Author : Gurjit Singh

Published on Dec 15, 2023 Updated 0 Hours ago

केन्या तमाम देशों के साथ अपनी साझेदारियों में विविधता लाने के लिए प्रयासरत है और जिस प्रकार से वर्तमान में अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था नई करवट ले रही है, उसमें वह भारत को अपने एक भरोसेमंद भागीदार के रूप में देखता है.

भारत को अपने एक भरोसेमंद भागीदार के रूप में देखता है केन्या!

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सितंबर में नई दिल्ली में आयोजित G20 समिट में मेजबान भारत ने अफ्रीकी संघ (AU) को आमंत्रित किया था और भारत की पहल पर AU को G20 समूह में शामिल करने में भी सफलता हासिल हुई थी. भारत की इस पहल के बाद से दो अफ्रीकी देशों के नेता भारत की राजकीय यात्राएं कर चुके हैं. G20 सम्मेलन के बाद अक्टूबर में तंज़ानिया के राष्ट्रपति सामिया सुलुहु हसन ने भारत का दौरा किया था और उसके बाद 4-5 दिसंबर को केन्या के राष्ट्रपति विलियम रूटो ने भारत की सरकारी यात्रा की. ज़ाहिर है कि इस साल भारत और केन्या के बीच राजनयिक रिश्तों की 60वीं वर्षगांठ है, हालांकि दोनों के बीच पारस्परिक संबंधों का इतिहास सदियों पुराना है.

बुनियादी तौर पर भारत और केन्या के पारस्परिक रिश्ते, दोनों देशों के निवासियों के आपसी संबंधों एवं प्रगाढ़ व्यावसायिक संबंधों पर आधारित हैं.

वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट में तंज़ानिया और केन्या, दोनों देशों ने बढ़-चढ़कर भागीदारी की थी. अफ्रीकी देश तंज़ानिया सिर्फ़ भारत का वफ़ादार दोस्त है, बल्कि उसके द्वारा विकास सहयोग का प्रभावशाली तरीक़े से उपयोग भी किया जाता है. साथ ही तंज़ानिया लाइन ऑफ क्रेडिट (LOCs) यानी बैंकों या वित्तीय संस्थानों से मिलने वाले लचीले ऋण के सबसे बड़े लाभार्थियों में से एक है. इतना ही नहीं तंज़ानिया अब भारत का एक रणनीतिक साझीदार है और भारतीय कंपनियों एवं उद्योगों के लिए अपने देश में भरपूर मौक़े उपलब्ध कराता है. दूसरी तरफ, केन्या भारत का पुराना साझीदार रहा है. बुनियादी तौर पर भारत और केन्या के पारस्परिक रिश्ते, दोनों देशों के निवासियों के आपसी संबंधों एवं प्रगाढ़ व्यावसायिक संबंधों पर आधारित हैं. राजनीतिक तौर पर देखा जाए तो पूर्वी अफ्रीका के तीन देशों यानी केन्या, युगांडा और तंजानिया में केन्या बाक़ी देशों से अलग रहा है. उम्मीद है कि युगांडा के राष्ट्राध्यक्ष भी जनवरी 2024 में गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए भारत का दौरा करेंगे.

 

रूटो की भारत यात्रा

केन्याई राष्ट्रपति रूटो की भारत यात्रा कई मायनों में बेहद ख़ास है. सबसे बड़ी बात तो यह है कि पिछले छह वर्षों में यह किसी केन्याई राष्ट्रपति की पहली भारत यात्रा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र  मोदी ने वर्ष 2016 में तंज़ानिया और केन्या का दौरा किया था. केन्या के पिछले राष्ट्रपति उहुरू केन्याटा और पूर्व प्रधानमंत्री रैला ओडिंगा, दोनों का ही केवल भारत के प्रति अच्छा-ख़ासा झुकाव था, बल्कि उनके भारतीय प्रवासियों के साथ भी प्रगाढ़ संबंध थे. हालांकि केन्या के पिछले राष्ट्रपति केन्याता की सरकार में डिप्टी प्रेसिडेंट रहे रूटो के बारे ऐसी कोई जानकारी नहीं है कि उनका भारत या फिर भारतीय प्रवासियों के साथ अच्छा संपर्क था. उन्होंने इससे पहले भारत का आधिकारिक दौरा भी नहीं किया था.

