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मैक्रों ने चीन के उदय को लेकर पड़ने वाले बाह्य नकारात्मक प्रभावों को लेकर फ्रांस की गंभीरता पर सवालिया निशान लगाया है.
जब ऐसे संकेत मिलने लगे कि यूरोपीय संघ अंतत: एक वैश्विक भू-राजनीतिक एक्टर अर्थात अभिनेता के रूप में रणनीतिक सामंजस्य हासिल करने की दिशा में बढ़ रहा है, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मक्रों की हालिया चीन यात्रा ने उस मिथक को तोड़ कर रख दिया है.
फ्रांसीसी राष्ट्रपति और यूरोपीय यूनियन की मुखिया, उर्सुला वॉन डेर लेन, पिछले सप्ताह चीन गए थे. दोनों नेताओं को यह उम्मीद थी कि जब विश्व की प्रमुख शक्तियों के बीच फॉल्टलाइन्स अर्थात दोष रेखाएं यानी विभिन्न मुद्दों पर मतभेद बढ़ते जा रहे हैं, तो वे बीजिंग के साथ एकता की भावना पेश करने में सफ़ल हो सकेंगे. दोनों नेताओं का इरादा चीन के साथ अपने तेजी से बिगड़ते व्यापार संबंधों को स्थिर करने का था. इसका कारण यह है कि चीन युरोपीयन यूनियन तथा फ्रांस दोनों का ही सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. व्यापार संबंधों में सुधार के साथ ही यह नेता चाहते थे कि वे चीन को यूक्रेन युद्ध समाप्त करने की दिशा में अधिक सक्रियता से प्रयास करने के लिए मना लें. जर्मन चांसलर ओलाफ स्कूल्ज और स्पेन के प्रधानमंत्री पेड्रो सांचेज जैसे अन्य यूरोपीय नेताओं ने भी हाल के महीनों में चीनी नेतृत्व के साथ संबंध बेहतर बनाने की कोशिश की है.
चीन युरोपीयन यूनियन तथा फ्रांस दोनों का ही सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. व्यापार संबंधों में सुधार के साथ ही यह नेता चाहते थे कि वे चीन को यूक्रेन युद्ध समाप्त करने की दिशा में अधिक सक्रियता से प्रयास करने के लिए मना लें.
लेकिन मैक्रों, ने अन्य नेताओं से आगे निकलते हुए यूरोप को ‘‘तीसरी महाशक्ति’’ के रूप में ‘‘रणनीतिक स्वायत्तता’’ देने की वकालत कर दी. मैक्रों ने तर्क दिया कि कि यूरोप यदि ‘‘उन संकटों में फंस जाता है, जो उसके अर्थात यूरोप के नहीं है तो यह एक ‘‘बड़े संकट अथवा जोख़िम’’ का सामना करेगा. यह बात यूरोप को उसकी रणनीतिक स्वायत्तता बनाने से रोक देगी.’’ मैक्रों ने यह सुझाव देकर तत्काल विवाद छेड़ दिया था कि अमेरिका पर यूरोप को अपनी निर्भरता कम करनी चाहिए. इसके अलावा उन्होंने कहा था कि ताइवान को लेकर चीन और अमेरिका के बीच टकराव में फंसने से यूरोप को बचना चाहिए. मैक्रों ने वकालत की कि अगर अमेरिका और चीन के बीच संघर्ष बिगड़ता है तो, ‘‘हमारे [यूरोप] पास अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखने के लिए न तो वक्त होगा और न ही हम इसके लिए वित्तीय संसाधन उपलब्ध करवा सकेंगे. ऐसी स्थिति में यूरोप अधीन हो जाएगा, जबकि यूरोप में वैश्विक व्यवस्था का तीसरा ध्रुव बनने की क्षमता है. इस स्थिति तक पहुंचने के लिए अभी यूरोप के पास कुछ वर्षों का वक़्त भी मौजूद है.’’
