Author : Nilanjan Ghosh

Published on Dec 13, 2023 Updated 0 Hours ago

एलएंडडी फंड के महत्व पर फिर से बात करने की कोई ज़रूरत नहीं है. लेकिन सवाल यह उठता है कि इस पर काम कैसे किया जाए?

वित्तपोषण से जुड़ी समस्याएँ: बिना जवाब के सवाल और अनदेखी समस्याएँ

कॉप27 (COP27) में हानि और क्षति (एलएंडडी) कोष की स्थापना एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है. यह ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन की ताकतों से गंभीर रूप से प्रभावित विकासशील और कम विकसित देशों द्वारा वर्षों से निरंतर की जा रही वकालत का परिणाम है. इस कोष का प्राथमिक उद्देश्य जलवायु परिवर्तन के असर से प्रतिकूल प्रभाव का सामना कर रहे देशों को वित्तीय सहायता प्रदान करना है. इसमें 24 सदस्यों वाली एक संक्रमण समिति का गठन किया गया है, जिसमें विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों के प्रतिनिधि शामिल हैं, जो कोष के संचालन का समग्र पर्यवेक्षण करेंगे. समिति के कार्यक्षेत्र में यह सिफ़ारिशें करना अपरिहार्य  है जिन्हें  दिसंबर 2023 में दुबई, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में, होने वाले कॉप28 में प्रस्तुत किया जाएगा. 

जलवायु संकट के बढ़ने के साथ ही इसके प्रभावों, जैसे समुद्र के स्तर का बढ़ना, लगातार लू की लहरें, मरुस्थलीकरण, समुद्र का अम्लीकरण और बाढ़, सूखे, चक्रवात और जंगल की आग की बदलती आवृत्ति के परिणामस्वरूप मानव समाज को होने वाला नुकसान लंबी अवधि के लिए और आम तौर पर स्थायी होगा.  जलवायु परिवर्तन सम्मेलन पर संयुक्त राष्ट्र सरंचना (यूएनएफ़सीसीसी) का ढांचा स्वीकार करता है कि जलवायु परिवर्तन ने कुछ "अपरिवर्तनीय प्रभाव" पैदा किए हैं जिन्हें अनुकूलन द्वारा कम नहीं किया जा सकता है. ज़्यादातर मामलों में, ये नुकसान और क्षति उन लोगों द्वारा वहन की जाती हैं जो सबसे कम उत्सर्जक हैं. उदाहरण के तौर पर, वैश्विक जलवायु परिवर्तन में सबसे कम योगदान के बावजूद अफ़्रीकी महाद्वीप जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को झेलने के लिए सबसे कमज़ोर भू-भागों में से एक है, जबकि जी20 देश लगभग 75 प्रतिशत वैश्विक ग्रीनहाउस उत्सर्जन के लिए ज़िम्मेदार हैं. इसलिए, जलवायु न्याय, वितरणात्मक न्याय और समानता के दृष्टिकोण से, प्रभावितों को मुआवज़ा दिया जाना चाहिए.

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की 2023 अनुकूलन गैप रिपोर्ट के अनुसार, विकासशील देशों में अनुकूलन के लिए वित्तीय आवश्यकताएं अंतरराष्ट्रीय सार्वजनिक वित्त प्रवाह से 10 से 18 गुना अधिक हैं, जो पहले के अनुमानों की तुलना में 50 प्रतिशत से अधिक वृद्धि है. वर्तमान मॉडलों के अनुमान के अनुसार इन देशों में अनुकूलन की लागत इस दशक के दौरान प्रतिवर्ष लगभग 215 बिलियन अमेरिकी डॉलर होगी. इसके अलावा, घरेलू अनुकूलन प्राथमिकताओं को प्रभावी ढंग से पूरा करने के लिए, इन देशों को प्रति वर्ष अनुमानित 387 बिलियन अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता होगी. इस प्रकार, हानि और क्षति वित्तपोषण को अनुकूलन और न्यूनीकरण वित्तपोषण के साथ निकटता से जोड़ा जाना चाहिए.

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की 2023 अनुकूलन गैप रिपोर्ट के अनुसार, विकासशील देशों में अनुकूलन के लिए वित्तीय आवश्यकताएं अंतरराष्ट्रीय सार्वजनिक वित्त प्रवाह से 10 से 18 गुना अधिक हैं, जो पहले के अनुमानों की तुलना में 50 प्रतिशत से अधिक वृद्धि है.

