Published on Jul 26, 2023 Updated 0 Hours ago
सभी के लिए बहुपक्षीय पहल को कारगर बनाना: समावेशी एवं विकास-अनुकूल दृष्टिकोणों के ज़रिए WTO में सुधार

टास्क फोर्स 7: बहुपक्षवाद (Multilateralism) को फिर से स्थापित करना: वैश्विक संस्थानों और फ्रेमवर्क्स को प्रासंगिक बनाना


 

सार

विभिन्न व्यापक एवं महत्त्वपूर्ण वैश्विक मुद्दों, जैसे कि खाद्य सुरक्षा, कोविड-19 महामारी के बाद उपजे हालातों पर काबू पाना, जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण और सर्विसेज ट्रेड यानी सेवाओं से जुड़े व्यापार में उभरते क्षेत्रों से जुड़े मसलों को संबोधित करने और उनका हल निकालने के लिए आज वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन (WTO) के नियमों को बदलना और उन्हें वर्तमान दौर के मुताबिक़ प्रासंगिक बनाना बेहद ज़रूरी हो गया है. WTO में जिन मुद्दों पर बहुपक्षीय (Multilateral) सहमति हासिल करना कठिन हो यानि कि संगठन के सभी सदस्यों की रज़ामंदी प्राप्त करना मुश्किल हो, वहां प्लूरीलेटरल समझौते एक व्यावहारिक विकल्प हो सकते हैं. प्लूरीलेटरल समझौते का तात्पर्य है कि जिनमें WTO के कुछ ही सदस्य देशों की भागीदारी होती हैं. यह सुनिश्चित करने के लिए कि प्लूरीलेटरल समझौते मल्टीलेटरल व्यापार प्रणाली को आगे बढ़ाएं, उनमें एक समावेशी और विकास के अनुरूप फ्रेमवर्क का अनुसरण करना चाहिए. उनके पास अधिकारों और प्रतिबद्धताओं की एक विभिन्न परतों वाला ढांचा होना चाहिए, साथ ही इसमें क्षमता निर्माण के उपाय भी शामिल होने चाहिए. WTO के सदस्यों को उन विषयों पर बहुपक्षीय (Plurilateral) समझौतों को आगे बढ़ाना चाहिए, जो न केवल विकासशील देशों, बल्कि कम विकसित देशों के लिए विशेष चिंता का मुद्दा हैं. ऐसा करना सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में भी सहायक साबित हो सकता है. G20 बहुपक्षीय (Plurilaterals) समझौतों में शामिल सदस्य देशों के बीच पारस्परिक समझ को बढ़ावा देने में अपनी निर्णायक भूमिका निभा सकता है. उदाहरण के तौर पर G20 अपने ट्रेड एंड इन्वेस्टमेंट वर्किंग ग्रुप में प्लूरीलेटरल्स को लेकर एक टास्क फोर्स की स्थापना कर अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है.

1.चुनौती

विश्व व्यापार संगठन (WTO) ज़बरदस्त दबाव में है. जून 2022 में आयोजित 12वीं मंत्रिस्तरीय कॉन्फ्रेंस (MC) में कुछ क्षेत्रों के लिए संतोषजनक नतीज़े हासिल किए गए थे, साथ ही कम विकसित देशों (LDCs) को वैश्विक व्यापार एवं बहुपक्षीय (Multilateral) व्यापार प्रणाली में बेहतर तरीक़े से जोड़ने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया था. ज़ाहिर है कि WTO को इन बदलावों के मुताबिक़ ढालने के लिए इसमें व्यापक सतर पर बदलाव किए जाने की ज़रूरत है. G20 विश्व व्यापार संगठन में इस बदलाव एवं सुधार की आवश्यकता को स्वीकार करता है, साथ ही इसे गति प्रदान करने और सुझाव देने में अपनी अहम भूमिका निभाता है.

विश्व व्यापार संगठन की व्यापर को लेकर बहुपक्षीय (Multilateral) रूल बुक यानी नियम पुस्तिका में पिछली बार लगभग 30 साल पहले अपडेट किया गया था. देखा जाए तो तब से लेकर अब तक वैश्विक व्यापार के तौर-तरीक़ों में उल्लेखनीय बदलाव दर्ज़ किया गया है. उदाहरण के तौर पर वर्तमान में वैश्विक स्तर पर ई-कॉमर्स बेहद अहम होता जा रहा है, साथ ही टिकाऊपन और स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों की भूमिका भी बढ़ती जा रही है और वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं का लचीलापन एक बड़ी चिंता का मसला बन गया है. यह कुछ बातें हैं, जिनकी वजह से WTO की रूल बुक को अपडेट करना बेहद आवश्यक हो गया है. हालांकि, वैश्विक स्तर पर तेज़ी के साथ विवादित हो रहे भू-आर्थिक वातावरण और WTO सदस्य देशों के भिन्न-भिन्न आर्थिक एवं राजनीतिक हितों के मद्देनज़र किसी बहुपक्षीय (Multilateral) सहमति तक पहुंच पाना बेहद कठिन हो गया है.

वर्तमान ने जो माहौल है, उसमें WTO के तमाम सदस्य, देशों के उप-समूहों के बीच “खुले बहुपक्षीय (Plurilateral) समझौतों” की संभावनाओं पर अपनी नज़रें लगाए हुए हैं. ज़ाहिर है कि इस प्रकार के बहुपक्षीय समझौते न केवल हस्ताक्षर करने वाले सदस्यों को एक साथ बांध कर रखते हैं, बल्कि जो सदस्य इन पर हस्ताक्षर नहीं करते हैं उनके लिए भी लाभ पैदा कर सकते हैं. आज के दौर की तमाम व्यापक और गंभीर चुनौतियों का त्वरित समाधान तलाशने में यह उपाय कारगर सिद्ध हो सकता है.

