Author : Rajen Harshé

Published on May 25, 2022 Updated 17 Hours ago

क्या अपने दूसरे कार्यकाल में मैक्रों अपनी अफ्रीका नीति के तहत अफ्रीका में जिहादी आंदोलनों का ख़ात्मा करने में कामयाब हो पाएंगे?

मैक्रों की अफ़्रीका नीति: माली और साहेल क्षेत्र में जिहादी ख़तरे से निपटने की कोशिश

24 अप्रैल 2022 को इमैन्युअल मैक्रों, दोबारा फ्रांस के राष्ट्रपति चुन लिए गए. आख़िरी दौर में उन्हें कुल वोटों का 58.5 प्रतिशत हिस्सा मिला. चूंकि, मैक्रों के नेतृत्व वाले मध्यमार्गी दलों को मरीन ले पेन के नेतृत्व वाले अप्रवास विरोधी कट्टर दक्षिणपंथियों के हाथों काफ़ी नुक़सान उठाना पड़ा है, तो चुनाव के बाद अब फ्रांस ज़्यादा बंटा हुआ दिख रहा है. फ्रांस की बहुलता वाली संस्कृति औऱ समाज में मोटे तौर पर 68 लाख अप्रवासी भी शामिल हैं. फ्रांस में अफ्रीका और अफ्रीकी मूल के लोगों की बहुत अहमियत है. क्योंकि फ्रांस के क़रीब तीस लाख नागरिक ऐसे हैं जो अफ्रीका के सहारा क्षेत्र से आकर बसे हैं और यहां की नागरिकता ली है, या फिर वो अफ्रीका से फ्रांस आकर बसे लोगों की दूसरी पीढ़ी की नुमाइंदगी करते हैं. इसके अलावा, 1960 में उपनिवेशवाद के ख़ात्मे के बाद, फ्रांस के अफ्रीका के सहारा क्षेत्र के अपने पुराने उपनिवेशों के साथ संस्थागत, आर्थिक, सैन्य और राजनीतिक क्षेत्र में संबंध बने हुए हैं. अपने पहले कार्यकाल (2017-2022) के दौरान इमैन्युअल मैक्रों ने फ्रांस की अफ्रीका नीति को एक नया जामा पहनाने की कोशिश की थी. फिर भी माली और पूरे साहेल क्षेत्र में फ्रांस, जिहादी आतंक की समस्या से असरदार तरीक़े से निपटने में नाकाम रहा था. इसका नतीजा ये हुआ कि फरवरी 2022 में फ्रांस को माली से अपनी सेना वापस बुलाने का एलान करने को मजबूर होना पड़ा था. फ्रांस और अफ्रीका के रिश्तों की साफ़ तस्वीर समझने के लिए हमें मैक्रों की अफ्रीका नीति के कुछ अहम पहलुओं पर नज़र डालनी होगी. तभी जाकर साहेल क्षेत्र के माली में फ्रांस की नीति की आलोचनात्मक रूप से समीक्षा की जा सकती है.

फ्रांस और अफ्रीका के रिश्तों की साफ़ तस्वीर समझने के लिए हमें मैक्रों की अफ्रीका नीति के कुछ अहम पहलुओं पर नज़र डालनी होगी. तभी जाकर साहेल क्षेत्र के माली में फ्रांस की नीति की आलोचनात्मक रूप से समीक्षा की जा सकती है.

