Author : Hari Bansh Jha

Published on Oct 01, 2020 Updated 0 Hours ago

इस महत्वपूर्ण समय में सबसे ज़्यादा ज़रूरत है संघीय, प्रांतीय और स्थानीय सरकारों के बीच तालमेल में मज़बूती जिसके लिए फ़ैसला लेने की प्रक्रिया के केंद्र में स्वास्थ्य कर्मियों को रखना चाहिए.

नेपाल में कोविड-19 पर काबू करना बना मुश्किल लक्ष्य

दुनिया भर में कोविड-19 से 9 लाख से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. इस वायरस की वजह से हर 15 सेकेंड में एक मौत हो रही है. कोरोना वायरस की वजह से वैश्विक स्तर पर औसत मृत्यु दर 3.5 प्रतिशत है जबकि अमेरिका और ब्राज़ील में ये 3 प्रतिशत और भारत में 1.9 प्रतिशत है. दूसरी तरफ़ नेपाल में मृत्यु दर 0.47 प्रतिशत से भी कम है. लेकिन कम मृत्यु दर की वजह से हमें लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए क्योंकि हर रोज़ संकट बढ़ रहा है.

24 मार्च को जब नेपाल में राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन लागू किया गया था तो उस वक़्त सिर्फ़ दो कोविड-19 संक्रमित मरीज़ थे. लेकिन सिर्फ़ 4 महीनों के दौरान संक्रमित मरीज़ों की संख्या बढ़कर 17 हज़ार हो गई जबकि 40 लोगों की मौत हो गई. आंशिक रूप से लॉकडाउन हटाने के एक महीने बाद 26 अगस्त को कोविड-19 संक्रमण के मामलों की संख्या दोगुनी होकर 34,418 जबकि मरने वालों की संख्या बढ़कर 175 हो गई.

अफ़सोसनाक है कि नेपाल के अस्पतालों में ज़्यादा टेस्ट, कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग और आइसोलेशन वार्ड में मरीज़ों का इलाज़ नहीं हो रहा है. लॉकडाउन के पहले चरण के दौरान इनमें से कुछ सेवाओं के लिए सही ढंग से बुनियादी ढांचे को विकसित नहीं किया जा सका.

काठमांडू के शुक्रराज ट्रॉपिकल एंड इन्फेक्शियस डिज़ीज़ हॉस्पिटल के प्रवक्ता डॉक्टर अनूप बस्तोला स्वीकार करते हैं कि अब वायरस का सामुदायिक संक्रमण हो रहा है. हर रोज़ अस्पताल में ‘पहले आओ, पहले पाओ’ के आधार पर सिर्फ़ 300 लोगों का मुफ़्त में टेस्ट होता है जबकि यहां आने वाले लोगों की संख्या 1,000 से 1,200 के बीच होती है. दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिन लोगों का टेस्ट नहीं होता है उन्हें अपने घर जाना पड़ता है क्योंकि अस्पताल 300 मरीज़ों से ज़्यादा का इलाज़ नहीं कर सकता. अफ़सोसनाक है कि नेपाल के अस्पतालों में ज़्यादा टेस्ट, कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग और आइसोलेशन वार्ड में मरीज़ों का इलाज़ नहीं हो रहा है. लॉकडाउन के पहले चरण के दौरान इनमें से कुछ सेवाओं के लिए सही ढंग से बुनियादी ढांचे को विकसित नहीं किया जा सका. इसकी वजह से सिर्फ़ उन्हीं लोगों के टेस्ट हो रहे हैं जो संक्रमित व्यक्ति के नज़दीकी संपर्क में थे या जिन्होंने कोविड-19 के हॉटस्पॉट से यात्रा की है. ऐसे में लोगों के ऊपर ख़तरे या जोखिम की वास्तविक स्थिति का पता नहीं चल पाया है.

