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आतंकवाद के ख़िलाफ़ संघर्ष में प्राथमिकता, दहशतगर्दों को असैन्य कारोबारी तकनीक का बेज़ा इस्तेमाल करने से रोकने की होनी चाहिए.
साल 2020 में जब भारत और चीन के सैनिकों के बीच हाथा-पाई और गुत्थम-गुत्था वाली लड़ाई हुई थी, तो लद्दाख की जिस गलवान घाटी में ये संघर्ष हुआ था, उसका सटीक ठिकाना पता करने को लेकर मीडिया में काफ़ी दिलचस्पी दिखी थी. इस दिलचस्पी की वजह से पहली बार भारत के मीडिया ने इस संघर्ष की कवरेज के लिए सब्सक्रिप्शन पर आधारित अंतरिक्ष की कारोबारी तस्वीरों का इस्तेमाल किया था. अंतरिक्ष से ली गई तस्वीरें कभी रणनीतिक सरकारी एजेंसियों तक ही सीमित रहा करती थीं. लेकिन, अब जियोस्पैटियल डेटासेट के लोकतांत्रीकरण की वजह से ये तस्वीरें आम लोगों और कारोबारियों दोनों को आसानी से उपलब्ध हो रही हैं. इससे असैन्य क्षेत्र के तमाम मामलों में योजना बनाने और प्रबंधन में मदद मिल रही है. हालांकि, इसी लोकतांत्रिक पहुंच वाली प्रक्रिया ने जियोस्पैटियल या भू-स्थानिक डेटा तक आतंकवादी ताक़तों, नॉन स्टेट एक्टर्स और मोहरों की पहुंच भी आसानी से बना दी है, जिससे उनको अपनी कुत्सित गतिविधियां चलाने में मदद मिल रही है.
अब ये जानकारी सामने आई है कि पहलगाम में हमला करने वाले आतंकवादियों ने बैसारन के चरागाह का सटीक पता लगाने के लिए शायद कारोबारी जियोस्पैटियल तस्वीरों के ज़रिए खोज-बीन की थी. इन जियोस्पैटियल तस्वीरों को पाकिस्तानी अमेरिकी संस्था ने हासिल किया था, जिसके संस्थापक का अमेरिका में आपराधिक और परमाणु तकनीक के प्रसार का पुराना रिकॉर्ड रहा है.
अब ये जानकारी सामने आई है कि पहलगाम में हमला करने वाले आतंकवादियों ने बैसारन के चरागाह का सटीक पता लगाने के लिए शायद कारोबारी जियोस्पैटियल तस्वीरों के ज़रिए खोज-बीन की थी. इन जियोस्पैटियल तस्वीरों को पाकिस्तानी अमेरिकी संस्था ने हासिल किया था, जिसके संस्थापक का अमेरिका में आपराधिक और परमाणु तकनीक के प्रसार का पुराना रिकॉर्ड रहा है. आशंका है कि इन तस्वीरों को संचार के वैकल्पिक माध्यमों के ज़रिए ज़मीन पर सक्रिय आतंकवादी समूहों के साथ साझा किया गया था. ओपेन सोर्स से मिली जानकारियां बताती हैं कि ये और आतंकवादी समूहों से जुड़ी दूसरी संस्थाओं ने पहलगाम के ठिकाने का सटीक पता लगाने के लिए जियोस्पैटियल डेटा उपलब्ध कराने वाली अमेरिकी, यूरोपीय और चीन की कंपनियों के संसाधनों का इस्तेमाल जनवरी 2025 से करना शुरू किया था और पहलगाम के वीभत्स हमले तक ये सिलसिला जारी रहा था. कारोबारी संगठनों के पर्दे के पीछे छुपकर अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठनों द्वारा जियोस्पैटियल तस्वीरों तक पहुंच बनाना और उन्हें ज़मीन पर सक्रिय आतंकवादियों तक पहुंचाने की बेगुनाह नागरिकों की हत्या में बहुत बड़ी भूमिका मानी जा रही है. अगर इस पर लगाम नहीं लगाई गई, तो ये घटना एक ख़तरनाक मिसाल क़ायम कर सकती है, जिसके बाद हर आतंकवादी घटना से पहले दहशतगर्द संगठन जियोस्पैटियल डेटा के ज़रिए सुराग लगाने की आदत डाल लेंगे.
