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ऑपरेशन सिंदूर के बाद आतंक के बड़े ठिकाने भले ही ढह गए हों लेकिन लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद फिर से ज़मीन पकड़ने की जुगत में हैं. नए ठिकाने, नई रणनीति और सोशल मीडिया से नई भर्ती...सब कुछ बता रहा है कि पाकिस्तान की सरपरस्ती में ये आतंकी गुट फिर संगठित होने की राह पर हैं.
Image Source: Getty Images
ऑपरेशन सिंदूर में लश्कर-ए-तैयबा (LeT) और जैश-ए-मोहम्मद (JeM) के कमांड-कंट्रोल ढांचे को भले ही तबाह कर दिया गया हो लेकिन अब रिपोर्टें संकेत दे रही हैं कि दोनों गुट फिर से खड़े होने की कोशिश में लग गए हैं. संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित पाकिस्तान-परस्त ये दोनों आतंकी संगठन नई रणनीति अपना रहे हैं — वे बड़े अड्डों की जगह अंदरूनी इलाकों में छोटे-छोटे ठिकाने बना रहे हैं, स्थानीय समर्थकों के नेटवर्क का फायदा ले रहे हैं और अत्याचार की झूठी कहानियां फैला कर लोगों के मन में हमदर्दी जगाने की कोशिश कर रहे हैं. ऑपरेशन सिंदूर से मिला झटका भले ही गंभीर रहा हो पर पाकिस्तानी प्रतिष्ठान इन गुटों को फिर से खड़ा करने के लिए सक्रिय मदद दे रहा है.
ऑपरेशन सिंदूर के बाद LeT-JeM फिर संगठित होने लगे हैं.
आतंक गुट अब छोटे ठिकानों और स्थानीय नेटवर्क पर निर्भर हैं.
पाकिस्तानी प्रतिष्ठान की मदद से दोनों गुट फिर सक्रिय हैं.
रिपोर्ट्स के मुताबिक, दोनों गुट PoK में सीमा के नज़दीक के अपने ढांचों को हटा रहे हैं और ख़ैबर पख़्तूनख़्वा (KPK) के दूरदराज के इलाकों में नया ठिकाना बनाने लगे हैं. आतंकियों को भी वहीं भेजा जा रहा है. इतना ही नहीं, धन उगाही और भर्ती का सिलसिला भी फिर से शुरू कर दिया गया है. जैश-ए-मोहम्मद ख़ास तौर से अपनी महिला विंग का गठन कर रहा है और औरतों के बीच जिहादी प्रचार करने लगा है. इनसे पता चलता है कि लश्कर और जैश, दोनों खुद को जीवित रखने के लिए रणनीतिक बदलाव कर रहे हैं.
भारत की सुरक्षा एजेंसियों का कहना है कि लश्कर भारतीय सीमा से दूर निचले दीर में अफ़गान सीमा के पास एक नया ट्रेनिंग कैंप बना रहा है जिसका नाम ‘मरकज़ जिहाद-ए-अक्सा’ है. इसे बनाने में वह काफ़ी ख़र्च कर रहा है. यह वास्तव में ख़ैबर पख़्तूनख़्वा का पहाड़ी इलाका है जो अफ़गान सीमा के क़रीब है और आतंकियों के लिए सुरक्षित है इसीलिए यहां से उनको अपने संचालन में बड़ी मदद मिल सकती है. इसके अलावा, मुरीदके और अन्य इलाकों में लश्कर के ठिकानों को फिर से बनाने के प्रयास भी तेज़ कर दिए गए हैं. ऑपरेशन सिंदूर के दौरान हुए नुक़सान के बावजूद, ऐसा लग रहा है कि लश्कर अपने लड़ाकों और ढांचों को अस्थायी रूप से बहावलपुर के ‘मरकज़ अक्सा’ और कसूर के ‘मरकज़ यरमौक’ जैसे केंद्रों पर तैयार कर रहा है, ताकि उसके ट्रैनिंग कैंप पर असर न पड़े. इसी तरह, जैश ने भी अपने बड़े-बड़े प्रशिक्षण शिविर बंद करके उसे अलग-अलग इलाकों में छोटे-छोटे ठिकानों पर शिफ्ट कर दिया है, ताकि वे आसानी से पहचान में न आ सकें.