काठमांडू घाटी में कोरोना वायरस मरीज़ों के लिए 14 अस्पतालों को निर्धारित किया गया है जिनमें नौ सरकारी, तीन प्राइवेट और एक सामुदायिक स्तर का अस्पताल शामिल है. लेकिन टेस्ट में पॉज़िटिव आने वाले 70 प्रतिशत लोगों को घर पर ही आइसोलेशन में रहने के लिए मजबूर होना पड़ा क्योंकि अस्पतालों में आइसोलेशन बेड की कमी है. बाद में नेपाल सरकार ने प्राइवेट अस्पतालों को निर्देश दिया कि वो कम-से-कम 20 प्रतिशत बेड कोविड-19 मरीज़ों के लिए आवंटित करें. लेकिन स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसी नीति हालात बेहतर करने के बदले समस्या और बढ़ाएगी. इटली में कोविड-19 की वजह से परेशानी और ज़्यादा इसलिए बढ़ी क्योंकि वो कोविड-19 अस्पतालों और गैर-कोविड-19 अस्पतालों में फ़र्क़ नहीं रख पाया जिसकी वजह से जो लोग शुरू में वायरस संक्रमण के शिकार नहीं बने थे वो भी कोविड-19 के शिकार हो गए.

ध्यान देने वाली बात ये है कि स्वास्थ्य से जुड़ी ज़्यादातर सुविधाएं काठमांडू घाटी तक ही सीमित हैं. देश में मौजूद 840 वेंटिलेटर में से 80 प्रतिशत बागमती प्रांत या घाटी में ही हैं. प्रांत 2 के सरकारी अस्पतालों में सिर्फ़ सात वेंटिलेंटर हैं जिनमें से तीन वेंटिलेटर जनकपुर के जनकपुर प्रांतीय अस्पताल और चार बीरगंज के नारायणी अस्पताल में हैं जबकि इस प्रांत में नेपाल के 58 प्रतिशत कोविड-19 मरीज़ हैं. 21 जुलाई को राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन को आंशिक रूप से हटाने के बाद भी कोविड-19 के मामले लगातार बढ़ने की वजह से अलग-अलग ज़िलों में ज़िला प्रशासन कार्यालय ने फिर से लॉकडाउन/कर्फ्यू और ज़रूरत के मुताबिक़ सबसे ज़्यादा प्रभावित इलाक़ों को सील करना शुरू कर दिया. ख़बरों के मुताबिक़ देश में ज़्यादातर ज़िलों (काठमांडू, जनकपुर, बीरगंज, राजबिराज, बिराटनगर, धनगढ़ी और नेपालगंज) में इस वक़्त या तो लॉकडाउन या कर्फ्यू लागू है या वो सील हैं. एक सितंबर तक घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय विमानों को सस्पेंड किया गया. नेपाल और भारत के बीच लोगों की आवाजाही पर भी 16 सितंबर तक पाबंदियां लगाई गई. दोनों देशों के बीच सिर्फ़ 10 जगहों से नेपाल के लोग भारत से नेपाल आ सकते हैं. लेकिन महामारी के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए इसे एक माह के लिए और बढ़ा दिया गया है.

ध्यान देने वाली बात ये है कि स्वास्थ्य से जुड़ी ज़्यादातर सुविधाएं काठमांडू घाटी तक ही सीमित हैं. देश में मौजूद 840 वेंटिलेटर में से 80 प्रतिशत बागमती प्रांत या घाटी में ही हैं. प्रांत 2 के सरकारी अस्पतालों में सिर्फ़ सात वेंटिलेंटर हैं

इसके अलावा सरकार ने उच्चतम स्तर पर कोविड-19 संकट प्रबंधन समिति (CCMC) का गठन किया है. लेकिन CCMC और सरकार के अलग-अलग मंत्रालयों के बीच तालमेल की कमी है जबकि CCMC में प्रधानमंत्री, स्वास्थ्य मंत्री, गृह मंत्री, रक्षा मंत्री, आपूर्ति मंत्री और नेपाल सेना के प्रतिनिधि शामिल हैं. CCMC ज़्यादातर फ़ैसले स्वास्थ्य सेवा से जुड़े कर्मियों की सलाह के बिना ही लेती है. ऐसे में टेस्ट किट और मेडिकल उपकरणों की क्वालिटी और उनकी क़ीमत पर अक्सर सवाल उठते रहते हैं.