WTO की 11वीं मंत्रीस्तरीय कॉन्फ्रेंस ने कई बहुपक्षीय (Plurilateral) समझौता वार्ताओं एवं ज्वाइंट स्टेटमेंट इनिशिएटिव्स (JSIs) की शुरूआत की. वर्ष 2021 के अंत में सेवाओं पर घरेलू विनियमन को सफलतापूर्वक संपन्न किया गया था, जबकि वर्ष 2023 के स्प्रिंग सीजन में इन्वेस्टमेंट फैसिलिटेशन फॉर डेवलपमेंट (IFD) वार्ताओं को लेकर एक बड़ी क़ामयाबी हासिल की गई थी.

हालांकि, कुछ विकासशील देशों ने चेताया है [1] कि प्लूरीलेटरल समझौते मल्टीलेटरल्स के दृष्टिकोण को कमज़ोर कर सकते हैं और WTO के नियमों के विरुद्ध जा सकते हैं. इतना ही नहीं जो भी देश प्लूरीलेटरल के सदस्य नहीं है, उनके लिए यह नीतियों को अनुचित तरीक़े से प्रतिबंधित कर सकता है और विकासशील देशों के बुनियादी हितों को अधिकारों से वंचित कर सकता है. विकासशील देश इस बात को लेकर ख़ासे चिंतित हैं कि उनमें एजेंडा का निर्धारण करने, समझौता वार्ता करने और समझौते को प्रभावी तरीक़े से कार्यान्वित करने की क्षमता की नितांत कमी है.

आम तौर देखा जाए, तो विकासशील और उभरते हुए देश अन्य ज्वाइंट स्टेटमेंट इनिशिएटिव्स समझौता वार्ताओं में व्यापक रूप से हिस्सेदारी नहीं निभाते हैं. [A], [2] हालांकि इसका एक अपवाद IFD JSI है, जिस पर WTO के कुल सदस्य देशों में से दो-तिहाई से अधिक देशों द्वारा वार्ता की जा रही है. इतना ही नहीं इन वार्ताओं में उभरते हुए एवं विकासशील देशों को भी मुख्य संचालकों में से एक माना जा सकता है.

यह पॉलिसी ब्रीफ़ में इस बात का विस्तार से विश्लेषण किया गया है कि किस प्रकार से बहुपक्षीय (Plurilateral) वार्ताओं एवं समझौतों को अधिक समावेशी एवं विकास के मुताबिक़ बनाने के लिए विकासशील देशों एवं कम विकसित देशों की चिंताओं को बेहतर तरीक़े से संबोधित किया जा सकता है, अर्थात उन चिंताओं को दूर करने के लिए क़दम उठाए जा सकते हैं.

समावेशन: समावेशन का मतलब बहुपक्षीय (Plurilateral) समझौते को लेकर की जाने वाली वार्ता और उसके कार्यान्वयन दोनों से है. देशों के पास इन दोनों के लिए सामर्थ्य होना चाहिए. इतना ही नहीं विकासशील देशों और कम विकसित देशों के हितों और उनकी विशेष परिस्थितियों का सम्मान किया जाना चाहिए. इसके अतिरिक्त समझौते के जो भी नियम और निर्देश हैं, उन्हें अगर भविष्य में मल्टीलेटरल में बदलने की कोई भी संभावना बनती दिखाई देती है, तो उसकी भी मंज़ूरी देनी चाहिए.

विकास के अनुरूप: कोई भी समझौता तब विकास के अनुरूप होता है, जब वो सिर्फ़ आर्थिक प्रगति को ही प्रोत्साहित नहीं करता है, बल्कि आर्थिक विकास को इस प्रकार से आगे बढ़ाता है, जो सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को हासिल करने में योगदान देने वाला हो.

WTO समरूपता: विश्व स्वास्थ्य संगठन की जो मौज़ूदा रूल बुक है, उसके मुताबिक़ बहुपक्षीय (Plurilateral) समझौता वार्ताओं को वैद्यता मिली हुई है, इतना ही नहीं WTO सदस्यों की दशकों पुरानी प्रथा के द्वारा भी इसे मान्यता हासिल है. WTO में प्लूरीलेटरल्स की अनुकूलता सुनिश्चित करने का एक प्रमुख पहलू उन्हें ओपन प्लूरीलेटरल्स के रूप में निर्धारित करना है, जिससे यह पक्का किया जा सके कि इसमें शामिल होने के इच्छुक देश ऐसा कर सकते हैं और यह नियम, बगैर किसी भेदभाव के लागू होते हैं, ताकि इन समझौतों पर हस्ताक्षर नहीं करने वाले देश भी इनसे लाभान्वित हो सकें. इस प्रकार से देखा जाए तो इस बात का ख़तरा बेहद कम है कि ये बहुपक्षीय समझौते वैश्विक अर्थव्यवस्था के बिखराव को बढ़ाने का काम करेंगे, ज़ाहिर है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय वर्तमान में इसी तरह की परिस्थितियों को देख रहा है.

वो चुनौतियां जिनका मुक़ाबला करने में प्लूरीलेटरल्स सहायता कर सकते हैं

  • मल्टीलेटरल समझौता वार्ताओं में आने वाले गतिरोध को समाप्त करना

प्लूरीलेटरल समझौता वार्ताएं बहुपक्षीय (Multilateral) बातचीतों का दूसरा सबसे बेहतर विकल्प हैं, क्योंकि इनमें WTO के सभी सदस्य देश शामिल नहीं होते हैं. प्लूरीलेटरल समझौता वार्ताएं बातचीत की मुश्किलों को कम करने का काम करती हैं क्योंकि इनमें समान विचारधारा वाले सदस्य देशों का एक छोटा समूह शामिल होता है. इस वजह से इस तरह के समझौतों में उन क्षेत्रों में आगे बढ़ने का रास्ता साफ होता है, जहां WTO के सभी सदस्य देशों की आमसहमति नहीं बन पाती है.

उल्लेखनीय है कि नए सदस्यों के लिए खुलापन, प्लूरीलेटरल एग्रीमेंट की संरचना में लचीलापन और सदस्य देशों की प्रतिबद्धताएं, जिन्हें अक्सर “परिवर्तशील जियोमेट्री” के तौर पर जाना जाता है, यह सब मिलकर न केवल WTO को दिलचस्पी बनाए रखने और अपनी बढ़ती विविधितापूर्ण सदस्यता में औचित्य को बनाए रखने में मदद कर सकता है, बल्कि विश्व व्यापार संगठन को अपनी संस्थागत प्रासंगिकता को सशक्त करने में भी मददगार साबित हो सकता है.