भारत की सुरक्षा एजेंसियों का कहना है कि लश्कर भारतीय सीमा से दूर निचले दीर में अफ़गान सीमा के पास एक नया ट्रेनिंग कैंप बना रहा है जिसका नाम ‘मरकज़ जिहाद-ए-अक्सा’ है. इसे बनाने में वह काफ़ी ख़र्च कर रहा है.
अन्य रिपोर्टों से यह भी पता चला है कि लश्कर के प्रवक्ता ऑपरेशन सिंदूर के दौरान हुए नुक़सान और पुनर्निर्माण के दावों को स्वीकार कर रहे हैं. मीडिया रिपोर्ट बताती हैं कि पाकिस्तानी एजेंसियों की मदद से लश्कर मुरीदके में अपना मुख्यालय फिर से बना रहा है. मुरीदके के क्षतिग्रस्त ढांचों को गिराने का काम अगस्त के मध्य में शुरू हुआ था, जो सितंबर की शुरुआत तक पूरा हो गया. इसके बाद उसे फिर से बनाया जा रहा है. रिपोर्टों से पता चलता है कि लश्कर 5 फरवरी, 2026 को इसका उद्घाटन कर सकता है क्योंकि यह उसके लिए कश्मीर के प्रति एकजुटता दिखाने का दिन है और इस मौके के फ़ायदा उठाकर वह अपना दुष्प्रचार बढ़ा सकता है.
पाकिस्तानी हुक्मरानों ने लश्कर व जैश, दोनों को पुनर्निर्माण के लिए आर्थिक मदद देने का वायदा किया है और ऐसी ख़बरें हैं कि उसने लश्कर को शुरुआती चार करोड़ पाकिस्तानी रुपये भी दिए हैं. यह गुट अन्य कामों के नाम पर भी धन जुटा रहा है, जैसे- बाढ़ राहत. लश्कर ऑफ़लाइन और ऑनलाइन (ईज़ीपैसा, जैज़कैश, सदापे, पेओनियर जैसे डिजिटल मंचों से), दोनों तरीकों का इस्तेमाल कर रहा है. वह अपने लड़ाकों को राहत-काम में जुटा कार्यकर्ता बताता है और उगाही के पैसों का इस्तेमाल अपने क्षतिग्रस्त अड्डों को बनाने में कर रहा है. ऐसे भी कुछ शुरुआती सबूत मिले हैं जो बताते हैं कि लश्कर के आतंकियों और पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान की आपस में मिलीभगत है और पाकिस्तानी रेंजर्स व अधिकारियों के साथ मिलकर ये आतंकी अपने ‘राहत-काम’ चला रहे हैं.
पाकिस्तानी हुक्मरानों ने लश्कर व जैश, दोनों को पुनर्निर्माण के लिए आर्थिक मदद देने का वायदा किया है और ऐसी ख़बरें हैं कि उसने लश्कर को शुरुआती चार करोड़ पाकिस्तानी रुपये भी दिए हैं.
इसी तरह रिपोर्ट यह भी है कि बहावलपुर के मुख्यालय ‘मरकज़ सुभान अल्लाह’ के ख़त्म होने के बाद जैश भी अपने बुनियादी ढांचों को फिर से खड़ा करने के लिए धन उगाह रहा है. उसकी योजना पूरे पाकिस्तान में ऐसे 313 मरकज़ बनाने की है, जिसके लिए वह 3.91 अरब पाकिस्तानी रुपये (लगभग 14 करोड़ अमेरिकी डॉलर) जुटाना चाहता है. जैश इन पैसों को जुटाने और जांच से बचने के लिए ईज़ीपैसा व सदापे जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का उपयोग कर रहा है. इसके अलावा, रिपोर्ट यह भी कहती हैं कि बहावलपुर अड्डे को हुए नुक़सान के बावजूद जैश ने कुछ प्रशिक्षण केंद्र फिर से खोले हैं जिनमें बहावलपुर के मदरसे का स्विमिंग पुल भी शामिल हैं जिसका इस्तेमाल वह प्रशिक्षण देने के लिए करता था.
सीमा पार हमलों से नुक़सान की आशंका को कम करने के लिए, लश्कर अपने प्रशिक्षण व परिसंचालन केंद्र ज्ञात स्थानों से हटाकर सुदूर अफ़गान सीमा क्षेत्रों में बना रहा है. ऑपरेशन सिंदूर के बाद प्रशिक्षकों व लड़ाकों की ट्रेनिंग फिर से शुरू कर दी गई है और उन्हें नई जगहों पर रखा जा रहा है.
