Published on Oct 16, 2023 Updated 0 Hours ago
मालदीव चुनाव के नतीजे: लोकतंत्र की जड़ें मज़बूत हैं

मालदीव में पिछले चार चुनावों में छह राष्ट्रपति बनेजनता ने इनमें से किसी को भी दोबारा मौक़ा नहीं दियाइससे साबित हो गया है कि मालदीव का लोकतंत्र का तजुर्बा भले ही महज़ डेढ़ दशक पुराना होमगर उसको हलके में क़तई नहीं लिया जा सकता हैसत्ताधारी पार्टी के ख़िलाफ़ मतदान के चलन को बनाए रखते हुएमालदीव के मतदाताओं ने एक कड़ा संदेश दिया है कि देश के मालिक मुख़्तार वो ही हैंऔर वोचुनाव से ठीक पहले बड़ी बड़ी घोषणाओंमुफ़्त की योजनाओं और लुभावने वादों के जाल में नहीं फंसने वालेख़ास तौर से तब और जब सियासी स्थिरता और नैतिकता को लेकर उनकी सोचराजनेताओं के बर्ताव के ठीक उलट होपिछले महीने दो दौर में हुए राष्ट्रपति चुनावों के दौरान मालदीव की जनता ने अपने नेताओं को एक बार फिर से यही संदेश दिया हैराष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी पीपीएमपीएनसी के गठबंधन के साझा उम्मीदवार,45 बरस के माले शहर के मेयर डॉक्टर मुहम्मद मुइज़्ज़ू ने सत्ताधारीमालदीव डेमोक्रेटिक पार्टी (MDP) के प्रत्याशी और राष्ट्रपति इब्राहिम मुहम्मद सोलिह को सम्मानजनक अंतर से शिकस्त दे दी.

चुनावों के दौरान सत्ताधारी इब्राहिम सोलिह की सरकार ने जेल में क़ैद विपक्षी नेता और पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के भ्रष्टाचार के पुराने मामलों को ख़ूब उछाला. लेकिन, मतदाताओं ने उनके आरोपों पर आंख मूंदकर यक़ीन करने के बजाय, राष्ट्रपति चुनाव में मतदान के लिए अपना अलग पैमाना अपनाया.

चुनावों के दौरान सत्ताधारी इब्राहिम सोलिह की सरकार ने जेल में क़ैद विपक्षी नेता और पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के भ्रष्टाचार के पुराने मामलों को ख़ूब उछालालेकिनमतदाताओं ने उनके आरोपों पर आंख मूंदकर यक़ीन करने के बजायराष्ट्रपति चुनाव में मतदान के लिए अपना अलग पैमाना अपनाया. हालांकिजिस तरह इब्राहिम सोलिह ने पहले निर्वाचित राष्ट्रपति मुहम्मद मुइज़्ज़ू से निजी तौर पर सत्ता के सहज हस्तांतरण का वादा कियाऔर फिर चुनाव के बाद अपनी पहली प्रेस कांफ्रेंस में सार्वजनिक रूप से इसकी घोषणा कीउसकी भी तारीफ़ की जानी चाहिएसंविधान के मुताबिक़मुइज़्ज़ू को 17 नवंबर को संसद के सामने राष्ट्रपति पद की शपथ दिलाई जाएगीसोलिह और मुइज़्ज़ूदोनों ने पहले की तरह सत्ता के आसान हस्तांतरण की ‘प्रक्रिया’ तय करने के लिए ‘ट्रांज़िशन टीमें’ भी घोषित कर दी हैंइब्राहिम सोलिह ने उन अटकलों पर भी विराम लगा दिया है कि वो देश छोड़कर भागने वाले हैंसोलिह ने बयान दिया है कि वो अपनी मालदीव डेमोक्रेटिक पार्टी को मज़बूत करने के लिए काम करते रहेंगेहालांकिवो दोबारा चुनाव लड़ने के लिए पार्टी का टिकट नहीं मांगेंगेउन्होंने ख़ास तौर से इस बात पर ज़ोर दिया है कि वो अपनी सरकार के हर क़दम की जवाबदेही के लिए तैयार हैं