महामारी से निपटने में तालमेल के लिए संघीय, प्रांतीय, ज़िला और स्थानीय स्तर पर कुछ और समितियां हैं. स्वास्थ्य और जनसंख्या मंत्रालय ने प्रांतीय, ज़िला और स्थानीय स्तर पर अस्पतालों के बीच समन्वय का काम करने के लिए एक तीन सदस्यों की उच्च-स्तरीय समिति बनाई है ताकि वायरस को फैलने से रोका जा सके. प्रांतीय और स्थानीय सरकारों से उम्मीद की जाती है कि वो कोविड-19 मरीज़ों के लिए क्वॉरंटीन और आइसोलेशन सेंटर के लिए इंतज़ाम करने में प्रमुख भूमिका निभाएंगी. लेकिन ये सबको पता है कि प्रांतों में प्राइवेट स्वास्थ्य केंद्र और मेडिकल कॉलेज प्रांतीय सरकारों के निर्देशों को शायद ही मानते हैं.

एक और समस्या ये है कि कोविड-19 मरीज़ों की टेस्टिंग और इलाज़ का खर्च बहुत ज़्यादा है. एक कोविड मरीज़ के इलाज़ पर सरकार 1,04,600 नेपाली रुपये खर्च करती है (100 भारतीय रुपये 160 नेपाली रुपये के बराबर हैं). प्राइवेट अस्पतालों में एक कोविड मरीज़ के इलाज़ पर रोज़ कम-से-कम 60,000 नेपाली रुपये का खर्च आता है. अगर मरीज़ की दिक़्क़त बढ़ जाती है या ICU की ज़रूरत पड़ती है तो इलाज़ की लागत और बढ़ जाती है- क़रीब 4,50,000 नेपाली रुपये तक. नेपाल में सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं में कमी की वजह से ग़रीब लोग सबसे ज़्यादा असुरक्षित हैं. जो लोग प्रभावशाली और आर्थिक तौर पर बेहतर हैं वो किसी तरह ज़रूरी टेस्ट और इलाज़ हासिल करने में कामयाब हो जाते हैं. दूसरी तरफ़ भारत के सरकारी अस्पतालों में कोविड-19 टेस्ट मुफ़्त में होता है. भारत में सरकार ने प्राइवेट लैब में टेस्ट की अधिकतम दर 4,500 रुपये तय कर दी है. हालात की गंभीरता को देखते हुए महामारी और बीमारी नियंत्रण डिविज़न के पूर्व निदेशक डॉ. जी. डी. ठाकुर ने कहा, “अगर संक्रमण की कड़ी को तुरंत तोड़ने में हम नाकाम रहते हैं तो हमारी स्वास्थ्य प्रणाली ढह जाएगी.”

महामारी से निपटने में तालमेल के लिए संघीय, प्रांतीय, ज़िला और स्थानीय स्तर पर कुछ और समितियां हैं. स्वास्थ्य और जनसंख्या मंत्रालय ने प्रांतीय, ज़िला और स्थानीय स्तर पर अस्पतालों के बीच समन्वय का काम करने के लिए एक तीन सदस्यों की उच्च-स्तरीय समिति बनाई है ताकि वायरस को फैलने से रोका जा सके. प्रांतीय

इस महत्वपूर्ण समय में सबसे ज़्यादा ज़रूरत है संघीय, प्रांतीय और स्थानीय सरकारों के बीच तालमेल में मज़बूती जिसके लिए फ़ैसला लेने की प्रक्रिया के केंद्र में स्वास्थ्य कर्मियों को रखना चाहिए. इसके अलावा राजनीतिक दलों, NGO और दूसरे भागीदारों के साथ आम लोगों को भी जोड़ने की मिली-जुली कोशिश की जा सकती है. मरीज़ों से स्वास्थ्य कर्मियों तक संक्रमण की रोकथाम के लिए ज़रूरी है कि कोविड-19 अस्पतालों को ग़ैर-कोविड अस्पतालों से अलग रखा जाए. इसके अलावा कोविड-19 मरीज़ों के लिए कम-से-कम क़ीमत पर पर्याप्त क्वॉरंटीन की सुविधा, आइसोलेशन सेंटर और ICU वार्ड मुहैया कराने के लिए योजना बनानी होगी. उतना ही महत्वपूर्ण टेस्टिंग और बड़े पैमाने पर कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग है ताकि बीमारी के संक्रमण की कड़ी को तोड़ा जा सके. चूंकि समय तेज़ी से बीत रहा है, इसलिए इनमें से कुछ उपायों को युद्ध स्तर पर लागू करना होगा.

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