8 नवंबर, 2025 को एक नए ऑनलाइन जिहादी पाठ्यक्रम के शुरुआत का भी एलान किया, जिसका नाम है- ‘तुफ़त-अल-मुमिनात’.
ऐसी भी ख़बरें हैं कि नियंत्रण रेखा (LoC) के पास आतंकी प्रशिक्षण शिविर और लॉन्च पैड फिर से तैयार किए जा रहे हैं, जिनमें लश्कर और जैश, दोनों के ठिकाने शामिल हैं. ये नए शिविर पहले की तुलना में छोटे और अलग-अलग जगहों पर तैयार किए गए हैं, जिस कारण इनका पता लगाना और इनको ख़त्म करना कठिन हो सकता है.
हाल-फिलहाल के वीडियो बताते हैं कि लश्कर लगातार आतंकियों की भर्ती कर रहा है और अपनी कट्टरवादी सोच का प्रसार कर रहा है. वह महिलाओं और परिवारों के बीच भी जिहादी प्रचार कर रहा है, ताकि उसे समाज में मान्यता मिल सके. कुछ समय तक शांत रहने के बाद, जैश भी धीरे-धीरे सोशल मीडिया पर जिहाद फैला रहा है और संबंधित मदरसों के जरिये भर्तियां करने लगा है. हाल ही में बहावलपुर, कराची, मुज़फ़्फ़राबाद, कोटली, हरिपुर और मनसेहरा जैसे इलाकों में नई भर्ती की ख़बरें आई हैं.
जैश ने 8 नवंबर, 2025 को एक नए ऑनलाइन जिहादी पाठ्यक्रम के शुरुआत का भी एलान किया, जिसका नाम है- ‘तुफ़त-अल-मुमिनात’. इसका मक़सद अक्टूबर, 2025 में गठित महिला विंग जमात-उल-मुमिनात के लिए महिलाओं की भर्ती करना है. इस विंग का नेतृत्व जैश प्रमुख मसूद अज़हर की बहन सादिया अज़हर कर रही है. इस विंग के शूरा में मसूद अज़हर की दूसरी बहन साफिया अज़हर और पुलवामा आतंकी हमले, जिसे भारतीय सेना ने बेअसर कर दिया था, के मास्टरमाइंड उमर फ़ारूक की पत्नी अफ़रीरा फ़ारूक भी हैं. यह कोर्स रोज 40 मिनट तक चलाया जाएगा, जिसमें जैश लीडरों के परिवारों की महिलाएं जिहाद और मज़हबी फ़र्ज़ सिखाएंगी. यह कोर्स करने वाली हर महिला को 500 पाकिस्तानी रुपये देने होंगे, जो डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से वसूला जाएगा. मसूद अज़हर ने, जिसने 27 सितंबर, 2025 को बहावलपुर के अपने भाषण में दान की अपील की थी, अब इस कोर्स के जरिये अपने अभियान को ऑनलाइन आगे बढ़ाया है. 19 अक्टूबर, 2025 को जैश ने PoK के रावलकोट में ‘दुख़्तरान-ए-इस्लाम’ नाम से एक कार्यक्रम आयोजित किया था, जिसका मक़सद महिलाओं को संगठन की ओर आकर्षित करना था. हालांकि, ऐसे सबूत नहीं मिले हैं, जो बताते हों कि इस आतंकी गुट में महिलाओं को सक्रिय भूमिका (संचालन संबंधी) दी जाने लगी है.
ऑपरेशन सिंदूर के बाद, लश्कर ने दुष्प्रचार करने वाले कुछ वीडियो भी जारी किए, जिनमें उसने कुछ मामलों में नुक़सान होने की बात मानी है, साथ ही, बदला लेने और कौम की ‘बेहतरी’ के लिए ‘शहादत’ देने की कहानी फिर से सुनाई है. लश्कर और जैश भारत-विरोधी दुष्प्रचार तेज़ी से करने लगे हैं और अपने जिहादी विचारों के प्रसार में व समर्थकों की भर्ती के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल कर रहे हैं.
संकेत ऐसे भी हैं कि जम्मू-कश्मीर में चल रहे पाकिस्तान के छद्म युद्ध का नया केंद्र ख़ैबर पख़्तूनख़्वा बन रहा है.