वॉन डेर लेन चीन की यात्रा पर मैक्रों के निमंत्रण पर ही गई थी. लेकिन इस यात्रा के दौरान मैक्रों ने जो रुख़ अपनाया है उसकी ही चर्चा अधिक हो रही है. इतना ही नहीं बीजिंग भी इस बात को लेकर प्रफुल्लित है कि उसके लिए ट्रान्साटलांटिक संबंधों में दरार पैदा करना असंभव नहीं है. चीन ने मैक्रों का स्वागत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. इतना ही नहीं उनकी टिप्पणियों ने वहां की मीडिया में व्यापक सुर्खियां भी बटोरी. चीनी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा संचालित ग्लोबल टाइम्स ने कहा कि मैक्रों की टिप्पणियां ‘‘स्पष्ट रूप से मैक्रों के दीर्घकालिक अवलोकन और प्रतिबिंब का परिणाम थीं’’ और ये टिप्पणियां एक ऐसे मार्ग का प्रतिनिधित्व करती हैं जो ‘‘अपेक्षाकृत उद्देश्यपूर्ण, तर्कसंगत और यूरोप के अपने हितों के अनुरूप’’ है.
मैक्रों ने यात्रा को यूक्रेन में युद्ध पर ‘‘सामान्य दृष्टिकोण को मज़बूत करने’’ के साथ ही यूक्रेन युद्ध के साथ चीन के संबंधों की लागत को स्वीकार करने के लिए उसे मजबूर करने का प्रयास निरुपित किया है. लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि यात्रा के दौरान और यात्रा के बाद इस उद्देश्य को कैसे हासिल किया गया. उर्सुला वॉन डेर लेन को चीन में वह महत्व नहीं दिया गया, जो उन्हें मिलना चाहिए था. लेकिन उन्होंने यूक्रेन में युद्ध को समाप्त करने के लिए चीन की 12-सूत्रीय योजना की कड़े शब्दों में भर्त्सना की है. इसके साथ ही उर्सुला वॉन डेर लेन यूरोप के चीन के साथ व्यापारिक संबंधों के ‘‘डी-रिस्किंग अर्थात नियंत्रित या प्रबंधित’’ करने की आवश्यकता को रेखांकित करती रही है.
मैक्रों ने यात्रा को यूक्रेन में युद्ध पर ‘‘सामान्य दृष्टिकोण को मज़बूत करने’’ के साथ ही यूक्रेन युद्ध के साथ चीन के संबंधों की लागत को स्वीकार करने के लिए उसे मजबूर करने का प्रयास निरुपित किया है. लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि यात्रा के दौरान और यात्रा के बाद इस उद्देश्य को कैसे हासिल किया गया.
लेकिन मैक्रों के रुख़ अथवा हस्तक्षेप को लेकर से हर तरफ से तीव्र प्रतिक्रिया देखने को मिली है. यूरोपीय देशों ने यह साफ़ कर दिया है कि फ्रांसीसी नेता के रुख़ को व्यापक समर्थन मिलने की संभावना कम ही है. चीन पर इंटर-पार्लियामेंट्री अलायंस अर्थात अंतर-संसदीय गठबंधन ने एक बयान में कहा है कि मैक्रों की टिप्पणियां यूरोपीय नेतृत्व की भावना के साथ ‘‘गंभीर रूप से मेल नहीं खाती’’ है और मैक्रों यूरोप की तरफ से नहीं बोल रहे है. मध्य और पूर्वी यूरोप के अधिकारी विशेष रूप से मैक्रों की नीतिगत प्राथमिकताओं का विरोध करते हुए इसे लेकर निराशा जताने में मुखर रहे हैं. पोलिश प्रधानमंत्री मैटिअस्ज मोरवीकी ने अपने यूरोपीय भागीदारों से दो टूक कह दिया है कि ‘‘अमेरिका से रणनीतिक स्वायत्तता हासिल करने की अपेक्षा मैं अमेरिका के साथ एक रणनीतिक साझेदारी के प्रस्ताव का पक्षधर हूं.’’ रूसी सैन्य आक्रामकता की अग्रिम पंक्ति पर मौजूद वे यूरोपीय राष्ट्र वर्तमान चुनौतियों को अपने अस्तित्व के लिए संकट के रूप में देखते है. उनके पास शासन कला को लेकर एक फ्रांसीसी दार्शनिक ग्रंथ की ओर देखने का वक़्त नहीं है. फ्रांस और जर्मनी के पास किसी भी तरह का महत्वपूर्ण सैन्य कौशल मौजूद नहीं है. अत: यूरोपीय संघ की अमेरिका पर निर्भरता एक रणनीतिक आवश्यकता है. मैक्रों मैक्रॉन की गलत समय पर की गई टिप्पणियों ने एक बार पुन: ‘‘पुराने’’ और ‘‘नए’’ यूरोप के बीच मतभेदों को उजागर कर दिया है. और ‘‘पुराना’’ यूरोप, मैक्रों की विश्वदृष्टि का समर्थन करता दिखाई नहीं दे रहा है.
