Author : Soumya Bhowmick

Published on May 28, 2022 Updated 16 Hours ago

अचानक ऑर्गेनिक खेती की तरफ़ बदलाव उस आख़िरी झटके की तरह था जिसने श्रीलंका के मौजूदा आर्थिक संकट में योगदान दिया.

ऑर्गेनिक खेती को लेकर श्रीलंका से मिले सबक़
ये लेख श्रीलंका में बढ़ता संकट सीरीज़ का हिस्सा है. 

श्रीलंका के अभूतपूर्व आर्थिक संकट की ख़बरें मुख्यधारा के मीडिया, अकादमिक क्षेत्र, नीतिगत दायरों के साथ-साथ वैश्विक राजनीतिक व्यवस्था में छाई हुई हैं. पिछले दिनों प्रधानमंत्री के पद से महिंदा राजपक्षे के इस्तीफ़े से लेकर नये प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे की नियुक्ति तक इस द्वीपीय देश में तकरीबन हर रोज़ हालात बदल रहे हैं. इसके कारण इस समस्या के राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव पर नज़र रखना चुनौतीपूर्ण काम हो गया है. 

बिना सोचे-समझे श्रीलंका के द्वारा ऑर्गेनिक खेती की तरफ़ बदलाव को ताबूत में आख़िरी कील की तरह घोषित किया जा सकता है जिसने आर्थिक आपदाओं की श्रृंखला की तरफ़ देश को बढ़ाया और जो कृषि नीति के इतिहास, ख़ास तौर पर विकासशील देशों के लिए, में एक सबक़ बना रहेगा.

श्रीलंका में आर्थिक चुनौतियों का एक लंबा इतिहास रहा है. इन चुनौतियों में 26 साल लंबे गृह युद्ध का प्रभाव, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से एक के बाद एक कर्ज़, वित्तीय घाटे को दूर करने की कोशिश के तहत मुद्रा की आपूर्ति में ज़रूरत से ज़्यादा बढ़ोतरी (श्रीलंका की अर्थव्यवस्था में मुद्रा की आपूर्ति पिछले चार वर्षों में लगभग 42 प्रतिशत बढ़ गई है), और टैक्स में भारी कमी, जिसे महामारी के हमले से कुछ महीने पहले लागू किया गया था, शामिल हैं. इनके अलावा दूसरे देशों जैसे कि चीन और जापान से लिए गए कर्ज़ में बढ़ोतरी शामिल है. लेकिन बिना सोचे-समझे श्रीलंका के द्वारा ऑर्गेनिक खेती की तरफ़ बदलाव को ताबूत में आख़िरी कील की तरह घोषित किया जा सकता है जिसने आर्थिक आपदाओं की श्रृंखला की तरफ़ देश को बढ़ाया और जो कृषि नीति के इतिहास, ख़ास तौर पर विकासशील देशों के लिए, में एक सबक़ बना रहेगा. 

2019 के राष्ट्रपति चुनाव के बाद नवनियुक्त राष्ट्रपति गोटाबया राजपक्षे ने श्रीलंका में पूरी तरह से ऑर्गेनिक खेती की तरफ़ बदलाव के लिए 10 साल की एक परिकल्पना पेश की. न्यूज़18 की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ राष्ट्रपति गोटाबया राजपक्षे की ये परिकल्पना एक भारतीय पर्यावरणविद और आधुनिक खेती की विरोधी कार्यकर्ता वंदना शिवा और उनके संगठन नवदान्य इंटरनेशनल की सलाह पर आधारित थी. इसके बाद श्रीलंका की सरकार ने अप्रैल 2021 में कृषि में इस्तेमाल होने वाले रसायन के आयात पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने का फ़ैसला लिया ताकि खेती में रसायनिक उर्वरक और कीटनाशक के इस्तेमाल की वजह से सेहत पर पड़ने वाले असर को कम किया जा सके और इसके साथ-साथ पर्यावरण के अनुकूल सतत कृषि प्रणाली को बढ़ावा दिया जा सके. ये उस वक़्त अलग-अलग सामानों के आयात की वजह से तेज़ी से कम होते श्रीलंका के विदेशी मुद्रा के भंडार को नियंत्रण में रखने का एक उपाय भी था. 

