Author : Saranya

Published on Sep 23, 2021 Updated 0 Hours ago

अमेरिका, यूरोपीय संघ, भारत, ऑस्ट्रेलिया और ब्राज़ील जैसे लोकतांत्रिक समाजों में पिछले कुछ समय से बिग टेक को रेगुलेट करने की क़वायद चल  रही है.

चीन में बिग-टेक कंपनियों के ख़िलाफ़ कठोर कार्रवाई की पड़ताल

दुनिया में कोविड-19 महामारी फैलने के बाद से डिजिटल तकनीक की अहमियत काफी बढ़ गई है. अब मेडिकल कंसल्टेशन, शिक्षा, पेशेवर कामकाज, ज़रूरी शॉपिंग, भुगतान, मनोरंजन आदि ऑनलाइन माध्यमों के ज़रिए होने लगे हैं. ज़ाहिर है कि आधुनिक जीवनशैली में समय की तंगी के चलते टेक्नोलॉजी की भूमिका उभरकर सामने आई है. ऐसे में कोई ताज्जुब की बात नहीं है कि दुनिया की सबसे क़ीमती या अहम टॉप 10 ब्रांडों में से 7 पर टेक्नोलॉजी सेक्टर से जुड़ी कंपनियों का क़ब्ज़ा है. हालांकि टेक्नोलॉजी  सेक्टर में बिजली की रफ़्तार  से नएनए आविष्कार हो  रहे  हैं, इसके बावजूद यहां कुछ मुट्ठी भर  बिग टेक कंपनियों का ही दबदबा बना हुआ है. दरअसल इन कंपनियों ने बेहद शुरुआती दौर में अपना कामकाज चालू किया था. छलबल हर तरह की नीति अपनाकर  इन्होंने अपना ऐसा रसूख़ बना  लिया है कि उपभोक्ता अपनी दैनिक ज़रूरतों और गतिविधियों के लिए अब काफ़ी हद तक इन्हीं के आसरे  हो गए  हैं

दुनिया भर के नीति-नियामक और राजनेता इन टेक कंपनियों के ‘तेज़ी से चलो  और क़ायदे तोड़ो’ वाले बिज़नेस  मॉडल को लेकर चिंतित हैं.

दुनिया भर के नीति-नियामक और राजनेता इन टेक कंपनियों के तेज़ी से चलो  और क़ायदे तोड़ो वाले बिज़नेस  मॉडल को लेकर चिंतित हैं. इन सबमें इस  बात को लेकर  आम सहमति  है कि बिग  टेक आंकड़ों की जमाख़ोरी करते हैं, सप्लायर्स का ग़लत फ़ायदा उठाते हैं, कामगारों का शोषण करते हैं और अपना एकाधिकार स्थापित करने की जुगत में लगे रहते हैं. लिहाज़ा दुनिया भर में उपभोक्ताओं के डेटा और निजता की सुरक्षा और मुक्त प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करने के लिए मज़बूत क़ायदेक़ानूनों की मांग उठने लगी है. अमेरिका, यूरोपीय संघ, भारत, ऑस्ट्रेलिया और ब्राज़ील जैसे लोकतांत्रिक समाजों में पिछले कुछ समय से बिग टेक को रेगुलेट करने की क़वायद चल  रही है. हालांकि हक़ीक़त यही है कि ये सभी इस सिलसिले में प्रभावी नीतियों के निर्माण को लेकर जद्दोजहद करते दिख रहे हैं. वहीं दूसरी ओर एकाधिकारवादी चीन ने एक ही झटके में और काफ़ी कम समय में और अपने टेक सेक्टर की काया ही पलट कर रख दी है. यहां ये याद रखना  ज़रूरी है कि चीन इंटरनेट की संप्रभुता के  विचार  का समर्थक है. चीन की कामयाबी और लोकतांत्रिक सत्ता वाले देशों की सापेक्षिक नाकामी के पीछे दोनों शासन प्रणालियों के बीच का बुनियादी अंतर काम कर रहा है. टेक कंपनियां उदारवादी  बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं को पसंद करती हैं क्योंकि वहां उन्हें मनमर्ज़ी से कामकाज चलाने की छूट मिली होती है. दूसरी ओर चीन राज्यसत्तावादी मॉडल या दूसरे शब्दों में राज्यसत्ता की अगुवाई वाले पूंजीवाद” का पक्षधर है. वैसे तो ये मॉडल भी अपनेआप में कार्यकुशल है लेकिन इसके मूल में सरकारी दिशानिर्देश और ऊपरी हिदायत वाली संस्कृति है