जहां तक WTO की बात है तो बहुपक्षीय (Plurilateral) समझौते गैर-प्रतिभागी सदस्य देशों के लिए भी कुछ न कुछ लाभ देने वाले होते हैं. ऐसे इसलिए होता है, क्योंकि ये समझौते पूरी तरह से पारदर्शी होते हैं, जिनमें जनरल काउंसिल को रिपोर्टिंग भी शामिल है. इसके साथ ही इन समझौतों से ट्रेड पॉलिसी उपायों को लेकर ज़्यादा जानकारी मिल सकती है. ओपन प्लूरीलेटर समझौतों में जो सहमति होती है, वह एक सर्वाधिक तरजीही देश पर आधारित होती हैं, साथ ही गैर-सदस्य देशों को भी लाभ पहुंचाती हैं.

  • बिखराव पर काबू पाना और बहुपक्षीय (Multilateral) व्यापार नियमों को आगे बढ़ाना

उल्लेखनीय है कि सिद्धांत पर आधारित, समावेशी और ओपन बहुपक्षीय (Plurilaterals) समझौते सदस्यों को विश्व व्यापार संगठन के दायरे से बाहर जाने के बजाए WTO प्रणाली के अंतर्गत समझौता वार्ताओं को जारी रखने में मदद करते हैं. जाहिर है कि अगर ये वार्ताएं WTO के दायरे के बाहर की जाती हैं, तो ये पूरी व्यापार प्रणाली के और अधिक बिखराव की वजह बनती हैं. ये बहुपक्षीय समझौते नई-नई नीतियों को बनाने का अवसर प्रदान कर सकते हैं और इस तरह से व्यापार करने के नियमों को आधुनिक बनाने के लिए क्रमबद्ध तरीक़े से आगे बढ़ने वाला दृष्टिकोण प्रदान कर सकते हैं.

 

WTO के बहुपक्षीय (Plurilaterals) समझौते क्षेत्रीय एवं द्विपक्षीय व्यापार समझौतों की अलग-अलग नीतियों को एकीकृत कर सकते हैं और विश्व व्यापार संगठन के सदस्यों के बीच दृष्टिकोण में बेहतर तरीक़े से समन्वय स्थापित कर सकते हैं. दूसरी तरह से कहा जाए तो इस प्रकार WTO बहुपक्षीय समझौतों में यह संभावना प्रबल होती है कि वे एक विशिष्ट नीतिगत क्षेत्र में बिखराव और भेदभाव को कम करने में सक्षम हों. इस प्रकार से ये समझौते सभी के लिए व्यापार की परिस्थितियों को सुधारने का काम करते हैं.

 

इसके अतिरिक्त, WTO के संदर्भ में ये बहुपक्षीय समझौते स्पेशल और डिफरेंशियल ट्रीटमेंट यानी विशिष्ट एवं व्यक्तिगत व्यवहार (SDT) की ‘भावना’ को समाहित करने वाले होते हैं. इतना ही नहीं इस प्रकार के एग्रीमेंट विकासशील देशों के लिए WTO के बाहर किए जाने वाले व्यापार समझौतों की तुलना में कहीं अधिक बेहतर हैं, ज़ाहिर है कि WTO के दायरे के बाहर होने वाले समझौतों में लचीलापन जैसी विशेष बात नहीं होती है.

  • विकासशील देशों के समक्ष आने वाली संरचनात्मक रुकावटों पर काबू पाना

विकासशील देशों को ओपन प्लूरीलेटरल्ट समझौतों में शामिल होने पर कई अवरोधों का सामना करना पड़ता है. इसके लिए विकासशील देशों को प्रभावी ढंग से समझौता वार्ताओं का हिस्सा बनने के लिए अपने सामर्थ्य को बढ़ाने हेतु संसाधनों में निवेश करना पड़ सकता है, साथ ही अपनी तरफ से घरेलू स्तर पर सुधार के लिए सख़्त क़दम उठाने पड़ सकते हैं.

इसलिए देखा जाए तो समावेशी, विकास-अनुकूल और खुले बहुपक्षीय (Plurilaterals) समझौतों के लिए व्यापार क्षमता का निर्माण और तकनीक़ी सहायता बेहद अहम है. दोहा घोषणा में मंत्रियों ने सहमति जताई थी कि सभी SDT प्रावधानों की समीक्षा की जानी चाहिए, ताकि उन प्रावधानों को मज़बूत किया जा सके और ज़्यादा सटीक, प्रभावशाली एवं संचालन के योग्य बनाया जा सके. हालांकि, इस व्यापक समीक्षा को आख़िरकार लागू नहीं किया गया, लेकिन इससे ट्रेड फैसिलिटेशन एग्रीमेंट (TFA) में एक बुनियादी तौर पर नया नज़रिया सामने आया. TFA में विकसित और विकासशील दोनों देशों के लिए अनिवार्य प्रतिबद्धताएं शामिल हैं. हालांकि, TFA के SDT वाले विचार ने विकासशील सदस्य देशों को खुद से यह निर्धारित करने की अनुमति दी कि क्या वे एकल प्रावधानों को तत्काल प्रभाव से कार्यान्वित करना चाहते हैं, या फिर कम विकसित देशों के मामले में यह निर्धारित करने की अनुमति दी थी कि क्या वे एक वर्ष के बाद (श्रेणी ए), एक निश्चित परिवर्तन अवधि (श्रेणी बी) के बाद, या सिर्फ़ समुचित तकनीक़ी सहायता और क्षमता निर्माण (श्रेणी सी) हासिल करने के बाद एकल प्रावधानों को कार्यान्वित करना चाहते हैं. इसके अलावा, WTO  सचिवालय ने प्रासंगिक अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ मिलकर, एक व्यापार सुविधा आवश्यकता मूल्यांकन प्रक्रिया की स्थापना की, जिसने विकासशील देशों को TFA की ज़रूरतों को पूरा करने में मदद की.