2013 में, यूएनएफ़सीसीसी ने एलएंडडी मुद्दों पर ध्यान देने के लिए वारसॉ अंतर्राष्ट्रीय तंत्र (डब्ल्यूआईएम) की स्थापना की. हालांकि, इसका प्राथमिक फोकस जोखिम प्रबंधन की ओर ही था और वैश्विक वित्तीय कार्रवाई को प्रोत्साहित करने के प्रयास अपर्याप्त थे. न्यूनीकरण और अनुकूलन के लिए उपयोग किए जाने वाले तरीकों की ही काफ़ी हद तक नकल करना इस रणनीति की बड़ी बाधा है. डब्ल्यूआईएम के निर्माण का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन के उन प्रभावों पर ध्यान देना था जो न्यूनीकरण और अनुकूलन के दायरे से बाहर हैं. इसलिए, एलएंडडी के लिए इन रणनीतियों पर भरोसा करना मौलिक रूप से त्रुटिपूर्ण है. इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज ने इस बात को उठाया है कि मज़बूत अनुकूलन और न्यूनीकरण उपायों के बावजूद, हानि और क्षति के मामले में जलवायु परिवर्तन के अपरिहार्य परिणाम बने रहेंगे.

इसलिए, एलएंडडी फंड के महत्व पर फिर से बात करने की कोई ज़रूरत नहीं  है. लेकिन सवाल यह उठता है कि इस पर काम कैसे किया जाए? यह वह प्रमुख चिंता होगी जो एलएंडडी कोष में धन के प्रवाह को प्रभावित करेगी. यह "कैसे" प्रश्न चार विषयों से उठता है, जैसा कि हमने इस निबंध में वर्गीकृत किया है.

परिभाषित मुद्दे 

पहली और सबसे महत्वपूर्ण चिंता एलएंडडी के मूल ढांचे को लेकर है. 'हानि और क्षति' के दायरे में एक सटीक परिभाषा का अभाव है, जो व्याख्या के लिए जगह छोड़ देता है. बॉयड और सह-लेखक एलएंडडी पर दृष्टिकोणों की एक विस्तृत श्रेणी पर चर्चा करते हैं, जो अनुकूलन और न्यूनीकरण से लेकर अस्तित्व के सवाल तक हो सकते हैं, जो यह हैं कि कमज़ोर देशों को हुए नुकसान को कैसे देखा जाए. यूएनएफ़सीसीसी का तरीका यह स्पष्ट नहीं करता कि वह कौन सा दृष्टिकोण अपना रहा है. शर्म अल-शेख कार्यान्वयन योजना एलएंडडी के विनाशकारी आर्थिक और गैर-आर्थिक नुकसानों की चर्चा करती है, जिसमें जबरन विस्थापन और सांस्कृतिक विरासत, मानव गतिशीलता और स्थानीय समुदायों के जीवन और आजीविका पर प्रभाव शामिल हैं. दूसरी ओर, क्षति को बुनियादी ढांचे और संपत्ति के नुकसान के रूप में वर्गीकृत किया जाता है जो किसी देश की आर्थिक, पर्यावरणीय और सामाजिक स्थिति को काफ़ी प्रभावित करते हैं. उदाहरण के लिए, आर्थिक नुकसान और क्षति तब होती है जब प्राकृतिक आपदाएं घरों, स्कूलों और सड़कों जैसे बुनियादी ढांचे को नष्ट कर देती हैं - वे मौद्रिक रूप से मात्रात्मक हैं. संस्कृति जैसे गैर-आर्थिक नुकसान अमात्रात्मक हैं.

आर्थिक नुकसान और क्षति तब होती है जब प्राकृतिक आपदाएं घरों, स्कूलों और सड़कों जैसे बुनियादी ढांचे को नष्ट कर देती हैं - वे मौद्रिक रूप से मात्रात्मक हैं. संस्कृति जैसे गैर-आर्थिक नुकसान अमात्रात्मक हैं.. 