चीन का साइबरस्पेस क़ानून और नियामक संस्थाएं

आम लोगों में इंटरनेट की लोकप्रियता बढ़ने के काफ़ी पहले  से ही चीन के पास साइबरस्पेस पर  निगरानी रखने को लेकर कार्ययोजना मौजूद थी. इस योजना का नाम है गोल्डन शील्ड प्रोजेक्ट, जिसे ग्रेट फ़ायरवॉल  के नाम से भी जाना जाता है. सालों पहले चीन ने बड़ी तादाद में विदेशी टेक कंपनियों को अपने घरेलू डिजिटल संसार में प्रवेश करने से रोक  दिया था. ऐसे अनुकूल माहौल में चीन में घरेलू टेक कंपनियों ने दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की की. उनका आकार बढ़ता ही चला गया. बहरहाल अब चीन के मौजूदा निज़ाम में हालात बदल रहे हैं जिस साल शी जिनपिंग ने चीन की बागडोर संभाली उसी साल दूर तक फैले एनएसए सर्विलांस के मामले में व्हिसल ब्लोअर बने एडवर्ड स्नोडाउन का मसला  भी  सुर्ख़ियों में रहा था. सत्ता संभालने के एक साल बाद ही जिनपिंग ने साइबरस्पेस एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ़ चाइना (सीएसी) का गठन किया. सीएसी की पहली ही बैठक को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति शी ने कहा, “साइबर सुरक्षा सुनिश्चित किए  बिना राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की जा सकती और डिजिटलाइज़ेशन के बिना आधुनिकीकरण मुमकिन नहीं है.” आने वाले  सालों में शी ने चीन में टेक सेक्टर से जुड़े नियामक ढांचे को और मज़बूत बनाया. तबतक बिग  टेक के साथ मौजूदा टकराव  शुरू नहीं हुआ था. 2016 में साइबर  सुरक्षा क़ानून पारित किया गया. इसके तहत नेटवर्क ऑपरेटर्स पर  चीन के  भीतर ही डेटा संरक्षित  करने की बंदिश लगाई गई. इतना ही नहीं इस क़ानून के  ज़रिए चीनी अधिकारियों को किसी कंपनी के नेटवर्क ऑपरेशनों की औचक जांच पड़ताल  करने का भी अधिकार दिया गया.  2017 में नेशनल इंटेलिजेंस लॉ भी पारित किया गया. इसमें प्रावधान है कि कोई भी संगठन या नागरिक सरकार के ख़ुफ़िया तंत्र के कामकाज में क़ानून के हिसाब से सहायता और सहयोग करेगा.” इसी तरह जून 2021 में पारित डेटा सुरक्षा क़ानून में डेटा के इस्तेमाल को लेकर नियमक़ायदे बताए गए हैं. इसमें सरकार, उद्यमों, सामाजिक समूहों और ऑपरेटर्स की ज़िम्मेदारियां स्पष्ट की गई हैं. इन तमाम क़वायदों का लक्ष्य डेटा की सुरक्षा करना है. ये क़ानून 1 सितंबर 2021 से प्रभावी हो गया है इसी  तरह अगस्त 20 में निजी सूचना सुरक्षा क़ानून पास किया गया. इसके तहत डेटा संग्रह को लेकर व्यापक नियमक़ायदे सामने रखे गए. ऊपर बताए गए तमाम क़ानून मिलकर डेटा और सूचना सुरक्षा के  लिए एकजुट ढांचा बनाते हैं

सीएसी की पहली ही बैठक को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति शी ने कहा, “साइबर सुरक्षा सुनिश्चित किए  बिना राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की जा सकती और डिजिटलाइज़ेशन के बिना आधुनिकीकरण मुमकिन नहीं है.”