मैक्रों की अफ्रीका नीति

2017 से ही मैक्रों इस बात पर ज़ोर देते आए हैं कि फ्रांस अपने पूर्व अफ्रीकी उपनिवेश देशों के साथ शासक और आश्रित की भूमिका के बजाय एक सामरिक साझेदारी वाला संवाद क़ायम करना चाहता है. उन्होंने इसी बुनियाद पर अपने देश की अफ्रीका नीति को नया आयाम देने की कोशिश की है. मैक्रों ने फ्रांस के उपनिवेशवाद को सच में बर्बर और मानवता के ख़िलाफ़ अपराध बताया. अफ्रीकी देशों से दोस्ती बढ़ाने के लिए मई 2021 में मैक्रों ने रवांडा के नरसंहार में फ्रांस की भूमिका के लिए माफ़ी मांगने के साथ साथ ये भी माना था कि 1994 में जब रवांडा में नरसंहार के चलते आठ लाख से ज़्यादा लोगों की जान गई, तो फ्रांस कोई क़दम उठाने में नाकाम रहा था. मैक्रों ने CFA फ्रैंक व्यवस्था को ख़त्म करने के बजाय उसमें सुधार लाने की अपनी ख़्वाहिश भी ज़ाहिर की थी. हक़ीक़त ये है कि पूर्व उपनिवेशों ने फ्रांस की ग़ुलामी से मुक्त होकर राजनीतिक संप्रभुता भले हासिल कर ली हो. लेकिन, उन्हें मौद्रिक संप्रभुता हासिल नहीं हो सकी है. क्योंकि फ्रांसीसी फ्रैंक और CFA फ्रैंक के बीच संपर्क के चलते, इन देशों की मौद्रिक नीति पर फ्रांस के ख़ज़ाने का ही नियंत्रण बरक़रार है. CFA फ्रैंक क्षेत्र में वो 12 अफ्रीकी उपनिवेश आते हैं, जो पहले फ्रांस के अफ्रीका साम्राज्य का हिस्सा थे और ये देश लगभग 965,000 वर्ग मील में फैले हुए हैं, जो भारत के कुल क्षेत्रफल के क़रीब अस्सी प्रतिशत के बराबर है. इसके अलावा, मैक्रों इकलौते ऐसे यूरोपीय नेता थे, जो चाड के दिवंगत राष्ट्रपति इदरीस डेबी के अंतिम संस्कार में शामिल हुए थे. इदरीस डेबी, अप्रैल 2021 में बाग़ियों से लड़ते हुए मारे गए थे. कोविड-19 की महामारी के दौरा फ्रांस ने दक्षिण अफ्रीका को उसकी वैक्सीन उत्पादन क्षमता बढ़ाने में मदद की थी. इसके अलावा, अक्टूबर 2021 में फ्रांस ने मांपेलियर में नए फ्रांस अफ्रीका शिखर सम्मेलन की मेज़बानी भी की थी. इसमें कलाकारों, बुद्धिजीवियों और समाज के उद्यमियों को न्यौता दिया गया था, जिससे फ्रांस और अफ्रीका की दोस्ती को सामाजिक स्तर पर नया रूप दिया जा सके. इसके अलावा, वैसे तो जिबूती में पहले से ही फ्रांस का सैनिक अड्डा है. मगर, मैक्रों ने सूडान को 1.5 अरब डॉलर का क़र्ज़ देकर उससे अच्छे ताल्लुक़ क़ायम किए, क्योंकि सूडान सामरिक रूप से अहम हॉर्न ऑफ़ अफ्रीका इलाक़े में स्थित है. यहां पर इस बात पर ज़ोर देकर समझने की ज़रूरत है कि अपने पूर्व उपनिवेशों से संस्थागत सैन्य संबंधों के ज़रिए, फ्रांस ने पिछले छह दशकों के दौरान अफ्रीका के अलग अलग देशों में 50 बार से ज़्यादा सैन्य कार्रवाई की है. हालांकि, पिछले कुछ वर्षों से साहेल क्षेत्र में और ख़ास तौर से माली में जिहादी आतंकवाद के चलते पैदा हुई समस्या ने फ्रांस की अफ्रीका नीति के लिए बड़ी चुनौती पेश की है.

अपने पूर्व उपनिवेशों से संस्थागत सैन्य संबंधों के ज़रिए, फ्रांस ने पिछले छह दशकों के दौरान अफ्रीका के अलग अलग देशों में 50 बार से ज़्यादा सैन्य कार्रवाई की है. हालांकि, पिछले कुछ वर्षों से साहेल क्षेत्र में और ख़ास तौर से माली में जिहादी आतंकवाद के चलते पैदा हुई समस्या ने फ्रांस की अफ्रीका नीति के लिए बड़ी चुनौती पेश की है.

साहेल क्षेत्र, माली और जिहादी ख़तरा

अफ्रीका के साहेल क्षेत्र में मॉरिटानिया, माली, चाड, नाइजर और बर्किना फासो देश आते हैं. इनमें से माली को हमेशा केंद्रीय भूमिका हासिल रही है, क्योंकि वो पूर्व फ्रांसीसी पश्चिमी अफ्रीका और उत्तरी अफ्रीका के बीच में स्थित है. हालांकि, माली में फ्रांस के कोई सीधे आर्थिक हित नहीं जुड़े हैं. लेकिन, फ्रांस उसके पड़ोसी देशों के साथ आर्थिक रूप से जुड़ा हुआ है. मिसाल के तौर पर फ्रांस को अपने परमाणु बिजलीघरों के लिए नाइजर से यूरेनियम मिलता है. फ्रांस और बेल्जियम की कंपनी टोटल को अपना एक तिहाई तेल गिनी की खाड़ी के देशों से मिलता है. फ्रांस के सोसाइटी जनरले और बीएनपी-पारिबा जैसे बैंक या फिर बुयोग्यूस, बल्लोर, ऑरेंज एस. ए. और एफिगे जैसी कंपनियां इस क्षेत्र में कारोबार करते हैं. माली में अपने छह हज़ार नागरिकों की सुरक्षा के साथ साथ फ्रांस, साहेल क्षेत्र में मौजूद अहम सामरिक खनिजों पर अपना नियंत्रण बनाए रखना चाहता है, क्योंकि इस क्षेत्र की सीमा पर चौकसी कम है और ज़मीनी स्तर पर उनकी कोई ख़ास अहमियत नहीं है.