वहींअपनी तरफ़ से मुहम्मद मुइज़्ज़ू ने भी पुराने मतभेद भुलाकरएकजुटता और देश को प्राथमिकता देने की बातें कही हैंजब एमडीपी ने कहा कि वो सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करेगीतो मुइज़्ज़ू ने भी उम्मीद जताई कि एमडीपी एक ‘ज़िम्मेदार विपक्ष’ की भूमिका निभाएगीऐसी अफ़वाहें चल रही थीं कि मुहम्मद मुइज़्ज़ूअब्दुल्ला यामीन के हाथों की कठपुतली होंगेलेकिनइनको ख़ारिज करते हुए मुइज़्ज़ू ने कहा कि ‘मेरे ऊपर किसी की हुकूमत नहीं चलेगी’. इस बात की अहमियत को ऐसे समझ सकते हैं कि इब्राहिम सोलिह ने कहा था कि एमडीपी में कोई भी शख़्स पार्टी से बड़ा नहीं हैसोलिह का ये बयानउनके दोस्त से दुश्मन बने मुहम्मद नशीद के लिए थाजो संसद के स्पीकर थेनशीद ने पहले तो इकतरफ़ा फ़ैसला लेते हुए एमडीपी को अलविदा कहकर डेमोक्रेट्स के नाम से नई पार्टी बना ली थीलेकिनबाद में उन्होंने दोबारा एमडीपी में शामिल होने का प्रस्ताव रखा था. 9 सितंबर को पहले दौर के चुनाव के बाद डेमोक्रेट्स वैसे तो बेहद कम यानी 7.5 प्रतिशत वोटों के साथ तीसरे नंबर पर आई थीलेकिनये अंतर भी जीत हार का फ़ैसला करने में निर्णायक साबित हुआइब्राहिम सोलिह ने कहा था कि एमडीपी के 99 फ़ीसद सदस्य नशीद की पार्टी में फिर से वापसी के ख़िलाफ़ थे.

अपनी प्रेस कांफ्रेंस में इब्राहिम सोलिह ने प्रशासनिक व्यवस्था में किसी बदलाव के प्रति अपना विरोध भी जतायामोहम्मद नशीद ने इस बदलाव का प्रस्ताव संसद से पारित कराकर चुनाव आयोग के पास भेजा थालेकिनसोलिह ने मीडिया से कहा कि जनादेश के तहतनिर्वाचित राष्ट्रपति को एक अवसर मिलना चाहिएलेकिननशीद जिस संसदीय व्यवस्था की वकालत कर रहे थेवो लागू होने पर निर्वाचित राष्ट्रपति को वो मौक़ा नहीं मिल पाताजो 2008 में देश में लोकतांत्रिक संविधान लागू होने के बाद से मिल रहा हैइस सवाल पर भी जनता ने 38 के मुक़ाबले 62 प्रतिशत के बहुमत से राष्ट्रपति प्रणाली लागू करने के पक्ष में मतदान किया था.

जब मुइज़्ज़ू की पार्टी प्रोग्रेसिव नेशनल कांग्रेस (PNC) ने उनको भारी बहुमत से उम्मीदवार बनाया, तो ऐसा लग रहा था कि वो अब अब्दुल्ला यामीन की सरपरस्ती में काम करने के बजाय अलग रास्ते पर चल पड़े हैं. क्योंकि, पीएनसी का गठन अब्दुल्ला यामीन ने राष्ट्रपति पद से हटने के बाद किया था.

वहींचुनाव आयोग ने इस मामले पर 29 अक्टूबर को जनमत संग्रह कराने का फ़ैसला किया हैहालांकिसंसद ने अब तक चुनाव आयोग के इस सवाल का जवाब नहीं दिया है कि जनमत संग्रह किस नाम से कराया जाएगाइस पूरे विवाद के दौरान मुइज़्ज़ू और उनका गठबंधन राष्ट्रपति प्रणाली बनी रहने का समर्थन करता रहा हैदेश के दो प्रमुख दलों द्वारा संसदीय व्यवस्था लागू करने का प्रस्ताव ख़ारिज करने की वजह से नशीद की पार्टी ने मजलिस से गुज़ारिश की थी कि वो इस पर जनमत संग्रह को बाद के लिए स्थगित कर देताकि जनता के बीच संसदीय व्यवस्था का ख़ूबियों का अच्छे से प्रचार किया जा सके.