चीन में बिग टेक कंपनियों के ख़िलाफ़ हालिया कार्रवाई एकाधिकारवादी गतिविधियों की रोकथाम के लिए की जाने वाले एंटीट्रस्ट पड़तालों के दायरे में भी आती है. चीन में 2008 से ही एकाधिकार के ख़िलाफ़ क़ानून प्रभाव  में है. हालांकि टेक सेक्टर में इस क़ानून को 2018 से ही प्रभावी तौर पर अमल में लाया जा सका है. दरअसल उस साल स्टेट एडमिनिस्ट्रेशन फ़ॉर मार्केट रेगुलेशन (एसएएमआर) का गठन हुआ था. इस संस्था के निर्माण के बाद से ही एंटी ट्रस्ट जांच ने ज़ोर पकड़ी एसएएमआर और इसी तरह की दूसरी सुपर एजेंसियों का गठन स्टेट काउंसिल इंस्टीट्यूशनल रिफ़ॉर्म प्रोग्राम के  तहत किया गया. इसका मकसद विभिन्न निगरानी एजेंसियों के बीच मौजूद किसी भी  तरह की दरार को पाटना था (मिसाल के  तौर पर  पहले बाज़ार नियमन से जुड़ी गतिविधियां तीन अलगअलग मंत्रालयों  जनरल एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ़ क्वॉलिटी सुपरविज़न इंस्पेक्शन एंड क्वॉरंटीन (AQSIQ), चायना फ़ूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (सीएफ़डीए) और स्टेट एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ़ इंडस्ट्री एंड कॉमर्स (एसएआईसी)- के बीच  बंटी हुई थी. अब ये नया एडमिनिस्ट्रेशन इसे एक ही मंत्रालय में शामिल करता है. चायना बैंकिंग एंड इंश्योरेंस रेगुलेटरी कमीशन (सीबीआईआरसी) के गठन से बिना जांच पड़ताल के धड़ल्ले से चलने वाले फ़िनटेक कारोबारों पर भी नकेल कसी जा सकी है. पिछले साल  नवंबर में अधिकारियों ने एकाधिकार विरोधी क़ानून में संशोधनों का मसौदा जारी किया था. इन संशोधनों के इस साल प्रभाव में आने की उम्मीद है. नए नियमों के मुताबिक क़ानून का उल्लंघन किए जाने पर अब दोषी कंपनियों पर भारी जुर्माना लगाया जा  सकेगा. ये जुर्माना पिछले वित्त वर्ष में उस कंपनी  द्वारा कमाए गए कुल राजस्व का 10 प्रतिशत तक हो सकता है

चीन का  एकाधिकारवादी-विरोधी और एंटी-ट्रस्ट उपाय

एंट ग्रुप  के मेगा आईपीओ को ऐन मौके पर रोके  जाने के साथ ही चीन में टेक सेक्टर के ख़िलाफ़ बड़ी कार्रवाई की शुरुआत हो  गई. ग़ौरतलब है कि एंट ग्रुप  की स्थापना जैक मा  ने की थी. एंट ने एक बयान  जारी कर निवेशकों से माफ़ी मांगी और रेगुलेटरी मामलों को लेकर अधिकारियों के  साथ  सहयोग करने का वादा किया. अलीबाबा ने अपने सहयोगी  कंपनी के प्रति समर्थन  भी दोहराया. एसएएमआर  ने कुछ ही महीनों  बाद टेक कंपनियों के ख़िलाफ़ एंटी ट्रस्ट जांच भी  शुरू की. इन कंपनियों में टेंशेंट, बेडू डीडी चुशिंग और बाइटडांस द्वारा समर्थित फ़र्म शामिल  हैं. एकाधिकारविरोधी कानूनों के उल्लंघन के आरोपों में अलीबाबा  पर रिकॉर्ड 2.75 अरब अमेरिकी डॉलर का जुर्माना लगाया  गया. ब्लूमबर्ग की ख़बरों के मुताबिक चीन के अधिकारी फ़ूड डिलीवरी क्षेत्र की विशाल  कंपनी मेटुआन के ख़िलाफ़ एकाधिकारविरोधी प्रावधानों के तहत  1 अरब अमेरिकी डॉलर का  जुर्माना लगाने के बारे में सोच रहे हैं नियम न माने जाने के 22 दूसरे मामलों में एसएएमआर ने हरेक उल्लंघनकर्ता पर 77,000 अमेरिकी डॉलर का  जुर्माना  लगाया है. इनमें अलीबाबा ग्रुप के नियंत्रण वाली 6 कंपनियां, टेंशेंट होल्डिंग लि. की 5 कंपनियां और रिटेलर कंपनी सुनिंग डॉट कॉम लि. की 2 कंपनियां शामिल हैं. 

