Author : Angad Singh Brar

Expert Speak Raisina Debates
Published on Jan 29, 2024 Updated 0 Hours ago
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद यानी P-3 देशों का संघर्ष; अफ्रीका में पीछे हटने की मजबूरी और संस्थागत असहमति

वर्ष 2023 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) दुनिया की महाशक्तियों अर्थात ताक़तवर देशों की राजनीति में फंसकर रह गई थी या कहा जाए कि उनका मोहरा बनकर रह गई थी. पूरे साल यूएनएससी भू-राजनीतिक विवादों और संघर्षों को शांत करने में लगी रही, इनमें पहले चले आ रहे विवाद और नए संघर्ष, दोनों ही शामिल थे. रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से लंबे समय से चली आ रही अस्थिरता के अलावा यूएनएससी को पिछले 12 महीनों के दरम्यान तीन बड़ी वजहों से पैदा हुए कई सारे मसलों से जूझना पड़ा. पहला कराण है, पी-3 यानी सुरक्षा परिषद के तीन स्थाई सदस्य देशों अमेरिका, ब्रिटेन एवं फ्रांस का रूस व चीन के साथ गहराता विवाद, दूसरा, सुरक्षा एवं राजनीतिक लिहाज़ से अफ्रीका में ज़बरदस्त उथल-पुथल और तीसरा, संयुक्त राष्ट्र में संस्थागत असहमति से उपजे हालात.

 

पी-3 देशों के साथ गहराता रूस और चीन का विवाद

 

वर्ष 2023 की शुरुआत के साथ ही यूएनएससी को दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में सिर उठा रहे विभिन्न संकटों से रूबरू होने पड़ा. 5 जनवरी 2023 को सुरक्षा परिषद ने इज़राइल और फ़िलिस्तीन के बीच बढ़ते तनाव को कम करने के लिए एक बैठक आयोजित की थी, दरअसल इज़राइल के राष्ट्रीय सुरक्षा मंत्री इतामार बेन-ग्विर के जॉर्डन प्रशासित येरुशलेम में पवित्र पहाड़ी पर यात्रा पर फ़िलिस्तीन ने आपत्ति जताई थी. इसके बाद सुरक्षा परिषद ने सीरिया में मानवीय सहायता पहुंचाने के कार्य को आगे बढ़ाने के लिए S/RES/2672 प्रस्ताव को अपनाया था इसके लिए सीमा-पार सहायता तंत्र का उपयोग किया था. इसके बाद यूएनएससी ने तालिबान शासन द्वारा गैर सरकारी संगठनों में महिलाओं के कार्य करने पर पाबंदी लगाने के फरमान को लेकर 13 जनवरी को बैठक आयोजित की थी.

वर्ष 2023 के आखिरी यानी अक्टूबर महीने में हमास के भीषण हमले के बाद इज़राइल ने गाज़ा पर आक्रमण कर दिया था और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद इस मसले का समाधान तलाशने के दौरान गहरी मुश्किल में फंस गया.

वर्ष 2023 के आखिरी यानी अक्टूबर महीने में हमास के भीषण हमले के बाद इज़राइल ने गाज़ा पर आक्रमण कर दिया था और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद इस मसले का समाधान तलाशने के दौरान गहरी मुश्किल में फंस गया. दरअसल, इस मुद्दे पर परिषद के स्थाई सदस्यों यानी पी-3 देशों (अमेरिका, फ्रांस एवं ब्रिटेन) और रूस एवं चीन की जोड़ी के बीच अपने वीटो का इस्तेमाल करने की होड़ लग गई थी. परिषद के स्थाई सदस्यों के बीच वीटो की ताक़त का इस्तेमाल करने से पश्चिम एशिया में ऐसी कई बातें हुईं, जो पहली बार देखने को मिलीं. जैसे कि अमेरिका ने यूएनएससी में इज़राइल-फ़िलिस्तीन विवाद पर अपने दशकों पुराने रुख से अलग हटते हुए परिषद के समक्ष इस मसले पर एक मसौदा प्रस्ताव प्रस्तुत किया. एक और घटनाक्रम जो पहली बार हुआ और अप्रत्याशित भी था, अर्थात जो चीन अमूमन खुद को इज़राइल-फ़िलिस्तीन विवाद के मसले पर अलग रखता है, उसने भी इस बार अपनी वीटो की ताक़त का इस्तेमाल किया था. इसी प्रकार से सीरिया को सीमा-पार सहायता उपलब्ध कराने के मामले में रूस ने इसे दोबारा शुरू करने के प्रस्ताव पर अपना वीटो लगा दिया, जबकि चीन ने यूएनएससी के इस प्रस्ताव (S/PV.9371) पर वोटिंग से दूरी बनाकर एक हिसाब से रूस का समर्थन किया. जहां तक अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं के अधिकारों पर यूएनएससी द्वारा उठाए गए क़दमों का सवाल है, तो इस मुद्दे पर परिषद द्वारा चिंता जताए जाने के बावज़ूद ज़मीनी स्तर पर हालात में कोई बदलाव नहीं हो पाया. इसकी वजह यह थी कि चीन और रूस की जोड़ी का स्पष्ट रूप से कहना था कि अफ़ग़ानिस्तान को जो मानवीय मदद उपलब्ध कराई जा रही है, उसे किसी भी सूरत में मानवाधिकार जैसे मसलों के साथ नहीं जोड़ा जाना चाहिए. 

