Expert Speak Raisina Debates
Published on Jun 04, 2025 Updated 0 Hours ago

सत्ता में ट्रंप की वापसी नीति में बड़े बदलाव का संकेत देती है जिससे आसियान की एकता को चुनौती मिल सकती है और अमेरिका-चीन में बढ़ते तनाव के बीच 2025 में मलेशिया को मिली आसियान की अध्यक्षता की परीक्षा ले सकती है. 

मलेशिया की आसियान अध्यक्षता और ट्रंप का दूसरा कार्यकाल: चुनौतियां और अवसर

Image Source: Getty

1 जनवरी 2025 को मलेशिया ने 1967 में स्थापित दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के संघ (आसियान) की अध्यक्षता पांचवीं बार संभाली. इस साल ‘समावेशिता और स्थिरता’ की थीम के साथ मलेशिया ने अपनी दो प्रमुख प्राथमिकताएं स्पष्ट कर दी हैं. सामरिक मोर्चे पर मलेशिया का उद्देश्य एक अधिक समावेशी क्षेत्रीय संवाद और भागीदारी को बढ़ावा देना है, चाहे वो म्यांमार में शांति की बहाली हो,  ट्रंप के नए टैरिफ युद्ध का सामूहिक जवाब देना हो या इंडो-पैसिफिक में एक अधिक सार्थक और पारदर्शी ढंग से चीन के साथ बातचीत हो. 

ये जानना विशेष रूप से दिलचस्प होगा कि दक्षिण चीन सागर (SCS) के मुद्दे पर मलेशिया का पारंपरिक ‘गुटनिरपेक्ष’ रवैया चीन को लेकर कैसा रहेगा और उस मोर्चे पर क्या वो कोई सार्थक प्रगति हासिल कर पाएगा. म्यांमार के मोर्चे पर मलेशिया ने वहां की सैन्य सरकार और राष्ट्रीय एकता सरकार के बीच युद्धविराम की मियाद में बढ़ोतरी सुनिश्चित करके पहले ही कुछ बढ़त हासिल की है. पिछले दिनों बैंकॉक में हुई बातचीत में मलेशिया के प्रधानमंत्री दातो सेरी अनवर इब्राहिम की भागीदारी इस सक्रिय दृष्टिकोण को दिखाती है.  

लाओस की राजधानी वियनतियाने में 44वें आसियान शिखर सम्मेलन के पूर्ण अधिवेशन में अपने भाषण के दौरान अनवर ने साफ तौर पर अपनी प्राथमिकताओं को प्रस्तुत किया जिनमें “इस क्षेत्र में व्यापार और निवेश का विस्तार और डिजिटल बदलाव को बढ़ावा” शामिल हैं.

इसके अलावा, 2025 में मलेशिया के आसियान एजेंडे में व्यापार एवं निवेश, सप्लाई चेन का सामर्थ्य, जलवायु परिवर्तन और सतत विकास को भी इस योजना के बाकी स्तंभों के रूप में शामिल किया गया है. लाओस की राजधानी वियनतियाने में 44वें आसियान शिखर सम्मेलन के पूर्ण अधिवेशन में अपने भाषण के दौरान अनवर ने साफ तौर पर अपनी प्राथमिकताओं को प्रस्तुत किया जिनमें “इस क्षेत्र में व्यापार और निवेश का विस्तार और डिजिटल बदलाव को बढ़ावा” शामिल हैं. उन्होंने आगे ज़ोर दिया कि “आसियान को क्षेत्रीय सप्लाई चेन को सुरक्षित करने और अपने वैश्विक आर्थिक संपर्क को मज़बूत करने की आवश्यकता है. मुझे विश्वास है कि दृढ़ निश्चय और प्रतिबद्धता के साथ आसियान आर्थिक सामर्थ्य हासिल कर सकता है और 2030 तक दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के रास्ते पर होगा.” 

2025 आसियान समुदाय की औपचारिक स्थापना की दशकीय वर्षगांठ भी है. मलेशिया की अध्यक्षता उसे आसियान समुदाय के दृष्टिकोण 2045 को साकार करने के लिए बुनियाद रखने का अवसर प्रदान करेगी. 