कुछ समय की शांति के बाद, लश्कर ने धीरे-धीरे रैलियों का आयोजन भी शुरू कर दिया है, जिसका उद्देश्य लड़ाकों की भर्ती करना है. लश्कर की योजना 9 नवंबर, 2025 को लाहौर के मीनार-ए-पाकिस्तान में रैली करने की है, जो ऑपरेशन सिंदूर के बाद उसकी पहली बड़ी रैली होगी. इस रैली का प्रचार करने के लिए हाफ़िज अब्दुल रऊफ और पहलगाम हमले का मास्टरमाइंड सैफ़ुल्लाह कसूर जैसे बड़े आतंकियों का इस्तेमाल किया जा रहा है. लश्कर का मुखौटा संगठन पाकिस्तान मरकज़-ए-मुस्लिम यह रैली आयोजित कर रहा है, जिसमें लश्कर प्रमुख और मोस्ट वांटेड आतंकी हाफ़िज सईद का संदेश उसका बेटा तल्हा सईद पढ़ सकता है.
ऑपरेशन सिंदूर से पाकिस्तान को बड़ी आर्थिक चोट लगी है और लश्कर-ए-तैयबा व जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों के ढांचों को कुछ हद तक ख़त्म कर दिया गया है, लेकिन इन गुटों के फिर से खड़े होने की आशंका ख़त्म नहीं हो सकी है. अब तक जो सुबूत मिले हैं, वे यही बताते हैं कि इन्होंने अपना ठिकाना बदल लिया है और ये नए सिरे से निर्माण-कार्यों में जुटे हैं. आशंका यही है कि कुछ समय के बाद PoK और ख़ैबर पख़्तूनख़्वा के अंदरूनी इलाकों में इनका विस्तार हो सकता है, जिस कारण इनकी पहचान कठिन हो सकती है. इतना ही नहीं, ये गुट अब एक जगह बड़े अड्डे बनाने के बजाय अलग-अलग जगहों पर छोटे-छोटे शिविर बनाने पर ज़ोर दे रहे हैं. गुपचुप भर्ती करना और ऑनलाइन जिहादी प्रचार करना इनकी नई रणनीति है. ये अपने प्रमुख आतंकियों या यूनीटों को दूरदराज़ के इलाकों में भेज रहे हैं, ख़ास तौर से अफ़गान सीमा के करीब. संकेत ऐसे भी हैं कि जम्मू-कश्मीर में चल रहे पाकिस्तान के छद्म युद्ध का नया केंद्र ख़ैबर पख़्तूनख़्वा बन रहा है. आतंकवाद-रोधी नज़रिये से देखें, तो चिंता की कुछ बड़ी बातें हैं, जैसे- आतंकियों की क्षमता फिर से बढ़ना, ख़ैबर पख़्तूनख़्वा सहित कई इलाकों में अलग-अलग शिविरों का बनना, प्रशिक्षण ढांचे का खड़ा होना और आतंकियों द्वारा ऐसे माध्यमों से फंड जुटाना, जिन पर कम निगरानी हो सके.
यह सही है कि ऑपरेशन सिंदूर ने इनके कामकाज को प्रभावित किया है और पाकिस्तान के लिए ख़र्च बढ़ा दिए हैं, लेकिन आतंकी संगठन पहले की तरह फिर से सक्रिय होने लगे हैं और नई परिस्थितियों के अनुसार खुद को ढालने लगे हैं. साफ़ है, सटीक हमलों में सफलता मिलने मात्र से हमें रणनीतिक बढ़त हासिल नहीं हो जाती. लश्कर और जैश जैसे गुटों ने अपना ठिकाना बदलकर और नए सिरे से खुद को जीवित करके अपनी क्षमता दिखाई है. यह पूरा घटनाक्रम संकेत है कि भारत-विरोधी आतंकी ढांचे को फिर से खड़ा करने में पाकिस्तान की खुफ़िया एजेंसी आईएसआई सक्रिय रूप से शामिल है. इसी कारण लग रहा है कि लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद की फिर से सक्रिय होने की यह क्षमता भारत के सुरक्षा बलों की परीक्षा ले सकती है.
(कंचन लक्ष्मण दिल्ली के सुरक्षा विश्लेषक हैं. उन्हें आतंकवाद, कट्टरपंथ, वामपंथी उग्रवाद और आतंरिक सुरक्षा जैसे विषय़ों में विशेषज्ञता हासिल है)
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Kanchan Lakshman is a Delhi-based security analyst. His area of specialisation includes terrorism, radicalisation, Left Wing Extremism & internal security. ...
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