जुलाई में अलीबाबा के ई-कॉमर्स मार्केटप्लेस टाओबाओ, टेंशेंट की QQ मैसेजिंग सर्विस, लाइव स्ट्रीमिंग साइट कुआशोउ, माइक्रोब्लॉगिंग प्लैटफ़ॉर्म सिना वीबो और सोशल मीडिया और  ई-कॉमर्स सेवा शियाओहोंग्शू पर  जुर्माना लगाया गया. इन तमाम कंपनियों पर बच्चों से जुड़ी अश्लील सामग्रियों के प्रसार के लिए सीएसी की ओर से जुर्माना लगाया गया.   

इस साल मई में सीएसी ने घोषणा की  कि वो  अनियंत्रित या उपद्रवी ऑनलाइन फ़ैन  समूहों पर निगरानी की लगाम को और कसने जा  रही है जुलाई में अलीबाबा के ई-कॉमर्स मार्केटप्लेस टाओबाओ, टेंशेंट की QQ मैसेजिंग सर्विस, लाइव स्ट्रीमिंग साइट कुआशोउ, माइक्रोब्लॉगिंग प्लैटफ़ॉर्म सिना वीबो और सोशल मीडिया और  ई-कॉमर्स सेवा शियाओहोंग्शू पर  जुर्माना लगाया गया. इन तमाम कंपनियों पर बच्चों से जुड़ी अश्लील सामग्रियों के प्रसार के लिए सीएसी की ओर से जुर्माना लगाया गया.  एसएएमआर ने टेंशेंट को अपना एक्सक्लूसिव म्यूज़िक राइट छोड़ने का आदेश  दिया. उसने टेंशेंट और 13 अन्य कंपनियों को परेशान करने वाले पॉपअप  विंडोज़ को सही करने का फ़रमान भी सुनायाएसएएमआर ने अमेरिका में लिस्ट हुई कंपनियों हुया और दोइयू के विलय को रोक दिया. ये दोनों चीन में वीडियो गेमिंग की लाइव स्ट्रीमिंग करने वाली दो सबसे बड़ी साइट्स हैं. एसएएमआर का विचार था कि हुया और दोइयू के मिलेजुले प्लैटफ़ॉर्म के पास चीन के घरेलू बाज़ार का 80-90 प्रतिशत हिस्सा  जाता जो मुक्त बाज़ार प्रतिस्पर्धा के लिहाज़ से उचित नहीं है. इससे वीडियो गेमिंग लाइव स्ट्रीमिंग बाज़ार में टेंशेंट का दबदबा और बढ़ जाता. उसी महीने चीन के बेहद लोकप्रिय और देश के कोनेकोने में मौजूद राइड हेलिंग ऐप डीडी को ऐप स्टोर से हटा दिया गया. इसमें नए रजिस्ट्रेशनों को रोक दिया गया. ये कार्रवाई इस कंपनी द्वारा 4.4 अरब अमेरिकी डॉलर की लिस्टिंग के चंद दिनों बाद सामने आई. कंपनी पर लगाई गई पाबंदियों के पीछे की वजह साइबर सुरक्षा से जुड़े जोखिमों को बताया गया. 16 जुलाई को सात सरकारी एजेंसियों ने डीडी की ऑनसाइट साइबर सुरक्षा पड़ताल चालू कर दी. इनमें चीन का साइबरस्पेस एडमिनिस्ट्रेशन, पब्लिक सिक्योरिटी मिनिस्ट्री और नेशनल सिक्योरिटी मिनिस्ट्री शामिल हैं. इस कार्रवाई से इसके शेयरों में 25 फ़ीसदी तक की गिरावट  गई. कंपनी द्वारा न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में शुरुआत के कुछ ही समय बाद इस तरह की गिरावट देखने को मिली. अमेरिका में लिस्ट हुई चीन की दूसरी टेक कंपनियों के शेयर भी धड़ाम हो गए. डीडी के बाद सीएसी ने अमेरिका में लिस्ट हुई एक और कंपनी बॉस झिपिन के ख़िलाफ़ भी साइबर सुरक्षा पड़ताल चालू की. ये एक ऑनलाइन रिक्रूटमेंट प्लैटफ़ॉर्म है. इसे टेंशेंट और उसकी सहयोगी सड़क रसद आपूर्ति करने वाला फ़र्म फ़ुल ट्रक अलायंस मिलकर चलाते हैं. हाल ही में चीन के कार निर्माताओं को स्थानीय स्तर पर डेटा स्टोर करने को कहा गया है. हालांकि ये कोई नई बात नहीं है. दुनियाभर में प्राइवेसी से जुड़े फ़ीचर्स का ढिंढोरा पीटने वाली ऐपल को भी चीन के नए डेटा सुरक्षा नियमों के हिसाब से ढलने को मजबूर होना पड़ा है.      