हालांकि आसियान के अध्यक्ष के रूप में मलेशिया को अब तेज़ी से जटिल होते भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक परिदृश्य में इस संगठन का नेतृत्व करना होगा. इन चुनौतियों में प्रमुख हैं अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के रूप में व्हाइट हाउस में डोनाल्ड ट्रंप की वापसी, अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता में बढ़ोतरी और लंबे समय से चल रहा दक्षिण चीन सागर विवाद जिसके चीन-फिलीपींस के बीच तनाव बढ़ने पर आकस्मिक संघर्ष में बदल जाने का ख़तरा है. 

अमेरिका और चीन में बढ़ते तनाव के बीच बहुपक्षवाद को लेकर ट्रंप की सर्वविदित उपेक्षा के साथ सहयोगियों, साझेदारों और विरोधियों के ख़िलाफ़ ट्रंप का मौजूदा टैरिफ युद्ध एकता बनाए रखने और सामरिक स्वायत्तता के आसियान के काम को और जटिल बनाता है. तेज़ी से उभरता भू-राजनीतिक परिदृश्य इस बात को रेखांकित करता है कि जहां दक्षिण चीन सागर विवाद और अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता जैसी चुनौतियां महत्वपूर्ण हैं, वहीं व्यापार, निवेश और सप्लाई चेन सामर्थ्य के क्षेत्र में चुनौतियां और भी तात्कालिक और महत्वपूर्ण हैं. 

ट्रंप 2.0 और अमेरिका-आसियान संबंध

अपने पहले कार्यकाल के दौरान ट्रंप ने विदेश नीति को लेकर लेन-देन के नज़रिए का प्रदर्शन किया जिसमें बहुपक्षीय प्रतिबद्धताओं की तुलना में आर्थिक लाभ और द्विपक्षीय बातचीत को प्राथमिकता दी गई. पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन और मंचों जैसे आसियान के नेतृत्व वाली बैठकों से ट्रंप की अनुपस्थिति का नतीजा आसियान के साथ अमेरिका की कम भागीदारी के रूप में निकला. व्हाइट हाउस में ट्रंप की वापसी ने पहले के बाइडेन प्रशासन की तुलना में महत्वपूर्ण नीति परिवर्तन का संकेत दिया है जो दक्षिण-पूर्व एशिया- ऐसा क्षेत्र जो वैश्विक व्यापार और सप्लाई चेन के केंद्र में है- को सीधे प्रभावित कर सकता है. इस तरह के नीतिगत परिवर्तन के संकेत पहले से ही मिल रहे हैं.

ट्रंप के नेतृत्व में कंप्रिहेंसिव एंड प्रोग्रेसिव एग्रीमेंट फॉर ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप (CPTPP), इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क (IPEF), एशिया पैसिफिक इकोनॉमिक कोऑपरेशन (APEC) और आसियान केंद्रित रीजनल कंप्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (RCEP) जैसे बहुपक्षीय संगठनों को लेकर संदेह बढ़ने की आशंका है. एशिया पैसिफिक इकोनॉमिक कोऑपरेशन (APEC) और आसियान संचालित ईस्ट एशिया समिट (EAS) में ट्रंप की भागीदारी की संभावना भी कम लगती है.  

अमेरिका और चीन- दोनों को एक साथ भागीदार बनाए रखने के मलेशिया के सुनियोजित दृष्टिकोण के लिए अलग-अलग कूटनीतिक रणनीतियों की आवश्यकता होगी ताकि आसियान और व्यापक इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अमेरिका की नीति में किसी भी संभावित उतार-चढ़ाव से बचा जा सके. 

ये घटनाक्रम मलेशिया के द्वारा अपने महत्वपूर्ण संवाद साझेदारों में से एक अमेरिका की लगातार भागीदारी को सुनिश्चित करते हुए 2025 में अपनी आसियान अध्यक्षता को सार्थक बनाने की क्षमता के बारे में सवाल खड़ा करते हैं. इस साल आसियान की बैठकों में अमेरिका की भागीदारी मेज़बान के रूप में मलेशिया के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है. एक महत्वपूर्ण कदम आसियान के नेतृत्व वाली क्षेत्रीय संस्थाओं समेत अलग-अलग प्रमुख मंचों पर आसियान के कूटनीतिक प्रयासों को मज़बूत करना होगा. अमेरिका और चीन- दोनों को एक साथ भागीदार बनाए रखने के मलेशिया के सुनियोजित दृष्टिकोण के लिए अलग-अलग कूटनीतिक रणनीतियों की आवश्यकता होगी ताकि आसियान और व्यापक इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अमेरिका की नीति में किसी भी संभावित उतार-चढ़ाव से बचा जा सके. 