TFA में जो नए और इनोवेटिव विचार शामिल किए गए हैं, उन्हें सामान्य तौर पर अब एक सशक्त करने वाला माहौल विकसित करने की दिशा में एक रचनात्मक माध्यम के तौर पर स्वीकार किया जाता है, ज़ाहिर है कि ये नए-नए विचार विकासशील देशों एवं LDCs को बहुपक्षीय (Plurilateral) समझौता वार्ताओं में प्रभावशाली तरीक़े से अपनी हिस्सेदारी निभाने में सहायता करते हैं. ऐसे में जबकि सभी JSIs में अभी तक नियम नहीं बनाए गए हैं, लेकिन IFD समझौते की वार्ताओं के लिए लंबी ट्रांज़िशन अवधि और तकनीक़ी सहायता एवं क्षमता निर्माण जैसे उपायों का संयोजन अपेक्षित है. ज़ाहिर है कि WTO सचिवालय प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में सक्षम अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ मिलकर ज़रूरतों के मूल्यांकन की एक प्रक्रिया स्थापित कर रहा है, जो सदस्य देशों को कार्यान्वयन की प्रक्रिया के दौरान खुद से प्रतिबद्धताओं की विभिन्न श्रेणियों को निर्धारित करने में सहायता करती है. विकसित देशों से अपील है कि वे विकासशील सदस्य देशों और कम विकसित देशों की कार्यान्वयन क्षमता को सशक्त करने के लिए पर्याप्त तकनीक़ी सहायता और क्षमता निर्माण से जुड़ी सहायता प्रदान करें. इसके अतिरिक्त IFD समझौते के मसौदे में कैटेगरी बी और सी की प्रतिबद्धताओं को समय पर लागू करने में असमर्थ विकासशील सदस्य देशों के लिए एक समय से पहले की अग्रिम चेतावनी प्रणाली भी शामिल है. इतना ही नहीं अगर कोई विकासशील सदस्य देश अपने वादों को पूरा नहीं कर पाता है, तो स्थिति का मूल्यांकन करने एवं विकासशील सदस्य देश द्वारा की जा रही कार्यान्वयन की प्रक्रिया में मदद करने हेतु सलाह-मशविरा देने के लिए एक विशेषज्ञ समूह की स्थापना की जा सकती है. इसके अलावा जब तक मूल्यांकन किया जाएगा, उस समय सदस्य देश के विवादों का समाधान नहीं किया जाएगा. इसके अतिरिक्त IFD समझौते के मसौदे में विकासशील देशों के लिए WTO के विवाद समाधान तंत्र के तहत किए गए आवेदन हेतु अलग-अलग छूट अवधि का भी प्रावधान किया गया है.

अन्य JSIs में जिन विचारों और दृष्टिकोणों को अपनाया गया है, वे IFD समझौता वार्ताओं की तुलना में कम विस्तृत एवं प्रगतिशील हैं. देखा जाए तो JSI सर्विसेज डोमेस्टिक रेगुलेशन पर SDT के लिए अधिक पारंपरिक नज़रिया अपनाता है. यह विकासशील देशों को 7 साल तक की ट्रांज़िशन अवधि प्रदान करता है, जबकि कम विकसित देशों को उनकी क्षमता के मुताबिक़ प्रावधानों को कार्यान्वित करने के लिए प्रोत्साहित करते हुए छूट देता है. उल्लेखनीय है कि विकसित सदस्य देशों को कम विकसित देशों की कार्यान्वयन क्षमता बढ़ाने के लिए तकनीक़ी मदद मुहैया करने के लिए प्रोत्साहन दिया जाता है. ई-कॉमर्स JSI मसौदे (सितंबर 2021 संस्करण) में इसका स्पष्ट तौर पर उल्लेख किया गया है कि WTO के जो भी विकसित सदस्य देश हैं, वे विकासशील सदस्य देशों के आग्रह पर तकनीक़ी मदद उपलब्ध कराएंगे. हालांकि, देखा जाए तो जो भी संबंधित प्रावधान है, वे IFD एग्रीमेंट की तुलना में उतने ज़्यादा महत्त्वपूर्ण नहीं हैं. ई-कॉमर्स कैपेसिटी बिल्डिंग फ्रेमवर्क शुरू करने का मकसद डिजिटल समावेशन को सशक्त करने के लिए ट्रेनिंग और मदद उपलब्ध कराना है. ऐसा किया जाने से न केवल LDCs और विकासशील देशों को ई-कॉमर्स पर JSI के अंतर्गत डिजिटल व्यापार से फायदा प्राप्त करने में मदद मिलेगी, बल्कि इससे समावेशिता और महत्वाकांक्षा दोनों को प्रोत्साहन मिलेगा.

कुल मिलाकर कहने का तात्पर्य यह है कि ऊपर जिन ज्वाइंट स्टेटमेंट इनिशिएटिव्स (JSIs) को लेकर चर्चा की गई है, उन्हें वास्तविक अर्थों में समावेशी और विकास के अनुकूल बनाने के लिए और ज़्यादा प्रयास किए जाने की ज़रूरत है.

  • विकासशील देशों के लिए उचित मुद्दों का चुनाव करना

तमाम महत्त्वपूर्ण मुद्दों के समाधान के लिए गरीबी उन्मूलन (SDG1), ज़ीरो हंगर (SDG2), गुड हेल्थ (SDG3), इंडस्ट्री एवं इंफ्रास्ट्रक्चर (SDG9), जलवायु कार्रवाई (SDG13), लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए साझेदारी (SDG17) जैसे कई सतत विकास लक्ष्य हैं, जिन्हें हासिल करने के लिए तत्काल प्रभाव से व्यापार से जुड़े नीतिगत उपायों की ज़रूरत है. खाद्य (अ)सुरक्षा, स्वास्थ्य और जलवायु के व्यापार संबंधी विभिन्न पहलू भविष्य में बहुपक्षीय (Plurilateral) सहयोग के लिए संभावित क्षेत्र बन सकते हैं. इसके अतिरिक्त, विश्व व्यापार संगठन और अन्य अध्ययनों एवं रिपोर्टों द्वारा जो साक्ष्य पेश किए गए हैं, वे स्पष्ट रूप से बताते हैं कि ई-कॉमर्स के लिए व्यापार नियमों से विकासशील देशों और कम विकसति देशों को फायदा होगा और इससे डिजिटल खाई कम हो जाएगी. IFD एग्रीमेंट से इसमें भागीदारी निभाने वाले विकासशील सदस्य देशों को भी लाभ होने का अनुमान है.