अमेरिका की ओर से भी प्रतिक्रिया समान रूप से तीखी रही है. एक ओर जहां व्हाइट हाउस ने अपने इस रुख़ को दोहराया है कि वह ‘‘फ्रांस के साथ शानदार सहयोग और समन्वय पर ध्यान केंद्रित कर रहा है’’, लेकिन रिपब्लिकन पार्टी के लोग इस विवाद में कूद पड़े है. रिपब्लिकन सीनेटर मार्को रुबियो से जब वाक्पटुतापूर्वक पूछा गया कि क्या, मैक्रों की टिप्पणियों के बाद, अमेरिका को अपनी विदेश नीति चीन को नियंत्रित करने पर केंद्रित करनी चाहिए और यूक्रेन में युद्ध को संभालने की ज़िम्मेदारी यूरोप को सौंप देनी चाहिए. चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की प्रतिनिधि सभा की चयन समिति के रिपब्लिकन अध्यक्ष माइक गालाघर ने मैक्रों की टिप्पणियों को ‘‘शर्मनाक’’ और ‘‘अपमानजनक’’ निरूपित किया है. और हां, निश्चित रूप से पूर्व राष्ट्रपति, डोनाल्ड ट्रंप अपनी प्रतिक्रिया में अधिक चुटीले थे. उन्होंने कहा कि मैक्रों ने ‘‘चीन में [शी] की चापलुसी या चाटुकारिता में लगे हुए है..’’ वाशिंगटन को मैक्रों के रुख़ से चिंता होना स्वाभाविक है, क्योंकि मैक्रों का यह रुख़ चीन की हिम्मत को बढ़ाने का काम करेगा. भले ही इस वज़ह से यह बहस नए सिरे से क्यों न शुरू हो जाएं कि अमेरिका को यूरोपीय सुरक्षा के लिए कितना प्रतिबद्ध होना चाहिए.
फ्रांस में मैक्रों की घेराबंदी की जा रही है. उनकी अनुमोदन रेटिंग काफ़ी नीचे आ गई है. उनकी सरकार ने अभी पिछले महीने ही अविश्वास मत का सामना किया था, जिसमें वह बाल-बाल बची है. इसलिए वैश्विक मंच पर एक ऐसे मुद्दे पर तेवर दिखाना, जिसकी फ्रांसीसी राजनीति में लंबी वंशावली रही है, शायद राजनीतिक रूप से उनके लिए मायने रखता है. और फिर उन्होंने अतीत में भी विवादास्पद टिप्पणियां की है. जैसे नाटो ‘‘ब्रेन डेड अथवा मस्तिष्क मृत्यु’’ का अनुभव कर चुका है. इतना ही नहीं, यूक्रेन पर आक्रमण के महीनों बाद रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को उन्होंने ‘‘सुरक्षा गारंटी’’ देने की कोशिश की थी. लेकिन जब चीन को लेकर पश्चिमी देश एक गंभीर नीति को पेश करने की मुश्किल कोशिश करने में जुटे हैं और जब ताइवान के ख़िलाफ़ चीनी आक्रामकता स्पष्ट दिखाई दे रही है, तो ऐसे वक़्त यह टिप्पणी उस उद्देश्य के ठीक विपरीत जाती है, जो इस यात्रा को लेकर पहले तय किया गया था. ऐसे में बीजिंग यूरोपीय संकल्प में दिखाई दे रही इस खामी का खुशी-खुशी लाभ उठाने की कोशिश करेगा. और इस विवाद ने इंडो-पैसिफिक अर्थात हिंद-प्रशांत क्षेत्र में फ्रांस के साझेदारों के मन में मैक्रों ने इस बात को लेकर संदेह पैदा कर दिया है कि चीन के उदय को लेकर पड़ने वाले बाह्य नकारात्मक प्रभावों को लेकर फ्रांस कितना गंभीर है.
यह टिप्पणी मूल रूप से Bloomberg में प्रकाशित हुई थी.
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Professor Harsh V. Pant is Vice President – Studies and Foreign Policy at Observer Research Foundation, New Delhi. He is a Professor of International Relations ...
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