नियम-क़ायदों के हिसाब से टेक सेक्टर की काया पलटने की मुहिम का सबसे ताज़ा शिकार चीन का फलता-फूलता शिक्षा-तकनीकी क्षेत्र बना है. हाल ही में चीन में लागू डबल रिडक्शन पॉलिसी में ये प्रावधान किए गए हैं कि प्राइमरी और मिडिल स्कूलों के पाठ्यक्रमों के दायरे में आने वाले विषय पढ़ाने वाली कंपनियां मुनाफ़ा नहीं कमा सकतीं. अब भविष्य में चीन में किसी नए निजी ट्यूशन फ़र्म का रजिस्ट्रेशन नहीं हो सकेगा. इतना ही नहीं मौजूदा ऑनलाइन शिक्षा प्लैटफ़ॉर्मों को भी अपने पूर्ववर्ती रसूख़ के बावजूद नए सिरे से नियामकों का अनुमोदन हासिल करना होगा. उनके द्वारा सार्वजनिक बाज़ारों से पूंजी उगाहे जाने पर भी रोक लगाई गई है. चीन में K-12 शिक्षण से इतर संचालित होने वाले प्रशिक्षण व्यवसाय के लिए ये बहुत बड़ा झटका है. पहले ये अनुमान लगाया गया था कि चीन में शिक्षा से जुड़ा ये सेक्टर 2025 तक 1.4 खरब RMB के बाज़ार मूल्य तक पहुंच जाएगा. इस सेक्टर के ख़िलाफ़ चीनी सरकार की कार्रवाई से चीन के प्राइवेट ट्यूटरिंग सेक्टर में हड़कंप मच गया है. चीन का ये सेक्टर 120 अरब डॉलर की क्षमता वाला है. इतना ही नहीं इन कार्रवाइयों से अमेरिका में लिस्ट हुई चीनी ट्यूटरिंग कंपनियों टीएएल एजुकेशन ग्रुप और गोटू टेकेडू के शेयरों में भी भारी बिकवाली का दौर शुरू हो गया.   

नियम-क़ायदों के हिसाब से टेक सेक्टर की काया पलटने की मुहिम का सबसे ताज़ा शिकार चीन का फलता-फूलता शिक्षा-तकनीकी क्षेत्र बना है. हाल ही में चीन में लागू डबल रिडक्शन पॉलिसी में ये प्रावधान किए गए हैं कि प्राइमरी और मिडिल स्कूलों के पाठ्यक्रमों के दायरे में आने वाले विषय पढ़ाने वाली कंपनियां मुनाफ़ा नहीं कमा सकतीं.