अंतरिक्ष में धरती की निचली कक्षा में चक्कर लगा रहे बड़े अर्थ ऑब्ज़रवेशन सैटेलाइट कारोबारी और रणनीतिक संस्थागत सब्सक्राइबर्स को एकदम सटीक जियोस्पैटियल जानकारियां उपलब्ध कराते हैं. दोनों के बीच प्रमुख अंतर उनको मिलने वाली तस्वीरों का रिज़ोल्यूशन होता है; कारोबारी संगठनों को कम रिज़ोल्यूशन वाली तस्वीरें दी जाती हैं. वहीं रणनीतिक संगठनों को बेहतर रिज़ोल्यूशन वाली तस्वीरें दी जाती हैं. हालांकि, रिज़ोल्यूशन के इस अंतर को हटा दें, तो अगर इन आंकड़ों को आतंकवादी गतिविधियों के लिए दुरुपयोग किया जाता है, तब यूज़र द्वारा ट्रैकिंग की गतिविधियां बेहद अहम हो जाती हैं. सरकारी संगठनों के भीतर दुनिया के नीति निर्माताओं को ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए जिससे आतंकवादियों के मददगार उन सामान्य कारोबारी संगठनों तक ये जियोस्पैटियल आंकड़े न पहुंच सकें जो ऊपर से किसी सामान्य कारोबारी संस्था सरीखे दिखते हैं.
राष्ट्रीय द्विपक्षीय और बहुपक्षीय स्तरों पर दो व्यवस्थाओं पर फौरी तौर पर तवज्जो देने की ज़रूरत है: ‘जियोस्पैटियल शटर कंट्रोल’ और ‘जियोस्पैटियल यूज़र रेग्यूलेशन’.
पहला, जियोस्पैटियल शटर कंट्रोल है. इसके तहत अंतरिक्ष की सारी अंतरराष्ट्रीय तस्वीरों को सभी देशों के भीतर उन सभी अहम भौगोलोकि क्षेत्रों को छुपा देना होगा, जो सैन्य ठिकाने या फिर अहम सरकारी इमारतें हो सकती हैं. शटर कंट्रोल की ये व्यवस्था सभी निजी एंड यूज़र्स पर भी लागू होनी चाहिए जो कम रिज़ोल्यूशन की तस्वीरों का इस्तेमाल करते हैं. ये तस्वीरें केवल उन सामरिक संगठनों को हासिल होनी चाहिए जो हाई रिज़ोल्यूशन की तस्वीरों का उपयोग करते हैं. ऐसी पाबंदियों को सामरिक यूज़र्स पर भी लागू होना चाहिए, ख़ास तौर से उन देशों में जो निर्यात नियंत्रण वाली फ़ेहरिस्त का हिस्सा हैं और वो भी जिन्हें फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स की ग्रे या फिर ब्लैक लिस्ट में शामिल किया गया है.
एक राजनीतिक क़दम के तौर पर हाल ही में जियोस्पैटियल शटर कंट्रोल का उदाहरण तब देखने को मिला था, जब अमेरिकी सरकार ने यूक्रेन की सरकार के लिए इन आंकड़ों तक पहुंच को सीमित कर दिया था.
