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जिस वक़्त हिंद महासागर क्षेत्र (इंडियन ओशन रीजन या IOR) शीत युद्ध के बाद लगातार बदलती भू-सामरिक संरचना (जियोस्ट्रैटजिक आर्किटेक्चर) के केंद्र में है, तब भारत और मालदीव ने एक साथ अपने सुरक्षा सहयोग के मामले में एक मील के पत्थर को पार किया है. भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और मालदीव की रक्षा मंत्री मारिया दीदी ने संयुक्त रूप से पिछले दिनों मालदीव के सिफारु द्वीप में भारत के फंड से बनने वाले मालदीवियन नेशनल डिफेंस फोर्स (MNDF) के ‘एकता हार्बर’ की आधारशिला रखी.
राजनाथ सिंह 2009 में तत्कालीन रक्षा मंत्री ए के एंटनी के बाद मालदीव का दौरा करने वाले पहले रक्षा मंत्री हैं. भारत के रक्षा मंत्रालय ने ट्वीट किया कि हार्बर प्रोजेक्ट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सागर (SAGAR यानी सिक्युरिटी एंड ग्रोथ फॉर ऑल इन द रीजन) प्रोजेक्ट का हिस्सा है ताकि ‘क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा और विकास’ को सुनिश्चित किया जा सके. ये परियोजना मालदीवियन नेशनल डिफेंस फोर्स (MNDF) के लिए स्थानीय स्तर पर जहाज़ों की मरम्मत के लिए भारत के द्वारा डॉकयार्ड की स्थापना के 2021 के द्विपक्षीय समझौते से आगे का क़दम है. ये समझौता 2013 में मालदीव के अनुरोध- जिसे 2015 और 2016 में दोहराया गया था- की वजह से हुआ और पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के ‘डिफेंस एक्शन प्लान’ का हिस्सा था. इस प्लान पर 2016 में अब्दुल्ला यामीन की भारत यात्रा के दौरान हस्ताक्षर किया गया था जिसके लिए भारत ने 50 मिलियन अमेरिकी डॉलर की सुविधा दी थी. नींव रखने का समारोह सिफावारु द्वीप पर आयोजित हुआ जो कि उसी खाड़ी (लैगून) में स्थित है जिसमें उथुरु थिला फल्हू (UTF) नौसैनिक अड्डा है. माले अटॉल, जिसे काफू अटॉल के नाम से भी जाना जाता है, में स्थित दोनों द्वीप राजधानी माले के नज़दीक हैं.
राजनाथ सिंह और मारिया दीदी ने रक्षा सहयोग, क्षमता निर्माण और व्यापार को और मज़बूत करने का संकल्प लिया. राजनाथ सिंह के तीन दिनों के दौरे के बाद जारी साझा बयान में कहा गया कि “दोनों मंत्रियों ने क्षेत्र में शांति, स्थिरता और सुरक्षा बनाये रखने के महत्व को फिर से दोहराया और साझा सुरक्षा चुनौतियों का समाधान करने के लिए एक साथ काम करने की ज़रूरत को स्वीकार किया.” साझा बयान में ये भी कहा गया कि दोनों मंत्रियों ने “अंतर्राष्ट्रीय क़ानून के सम्मान और नियम आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के महत्व पर बल दिया और इन सिद्धांतों का समर्थन करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता को जताया.” बयान में आगे ये भी कहा गया कि “दोनों पक्षों ने साझेदारी को और मज़बूत करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता को फिर से दोहराया और साझा तौर पर ये विचार व्यक्त किया कि वो भविष्य में आपसी संवाद और सहयोग को जारी रखना चाहते हैं.”
राजनाथ सिंह ने मालदीव के राष्ट्रपति इब्राहिम सोलिह से भी मुलाक़ात की और उनकी मौजूदगी में MNDS को दो नेवल प्लैटफॉर्म- एक तेज़ गश्त करने वाला जहाज़ (तोहफ़े के रूप में सौंपे गए पिछले जहाज़ की जगह) और एक लैंडिंग क्राफ्ट असॉल्ट शिप- सौंपे. इस मौक़े पर बोलते हुए राजनाथ सिंह ने याद किया कि कैसे “भारत एक बड़े रक्षा निर्यातक के तौर पर उभरा है और वर्ल्ड क्लास उपकरणों का उत्पादन भारत न सिर्फ़ अपनी ज़रूरत को पूरा करने के लिए कर रहा है बल्कि निर्यात के लिए भी.”