ज़ाहिर है कि ऐसे में मुद्दों का चुनाव करना बहुत अहम हो जाता है. यानी कि ऐसे विषयों का चयन करना होगा, जो कि विकासशील देशों और LDCs के हितों को प्रकट करने वाले हों. ज़ाहिर है कि ये विषय बहुपक्षीय (Plurilateral) समझौतों की स्वीकृति और वैधता सुनिश्चित करने के लिहाज़ से भी अत्यधिक महत्त्वपूर्ण होंगे.

2.G20 की भूमिका

 

G20 ने बार-बार न सिर्फ़ विश्व व्यापार संगठन के महत्व को स्वीकार किया है, बल्कि इस बहुपक्षीय (Multilateral) संगठन में सुधार की ज़रूरत पर भी ज़ोर दिया है.

वर्ष 2014 में जब ऑस्ट्रेलिया G20 की अध्यक्षता कर रहा था, उस दौरान नेताओं ने प्रतिबद्धता जताई थी कि “हमारे द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और बहुपक्षीय (Plurilateral) समझौते न सिर्फ पारस्परिक तौर पर पूरक और पारदर्शी हों, बल्कि विश्व व्यापार संगठन (WTO) के नियमों के अंतर्गत एक मज़बूत बहुपक्षीय (Multilateral) व्यापार प्रणाली में योगदान सुनिश्चित करने वाले हों.” [3] वर्ष 2015 में तुर्किये की G20 अध्यक्षता के दौरान बहुपक्षीय (Multilateral) ट्रेडिंग सिस्टम के साथ प्लूरीलेटरल्स की पूरकता अर्थात आपसी कमियों दो दूर करने का सुझाव दिया गया था. इसी तरह से वर्ष 2016 में चीन की G20 अध्यक्षता के दौरान सिफ़ारिश की गई थी कि “व्यापक स्तर पर भागीदारी के साथ WTO के सिलसिलेवार बहुपक्षीय (Plurilateral) ट्रेड एग्रीमेंट्स वैश्विक उदारीकरण पहल की सहायता करने में अपनी अहम भूमिका निभा सकते हैं.” [4] जर्मनी की G20 की अध्यक्षता के दौरान नेताओं ने इस बात पर ख़ास तौर पर ध्यान दिया कि “बहुपक्षीय (Plurilateral) समझौते खुले, पारदर्शी, समावेशी और WTO के अनुरूप” हों. [5]

WTO में सुधार के भविष्य को लेकर वर्ष 2021 में सऊदी अरब की G20 अध्यक्षता के दौरान शुरू किए गए रियाद इनीशिएटिव में ज़्यादातर सदस्य देशों का सुझाव था कि खुली बहुपक्षीय चर्चा-परिचर्चाएं उन सदस्य देशों की तरफ से शुरू की जा सकती हैं, जो विशेष मुद्दों पर आगे बढ़ने के लिए तैयार हैं. इसके साथ ही उस दौरान यह भी कहा गया कि दोहा पहल बहुपक्षीय (Multilateral) नतीज़ों का मार्ग प्रशस्त कर सकती है. दोहा पहल में अन्य सदस्यों द्वारा जताई गई चिंताओं पर भी ध्यान दिया गया. [6] इंडोनेशिया की G20 अध्यक्षता ने JSIs पर ज़ाहिर की गई चिंताओं को ध्यान में रखते हुए ई-कॉमर्स पर WTO वर्क प्रोग्राम और ई-कॉमर्स पर ओपन बहुपक्षीय (Plurilateral) समझौतों को आगे बढ़ाने पर विचार-विमर्श किया. [7]

3. G20 के लिए सिफ़ारिशें

  • प्लूरीलेटरल्स के लिए नियमों और सिद्धांतों पर आधारित एक दृष्टिकोण

खुले बहुपक्षीय (Plurilaterals) समझौतों की संस्थागत संरचना और योजना ऐसी होनी चाहिए, जो बहुपक्षवाद (Multilateralism) के बुनियादी सिद्धातों में हस्तक्षेप न करे. यानी कि प्लूरीलेटरल्स की योजना और कार्यविधि समावेशी एवं विकास के अनुरूप होनी चाहिए, साथ ही भागीदारी के लिए क्रमागत फ्रेमवर्क प्रस्तुत करने में समर्थ होनी चाहिए. इसका तात्पर्य यह है कि JSIs में भाग लेने वाले विकासशील देशों को एजेंडा निर्धारण एवं समझौता चर्चाओं में बेहतर भूमिका निभानी चाहिए. सिर्फ इसी नज़रिए के माध्यम से यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि खुले बहुपक्षीय (Plurilaterals) समझौतों के रुझान से न तो WTO की विश्वसनीयता कम होगी और न ही नियम एवं सिद्धांतों पर आधारित मल्टीलेटरल ट्रेडिंग सिस्टम में बिखराव होगा. प्लूरीलेटरल्स को मूलभूत प्रावधानों के एक समूह से उत्पन्न होना चाहिए, जो भागीदारी के लिए सबसे कम तैयार सदस्य देशों को भी अपनी ओर आकर्षित करने के योग्य हों. इसलिए, WTO के सदस्यों के लिए बहुपक्षीय (Plurilateral) तानेबाने में एक नए दृष्टिकोण की क़वायद करना बेहद अहम है, जो वास्तव में SDT की ‘भावना’ के अनुरूप हो. इसमें निम्नलिखित तीन महत्त्वपूर्ण घटक समाहित होते हैं: (i) एक बहुस्तरीय योजना, अलग-अलग तरह की क्षमताओं और घरेलू स्तर पर तैयारियों को पहचानना; (ii) न्यूनतम विभाजक के तौर पर मूलभूत संरचना के साथ विभिन्न स्तरों में बेहद महत्त्वपूर्ण मामलों पर लचीलापन; और (iii) जहां कहीं भी ज़रूरी हो सहयोग एवं क्षमता विकास की एक योजना को अपनाना.