कूटनीतिक औज़ार के रूप में व्यापार और निवेश

ट्रंप प्रशासन की आर्थिक प्राथमिकताओं को देखते हुए मलेशिया ऐसी रणनीतिक पहल का प्रस्ताव दे सकता है जो अमेरिका और आसियान के हितों को एक सीध में रखे. उदाहरण के लिए, अमेरिकी तकनीक और रक्षा उद्योगों के लिए ज़रूरी महत्वपूर्ण खनिजों के एक भरोसेमंद सप्लायर और प्रोसेसर के रूप में ख़ुद को स्थापित करना. ऐसे संसाधनों के लिए बढ़ती वैश्विक प्रतिस्पर्धा के साथ, विशेष रूप से चीन के द्वारा महत्वपूर्ण खनिजों का निर्यात रोकने के बीच, एक स्थिर आपूर्तिकर्ता के रूप में मलेशिया की भूमिका द्विपक्षीय आर्थिक संबंधों को मज़बूत बना सकती है और इस क्षेत्र में लगातार अमेरिकी भागीदारी को प्रोत्साहन दे सकती है. 

ये देखते हुए कि ट्रंप प्रशासन ज़्यादातर मौजूदा व्यापार समझौतों पर फिर से विचार कर सकता है- भारत और इंडोनेशिया जैसे साझेदारों के साथ संबंध बढ़ाने की संभावना है- ऐसे में आसियान को सक्रिय रूप से एक व्यापक आसियान-अमेरिका मुक्त व्यापार समझौते (FTA) की व्यावहारिकता और संभावनाओं का पता लगाना चाहिए. 

अमेरिका की बहुराष्ट्रीय कंपनी इंटेल ने पिछले दिनों वित्तीय मजबूरियों के कारण अपने पेनांग (मलेशिया) प्रोजेक्ट को अनिश्चित काल के लिए रोक दिया. ये सेमीकंडक्टर उद्योग में मलेशिया की आकांक्षाओं के लिए एक झटका है. इस परियोजना की परिकल्पना एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में की गई थी जिससे मलेशिया को सेमीकंडक्टर के विकास में ‘तीसरी छलांग’ लगाने में मदद मिलती. 

नए सिरे से दुनिया में सेमीकंडक्टर का एक केंद्र बनने की अपनी महत्वाकांक्षा, जिसे प्रधानमंत्री अनवर ने दोहराया, को पूरा करने के लिए मलेशिया को अमेरिका के साथ सामरिक तालमेल को प्राथमिकता देनी होगी. मलेशिया के नेताओं ने लगातार कहा है कि उनका देश अमेरिका-चीन मुकाबले में किसी का पक्ष लेने से परहेज़ करना चाहता है.

ध्यान देने की बात है कि 70 के दशक में अमेरिकी निवेश ने मलेशिया को सेमीकंडक्टर का एक मज़बूत आधार स्थापित करने में मदद की थी. नए सिरे से दुनिया में सेमीकंडक्टर का एक केंद्र बनने की अपनी महत्वाकांक्षा, जिसे प्रधानमंत्री अनवर ने दोहराया, को पूरा करने के लिए मलेशिया को अमेरिका के साथ सामरिक तालमेल को प्राथमिकता देनी होगी. मलेशिया के नेताओं ने लगातार कहा है कि उनका देश अमेरिका-चीन मुकाबले में किसी का पक्ष लेने से परहेज़ करना चाहता है. इसे अक्सर ‘बचाव’ की रणनीति कहा जाता है. इस रणनीति को लागू करने का अब सही समय है, विशेष रूप से आर्थिक क्षेत्र में. आर्थिक सुरक्षा के लिए चीन पर बहुत अधिक निर्भर होने के बदले मलेशिया और आसियान को अमेरिका के साथ एक अधिक ‘रचनात्मक भागीदारी’ करनी चाहिए ताकि दोनों पक्षों को आर्थिक लाभ मिल सके, विशेष रूप से नए टैरिफ और व्यापार प्रतिबंध थोपे जाने की स्थिति में.  