अलीबाबा और टेंशेंट चीन की दो सबसे बड़ी कंपनियां हैं. चीन में सरकार की ओर से की जा रही कठोर कार्रवाइयों के निशाने पर प्रमुख रूप से यही दोनों हैं. अलीबाबा के बॉस जैक मा और टेंशेंट के सीईओ पोनी मा समेत टेक कंपनियों के तमाम शीर्ष अधिकारियों को जांच पड़ताल के लिए चीनी नियामक संस्थाएं तलब कर चुकी हैं. कुछ टेक कंपनियों के शीर्ष अधिकारियों ने तो संन्यास तक का एलान कर दिया है. इनमें Pinduoduo के कोलिंग हुआंग, Bytedance के झांग यिमिंग और रियल एस्टेट क्षेत्र की विशाल कंपनी सोहो ग्रुप के पान शियी और झांग शिन शामिल हैं. अलीबाबा, टेंशेंट, डीडी समेत टेक क्षेत्र की सात दूसरी कंपनियों ने सार्वजनिक तौर पर एलान कर एंटी-ट्रस्ट क़ानूनों का पालन करने की बात दोहराई है. कुल मिलाकर चीन में जांच की ज़द में आई तमाम घरेलू कंपनियों का रुख़ पूरी तरह से घुटने टेकने वाला रहा है. हालांकि विदेशी कंपनियों की प्रतिक्रिया इसके ठीक उलट है. 

ख़बरों के मुताबिक मौजूदा उथलपुथल के बीच कई टेक कंपनियों ने विदेशों में आईपीओ लाने का अपना इरादा त्याग दिया है. दरअसल सीएसी ने विदेशी सार्वजनिक बाज़ारों में लिस्टिंग की इच्छा रखने वाले 10 लाख से ज़्यादा यूज़र्स वाली तमाम घरेलू कंपनियों के लिए अनिवार्य रूप से सुरक्षा जांच करवाने की शर्त रख दी है. इसे लेकर एक नया नीतिगत मसौदा भी जारी कर दिया गया है. चीन ने दूसरी कंपनियों के लिए भी डेटा नियमों को सख्त बना दिया है. चीन की स्टेट काउंसिल और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की सेंट्रल कमेटी के ताज़ा दस्तावेज़ों से ऐसे संकेत मिलते हैं कि चीन में बड़ी कंपनियों के ख़िलाफ़ इस तरह की कठोर कार्रवाई जारी रहेगी. चीन का साइबरस्पेस एडमिनिस्ट्रेशन और चाइना सिक्योरिटीज़ रेगुलेटरी कमीशन अब ऑनलाइन स्टॉक की सट्टेबाज़ी करने वालों को निशाने पर ले रहे हैं. रॉयटर्स के मुताबिक सीबीआईआरसी ऑनलाइन बीमा कंपनियों की जांच पड़ताल को और तेज़ करने वाली है. कठोर कार्रवाइयों के मौजूदा दौर ने स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के निवेशकों को भी चिंता में डाल दिया है. सबको आशंका है कि सरकार की सख्त कार्रवाइयों की ज़द में जल्द ही दूसरे सेक्टर भी आ सकते हैं. इनमें गेमिंग, विज्ञापन, रियल एस्टेट या कोई भी दूसरा क्षेत्र हो सकता है.  

आशंका है कि सरकार की सख्त कार्रवाइयों की ज़द में जल्द ही दूसरे सेक्टर भी आ सकते हैं. इनमें गेमिंग, विज्ञापन, रियल एस्टेट या कोई भी दूसरा क्षेत्र हो सकता है.   

बिग टेक कंपनियों के ख़िलाफ़ तेज़ गति से छेड़ी गई इस मुहिम के पीछे वित्तीय स्थिरता, विचारधारा, सीपीसी के भीतर का सत्ता-संघर्ष, भूराजनीति और सामाजिक चुनौतियां जैसे कारक ज़िम्मेदार रहे हैं. आगे के लेखों में इन पहलुओं की भी विस्तार से पड़ताल की गई है. व्यापक रूप से इन कारकों की समीक्षा से टेक कंपनियों के भविष्य को लेकर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की अंदरुनी सोच का पता चलता है. 

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