में निवेश जैसे मुद्दे भी शामिल हैं लेकिन सबसे बड़ी बात ये है कि इस समझौते के बाद मालदीव और चीन के बीच 2014 में हुआ मुक्त व्यापार समझौता एक बार फिर केंद्र में आ गया है.
Figure 1: Direction of Trade by Imports (2022)
Source: MMA
मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू ने चीन को भरोसा दिया है कि वो इस समझौते को जल्दी लागू करेंगे. उन्होंने दोनों देशों के बीच व्यापार और निवेश बढ़ाने पर ज़ोर दिया. मुइज्जू चाहते हैं कि मालदीव से चीन को मछली से जुड़े उत्पादों का निर्यात बढ़े. इस समझौते को लेकर दोनों देश काफी आशावादी है लेकिन इसके साथ ही इस बात पर चिंता जताई जा रही है कि अगर ये समझौता पूरी तरह लागू हो गया तो मालदीव की टैक्स से कमाई काफी कम हो जाएगी. आयात शुल्क कम होने से मालदीव के राजकोषीय घाटे पर नकारात्मक असर पड़ेगा.
इन समझौते में आपदा में जोखिम कम करना, समुद्री संसाधनों का बेहतर दोहन और डिजिटल अर्थव्यवस्था में निवेश जैसे मुद्दे भी शामिल हैं लेकिन सबसे बड़ी बात ये है कि इस समझौते के बाद मालदीव और चीन के बीच 2014 में हुआ मुक्त व्यापार समझौता एक बार फिर केंद्र में आ गया है.
चीन के साथ मुक्त व्यापार समझौता लागू होने से मालदीव को अल्पकालीन फायदे हो सकते हैं. आयातित सामान सस्ता होगा. निर्माण और औद्योगिक क्षेत्र में तेज़ी आएगी. रोजगार बढ़ेगा, लेकिन इससे कई ख़तरे भी हैं. एक ही देश पर निर्भरता बढ़ने से सामान की आपूर्ति में कभी भी बाधा उत्पन्न हो सकती है. अर्थव्यवस्था संकट में आ सकती है. पिछले कुछ दिनों में मालदीव और भारत के रिश्तों में कड़वाहट आई है. मालदीव से भारतीय सेना को वापस भेजने की मांग की जा रही है, उसने भी इस आर्थिक अनिश्चितता बढ़ाई है. इन चुनौतियां का सामना करने के लिए जरूरी है कि मालदीव अपनी अर्थव्यवस्था को किसी एक देश पर निर्भर ना रखे. अपनी नीतियों में लचीलापन लाए और अंतर्राष्ट्रीय साझेदारियों ने उसके सामने जो अवसर पैदा किए हैं, उनका पूरा लाभ उठाएं.
मालदीव सरकार के राजस्व में आयात शुल्क का औसतन 20 प्रतिशत का योगदान है. इसकी वजह से सरकार के सामने वित्त और ऋण के दबाव की मुसीबत खड़ी हो सकती हैं. मुक्त व्यापार समझौते से भी नई चुनौतियां पेश आएंगी. चीन से मालदीव को होने वाला आयात महंगा हो सकता है. निर्यात पर बुरा असर पड़ेगा. भारत के साथ द्विपक्षीय रिश्तों में तनाव पैदा हो सकता है. भारत से मालदीव को चावल और निर्माण में काम आने वाली मशीनों का बड़े पैमाने पर निर्यात होता है. लेकिन चीन के साथ समझौता और भारतीय सेना की वापसी से दोनों देशों में जो तनाव पैदा होगा, उसके बाद भारत खाद्य सुरक्षा के तहत मालदीव को भेजे जाने वाले अनाज पर रोक लगा सकता है.
मालदीव इस वक्त अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर कई चुनौतियां झेल रहा है. आयात पर निर्भरता ज्यादा है. चीन के साथ मुक्त व्यापार समझौते से दूसरे देशों से रिश्ते खराब हो सकते हैं
कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि मालदीव इस वक्त अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर कई चुनौतियां झेल रहा है. आयात पर निर्भरता ज्यादा है. चीन के साथ मुक्त व्यापार समझौते से दूसरे देशों से रिश्ते खराब हो सकते हैं. ऐसे में मालदीव को आर्थिक विकास और सामरिक नीतियों के बीच संतुलन बनाकर चलना होगा.
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