राजनाथ सिंह की मालदीव यात्रा और वहां उनके कार्यक्रम भारत की ‘पड़ोसी सर्वप्रथम (नेबरहुड फर्स्ट)’ और सोलिह सरकार की ‘इंडिया फर्स्ट’ नीतियों का हिस्सा हैं. उप-क्षेत्रीय (सब-रीजनल) दृष्टिकोण से दोनों देशों ने अपने साझा पड़ोसियों श्रीलंका और मॉरीशस के साथ मिलकर कोलंबो सिक्योरिटी कॉन्क्लेव (CSC) का गठन किया है जिसमें सेशेल्स और बांग्लादेश फिलहाल ‘ऑब्ज़र्वर’ की भूमिका में हैं. इस समूह को बनाने का उद्देश्य ये सुनिश्चित करना है कि समान साझेदार के तौर पर साझा सुरक्षा को सुनिश्चित करें. विरासत में हासिल द्विपक्षीय अड़चनों को ख़त्म करना या उन्हें सीमित करना इस तरह की सभी क्षेत्रीय पहल का अनकहा हिस्सा है.
इस संदर्भ और पृष्ठभूमि में अतीत के समुद्री सीमा विवादों का शांतिपूर्ण और आपसी सहमति से समाधान न सिर्फ़ द्विपक्षीय बल्कि क्षेत्रीय परिस्थितियों में भी बेहद प्रासंगिक और महत्वपूर्ण बन जाता है. इस तरह एक 58 साल पुराने विवाद का मालदीव के पक्ष में फ़ैसले, जो कि 1965 में उसकी स्वतंत्रता के समय से बना हुआ था, से शांतिपूर्ण समाधान हुआ. समुद्र के क़ानून पर अंतर्राष्ट्रीय ट्राइब्यूनल (इंटरनेशनल ट्रिब्यूनल ऑन द लॉ ऑफ द सी यानी ITLOS) ने पिछले दिनों फ़ैसला दिया कि चागोस क्षेत्र (मालदीव से क़रीब 500 किलोमीटर दूर हिंद महासागर में 60 द्वीपों से ज़्यादा का समूह) में अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा (इंटरनेशनल मैरिटाइम बाउंड्री लाइन यानी IMBL) विवाद का निपटारा UNCLOS (यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन ऑन द लॉ ऑफ द सी) के तहत ‘समान दूरी’ के नियमों को लागू करके किया जाएगा. ऐसा करते हुए ट्रिब्यूनल ने मालदीव की इस दलील का समर्थन किया कि निचला ब्लेनहिम रीफ, जिसके बारे में मॉरीशस ने दलील दी कि माप का बिंदु होना चाहिए, मॉरीशस की समुद्री सीमा के भीतर नहीं आता है.
ये विवाद इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (ICJ) के द्वारा 2019 में दिए गए उस फ़ैसले की वजह से पैदा हुआ जिसमें कहा गया कि चागोस द्वीप समूह (आर्किपेलागो), जो कि मॉरीशस के मुक़ाबले मालदीव के दक्षिणी अद्दू सिटी की तट रेखा के ज़्यादा नज़दीक है, मॉरीशस का संप्रभु क्षेत्र (सॉवरेन टेरिटरी) है. इसका ये मतलब हुआ कि दोनों समुद्री पड़ोसियों के बीच इंटरनेशनल मैरिटाइम बाउंड्री लाइन का निर्धारण किया जा सकता है. इस तरह ITLOS के फ़ैसले के तहत 95,000 वर्ग किमी. के विवादित समुद्री क्षेत्र में से मालदीव को जहां 47,232 वर्ग किमी. का हिस्सा मिला वहीं मॉरीशस को 45,331 वर्ग किमी.
मालदीव के राष्ट्रपति सोलिह ने ITLOS के फ़ैसले का स्वागत किया और कहा कि उनके देश की समुद्री सीमा अब पूरी तरह से निर्धारित हो गई है. मालदीव के विदेश मंत्री अब्दुल्ला शाहिद ने ट्वीट किया कि ये फ़ैसला मालदीव के द्वारा अंतर्राष्ट्रीय क़ानूनों और सिद्धांतों के पूरी तरह पालन करने की जीत है. ITLOS में मालदीव के प्रमुख वक़ील प्रोफेसर पायम अखवान ने अटॉर्नी जनरल इब्राहिम रिफथ के साथ मिलकर इस फ़ैसले को ‘बिना किसी नुक़सान के बड़ी जीत’ बताया. मालदीव के बार काउंसिल के अध्यक्ष विशम इस्माइल ने भी ITLOS के फ़ैसले को ‘बड़ी कामयाबी’ बताते हुए पूरी टीम को बधाई दी.
लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो फ़ैसले से सहमत नहीं हैं. सितंबर में होने वाले चुनाव, जिसमें राष्ट्रपति सोलिह फिर से जीत के लिए दावेदारी कर रहे हैं, से कुछ महीने पहले न सिर्फ़ विपक्षी पार्टियां बल्कि सरकार के ‘दोस्तों’ ने भी अपना विरोध दर्ज कराया है. पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद, जो कि सत्ताधारी मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी के अध्यक्ष भी हैं और जो पार्टी के भीतर राष्ट्रपति पद की दावेदारी में मौजूदा राष्ट्रपति सोलिह से हार चुके हैं, ITLOS के फ़ैसले पर सवाल उठाने वाले शुरुआती नेताओं में से हैं. उन्होंने आरोप लगाया कि मालदीव का मौजूदा रुख़ चागोस द्वीप समूह पर अपनी संप्रभुता के पहले के दावे को छोड़ने के समान है और इसकी वजह से मालदीव को अपने ‘समुद्री क्षेत्र’ के एक हिस्से को गंवाना पड़ रहा है. याद किया जा सकता है कि पिछले साल के आख़िर में सोलिह सरकार ने संप्रभुता के दावे को वापस ले लिया था लेकिन IMBL को लेकर पुराने विवाद पर अड़ी रही. ITLOS का फ़ैसला पुराने विवाद को लेकर है और ये मालदीव के लिए जीत है.
ITLOS के निर्णय से कुछ दिन पहले नशीद ने संसद के स्पीकर के तौर पर अपना शक भी जताया था. कई सदस्यों की ग़ैर-मौजूदगी में 87 सदस्यों वाली संसद ने मॉरीशस के साथ ‘सतही समझौते’ का आरोप लगाते हुए एक ‘आपातकालीन प्रस्ताव’ पर 23-19 के मत से फ़ैसला सुनाया. विपक्षी सदस्य चाहते थे कि मालदीव सरकार की तरफ़ से मॉरीशस की सरकार को कथित रूप से लिखी गई एक चिट्ठी को पेश किया जाए और उसके बदले नई चिट्ठी भेजी जाए. उसके बाद नशीद ने ट्वीट किया कि राष्ट्रपति (2008-12) के तौर पर उनकी कोशिश दोनों देशों के बीच बातचीत के ज़रिए विवाद का निपटारा करना था.
जेल में बंद PPM-PNC के नेता अब्दुल्ला यामीन के अलावा राष्ट्रपति पद के एक और दावेदार तथा जम्हूरी पार्टी के अध्यक्ष क़ासिम इब्राहिम ने अलग-अलग चिट्ठी लिखकर ITLOS को अपना फ़ैसला टालने को कहा. इसका ये मतलब था कि अगर वो राष्ट्रपति चुने जाते हैं तो वो मौजूदा सरकार के रुख़ की समीक्षा करेंगे. ITLOS के फ़ैसले के बाद कासिम ने एलान किया है कि वो ‘गंवाए हुए इलाक़े को फिर से हासिल करने के लिए काम करेंगे’. राष्ट्रपति पद के एक और दावेदार और सेना से रिटायर्ड कर्नल अहमद नाज़िम की मालदीव नेशनल पार्टी (MNM) और पूर्व राष्ट्रपति मामून अब्दुल गयूम की मालदीव रिफॉर्म मूवमेंट (MRM) ने भी ITLOS के फ़ैसले का विरोध किया है. साथ ही उन्होंने सोलिह सरकार के द्वारा फ़ैसले को स्वीकार करने की और भी ज़्यादा आलोचना की है.
MNP के सांसद अहमद उशम ने कहा कि विपक्षी पार्टियां संसद के अगले सत्र में ‘बेपरवाह नेताओं’ के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव पेश करेंगी. तथाकथित ग़ैर-सियासी धार्मिक कट्टरपंथी और जमीयत सलाफ के प्रमुख शेख़ अब्दुल्ला बिन मोहम्मद ने सोलिह के ख़िलाफ़ महाभियोग की मांग की. हालांकि ऐसा करने के लिए सोलिह के विरोधियों के पास 87 सदस्यों की संसद में संख्या नहीं है. इसी पृष्ठभूमि में यामीन की ज़िद पर PPM के बड़े नेताओं ने इस मुद्दे को लेकर एक साझा रणनीति पर चर्चा के लिए नशीद से मुलाक़ात की.