मलेशिया एक दीर्घकालीन निवेश के ढांचे की वकालत करने पर विचार कर सकता है जो मलेशिया का फंड अमेरिकी अर्थव्यवस्था के चुनिंदा क्षेत्रों में लगा सके. उदाहरण के लिए, मलेशिया की तरफ से पेट्रोनास और पर्टेमिना कंपनियां अमेरिका की प्राकृतिक गैस परियोजनाओं में निवेश कर सकती हैं, वहीं MMC (मलेशिया माइनिंग कॉरपोरेशन बेरहाड) जैसी कंपनियां व्यापार के बुनियादी ढांचे को मज़बूत करने में योगदान दे सकती हैं. ये रणनीति एक-दूसरे पर आर्थिक निर्भरता का निर्माण करेगी और मलेशिया/आसियान के निर्यात पर निशाना बनाने वाले एकतरफा अमेरिकी टैरिफ के ख़तरे को कम करने में योगदान करेगी. जवाबी टैरिफ के समझौते पर बातचीत संरक्षणवादी नीतियों, जिसकी शुरुआत ट्रंप प्रशासन कर सकता है, से बचाने का काम कर सकती है. 

ट्रंप की संकीर्णता और एकतरफा प्रवृत्ति 

बहुपक्षीय कूटनीति के प्रति ट्रंप की अरुचि, जो उनकी व्यापक ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति से झलकती है, के कारण न्यायसंगत ऊर्जा परिवर्तन साझेदारी (जस्ट एनर्जी ट्रांजिशन पार्टनरशिप या JETP) जैसी क्षेत्रीय पहल में अमेरिका की भागीदारी कम हो सकती है. वियतनाम और इंडोनेशिया जैसे देशों में ऊर्जा परिवर्तन का समर्थन करने वाली इन पहलों को फंडिंग में कटौती का सामना करना पड़ सकता है जिससे सतत विकास और स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में आसियान की प्रगति में बाधा उत्पन्न हो सकती है. इस तरह की दिक्कतें आसियान के सदस्य देशों को अमेरिका के द्वारा छोड़ी गई वित्तीय और तकनीकी कमियों को भरने के लिए यूरोपियन यूनियन (EU), चीन, भारत या जापान के साथ वैकल्पिक साझेदारी करने के लिए मजबूर कर सकती हैं. 

इसके अलावा जलवायु परिवर्तन को लेकर राहत, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) जैसे वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य मंचों और लैंगिक समानता की पहल को लेकर ट्रंप का जाना-माना संदेह इन क्षेत्रों में आसियान की प्रगति को और कमज़ोर कर सकता है. अमेरिका के मज़बूत समर्थन की कमी सतत विकास के लक्ष्यों की दिशा में प्रयासों को धीमा कर सकती है जिससे न केवल जलवायु सामर्थ्य की कोशिशें बल्कि दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता भी ख़तरे में पड़ सकती है. 

मलेशिया और आसियान का कूटनीतिक धर्मसंकट

दक्षिण-पूर्व एशिया में सुरक्षा को लेकर ट्रंप का नज़रिया लेन-देन से संबंधित लेकिन दृढ़ बने रहने की उम्मीद है. उनके पहले कार्यकाल के दौरान इंडोनेशिया, वियतनाम और फिलीपींस जैसे आसियान के प्रमुख सदस्य देशों के साथ संबंधों में मज़बूती आई थी जो इस बार भी दिख रही है. वैसे तो ट्रंप ने दक्षिण चीन सागर विवाद में सीमित दिलचस्पी दिखाई है लेकिन उनके दूसरे कार्यकाल के दौरान चीन पर निशाना साधने वाले इस मुद्दे पर अमेरिका का रुख सख्त होने की उम्मीद है. सैन्य मौजूदगी को मज़बूत करना, फिलीपींस एवं वियतनाम जैसे साझेदारों के साथ सुरक्षा सहयोग बढ़ाना और सिंगापुर एवं इंडोनेशिया के साथ संबंधों को बढ़ाना अन्य संभावनाएं हैं. इससे जहां चीन के विस्तारवाद पर रोक लग सकती है, वहीं क्षेत्रीय तनाव बढ़ने का भी ख़तरा है. ये ऐसी स्थिति है जिसे ठीक करने में आसियान की सर्वसम्मति पर आधारित, संवाद से प्रेरित तंत्र सक्षम नहीं है. 