 

इन वाकयों से स्पष्ट है कि इज़राइल, अफ़ग़ानिस्तान और सीरिया के संकटों का समाधान करने के लिए यूएनएससी द्वारा की गई कार्रवाई के बेनतीज़ा रहने के पीछे एक संस्था के रूप में परिषद की अक्षमता ज़िम्मेदार नहीं है, बल्कि इसके पीछे रूस एवं चीन की जोड़ी का पी-3 देशों के बीच गहराता विवाद है. ज़ाहिर है कि इसी विवाद के चलते रूस और चीन द्वारा पी-3 देशों के मानवीय सहायता और किसी देश की संप्रभुता बरक़रार रखने जैसे विचारों का विरोध किया गया है. रूस और चीन की इस जोड़ी ने सीरिया में संयुक्त राष्ट्र के सीमा-पार मानवीय सहयाता के प्रस्ताव का विरोध इसलिए किया, क्योंकि ये देश इसको सीरिया की संप्रभुता के ख़िलाफ़ मानते हैं. जहां तक अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं के अधिकारों का मुद्दा है, तो रूस और चीन ने वहां दी जाने वाली मानवीय सहायता को महिलाओं के मानवाधिकारों के साथ जोड़ने की पी-3 देशों की शर्त का विरोध किया.

 

राजनीतिक उथल-पुथल और सुरक्षा संकट से घिरे अफ्रीका से हाथ खींचना

 

वर्ष 2023 में यूएनएससी को अफ्रीका के दो देशों में अपने महत्वपूर्ण मिशनों को वापस लेने पर विवश होना पड़ा. परिषद द्वारा जून महीने में माली में संचालित यूएन बहुआयामी एकीकृत स्थायीकरण मिशन (MINUSMA) और दिसंबर के महीने में सूडान में चल रहे यूएन एकीकृत ट्रांजीशन सहायता मिशन (UNITAMS) से हाथ खींचने पड़े. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को यह निर्णय माली और सूडान की सरकारों द्वारा रज़ामंदी वापस लेने के बाद लेना पड़ा. ज़ाहिर है कि ये दोनों ही अफ्रीकी देश राजनीतिक रूप से गंभीर उथल-पुथल का सामना कर रहे हैं. सूडान में जिस प्रकार से 15 अप्रैल को लोकतांत्रिक व्यवस्था लागू करने से संबंधित समझौते पर हस्ताक्षर होने से पहले हिंसा भड़क गई थी, ऐसे में वहां यूएनएससी को अपने मिशन को वापस लेने का तो अंदाज़ा लगाया जा सकता था. लेकिन जहां तक माली का मामला है, तो वहां सुरक्षा के हालत बेकाबू हो गए थे और इस वजह से वहां संयुक्त राष्ट्र के मिशन यानी MINUSMA का संचालन सरकार के कार्यक्षेत्र से बाहर हो गया था. वहां सुरक्षा के हालात बिगड़ने का एक बड़ा कारण रूस समर्थित वैगनर समूह है, निजी आर्मी वाले इस समूह का माली के सुरक्षा क्षेत्र में ज़बरदस्त दख़ल है.

सूडान में जिस प्रकार से 15 अप्रैल को लोकतांत्रिक व्यवस्था लागू करने से संबंधित समझौते पर हस्ताक्षर होने से पहले हिंसा भड़क गई थी, ऐसे में वहां यूएनएससी को अपने मिशन को वापस लेने का तो अंदाज़ा लगाया जा सकता था.