 

विलियम रूटो ने केन्या के राष्ट्रपति का पदभार ग्रहण करने के बाद अपने पहले वर्ष में ही 38 विदेशी दौरे किए थे. इतनी बड़ी संख्या में विदेशी यात्राओं की वजह से रूटो को अपने देश में काफ़ी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था, साथ ही कहा गया था कि वे देश की लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था को नज़रंदाज़ कर रहे हैं. देखा जाए, तो रूटो ने स्वयं को अफ्रीकी क्षेत्र के एक तेज़तर्रार नेता के तौर पर स्थापित किया है. ख़ास तौर पर जलवायु और बहुपक्षीय विकास बैंकों के सुधारों को लेकर उन्होंने बेबाकी से अपनी बात दुनिया के सामने रखी है. रूटो जलवायु परिवर्तन पर अफ्रीकन यूनियन की अफ्रीकी देशों एवं सरकारों के राष्ट्राध्यक्षों की कमेटी (CAHOSCC) के अध्यक्ष हैं. इसके साथ ही रूटो ने सितंबर में अफ्रीका जलवायु शिखर सम्मेलन का आयोजन किया था. रूटो ने केन्या को फिर से स्थापित करने का काम किया है. इससे पहले केन्या को सिर्फ़ एक निरर्थक और प्रभावहीन संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के मुख्यालय के रूप में जाना जाता था. दुबई में हाल ही में आयोजित COP28 में अफ्रीकी आवाज़ को मुखर करने एवं सिर्फ़ सरकारी तौर-तरीक़ों पर निर्भर रहने के बजाए, अफ़्रीका के लिए प्रगतिशील रास्ता तलाशने के लिए रूटो को काफ़ी सराहा गया था. ज़ाहिर है कि भारत भी यही चाहता है और उनके विचार देखा जाए तो भारत की G20 पहल से मेल खाते हैं.

भारत के साथ केन्या के संबंधों की बात करें, तो ये रिश्ते काफ़ी हद तक आर्थिक सेक्टर में ही रहे हैं. भारतीय प्रवासी इसमें एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

केन्या अब तक अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) का हिस्सा नहीं था. रूटो की जलवायु पर दिलचस्पी की वजह से उनकी भारत यात्रा को दौरान केन्या ISA और जैव ईंधन गठबंधन (Biofuels Alliance) में शामिल हो गया. केन्या ने भारत में चीता संरक्षण के लिए बिग कैट्स अलायंस में शामिल होने एवं आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढांचा गठबंधन (Coalition for Disaster Resilient Infrastructure) में शामिल होने की भी सहमति जताई है. ज़ाहिर है कि यह केन्या की ओर से भारतीय पहलों को खुले दिल से सराहने की तरह है.

भारत के साथ केन्या के संबंधों की बात करें, तो ये रिश्ते काफ़ी हद तक आर्थिक सेक्टर में ही रहे हैं. भारतीय प्रवासी इसमें एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. अफ्रीका के इस क्षेत्र में केन्या का आर्थिक वातावरण सबसे अच्छा है. 60 भारतीय FDI परियोजनाएं केन्या में सफलतापूर्वक संचालित की जा रही हैं. केन्या बैंकिंग सेक्टर एवं विनिर्माण सेक्टर की कंपनियों का प्रमुख केंद्र है, ये कंपनियां इस रीजन में अपने मार्केट की तलाश में रहती हैं. जिस प्रकार से केन्या द्वारा आर्थिक गतिविधियों का बेहतर तरीक़े से प्रबंधन किया जाता है, वहां के बाज़ार का जो व्यापक आकार है और वहां शिक्षित मध्यम वर्ग में बढ़ोतरी हुई है, समग्र नज़रिए से देखा जाए तो यह सब केन्या को पूर्वी अफ्रीकी देशों में शीर्ष स्थान पर रखते हैं. भारतीय कंपनियां भी अपनी व्यावसायिक गतिविधियों को संचालित करने के लिए केन्या को एक उपयोगी और अनुकूल जगह मानती हैं. हालांकि भारत और केन्या के बीच व्यापार 2.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर से भी कम है. दोनों देश के बीच व्यापार का अधिकांश हिस्सा भारत द्वारा किए जाने वाले पेट्रोलियम उत्पादों, फार्मास्युटिकल्स, वाहनों और इंजीनियरिंग सामानों के निर्यात का है. केन्या से बड़े पैमाने पर सोडा ऐश (soda ash) और कृषि उत्पादों का आयात होता है. उल्लेखनीय है कि केन्या कम विकसित देश (LDC) की श्रेणी में नहीं आता है, इस वजह से उसे ड्यूटी-फ्री टैरिफ वरीयता (DFTP) योजना का फायदा नहीं मिलता है. हालांकि, रूटो की यात्रा के दौरान केन्या को एक और सफलता मिली है कि भारत ने एवोकैडो के लिए अपने देश के बाज़ारों को खोलने का फैसला लिया है.

केन्या और भारत के बीच आर्थिक सहयोग की बात की जाए, तो इस सहयोग का मॉडल FDI पर आधारित रहा है, जबकि तंज़ानिया के साथ भारत का आर्थिक सहयोग इस प्रकार का नहीं था.