इसके अलावा, ये परिभाषाएँ अति महत्वपूर्ण और व्यापक हैं. जब तक एलएंडडी की एक स्वीकृत परिभाषा और वर्गीकरण को तय नहीं कर लिया जाता है तब तक वित्तपोषण की समस्या बनी रहती है. दूसरी ओर, दस्तावेज़ पूरी तरह से एक्स-एंटे (एलएंडडी से जुड़ी किसी घटना के घटित होने से पहले) और एक्स-पोस्ट (जब एलएंडडी से जु़ड़ी कोई घटना पहले ही घटित हो चुकी है) को सही तरीके से स्वीकृत करता है. यद्यपि एक्स-एंटे वर्गीकरण का उद्देश्य एलएंडडी पर ध्यान देना और उसे रोकना है, जो भविष्य में हो सकती है (यहां तक ​​कि डब्ल्यूआईएम भी उस बारे में बात करता है), बड़ी समस्या यह है कि उन्हें अनुकूलन वित्त से कैसे अलग किया जाए. यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है.

आरोपण की समस्याएं 

आरोपण की समस्या विभिन्न स्रोतों से उत्पन्न होती है. पहला यह है कि हानि और क्षति के कौन से पहलू के लिए जलवायु परिवर्तन को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है. एक उदाहरण के रूप में, गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना डेल्टा में भारतीय सुंदरबन न केवल समुद्र के स्तर में वृद्धि के कारण बल्कि गंगा की मुख्यधारा से उसकी सहायक नदियों में तलछट प्रवाह में कमी के कारण भी सिकुड़ रहा है. तलछट प्रवाह में गिरावट काफ़ी हद तक पश्चिम बंगाल के फरक्का शहर में गंगा पर एक बैराज के ऊपर तलछट के जमा होने के कारण है. इसलिए, बंगाल की खाड़ी में समुद्र के स्तर में वृद्धि को भारतीय सुंदरबन के सिकुड़ने के लिए पूरी तरह से ज़िम्मेदार ठहराना सही नहीं है.

इसके अलावा, सवाल यह है: कौन भुगतान करता है? कॉप27 की चर्चा के बीच, यूरोपीय संघ ने हानि और क्षति निधि को एक पेंच के साथ स्वीकार किया: केवल यूएनएफ़सीसीसी द्वारा 'बड़ी अर्थव्यवस्थाओं' के रूप में चिह्नित देश ही इसमें योगदान दे सकते हैं. झोल यह है: चीन जैसे राष्ट्र, जो अपने भारी-भरकम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिए कुख्यात हैं लेकिन अब भी यूएनएफ़सीसीसी नियमों के तहत 'विकासशील' देश के रूप में चिह्नित हैं, रेखाओं को धुंधला करते हैं. यह एक जलवायु समस्या है जो सवाल उठाती है - हम एक गर्म दुनिया में एक दाता देश को कैसे परिभाषित करते हैं?

मूल्यांकन की समस्याएं

कॉप26 में वापस चलते हैं, जहां विकसित देशों ने विकासशील दुनिया में जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए प्रति वर्ष 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर जमा करने का वादा किया था - एक वादा जो अब भी ज़मीन पर नहीं उतरा है. अब तेज़ी से 2025 पर वापस आ जाते हैं. और यह मूल्य टैग एक ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर प्रतिवर्ष तक बढ़ सकता है, जो 2030 तक 1.7 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच सकता है. ज़रा कल्पना करो कि और क्या? यहां तक ​​कि ये आंखें चुंधिया देने वाले वाले ये आंकड़े असली संख्या की झलक भर हो सकते हैं. 

ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन के शोध से पता चलता है कि पारिस्थितिकी तंत्र निर्भरता अनुपात, जो पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के मूल्यों और समुदाय की आय का अनुपात है, कई गरीबी प्रभावित क्षेत्रों में एक से अधिक है.

एलएंडडी के मूल्यांकन की समस्या के बारे में अभी तक शायद ही कोई बात हुई है. यदि "हानि और क्षति" वित्तपोषण एक मुआवज़ा तंत्र है, तो इस वित्तपोषण के आधार का मानदंड संबंधी सिद्धांत क्या होना चाहिए? यहां दो प्रश्न हैं. सबसे पहले, यदि कोई पुल, तटबंध या संपत्ति नष्ट हो जाती है और/ या क्षतिग्रस्त हो जाती है, तो क्या हम हानि का वार्षिक स्टॉक मूल्यांकन करेंगे? या क्या हम सार्वजनिक वस्तुओं में हुए नुकसान की वजह से गंवाए गए संबंधित अवसरों पर विचार करेंगे? उस स्थिति में, यदि आजीविका-सक्षम बुनियादी ढांचा नष्ट हो जाता है और इसका पुनर्निर्माण करने में 10 साल लगते हैं, तो नुकसान को अगले 10 वर्षों के लिए छूट की उचित दर के साथ लाभ या आय हानि के प्रवाह के शुद्ध वर्तमान मूल्य (एनपीवी) के संदर्भ में व्यक्त करने की आवश्यकता है. एक बात तो यह हुई.

इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन से पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं का भी नुकसान होता है और विशेष रूप से उन प्रावधानीकरण सेवाओं का जिनसे आजीविका जुड़ी होती है. ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन के शोध से पता चलता है कि पारिस्थितिकी तंत्र निर्भरता अनुपात, जो पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के मूल्यों और समुदाय की आय का अनुपात है, कई गरीबी प्रभावित क्षेत्रों में एक से अधिक है. इसलिए, जब जलवायु परिवर्तन पारिस्थितिकी तंत्र संरचना और कार्य को नुकसान पहुंचाता है, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं में नुकसान होता है, तो गरीब समुदाय ऐसे अपरिवर्तनीय नुकसान से काफ़ी पीड़ित होता है. समुदाय को समान लाभ प्रदान करने वाला एक वैकल्पिक तंत्र या पारिस्थितिकी तंत्र बनाने में वर्षों लग सकते हैं. इसलिए, एनपीवी मानदंड पर विचार करके भविष्य के दशकों के नुकसान की भरपाई की आवश्यकता है.

वित्तपोषण के रास्ते और साधन 

फिर वित्तपोषण के साधनों और रास्तों का मामला सामने आता है. इसे अनुदान के रूप में काम करने की ज़रूरत है, न कि ऋण के रूप में. अनुदान-आधारित धन, राजनीतिक या व्यापार से संबंधित पूर्वाग्रहों से मुक्त, अल्प विकसित देशों (एलडीसी) और छोटे द्वीप विकासशील राज्यों (एसआईडीएस) को उपलब्ध कराया जाना चाहिए. यह विशेष वित्तपोषण विभिन्न प्रकार के वित्तीय तंत्रों का लाभ उठा सकता है. उदाहरण के लिए, महासचिव द्वारा रखा गया एक प्रस्ताव जीवाश्म ईंधन से होने वाले अप्रत्याशित मुनाफ़े पर कर लगाने का सुझाव एक व्यवहार्य विकल्प है. एक वैकल्पिक दृष्टिकोण में ऋण की अदला-बदली शामिल है, जिसमें मौजूदा ऋणों को जलवायु प्रतिक्रियाओं की ओर धन पुनर्निर्देशित करने के लिए माफ़ कर दिया जाता है. इसके अलावा, निजी क्षेत्र को इस खेल में शामिल करने के लिए, एलएंडडी क्रेडिट ट्रेडिंग, एलएंडडी बॉंड आदि जैसे नवीन उत्पादों के बारे में सोचने की आवश्यकता है. विनियमन भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. यदि सरकारें लाभ-कमाने वाले निगमों के लिए अपने सीएसआर फंड का 50 प्रतिशत (या कोई विशिष्ट संख्या) एलएंडडी और अनुकूलन के लिए एक ओर रखने के लिए कानून बनाती हैं, तो इससे ऐसे क्षेत्रों में जहां पैसा ज़रूरी है लेकिन इसकी कमी है, में समग्र जलवायु वित्त के उद्देश्य को पूरा करने में मदद मिलेगी. इस विशिष्ट प्रकार के वित्तपोषण का उपयोग जलवायु वित्त संगठनों, जैसे कि हरित जलवायु निधि फंड में मौजूदा कमियों को दूर करने के लिए किया जा सकता है.

यहां से हम कहां जाएं?

ज्ञान के अंतरालों से अनुत्तरित प्रश्न उभर रहे हैं. इसमें कोई संदेह नहीं है कि एलएंडडी वित्तपोषण को परिभाषाओं, सहयोगात्मक प्रयासों और नवीन वित्तपोषण पर वैश्विक आम सहमति की आवश्यकता है. फिर भी, आधारभूत प्रश्न बड़े पैमाने पर उठ खड़े होते हैं: भुगतान कौन करता है? कौन प्राप्त करता है? हम पीड़ितों की पहचान कैसे करते हैं? हम इन निधियों को प्रवाहित कैसे करते हैं? ये आधारभूत प्रश्न हैं.


(नीलांजन घोष ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन में सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक डिप्लोमेसी के निदेशक हैं. विवेक कुमार ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन में प्रशिक्षु हैं.)

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.