एक राजनीतिक क़दम के तौर पर हाल ही में जियोस्पैटियल शटर कंट्रोल का उदाहरण तब देखने को मिला था, जब अमेरिकी सरकार ने यूक्रेन की सरकार के लिए इन आंकड़ों तक पहुंच को सीमित कर दिया था. अपना दूसरा कार्यकाल शुरू होने के कुछ हफ़्तों के भीतर ही अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने अपने घोषित वादों के मुताबिक़ यूक्रेन और रूस के बीच शांति समझौता कराने पर ज़ोर देना शुरू कर दिया था. यूक्रेन की सरकार पर दबाव बनाने के लिए अमेरिका की नेशनल जियोस्पैटियल एजेंसी को आदेश दिया गया कि वो अमेरिकी सरकार की ग्लोबल एनहैंस्ड जियोइंट डेलिवरी सिस्टम (GEGD) के तहत कारोबारी सैटेलाइट तस्वीरों तक यूक्रेन की सरकार की पहुंच ख़त्म कर दे. GEGD की व्यवस्था सैटेलाइट इमेज देने वाली कंपनी Maxar और इसी तरह की सेवाएं देने वाली दूसरी कंपनियां जैसे कि कैपेला स्पेस, आईसआई, ब्लैकस्काई और प्लैनेट मिलकर चलाती हैं. यूक्रेन के लिए ये पहुंच बहुत जल्दी फिर बहाल कर दी गई थी. हालांकि, यूक्रेन को अमेरिका का जियोस्पैटियल डेटा मिलने पर लगे प्रतिबंध के इन्हीं कुछ दिनों के दौरान फ्रांस की स्पेस इमेजरी कंपनी Safran.AI ने यूक्रेन की सरकार से संपर्क किया और GEGD के बदले में फ्रांस के जियोस्पैटियल सैटेलाइट डेटा साझा करने का प्रस्ताव रखा था. इस पूरे मामले ने ये साबित किया था कि जियोस्पैटियल शटर कंट्रोल को राजनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है. इससे बदनाम सरकारों और संगठनों जैसे कि पाकिस्तानी फ़ौज और उनके मोहरा आतंकवादी संगठनों को ऐसे आंकड़े हासिल करने से रोका जा सकता है.
दूसरी व्यवस्था जिस पर विचार किया जा सकता है, वो जियोस्पैटियल यूज़र रेग्यूलेशन है. जनवरी से अप्रैल 2025 के दौरा पहलगाम की तस्वीरों पर कौन नज़र डाल रहा था? इसमें शक की सुई सुरक्षा एजेंसियों और कारोबारियों से लेकर बेगुनाह उत्साही लोगों और बदनीयत किरदारों तक जा सकती है. और, ऐसे सामरिक आंकड़े तक उनकी पहुंच को सीमित करना ज़रूरी है. इस मक़सद से जियोस्पैटियल तस्वीरें देने वाली कंपनियों के ऊपर ये शर्त लगानी चाहिए कि वो अपने सब्सक्राइबर्स के लिए अलग अलग तरह के आंकड़े तैयार करें और अनिवार्य रूप से अपने ग्राहक को जानने (KYC) की जांच पड़ताल नियमित रूप से करते रहें. KYC में उस उपकरण की जानकारी भी शामिल होनी चाहिए, जिसका इस्तेमाल करके कारोबारी तस्वीरें देखी गईं. इनके अलावा, सभी यूज़र्स द्वारा डाउनलोड की जाने वाली सेटैलाइट तस्वीरों की क्रिप्टोग्राफिक हैशिंग (एल्गोरिद्म पर आधारित टैगिंग) भी अनिवार्य होनी चाहिए.
जियोस्पैटियल शटर कंट्रोल और यूज़र रेग्यूलेशन को सिर्फ़ कूटनीतिक व्यवस्थाओं के ज़रिए ही लागू किया जा सकता है, और द्विपक्षीय एवं बहुपक्षीय तकनीकी राजनीतिक संवाद के दौरान फौरन इस पर भी चर्चा होनी चाहिए. भारत को निम्नलिखित क़दम उठाने पर भी विचार करना चाहिए:
आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध चला रहे भारत को, इस युद्ध में असैन्य कारोबारी तकनीक का आतंकवादियों द्वारा इस्तेमाल करने को प्रतिबंधित करना तमाम सरकारी संगठनों की प्राथमिकता होना चाहिए और इसे पर्याप्त वैश्विक समर्थन भी हासिल होगा.
सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों द्वारा आतंकवाद निरोधक गतिविधियों के लिए कई तरीक़ों से जियोस्पैटियल तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है, हालांकि, आतंकवादियों के जियोस्पैटियल तकनीक का उपयोग करने पर रोक लगाने के लिए दुनिया में कहीं भी बहुत व्यापक नीति लागू नहीं की गई है. इस मौक़े पर आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध चला रहे भारत को, इस युद्ध में असैन्य कारोबारी तकनीक का आतंकवादियों द्वारा इस्तेमाल करने को प्रतिबंधित करना तमाम सरकारी संगठनों की प्राथमिकता होना चाहिए और इसे पर्याप्त वैश्विक समर्थन भी हासिल होगा.
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Dr. Chaitanya Giri is a Fellow at ORF’s Centre for Security, Strategy and Technology. His work focuses on India’s space ecosystem and its interlinkages with ...
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