ऐतिहासिक जीत

मुइज़्ज़ू के लिए ये ऐतिहासिक जीत हैएकदम आख़िरी मौक़े पर चुनाव मैदान में उतरना और वो भी इस तरह कि लोगों को लगे कि वो पार्टी के मुखिया यामीन की नाफ़रमानी कर रहे हैंलेकिनस्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग में पीएचडी करने वाले 45 बरस के मुइज़्ज़ू के पास चुनाव प्रचार के लिए बमुश्किल तीन हफ़्ते का वक़्त थाजबकि उनके मुक़ाबले खड़े राष्ट्रपति इब्राहिम सोलिह को तो पूरे पांच साल के कार्यकाल का समय मिला थाचुनाव लड़ रहे बाक़ी छह उम्मीदवारों को भी पहले दौर के प्रचार के लिए काफ़ीयानी कुछ महीनों से लेकर कई सालों तक का समय मिला थाहालांकिवो सब के सब हार गए.

वहींजब सुप्रीम कोर्ट ने जब जेल में क़ैद अब्दुल्ला यामीन के चुनाव लड़ने पर चुनाव आयोग द्वारा लगाई गई पाबंदी (या फिर उनकी क़ैद पूरी होने के तीन साल बाद तकपर मुहर लगाईतो यामीन चाहते थे कि उनका गठबंधन चुनाव का बहिष्कार करेजब मुइज़्ज़ू की पार्टी प्रोग्रेसिव नेशनल कांग्रेस (PNC) ने उनको भारी बहुमत से उम्मीदवार बनायातो ऐसा लग रहा था कि वो अब अब्दुल्ला यामीन की सरपरस्ती में काम करने के बजाय अलग रास्ते पर चल पड़े हैं. क्योंकिपीएनसी का गठन अब्दुल्ला यामीन ने राष्ट्रपति पद से हटने के बाद किया था. यामीन को प्रोग्रेसिव पार्टी ऑफ मालदीव (PPM) की कमान भी विरासत में मिली थीये पार्टी उनसे अलग हो चुके सौतेले भाई और पूर्व राष्ट्रपति मामून अब्दुल गयूम ने बनाई थीऐसा लगा था कि यामीन ने कोई चारा  बचने परआख़िरी विकल्प के तौर पर मुइज़्ज़ू की उम्मीदवारी का समर्थन किया था.

राष्ट्रपति के तौर पर यामीन ने शुरुआत तो ‘इंडिया फर्स्ट’ की विदेश नीति से की थी. क्योंकि दोनों देशों को पहले तो घरेलू सियासी माहौल में बढ़ते टकराव को रोकना और फिर अब पीपीएम-पीएनसी गठबंधन के नेतृत्व में भारत विरोधी माहौल बनने से रोकना होगा.

अब्दुल्ला यामीन ने 2018 के राष्ट्रपति चुनाव में अपने दम पर 42 प्रतिशत वोट हासिल किए थेहालांकितब इब्राहिम सोलिह ने विपक्ष के साझा प्रत्याशी के तौर पर सबसे ज़्यादा 58 फ़ीसद वोट हासिल किए थे. 2023 के चुनावों ने दिखा दिया है कि मुइज़्ज़ू ने संभवतवो सारे वोट तो हासिल किए हीइसके साथ साथ उन्होंने दोनों दौर के चुनावों में अपना वोट प्रतिशत और बढ़ायाजबकि राष्ट्रपति सोलिह के वोट लगातार कम होते रहेइसकी शुरुआत उनके ख़िलाफ़ ख़ामोश नाराज़गी से हुईजिसकी वजह से पहले दौर में मतदान का प्रतिशत भी कम रहा थाइनमें वो वोट भी शामिल थेजो सोलिह ने अपने उन नए और पुराने गठबंधन साझीदारों के हाथ गंवा दिएजिन्होंने पहले या दूसरे दौर में उनका साथ छोड़ दिया थाउनकी पार्टी से टूटकर अलग हुए डेमोक्रेट्स के प्रत्याशी इलियास हबीब ने भी पहले दौर में 7.5 फ़ीसद वोट हासिल किए थेमगर उम्मीद के उलट ये वोट भी वापस सोलिह की झोली में नहीं गिरे.