  • प्लूरीलेटरल्स के लिए एक बहुस्तरीय फ्रेमवर्क

एक बहुस्तरीय दृष्टिकोण, जो कि खेर एवं अन्य पर आधारित है (2022), [8] इस प्रस्ताव का आधार बनाता है. एग्रीमेंट की इस प्रस्तावित योजना में SDT की भावना शामिल है. ज़ाहिर है कि इस प्रस्ताव के मूल में समावेशन है. इसके लिए, TFA संरचना के समान अधिकारों और कर्तव्यों की एक बहुस्तरीय योजना वाला दृष्टिकोण सबसे ज्यादा भरोसा देने वाला है. इसलिए, समझौते में बातचीत के फेज और हस्ताक्षर/पंजीकरण फेज के बीच अंतर करना बेहद महत्तवपूर्ण है.

चर्चा-परिचर्चा का फेज: WTO के सदस्य देशों के एक समूह द्वारा बहुपक्षीय (Plurilateral) समझौता बातचीत करने की इच्छा ज़ाहिर करने के बाद और इसके लिए तैयारी करने के बाद, उन्हें सभी भागीदार सदस्यों के साथ एक चर्चा नोट साझा करना होगा, साथ ही वार्ता शुरू होने पर चिन्हित किए गए मानदंडों की सीमाओं को निर्धारित करना होगा. इसके साथ ही भागीदार देशों को WTO के बाक़ी सभी सदस्यों से टिप्पणी या प्रतिक्रिया आमंत्रित करनी चाहिए. इसके अलावा अगर संभव हो, तो संभावित क्षमता मज़बूरियों के मद्देनज़र WTO सचिवालय को प्रस्तावित बहुपक्षीय (Plurilaterals) समझौतों के प्रभाव का विश्लेषण करने के लिए WTO सदस्यों द्वारा अधिकृत किया जाना चाहिए. ऐसी आशा की जा सकती है कि WTO के कुछ सदस्य देश सक्रिय वार्ताकार के रूप में शामिल होने के लिए तैयार होंगे, जबकि कुछ अन्य सदस्य ऑब्ज़र्वर के तौर पर शामिल हो सकते हैं. पर्यवेक्षक (बिना किसी ज़िम्मेदारी या अधिकार/लाभ के) या सक्रिय वार्ताकार के रूप में शामिल होने के लिए पूरी बातचीत के दौरान अवसर खुले रहने चाहिए. समझौता बातचीत की स्वीकृति और वैधता सुनिश्चित करने के लिए इस पूरी प्रक्रिया में पारदर्शिता सबसे अहम है.

 

निष्कर्ष और पंजीकरण फेज: WTO सदस्यों के एक समूह द्वारा बहुपक्षीय (Plurilateral) समझौता करने के बाद भी संगठन के अन्य सदस्य देशों के लिए बाद के फेज में शामिल होने का मौक़ा उपलब्ध रहना चाहिए. ज़ाहिर है कि पारदर्शिता एक सबसे बड़ी प्राथमिकता बनी रहेगी, ऐसे में बहुपक्षीय समझौते में शामिल सदस्यों को कार्यान्वयन एवं निगरानी के चरणों के दौरान भी पर्यवेक्षकों को दख़ल देने की अनुमति देनी चाहिए, ताकि पर्यवेक्षकों को सभी ज़रूरी और अहम बैठकों में शामिल होने की अनुमति मिल सके. किसी एग्रीमेट के मुकम्मल होने या कहा जाए कि पूरी तरह से तैयार होने के लिए, इसमें शामिल सभी भागीदारों, पक्षकारों की स्वीकृति की आवश्यकता होगी. इतना ही नहीं, इस फेज में अलग-अलग स्थानीय स्तंभों में से किसी को छोड़ने और किसी का चुनाव करने की कोई संभावना नहीं होनी चाहिए, क्योंकि इससे समझौते का बुनियादी उद्देश्य समाप्त हो जाएगा.

हालांकि, एग्रीमेंट को TFA दृष्टिकोण का अनुसरण करना चाहिए और विकास के विभिन्न स्तरों को मज़बूती के साथ प्रस्तुत करना चाहिए. कहने का मतलब यह है कि बहुपक्षीय (Plurilaterals) समझौतों में विकासशील देशों एवं LDCs को उन प्रावधानों को स्वयं ही शामिल करने की मंज़ूरी देनी चाहिए, जिन्हें वे तत्काल प्रभाव से कार्यान्वित करना चाहते हैं. हालांकि ऐसा एक निश्चित समय-अवधि के पश्चात या फिर सिर्फ़ समुचित कार्यान्वयन सामर्थ्य हासिल करने के बाद ही किया जाना चाहिए.

इस प्रकार का नज़रिया नीचे से लेकर ऊपर तक महत्वाकांक्षा का एक क्रमबद्ध मैट्रिक्स सृजित करेगा, यानी एक ऐसी प्रणाली बनाने का काम करेगा, जो बेहतरीन बदलाव लाएगा. यह विश्व व्यापार संगठन के सदस्यों को जब वे चाहें तब एक समझौते में शामिल होने की सुविधा प्रदान करेगा, साथ ही उसमें समय के साथ-साथ सुगमता के लिए पर्याप्त लचीलापन भी लाएगा.