अचानक परिवर्तन एक टाइम बम की तरह रहा

वैसे तो ऑर्गेनिक खेती की तरफ बदलाव पर्यावरण के लिहाज से आगे की तरफ़ एक सतत क़दम लग रहा था लेकिन अचानक परिवर्तन एक टाइम बम की तरह रहा जो फटने का इंतज़ार कर रहा था. चूंकि अनाज के उत्पादन की नई पद्धति कम उपज के साथ-साथ ज़्यादा खर्चीली लग रही थी तो इस अभूतपूर्व कृषि नीति की वजह से श्रीलंका की अर्थव्यवस्था पर गंभीर असर पड़ने लगा. चावल के उत्पादन में 20 प्रतिशत की कमी हो गई, श्रीलंका की कृषि भूमि का लगभग 33 प्रतिशत क्षेत्र बिना इस्तेमाल के रह गया और क़रीब सात महीनों में चावल की क़ीमत में 50 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो गई. इसके कारण श्रीलंका ने चावल के उत्पादन में जो आत्मनिर्भरता हासिल की थी, उसमें रुकावट आ गई और उसे म्यांमार और चीन जैसे देशों से चावल का आयात करना पड़ा ताकि देश में आने वाले खाद्य संकट को टाला जा सके. 

संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य की रूप-रेखा के मामले में इस बात को लेकर कोई संदेह नहीं है कि ऑर्गेनिक खेती को लेकर बिना सोची-समझी नीतियां एसडीजी 13 को आगे बढ़ाने में मदद करेंगी लेकिन एसडीजी 8 को प्राप्त करने पर बड़ा बोझ डालेंगी.

2020-2021 के दौरान श्रीलंका का आयात प्रदर्शन नीचे की सारिणी में देखा जा सकता है जिससे पता चलता है कि अलग-अलग सामानों के आयात के खर्च में तेज़ बढ़ोतरी दर्ज की गई थी. हालात इतने ख़राब हो गए कि श्रीलंका को चावल, चीनी और अन्य कई सामानों का आयात करना पड़ा जिनमें कच्चा माल भी शामिल है. चाय उद्योग, जो कि विदेशी मुद्रा जुटाने का एक बड़ा ज़रिया था, उसे भी 425 मिलियन अमेरिकी डॉलर का नुक़सान उठाना पड़ा जिसकी वजह से श्रीलंका में विदेशी मुद्रा की स्थिति और भी ख़राब हो गई. 

सारिणी: 2020-2021 में श्रीलंका का आयात प्रदर्शन (मिलियन अमेरिकी डॉलर में) 

  स्रोत: सेंट्रल बैंक ऑफ श्रीलंका 

विदेशी मुद्रा का संकट कुछ अन्य कारणों से और बढ़ा जो दुर्भाग्यवश उसी वक़्त सामने आए और आर्थिक बहाली के लिए कोई समय नहीं मिल पाया. अर्थव्यवस्था को विदेशी मुद्रा भंडार का नुक़सान इस्लामिक आतंकी गुटों के द्वारा एक साथ आत्मघाती बम धमाकों की वजह से हुआ क्योंकि बम धमाके के बाद पर्यटन सेक्टर पर काफ़ी असर पड़ा. ये महामारी से पहले का समय था. श्रीलंका का पर्यटन सेक्टर उसकी जीडीपी में क़रीब 10 प्रतिशत का योगदान देता था और विदेशी मुद्रा अर्जित करने के मामले में तीसरा सबसे बड़ा क्षेत्र था. लेकिन बम धमाकों और महामारी की वजह से पर्यटन सेक्टर की कुल कमाई में 2019 के मुक़ाबले 2020 में 81 प्रतिशत की नाटकीय गिरावट दर्ज की गई. रूस और यूक्रेन के बीच मौजूदा युद्ध की वजह से दुनिया भर में सप्लाई चेन के मुद्दे से हालात और भी ख़राब हो गए. 