इसके अलावा पिछले दशक के दौरान पश्चिमी एशिया में मिले झटकों के चलते, अल क़ायदा और इस्लामिक स्टेट जैसे बहुराष्ट्रीय आतंकवादी संगठन अपने सहयोगी संगठनों के माध्यम से पूरे साहेल क्षेत्र में अपनी गतिविधियां बढ़ा रहे हैं. 2012 माली की सैन्य सरकार अपने उत्तरी इलाक़े में तुआरेग जातीय समूह के नेशनल मूवमेंट ऑफ़ द लिबरेशन ऑफ़ अज़ावाद (MLNA) जैसे आतंकवादी संगठनों से निपट पाने में नाकाम रही थी, जिसके अल क़ायदा और अंसार दीन जैसे संगठनों से संबंध हैं. गद्दाफ़ी से हथियार छीनने वाले तुआरेग के भाड़े के लड़ाकों ने अल क़ायदा की मदद से माली के उत्तरी इलाक़े पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया था. आख़िर में माली की सैन्य सरकार के कहने पर फ्रांस की ओलांद सरकार ने 2013 में माली में अपनी सेना को भेजा था, जिससे वो उत्तरी माली में हथियारबंद इस्लामिक उग्रवादियों का ख़ात्मा कर सके. फ्रांस ने साहेल क्षेत्र में ऑपरेशन बरखाने के ज़रिए जिहादियों का ख़ात्मा करने के लिए अपने लगभग पांच हज़ार सैनिक तैनात किए थे. इसके अलावा फ्रांस, साहेल क्षेत्र के देशों के आतंकवाद निरोधक बलों की अगुवाई भी कर रहा था. वहीं, एस्टोनिया, डेनमार्क, स्वीडन, इटली और चेक गणराज्य जैसे यूरोपीय देशों के सैनिकों से बनी टकूबा टास्क फ़ोर्स (TTK) का नेतृत्व भी फ्रांस ही कर रहा था. हालांकि, राजनीतिक उठा-पटक के शिकार साहेल क्षेत्र में सक्रिय मुख्य जिहादी संगठनों जैसे कि अंसारुल इस्लाम (AI), बोको हराम (BH), इस्लामिक स्टेट के सहयोगी इस्लामिक स्टेट इन ग्रेटर सहारा (ISGS) और अल क़ायदा के सहयोगी जमात नुसरत अल-इस्लाम वल-मुसलिमीन (JNIM) का ख़ात्मा करना फ्रांस के लिए बहुत बड़ी चुनौती बन गया.

माली में अपने छह हज़ार नागरिकों की सुरक्षा के साथ साथ फ्रांस, साहेल क्षेत्र में मौजूद अहम सामरिक खनिजों पर अपना नियंत्रण बनाए रखना चाहता है, क्योंकि इस क्षेत्र की सीमा पर चौकसी कम है और ज़मीनी स्तर पर उनकी कोई ख़ास अहमियत नहीं है.

फ्रांस और माली के बिगड़ते रिश्ते

अपने कृषक और चरवाहा समुदायों के बीच घरेलू सांप्रदायिक हिंसा और उत्तर में आतंकवाद के चलते माली अक्सर राजनीतिक उठा-पटक का शिकार रहता है. अगस्त 2020 और मई 2021 में माली, लगातार दो बार सैन्य तख़्तापलट को कामयाब होते देख चुका है. दोनों ही तख़्तापलट के पीछे कर्नल असीमी गोइटा का हाथ रहा था. लेकिन, अब वो लोकतांत्रिक प्रक्रिया बहाल करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं. इस वजह से उनकी सरकार पर से दुनिया का भरोसा उठ गया है, और पश्चिमी अफ्रीका देशों के आर्थिक समुदाय (ECOWAS) ने दिसंबर 2021 में माली पर प्रतिबंध लगा दिए थे. माली की सामरिक स्थिति और उसके सैन्य शासकों के कुप्रशासन के चलते अकेले 2021 में ही आतंकवादी संगठनों ने 800 जानलेवा हमले किए थे, जिसमें हज़ारों लोग मारे गए और 25 लाख लोग बेघर हो गए. जिसके चलते इस क्षेत्र में 1 करोड़ तीस लाख लोगों को मानवीय मदद की दरकार हो गई. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक़ 2021 में लगभग 600 आम लोग मारे गए थे. फ्रांस ने साहेल क्षेत्र में अपने 53 सैनिक गंवाए इनमें से 48 माली में मारे गए. अप्रैल 2022 में जिहादियों ने मध्य माली और बर्किना फासो में तीन सैनिक अड्डों पर हमले किए थे, जिसमें छह सैनिकों की जान चली गई थी. अब तक फ्रांसीसी सैनिक, TTF 800, चाड को छोड़कर साहेल क्षेत्र के बाक़ी देशों की सेनाएं, माली में संयुक्त राष्ट्र संघ के बहुआयामी एकीकृत स्थिरता मिशन (MINUSMA) के 18 हज़ार जवान और माली में यूरोप के प्रशिक्षण मिशन (EUTM) मिलकर भी ज़मीनी हक़ीक़त में कोई बदलाव नहीं ला पाए हैं. इसके चलते माली में फ्रांस लगातार अलोकप्रिय होता जा रहा है.