बैंक ऑफ इंडिया और बैंक ऑफ बड़ौदा जैसे भारतीय बैंक केन्या के हर हिस्से में फैले हुए हैं. अब, केन्या में भारत के एक्ज़िम बैंक का प्रतिनिधि कार्यालय भी खुलने जा रहा है. वर्ष 2010 में एक्ज़िम बैंक का प्रतिनिधि कार्यालय इथियोपिया में खोला गया था. ज़ाहिर है कि इथियोपिया उस वक़्त भारतीय लाइन ऑफ क्रेडिट (LOCs) का सबसे बड़ा लाभार्थी था और अपने देश में भारतीय बैंकों के लिए उत्साहित था. उस समय से इथियोपिया में काफ़ी कुछ बदल चुका है, जिसमें वहां का गृह युद्ध भी शामिल है. इसके उलट केन्या में देखा जाए तो स्थिरता है. इसी वजह से एक्ज़िम बैंक के लिए नैरोबी में स्थानांतरित होना समझदारी भरा फैसला है. एक्ज़िम बैंक को कई स्थानीय और विदेशी बैंकों एवं ख़ास तौर पर COMESA रीजन के क्षेत्रीय बैंक यानी ट्रेड एंड डेवलपमेंट बैंक (TDB) के साथ एकीकृत किया जाएगा. TDB छोटे और मध्यम दर्ज़े के उद्यमों के लिए एक्ज़िम LOCs का इस्तेमाल करता है. इसीलिए, भारत की एक्ज़िम बैंक को पूर्वी अफ्रीका में निवेश करने एवं भारतीय कंपनियों को ऋण और इक्विटी में अपने सहयोग का विस्तार करने की अनुमति मिलनी चाहिए. दि हैरमबी फैक्टर (The Harambee Factor) नाम की एक ताज़ा क़िताब में भारतीय कंपनियों के एक सर्वे से स्पष्ट तौर पर पता चलता है कि अफ्रीका में नए FDI की मांग करने वाली भारतीय कंपनियों का प्रमुख लक्ष्य पूर्वी अफ्रीका था, और उसमें भी ख़ास तौर पर केन्या सबसे बड़ा लक्ष्य था.

 

केन्या और भारत के बीच आर्थिक सहयोग की बात की जाए, तो इस सहयोग का मॉडल FDI पर आधारित रहा है, जबकि तंज़ानिया के साथ भारत का आर्थिक सहयोग इस प्रकार का नहीं था. केन्या ने कैंसर के इलाज के लिए भाभाट्रॉन परियोजना को छोड़कर भारत द्वारा दिए गए अनुदान प्रोजेक्ट्स का उपयोग नहीं किया है. उल्लेखनीय है कि केन्या द्वारा IAFS I और II के अंतर्गत आवंटित परियोजनाओं का भी उपयोग नहीं किया गया. केन्या पैन अफ्रीकन -नेटवर्क प्रोजेक्ट (PAENP) में भी शामिल नहीं हुआ, यह प्रोजेक्ट एक दशक तक 47 देशों में चला था. इतना ही नहीं, केन्या ने शायद ही कभी भारत द्वारा दी गई LOCs का उपयोग किया है, क्योंकि शुरुआती वर्षों में उसका ध्यान पश्चिमी देशों पर था और पिछले दो दशकों के केन्या का मुख्य फोकस चीन पर है.

 

पहले भी भारत की ओर से केन्या को जो LOCs दी गई, उनमें से अधिकतर यूं ही बगैर उपयोग किए हुए समाप्त हो गई थीं, इनमें से केवल केन्या के औद्योगिक विकास बैंक (Industrial Development Bank of Kenya) द्वारा देश के लघु एवं मध्यम उद्यमों के लिए दो-चरण के लोन्स के लिए उपयोग की गई थीं. सिर्फ़ वर्ष 2016 में ही एक बार ऐसा हुआ था, जब रीवाटेक्स कपड़ा मिलों (RivaTex textile mills) को दोबारा  से खड़ा करने के लिए 29.95 मिलियन अमेरिकी डॉलर की LOC स्वीकार की गई थी और इसका तत्काल इस्तेमाल भी किया गया था. हालांकि अब केन्या के दृष्टिकोण में बदलाव आया है. वर्तमान में केन्या भारत के साथ सहयोग  की अपार संभावनाओं को देखता है, फिर चाहे इसके लिए अधिक ब्याज दरों पर कर्ज ही क्यों लेना पड़े. इसका कारण यह है कि केन्या तो LDC यानी कम विकसित देश की श्रेणी में आता है और ही HIPC यानी अत्यधिक ऋण के बोझ तले दबे ग़रीब देशों की श्रेणी में आता है. ज़ाहिर है कि केन्या की ओर से एक बड़ी LOC का आग्रह किया गया है और केन्या को अपने कृषि सेक्टर में सुधार लाने के लिए भारत की ओर से 250 मिलियन अमेरिकी डॉलर की पेशकश की गई है. राष्ट्रपति रूटो के नेतृत्व में यह एक बेहद सोचा-समझा विचार है, जो बॉटम अप अर्थात नीचे से ऊपर के इकोनॉमिक ट्रांसफॉर्मेशन एजेंडा (BETA) पर फोकस करता है, जिसमें कृषि के साथ-साथ डिजिटल इकोनॉमी पर भी ध्यान केंद्रित किया गया है. भारत की अपनी यात्रा के दौरान राष्ट्रपति रूटो देश के उन तीन राज्यों के गवर्नरों को भी साथ लाए थे, जहां इस परियोजना के कार्यान्वित होने की उम्मीद है. उन्होंने भारत से मिलने वाली इस LOC का इस्तेमाल करके ज़मीनी स्तर पर कृषि के आधुनिकीकरण और मशीनीकरण पर ध्यान केंद्रित किया है.