इतना ही नहीं, वर्ष 2023 में रूस द्वारा संयुक्त राष्ट्र के माली में विशेषज्ञों के पैनल के नवीनीकरण से जुड़े प्रस्ताव (S/PV.9408) पर वीटो लगाने के बाद माली में प्रतिबंध व्यवस्था समाप्त हो गई. विश्लेषकों के मुताबिक़ रूस द्वारा यह क़दम माली में वैगनर समूह का बचाव करने के लिए उठाया गया. इसके साथ ही चीन भी माली में रूसी फैसले के साथ खड़ा नज़र आया. संयुक्त राष्ट्र के इस ढुलमुल रवैए का असर मध्य अफ्रीकी गणराज्य (CAR) पर तब दिखाई दिया, जब अगस्त के महीने में रूस ने अपनी ताक़त का उपयोग करते हुए सीएआर प्रतिबंध समिति में विशेषज्ञों के पैनल की नियुक्ति के प्रस्ताव को छह महीने के लिए टाल दिया था.  

 

संयुक्त राष्ट्र में संस्थागत असहमति

 

वर्ष 2022 में जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को यूक्रेन युद्ध के मुद्दे पर सदस्य देशों की ओर से गतिरोध का सामना करना पड़ा, तो उस समय एक बड़ा क़दम उठाते हुए परिषद ने "शांति के लिए एकता" का प्रस्ताव लागू कर दिया. ज़ाहिर है कि शांति के लिए एकता प्रस्ताव की उत्पत्ति गतिरोध से भरे यूएनएससी के भीतर ही हुई थी. वर्ष 2023 में इस प्रस्ताव को एक बार फिर से अमल में लाया गया, लेकिन वर्ष 2022 के विपरीत इस दफा प्रस्ताव को सुरक्षा परिषद द्वारा लागू नहीं किया गया था. इस बार मिस्र और मॉरिटानिया ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के आपातकालीन सत्र को बुलाने का अनुरोध किया था, मूल रूप से इसे पहली बार वर्ष 1997 में महासभा द्वारा सुरक्षा परिषद के ख़िलाफ़ लागू किया गया था. वर्ष 2023 में एक और महत्वपूर्ण घटनाक्रम तब देखने को मिला था, जब संयुक्त राष्ट्र के महासचिव द्वारा गाज़ा में संकट की गंभीरता को लेकर यूएनएससी को औपचारिक तौर पर चेतावनी देने के लिए संयुक्त राष्ट्र चार्टर के आर्टिकल 99 का उपयोग किया गया. उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र चार्टर के इस आर्टिकल का आखिरी बार उपयोग वर्ष 1989 में किया गया था.

ज़ाहिर है कि शांति के लिए एकता प्रस्ताव की उत्पत्ति गतिरोध से भरे यूएनएससी के भीतर ही हुई थी. वर्ष 2023 में इस प्रस्ताव को एक बार फिर से अमल में लाया गया, लेकिन वर्ष 2022 के विपरीत इस दफा प्रस्ताव को सुरक्षा परिषद द्वारा लागू नहीं किया गया था.

उपरोक्त उदाहरण यह बताने के लिए काफ़ी हैं कि संयुक्त राष्ट्र के भीतर सबकुछ ठीकठाक नहीं चल रहा है, यानी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और संयुक्त राष्ट्र महासभा एवं यूएन महासचिव के कार्यालय के बीच संस्थागत स्तर पर ज़बरदस्त असहमति व्याप्त है. हालांकि, सुरक्षा परिषद के लिए इस प्रकार की खींचतान कोई नई बात नहीं है, लेकिन जिस प्रकार से संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा लचर रवैया अपनाया गया और यूएन महासचिव द्वारा संयुक्त राष्ट्र के प्रावधानों का उपयोग करके चेतावनी दी गई, उससे यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि संयुक्त राष्ट्र के संरचनात्मक ढांचे में शामिल विभिन्न किरदारों ने कहीं न कहीं अपने हथियार डाल दिए हैं, साथ ही पी-5 देश, अर्थात यूएनएससी के पांचों स्थाई सदस्य देश भी मुद्दों का समाधान तलाशने में अक्षम सिद्ध हुए हैं.


ये लेखक के निजी विचार हैं.

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