वादे और उन पर अमल

मुइज़्ज़ू ने चुनाव के बाद अपनी राजनीति की शुरुआत अब्दुल्ला यामीन को जेल से ‘घर में नज़रबंदी’ की निजी और सार्वजनिक गुज़ारिश के साथ कीइसको लेकर यामीन की अर्ज़ी कई हफ़्तों से विचाराधीन पड़ी थीइब्राहिम सोलिह ने अपने बाद बनने वाले राष्ट्रपति की इस गुज़ारिश को मानने में ये कहते हुए ज़रा भी देर नहीं की कि वो जनादेश का सम्मान करते हुए ‘राष्ट्रहित में’ ये फ़ैसला कर रहे हैंपूरे अभियान के दौरान मुइज़्ज़ू ये बात दोहराते रहे थे कि राष्ट्रपति बनने के बाद उनका पहला काम अब्दुल्ला यामीन को इंसाफ़ और आज़ादी दिलाना होगाजब चुनाव के बाद यामीन के क़ानूनी सलाहकारों ने उनको क़ैद से आज़ाद कराने की मांग उठाईतो मुइज़्ज़ू ने अपनी विजय रैली में कहा कि सड़कों पर उतरने से पहले जनता उन्हें थोड़ा वक़्त दे दे.

अब्दुल्ला यामीन का रुख़ और रवैया  केवल घरेलू राजनीतिक मामलों में अहम होगाबल्कि विदेश नीति के मामलों पर भी उनका गहरा असर रहेगाइसकी शुरुआत पार्टी के भीतरी समीकरणों और अभी से लेकर राष्ट्रपति पद संभालने तक मुइज़्ज़ू के साथ उनके रिश्तों की रूपरेखा से होगीइब्राहिम सोलिह और यामीन के निजी झगड़ों का असर मालदीव के सबसे नज़दीकी पड़ोसी भारत के साथ रिश्तों पर भी पड़ता रहा थाइसका अंजाम पीपीएमपीएनसी गठबंधन द्वारा पिछले कई वर्षों के दौरान चलाए गए ‘इंडिया आउटइंडिया मिलिट्री आउट’ अभियान के तौर पर देखने को मिला था.

राष्ट्रपति के तौर पर यामीन ने शुरुआत तो ‘इंडिया फर्स्ट’ की विदेश नीति से की थीक्योंकि दोनों देशों को पहले तो घरेलू सियासी माहौल में बढ़ते टकराव को रोकना और फिर अब पीपीएमपीएनसी गठबंधन के नेतृत्व में भारत विरोधी माहौल बनने से रोकना होगा. अपने प्रचार अभियान के दौरानमुइज़्ज़ू ने भी अपने देश की ‘स्वतंत्रता’ और विदेशी सैनिकों को हटाने की ज़रूरत पर लगातार बल दिया थाउनका इशारामालदीव में तथाकथित रूप से मौजूद भारतीय सैनिकों की तरफ़ थाजीत के बाद अपनी रैली में मुइज़्ज़ू ने पहली बार नाम लेकर भारत का ज़िक्र किया था और कहा था कि जब वो ‘राजदूत से मिलेंगे तो उनसे बात करेंगे’ और राष्ट्रपति बनने के पहले दिन ही इस दिशा में आगे क़दम बढ़ाएंगे

अगले पांच साल में वो क्या, कैसे, कब और किसके साथ ये काम करते हैं, इसी पर भारत और मालदीव के रिश्ते निर्भर करेंगे. ख़ास तौर से तब और जब देश के सभी राजनीतिक दल और नेता अगले साल अप्रैल में होने वाले संसदीय चुनावों की तैयारी में जुटने वाले हैं.