फ्रांस और माली के रिश्ते इसलिए और भी ख़राब होते जा रहे हैं क्योंकि माली अपने यहां लोकतांत्रिक शासन बहाल करने को लेकर दिलचस्पी नहीं दिखा रहा है. इसके अलावा, जब माली के सैन्य शासकों ने डेनमार्क से कहा कि वो TTK से अपने सैनिक वापस बुला लें, तो फ्रांस के विदेश मंत्री येव्स ले द्रां ने गोइटा की सरकार को अवैध क़रार दिया था. इस पर पलटवार करते हुए गोइटा की सरकार ने उपनिवेशवाद विरोधी दांव चला और 72 घंटों के भीतर फ्रांस के राजदूत को माली से निष्कासित कर दिया था. हालांकि, फ्रांस ने साहेल क्षेत्र में अपने 2400 सैनिक तैनात रखकर, माली के पड़ोसी देशों में जिहादी आतंकवाद से मुक़ाबला जारी रखने का इरादा जताया है. लेकिन, माली से सैनिक वापस बुलाने के मैक्रों के फ़ैसले का घाना और आइवरी कोस्ट जैसे देशों ने स्वागत नहीं किया है. क्योंकि उन्हें डर कि इससे पूरे क्षेत्र में अस्थिरता फैल सकती है.

फ्रांस और माली के रिश्ते इसलिए और भी ख़राब होते जा रहे हैं क्योंकि माली अपने यहां लोकतांत्रिक शासन बहाल करने को लेकर दिलचस्पी नहीं दिखा रहा है

इसके अलावा मैक्रों ने इस क्षेत्र में वैगनर ग्रुप की भूमिका को लेकर भी आशंकाएं जताई हैं. वैगनर ग्रुप एक निजी सेना है, जो पुतिन की सरकार के बेहद क़रीब मानी जाती है और माली की सैन्य सरकार, आतंकवाद से लड़ने के लिए इसके जवानों को तैनात कर रही है. अमेरिका की अफ्रीका कमान के प्रमुख स्टीफेन टाउनसेंड का ये मानना है कि माली, इसके बदले में वैगनर को हर महीन 1 करोड़ डॉलर का भुगतान, सोने और जवाहरात के रूप में कर रहा है. रूसी लड़ाकू जहाज़ों और सैनिकों के अलावा रूस के भूवैज्ञानिक भी माली में काम कर रहे हैं. हालांकि, राष्ट्रपति पुतिन ने माली में तैनात वैगनर ग्रुप के 800 भाड़े के लड़ाकों से कोई ताल्लुक़ होने से इनकार किया है. लेकिन, ये समूह पहले से ही लीबिया, नाइजीरिया गिनी, मध्य अफ्रीकी गणराज्यों (CAR), सूडान, ज़िम्बाब्वे, मोज़ाम्बीक और बोत्सवाना में सक्रिय है. मैक्रों सरकार के सामने दुविधा ये है कि आतंकवाद से लड़ने के लिए वो न तो माली के सैन्य शासकों का साथ दे सकते हैं, और न ही वैगनर ग्रुप के भाड़े के लड़ाकों के साथ सहयोग कर सकते हैं.

निष्कर्ष

भले ही अभी के हालात जैसे भी दिख रहे हों, अपने पूर्व उपनिवेशों में फ्रांस की स्थिति अभी भी काफ़ी मज़बूत है और वो अफ्रीका के अन्य क्षेत्रों में अपनी भूमिका का और भी विस्तार कर रहा है. माली में जिहादी ताक़तों से निपट पाने में फ्रांस की नाकामी के चलते वैगनर (जिसका मतलब है रूस) ने फ्रांस और माली के ख़राब होते रिश्तों का फ़ायदा उठाया है, और वो माली ही नहीं, पूरे साहेल क्षेत्र में अपने हितों को बढ़ावा दे रहा है.

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