यामीन समर्थक अख़बार मालदीव न्यूज़ जर्नल ने ट्राइब्यूनल के फ़ैसले का इस तरह से विश्लेषण किया कि ITLOS के द्वारा IMBL के फिर से निर्धारण के बाद मालदीव से 45,331 वर्ग किमी. का इलाक़ा छीनकर मॉरीशस को सौंप दिया गया. मालदीव न्यूज़ जर्नल ने इसे ‘मालदीव के विशेष आर्थिक क्षेत्र (एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक ज़ोन) का नुक़सान’ बताया. समुद्री क़ानून के विशेषज्ञ डॉ. मोहम्मद मुनव्वर, जिन्होंने 90 के दशक की शुरुआत में गयूम की सरकार के दौरान अटॉर्नी-जनरल के तौर पर मालदीव के समुद्री क़ानून का मसौदा तैयार किया था, ने दावा किया कि ITLOS के फ़ैसले को मान कर मालदीव कंटीनेंटल शेल्फ (महाद्वीप के छोर पर समुद्र की सतह के नीचे पानी से भरा इलाक़ा) के मामले में नुक़सान करेगा. उन्होंने इस बात की तरफ़ ध्यान दिलाया कि सरकार के पास ITLOS के फ़ैसले के ख़िलाफ़ अपील करने के लिए 30 दिनों का समय है लेकिन उन्हें उम्मीद नहीं है कि मौजूदा सरकार इस मामले में कोई पहल करेगी.
इन आलोचनाओं का जवाब देते हुए विदेश मंत्री शाहिद ने विपक्ष के दावों को ‘गुमराह’ करने वाला बताया. इसके अलावा राष्ट्रपति के कार्यालय ने विपक्षी PPM-PNC गठबंधन के इस दावे का विरोध किया कि सोलिह ने पिछले साल चागोस द्वीप समूह पर संप्रभुता का दावा वापस लेकर और इस साल संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में मतदान के दौरान यूनाइटेड किंगडम के ख़िलाफ़ मॉरीशस के केस का समर्थन करने का भरोसा देकर ‘अपने संवैधानिक अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर काम किया’. ट्राइब्यूनल के फ़ैसले के बाद सोलिह समर्थक MDP के चेयरमैन और आर्थिक सलाहकार फ़ैयाज़ इस्माइल ने यामीन के PPM-PNC विपक्षी गठबंधन के ‘इंडिया आउट’ अभियान की नाकामी पर ज़ोर दिया और कहा कि विपक्षी गठबंधन ने चागोस के मुद्दे पर सच को तोड़ने-मरोड़ने की कोशिश की लेकिन इसमें नाकाम रहे.
अपनी तरफ़ से मत्स्यपालन (फिशरीज़), समुद्री संसाधन और कृषि मंत्री हुसैन रशीद ने सफ़ाई दी कि दावों के विपरीत मालदीव मछली पकड़ने के इलाक़ों को नहीं गंवाएगा. उन्होंने ट्वीट किया कि इसके बदले ‘दक्षिणी समुद्र में मालदीव की ताक़त और भी मज़बूत हो गई है और इस क्षेत्र की देख-रेख, नियंत्रण और इससे फ़ायदा उठाने के अब ज़्यादा मौक़े हैं.’ सोलिह सरकार के गठबंधन की साझेदार और मज़हबी अधालाथ पार्टी (AP) ने भी इसी तरह कहा है. पर्यावरण मंत्रालय ने बयान दिया है कि वो उस क्षेत्र में ‘लंबे समय तक मछली पकड़ने (सस्टेनेबल फिशिंग) के लिए स्थानिक योजना (Spatial Plan)’ बनाएगा.
चुनावी साल में इस तरह के घरेलू विवादों को टाला नहीं जा सकता लेकिन छोटे-मोटे राजनीतिक हितों को साधने और व्यक्तिगत मक़सदों को पूरा करने के लिए राष्ट्रीय एजेंडे को लगातार ‘बाहरी रूप’ देने का दीर्घकालीन नतीजा होगा. इस तरह अब शांत पड़ चुके 'इंडिया आउट' अभियान के बाद मॉरीशस के साथ द्विपक्षीय मुद्दे पर राजनीति करने का लंबे समय में मालदीव को नतीजा भुगतना होगा. मालदीव के राजनीतिक नेताओं को इस मामले में पाकिस्तान से सीख लेने की ज़रूरत है. घरेलू राजनीति, विदेश नीति और सुरक्षा नीति में ‘भारत पर केंद्रित’ नीतियों को अपनाकर पाकिस्तान कई दशकों से नुक़सान उठा रहा है.
चेन्नई में रहने वाले एन. सत्य मूर्ति राजनीतिक विश्लेषक और राजनीतिक समीक्षक हैं.
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N. Sathiya Moorthy is a policy analyst and commentator based in Chennai.
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