  • विकास के अनुकूल कार्यान्वयन

प्लूरीलेटरल्स की प्रभावशीलता को सुनिश्चित करने के लिए निगरानी एवं विवादों के समाधान हेतु एक तंत्र स्थापित किए जाने की ज़रूरत है, जो कि बहुस्तरीय नज़रिए को प्रकट करता है:

  • बहुपक्षीय (Plurilateral) समझौते के सभी सदस्यों को उक्त समझौते के किसी भी प्रावधान के संबंध में पूरी तरह से WTO डिस्प्यूट सैटलमेंट मैकेनिज़्म यानी विवाद समाधान तंत्र (DSM) के अंतर्गत आना चाहिए.
  • बहुपक्षीय समझौते के SDT प्रावधानों के मुताबिक़, विकासशील देशों को रियायत अवधि दी जानी चाहिए, जिसके दौरान उन्हें DSM के एप्लीकेशन्स से छूट दी गई है. जिस स्तर के विकास के बारे में सोचा-समझा गया है, उसको ध्यान में रखते हुए LDCs को इस विस्तारित रियायती अवधि का फायदा उठाना चाहिए.
  • जब उपलब्ध कराई गई रियायत अवधि ख़त्म हो जाती है, उसके पश्चात एक विकासशील सदस्य देश को केवल उन प्रावधानों से संबंधित विवाद के लिए DSM में लाया जा सकता है, जिन्हें उस देश ने कार्यान्वयन के लिए स्वयं को नामांकित किया है.
  • एक बहुपक्षीय समझौते के प्रभावी कार्यान्वयन में सहयोग करने के लिए DSM के अतिरिक्त, निगरानी, अधिसूचना एवं कार्यान्वयन रिपोर्ट आदि को लेकर भी एक तंत्र की स्थापना पर ध्यान दिया जाना चाहिए. मौज़ूदा DSM के संकट के मद्देनज़र ख़ासतौर पर ऐसे तंत्र की स्थापना अहम हो जाती है.
  • इसके अतिरिक्त, बहुपक्षीय (Plurilateral) समझौतों को एक अग्रिम चेतावनी तंत्र स्थापित करना चाहिए. विशेषज्ञ सलाहकार समूह समझौतों के कार्यान्वयन के दौरान आने वाली विभिन्न दिक़्क़तों के बारे में पता लगा सकता है और पैनल निर्णयों एवं आर्बिट्रेशन के बाहर समाधान प्रस्तुत कर सकता है. इस तरह के सलाहकार समूह का इस्तेमाल साक्ष्य-आधारित विश्लेषणों के माध्यम से विवादों का समाधान करने में सहायता के लिए भी किया जा सकता है, ज़ाहिर है कि यह समूह कार्यान्वयन के दौरान आने वाली तमाम तरह की रुकावटों को जानता और पहचानता है. यह सलाहकार समूह उपयुक्त अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की विशेषज्ञता का भी फायदा उठा सकता है.
  • प्लूरीलेटरल्स में क्षमता-निर्माण संबंधी उपायों को जोड़ना

उल्लेखनीय है कि ऐसे कुछ विकासशील देश, विशेषकर कम विकसति देश हो सकते हैं, जो अपनी क्षमताओं की कमी की वजह से संभावित बहुपक्षीय (Plurilateral) समझौते द्वारा कवर किए गए विशेष क्षेत्रों में अपनी व्यापार नीति के उद्देश्यों की पहचान करने, बचाव करने और उन्हें आगे बढ़ाने में अक्षम या अयोग्य हो सकते हैं. इस समस्या का समाधान करने के लिए डोनर और लाभार्थी भागीदारों को ऐसे विकासशील देशों में क्षमता निर्माण का सहयोग करने के लिए विख्यात और जानकारी से परिपूर्ण संस्थानों को शामिल करना चाहिए, ताकि उन देशों की उचित विश्लेषण करने एवं बातचीत करने की क्षमताओं को बढ़ावा मिल सके. IFD समझौते में सदस्यों द्वारा SDT के लिए अपनाए गए व्यापक दृष्टिकोण, वर्तमान में चल रहे बहुपक्षीय समझौतों एवं भविष्य में होने वाले एग्रीमेंट्स के लिए एक मानदंड के रूप में काम कर सकते हैं. TFA और IFD  के आवश्यकता मूल्यांकन कार्यक्रम भी बेहतरीन प्रथाओं के उदाहरण प्रस्तुत कर सकते हैं, जिन्हें अन्य बहुपक्षीय समझौतों में उपयोग के लिए अनुकूल बनाया जा सकता है.

इसके अतिरिक्त, ऐसे विकासशील देश, जिनमें बहुपक्षीय समझौता वार्ता में शामिल होने की क्षमता नहीं है, ऐसे देशों को पर्यवेक्षक के रूप में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए और उनकी मदद भी की जानी चाहिए. यह अनुभव उन देशों को सशक्त बनाने और संभावित भागीदारी के लिए तैयार करने में मददगार सिद्ध हो सकता है. ऐसे विकासशील देशों द्वारा एक पर्यवेक्षक के रूप में जो समय बिताया जाएगा या अनुभव हासिल किया जाएगा, वो उन्हीं जैसी परिस्थितियों वाले दूसरे देशों के बीच सहयोग को भी बढ़ावा दे सकता है और इस प्रकार से आख़िरकार इन बहुपक्षीय (Plurilaterals) समझौतों के क्रमिक विकास को प्रभावशाली बना सकता है.

  • समावेशी मुद्दों का चुनाव सुनिश्चित करना

पूर्व निर्धारित मुद्दों की सूची प्रस्तुत करना बेहद मुश्किल है. खुली बहुपक्षीय (Plurilateral) पहलों के अंतर्गत आने वाले नीतिगत क्षेत्रों का निर्धारण विश्व व्यापार संगठन के सदस्यों द्वारा किया जाना चाहिए, जैसा कि JSIs के मामले में होता है. उल्लेखनीय है कि सामान्य तौर पर विकसित देशों के पास क्षमताएं अधिक होती हैं, साथ ही एजेंडा निर्धारित करने की ताक़त होती है, इसलिए यह बहुत अहम है कि प्लूरीलेटरल्स सिर्फ अपनी दिलचस्पी नहीं जताएं, बल्कि इससे अधिक कुछ करके दिखाएं. इतना ही नहीं WTO के सदस्यों को उन मुद्दों पर बहुपक्षीय (Plurilaterals) समझौता वार्ताएं भी शुरू करनी चाहिए, जो विकासशील देशों और कम विकसित देशों के लिए विशेष चिंता का विषय हैं और जो सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने में मददगार साबित हो सकते हैं. इसमें कोई संदेह नहीं है कि ऐसा करना न केवल बहुपक्षीय समझौतों के लिए, बल्कि खुद WTO की वैधता सुनिश्चित करने के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण है.