मुइज़्ज़ू ने ये बयान तब दियाजब सत्ताधारी इब्राहिम सोलिह ने चुनाव के बाद अपनी प्रेस कांफ्रेंस में दोहराया था कि उनकी सरकार ‘किसी एक देश पर निर्भर नहीं थी’, और उन्होंने भारत के साथ अपने रिश्तों को लेकर कोई अफ़सोस  जताते हुएइस बात की तारीफ़ की कि भारत ने उनके कार्यकाल में भारत की बहुत मदद की थी.

वक़्त के जांचे परखे रिश्ते

पहले की तरह इस बार फिरप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुइज़्ज़ू को राष्ट्रपति चुनाव जीतने की बधाई देने वाले पहले विश्व नेता थेमोदी ने सोशल मीडिया पर संकेतों से भरपूर मगर हक़ीक़त जताने वाले अपने बधाई संदेश में कहा कि, ’भारत हमेशा की तरह मालदीव के साथ ऐतिहासिक रिश्तों को और मज़बूती देने और हिंद प्रशांत में व्यापक सहयोग को बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है.’

दो देशों के तौर पर निश्चित रूप से कुछ मसले तो हैंभले ही ये मसले दो देशों के तौर पर मालदीव और भारत के बीच  होंमगर उनके चुने हुए नेतृत्वों के आपसी संस्थागत रिश्तों में तो हैं हीपाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान को छोड़ देंतोचीन के हवाले से पूरे दक्षिण एशियाई क्षेत्र के सभी दोस्त पड़ोसी देशों के साथ भारत के रिश्तों में ऐसी असमानता देखने को मिलती हैजिनको दुरुस्त करने की आवश्यकता हैये ठीक उसी तरह है जैसे शीत युद्ध के दौरान अमेरिका के संदर्भ में देखा जाता थालेकिनचीन के मामले में भारत के लिए ख़तरा वास्तविक है.

ये बात मालदीव पर भी लागू होती हैख़ास तौर से चीन के प्रति झुकाव रखने वाले अब्दुल्ला यामीन के कार्यकाल में तो ये और देखने को मिला थामुइज़्ज़ू का चीन से संपर्कचीन के पूंजी निवेश से चल रही परियोजनाओंजैसे कि माले– हुलहुले समुद्री पुल और देश के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से उस दौर का थाजब वो यामीन सरकार में निर्माण और आवास मंत्री थेफिर भीभारत और अंतरराष्ट्रीय मीडिया की ख़बरों और विश्लेषणों में उन्हें ‘चीन समर्थक’ (और इसीलिए भारत विरोधी?) बताया गया हैये एक ऐसी चीज़ हैजिस पर मुइज़्ज़ू को सत्ता संभालने के बाद काम करना होगाअगले पांच साल में वो क्याकैसेकब और किसके साथ ये काम करते हैंइसी पर भारत और मालदीव के रिश्ते निर्भर करेंगेख़ास तौर से तब और जब देश के सभी राजनीतिक दल और नेता अगले साल अप्रैल में होने वाले संसदीय चुनावों की तैयारी में जुटने वाले हैं.

अब से लेकर तब तकमुइज़्ज़ू की नई सरकार को एमडीपी के नियंत्रण वाली संसद या अवाम की मजलिस से निपटना होगानई कैबिनेट के लिए उसकी मंज़ूरी लेनी होगी और एक जनवरी 2024 से शुरू हो रहे वित्त वर्ष के लिए नई सरकार का बजट पारित कराना होगाइसके अलावाराष्ट्रपति मुइज़्ज़ू के पहले संसदीय भाषण पर भी मजलिस में परिचर्चा होगीइन्हीं से आने वाले महीनों और वर्षों में रिश्तों की दशा दिशा तय होगी.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.