श्रीलंका का संकट और सबक़ 

वास्तव में श्रीलंका का संकट विश्व के द्वारा वर्तमान समय में विकासशील नीतियों का पालन करने के क्षेत्र में हमें दो महत्वपूर्ण सबक़ सिखाता है. पहला सबक ये है कि समकालीन सतत विकास के एजेंडे की अपनी कमियां हैं, जहां विकास का एक पहलू अक्सर दूसरे पहलू पर नकारात्मक असर डालता है. उदाहरण के तौर पर, संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य की रूप-रेखा के मामले में इस बात को लेकर कोई संदेह नहीं है कि ऑर्गेनिक खेती को लेकर बिना सोची-समझी नीतियां एसडीजी 13 (जलवायु पर क़दम) को आगे बढ़ाने में मदद करेंगी लेकिन एसडीजी 8 (उपयुक्त काम और आर्थिक विकास) को प्राप्त करने पर बड़ा बोझ डालेंगी. श्रीलंका के संकट से इसका पता चलता है. एसडीजी की रूप-रेखा कुछ आंतरिक चुनौतियों के साथ आती है जो न केवल सीधे नीतिगत क़दम को शुरू करना मुश्किल बनाती हैं बल्कि उनके नतीजों को समझना भी. 

दूसरा सबक़ ये है कि श्रीलंका इस बात का स्पष्ट उदाहरण है कि सतत विकास को लेकर हर स्थिति में एक ही तरह का दृष्टिकोण समावेशी विकास के लिए नुक़सानदेह है. विकसित देशों की तुलना में विकासशील देशों में हर नीति एक जैसी रफ़्तार से नहीं चलाई जा सकती है. इसकी मुख्य वजह अर्थव्यवस्था की बुनियाद में संसाधनों की कमी है. उदाहरण के लिए, जब श्रीलंका में ऑर्गेनिक खेती की शुरुआत की गई तो ये अचानक बदलाव बेहद परेशान करने वाला था. इसकी वजह दूसरी बातों के अलावा खेती के बुनियादी ढांचे की दिक़्क़त, आयातित कृषि रसायन पर निर्भरता, आधुनिक तकनीकों तक पहुंच नहीं होना, और कृषि को लेकर निरक्षरता थी. ये बदलाव श्रीलंका की तुलना में किसी विकसित देश में बेशक आसान (अगर पूरी तरह बिना दिक़्क़त के नहीं तो) होता. 

अब ये तो समय ही बताएगा कि अगले कुछ महीनों में श्रीलंका किस तरह आर्थिक बहाली की तरफ़ बढ़ता है और उससे भी बढ़कर ये कि ऑर्गेनिक खेती को लेकर श्रीलंका ने जो सबक़ सीखा है उसे वो महामारी से उबरने के बाद के चरण में नीतिगत फ़ैसलों के मामले में पूरे दक्षिण एशिया के पड़ोसियों को किस तरह बताता है. 

नवंबर 2021 में कम उत्पादकता, बढ़ती महंगाई, और इसकी वजह से ऑर्गेनिक खेती के ख़िलाफ़ लोगों के लगातार प्रदर्शन के कारण उद्योगों की नाराज़गी के बाद सरकार ने पाबंदी हटा ली. लेकिन इस क़दम के बावजूद श्रीलंका में हर सामान की क़ीमत में तेज़ बढ़ोतरी दर्ज की गई क्योंकि विदेशी मुद्रा में कमी की वजह से किसानों को आयातित उर्वरक नहीं मिल पाया. ऐसी परिस्थिति में श्रीलंका के सबसे नज़दीकी पड़ोसी भारत ने तुरंत 100 टन नैनो नाइट्रोजन लिक्विड फर्टिलाइज़र की आपूर्ति की. लेकिन जैसा कि अब दिख रहा है ऑर्गेनिक खेती को लेकर फ़रमान हटाने का फ़ैसला श्रीलंका को इस बदइंतज़ामी से बाहर निकालने में बहुत मददगार साबित नहीं हुआ. अब ये तो समय ही बताएगा कि अगले कुछ महीनों में श्रीलंका किस तरह आर्थिक बहाली की तरफ़ बढ़ता है और उससे भी बढ़कर ये कि ऑर्गेनिक खेती को लेकर श्रीलंका ने जो सबक़ सीखा है उसे वो महामारी से उबरने के बाद के चरण में नीतिगत फ़ैसलों के मामले में पूरे दक्षिण एशिया के पड़ोसियों को किस तरह बताता है. 

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