  • गुड गवर्नेंस सुनिश्चित करना

संभावित बहुपक्षीय (Plurilateral) वार्ताओं और उनके नतीज़ों का प्रबंधन करने के लिए WTO सचिवालय को अतिरिक्त वित्तीय, तकनीक़ी और मानवीय संसाधनों के साथ सशक्त करना अहम है. जैसे-जैसे इस कार्य के लिए संसाधनों को बढ़ाया जाता है, तो प्लूरीलेटरल्स की मदद के लिए नियुक्त सचिवालय के विभागों को अपने कर्मचारियों में विविधता लाने, कामकाज के संचालन में समावेशिता (सदस्य देश की भागीदारी के लिए निष्पक्ष समर्थन) लाने और WTO के कार्य करने की परिपाटी के मुताबिक़ गुड गवर्नेंस सुनिश्चित करने के लिए क़दम उठाने चाहिए. WTO के सचिवालय में बहुपक्षीय (Plurilateral) समझौतों से संबंधित जो भी कार्य किए जाते हैं, इसमें गुड गवर्नेंस से जुड़े मामले जैसे कि कर्मचारियों की तैनाती, निर्णय लेने की प्रक्रिया और उनके नतीज़े आदि को लेकर एक वार्षिक रिपोर्ट सदस्यों को दी जानी चाहिए.

  • G20 का प्लूरीलेटरल्स की सहायता करने वाले के रूप में उपयोग

बहुपक्षीय समझौता वार्ताओं के मुद्दे पर परिचर्चा के लिए G20 ट्रेड एवं इन्वेस्टमेंट वर्किंग ग्रुप में एक टास्क फोर्स की स्थापना करने से समावेशी एवं विकास-अनुकूल बहुपक्षीय चर्चाओं को और आगे बढ़ाने की संभावना पैदा हो सकती है. यह टास्क फोर्स G20 सदस्य देशों, WTO अधिकारियों और आमंत्रित प्रमुख विशेषज्ञों को एक साथ ला सकती है, ताकि बहुपक्षीय समझौता वार्ता और सर्वोत्तम प्रथाओं पर सलाह-मशविरा प्रदान किया जा सके, जिन्हें क्षेत्रीय व्यापार समझौतों के प्रावधानों एवं उनके कार्यान्वयन से हासिल किया जा सकता है. यह टास्क फोर्स बहुपक्षीय (Plurilateral) समझौतों की शुरुआत, बातचीत एवं उनके कार्यान्वयन के तौर-तरीक़ों पर भी चर्चा कर सकती है (जैसा कि इस पॉलिसी ब्रीफ़ में प्रस्तावित है), जिसे बाद में WTO के सदस्य देशों द्वारा बहुपक्षीय समझौतों को संचालित करने के लिए एक कोड ऑफ कंडक्ट यानी आचार संहिता के तौर पर विकसित किया जा सकता है.

वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को नियंत्रित करने के लिए एक महत्त्वपूर्ण और अत्यधिक ज़रूरी संगठन बना हुआ है. बावज़ूद इसके, इस बहुपक्षीय संगठन के आधुनिक बनाना होगा. खुले, समावेशी और विकास-अनुकूल बहुपक्षीय (Plurilateral) समझौते पूरी प्रणाली में एक ताज़गी और नयापन लाने के अवसर की तरह हैं. ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि G20 को WTO में बुनियादी सुधार की अनदेखी नहीं करनी चाहिए, साथ ही WTO में सुधार की इस प्रक्रिया को देखते हुए बहुपक्षीय समझौतों का समर्थन करना चाहिए.


 

एट्रीब्यूशन: एम. सैट अकमन एवं अन्य, “सभी के लिए बहुपक्षीय (Plurilateral) पहलों को कारगर बनाना: समावेशी एवं विकास-अनुकूल दृष्टिकोणों के ज़रिए WTO में सुधार,” T20 पॉलिसी ब्रीफ़, मई 2023.


 

Endnotes

[A] औसतन केवल 40 प्रतिशत सदस्य ही बहुपक्षीय (Plurilateral) समझौतों में हिस्सा लेते हैं।

[1] WTO, The Legal Status of Joint Statement Initiatives and their negotiated Outcomes, WT/GC/W/819, 19 February 2021, accessed May 24, 2023.

[2] Mehmet Sait Akman et al., Boosting G20 Cooperation for WTO Reform: Leveraging the Full Potential of Plurilateral Initiatives, T20 Policy Brief, 2021, accessed March 16, 2023.

[3] G20 Leaders‘ Communiqué, Brisbane Summit, 15-16 November 2014, accessed March 29, 2023.

[4] G20 Leaders’ Communiqué: Hangzhou Summit, Hangzhou, September 5, 2016, G20 Information Centre, accessed March 29, 2023.

[5] G20 Leaders’ Declaration Shaping an Interconnected World, Hamburg, July 7/8, 2017, accessed March 29, 2023.

[6] G20 Trade and Investment Ministerial Meeting: Communiqué, September 22, 2020, G20 Information Centre, accessed March 29, 2023.

[7] G20 Chair’s Summary Trade, Investment and Industry Ministers Meeting Bali, 22 – 23 September 2022, G20 Information Centre, accessed March 29, 2023.

[8] Rajeev Kher et. al., Exploration of New Methodologies and Configurations for an Effective WTO and to Strengthen the Multilateral Trading System, T20 Policy Brief Indonesia, 2022, accessed March 29, 2023.

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Arun S. Nair

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Arun S. Nair Visiting Fellow Research and Information System for Developing Countries (RIS) India

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Bozkurt Aran Director for Multilateral Trade Studies Centre The Economic Policy Research Foundation of Turkey (TEPAV) and former Ambassador of Turkey to the WTO

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Carlos Primo Braga Associate Professor Fundao Dom Cabral (Brazil)

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Douglas Lippoldt Senior Fellow Centre for Innovation and Global Governance (CIGI) Canada (resident in Claremont California)

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Maarten Smeets Associate Professor Shanghai University of International Business and Economics non-resident senior fellow at the World Trade Institute Bern

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