मलेशिया की आसियान अध्यक्षता के लिए एक बड़ी चिंता “भागीदारी” की जगह चीन के साथ स्पष्ट प्रतिद्वंद्विता की तरफ अमेरिका की सुरक्षा नीति में संभावित बदलाव है. वैसे तो वियतनाम और फिलीपींस जैसे देश इस बदलाव का स्वागत कर सकते हैं लेकिन दक्षिण चीन सागर पर दावा करने वाला कोई भी देश यूक्रेन जैसी संघर्ष की स्थिति का सामना नहीं करना चाहेगा जहां ट्रंप एकतरफा अपने रवैये को पलट देंगे और चीन के साथ बातचीत की अपनी इच्छा की घोषणा करेंगे जैसा कि उन्होंने यूक्रेन संघर्ष में रूस के साथ बातचीत शुरू करके किया था. 

अगर अमेरिका आसियान के हितों की अनदेखी करते हुए चीन के साथ बड़ा समझौता करने का विकल्प चुनता है तो इस क्षेत्र के सामने अपनी सुरक्षा और आर्थिक भविष्य को तय करने से दूर होने का ख़तरा है.

अगर अमेरिका आसियान के हितों की अनदेखी करते हुए चीन के साथ बड़ा समझौता करने का विकल्प चुनता है तो इस क्षेत्र के सामने अपनी सुरक्षा और आर्थिक भविष्य को तय करने से दूर होने का ख़तरा है. इसलिए आसियान के अध्यक्ष के रूप में मलेशिया की भूमिका ये सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है कि दो महाशक्तियों की बातचीत में इस क्षेत्र के सामूहिक हितों के साथ समझौता नहीं किया जाए. आसियान के आंतरिक तंत्र, जैसे कि इंडो-पैसिफिक को लेकर आसियान का दृष्टिकोण (AOIP), को मज़बूत करने से बाहरी ताकत की चालबाज़ी का रणनीतिक मुकाबला करने में मदद मिल सकती है. 2025 में आसियान के अध्यक्ष के रूप में मलेशिया इस संगठन की ‘सामूहिक आवाज़’ बनने और अमेरिका-चीन के समीकरण में तटस्थ मध्यस्थ के रूप में काम करने के लिए अच्छी स्थिति में है लेकिन इसके लिए ये ज़रूरी है कि वो चीन की तरफ बहुत ज़्यादा नहीं झुके. इसके लिए बारीक कूटनीतिक रवैया आवश्यक है: ऐसा रवैया जो अमेरिका और चीन- दोनों को शामिल करके समावेशी क्षेत्रीय सुरक्षा संवाद को बनाए रखते हुए तनाव कम करने को बढ़ावा दे. 

आगे का रास्ता

राष्ट्रपति के रूप में ट्रंप के दूसरे कार्यकाल के इर्द-गिर्द अनिश्चितताएं 2025 में मलेशिया को मिली आसियान की अध्यक्षता के लिए चुनौतियों और अवसरों का जटिल मिश्रण प्रस्तुत करती हैं. अमेरिका की बहुपक्षीय भागीदारी में कमी और अमेरिका-चीन के बीच बढ़ता तनाव जहां आसियान की मौजूदा पहल को कमज़ोर कर सकता है, वहीं ये बदलाव आसियान के लिए उभरती इंडो-पैसिफिक व्यवस्था में अपनी सामरिक स्वायत्तता और ‘संगठन शक्ति’ पर ज़ोर देने के उद्देश्य से नए रास्ते भी खोलता है. बदलते भू-राजनीतिक तूफान का सामना करने के लिए 2025 में मलेशिया की अध्यक्षता में एक रणनीतिक, बहुस्तरीय दृष्टिकोण- जिसमें आर्थिक विविधता, अनुकूल कूटनीतिक कौशल और सुरक्षा को लेकर व्यावहारिकता शामिल हो- आसियान के लिए आवश्यक है. 


राहुल मिश्रा दिल्ली स्थित जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर इंडो-पैसिफिक स्टडीज़ में एसोसिएट प्रोफेसर हैं. साथ ही वो थाईलैंड की थम्मासैट यूनिवर्सिटी के जर्मन-साउथ-ईस्ट एशियन सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर पब्लिक पॉलिसी एंड गुड गवर्नेंस में सीनियर रिसर्च फेलो भी हैं. 

अस्मा रस्सी और नुरूल मजिदाह (जेड ज़िहान) मलेशिया के कुआलालंपुर स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ मलाया में रिसर्च स्कॉलर हैं. 

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.