कुछ लोगों को यह लगता है कि केन्या ऐसा करके चीन के साथ अपने संबंधों में खटास पैदा कर रहा है, लेकिन फिलहाल ऐसा कहना ज़ल्दबाज़ी होगी..

भारत की ओर से केन्या को LOC की यह पेशकश इसलिए भी बेहद अहम है, क्योंकि  पिछले कुछ वर्षों में LOC प्रणाली लगभग प्रचलन से बाहर हो गई है. इसके साथ ही जिन देशों ने LOC की पेशकश भी की है, उन्होंने ऋण संकट के चलते आख़िर में इस पर साइन ही नहीं किए हैं. इन परिस्थितियों में देखा जाए तो केन्या की ओर किए गए LOC के अनुरोध ने LOC सिस्टम को एक हिसाब से फिर से जीवित करने का काम किया है. अब यह देखना शेष है कि वर्ष 2015 के सख़्त दिशानिर्देशों, ख़ास तौर पर निविदा प्रक्रिया और भारत की एक्ज़िम बैंक द्वारा निर्णय लेने की निगरानी पर कड़े नियम-क़ानून केन्या के LOC के अनुरोध को परवान चढ़ने देंगे या नहीं.

 

पारंपरिक  रूप से देखें, तो भारत और केन्या के संबंधों में शिक्षा एक बेहद महत्वपूर्ण कड़ी है. भारत में 3,500 केन्याई छात्र-छात्राएं पढ़ाई करते हैं और इनमें से अधिकतर स्कॉलरशिप पर नहीं, बल्कि निजी ख़र्च पर यहां शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं. हालांकि भारत में केन्याई छात्र-छात्राओं को दी जाने वाली छात्रवृत्तियां अब 48 से बढ़कर 80 हो गई हैं. ITEC कार्यक्रम अर्थात भारतीय तकनीक़ी एवं आर्थिक सहयोग कार्यक्रम, रमन साइंस फेलोशिप और एग्रीकल्चर फेलोशिप का केन्या द्वारा भरपूर उपयोग किया गया है.

 

ऐसे में स्पष्ट है कि अगर कृषि परियोजनाएं तेज़ी से आगे बढ़ेंगी, तो केन्या द्वारा अपनी क़ामयाबी के लिए ज़रूरी आवश्यक योग्यताओं एवं कौशल को बढ़ाने हेतु परियोजना से संबंधित ITEC पदों का और अधिक इस्तेमाल किया जा सकता है.

 

यद्यपि, केन्या पैन अफ्रीकन नेटवर्क प्रोजेक्ट में शामिल नहीं हुआ है, लेकिन आभासी शिक्षा (virtual education) में उसकी दिलचस्पी लगातार बनी हुई है. रूटो की भारत यात्रा के दौरान IGNOU और केन्याई मुक्त विश्वविद्यालय (Kenyan Open University) के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर होना एक स्वागत योग्य क़दम है. IGNOU के समक्ष इस बेहतरीन अवसर का फायदा उठाने, साथ ही साथ इसे व्यावसायिक रूप से सफल बनाने की चुनौती होगी. PANEP में किसी भी भारतीय विश्वविद्यालय ने ऐसे अवसर का व्यावसायिक स्तर लाभ नहीं उठाया है.

 

युगांडा और तंजानिया की तुलना में केन्या के भारत के साथ रक्षा संबंध कोई ख़ास नहीं रहे हैं. केन्या द्वारा भारत से रक्षा उपकरणों को नहीं ख़रीदा जाता है. इतना ही नहीं, भारत की इंडो-पैसिफिक और SAGAR रणनीतियों में भी केन्या सीधे तौर पर अपनी भागीदारी से दूर ही रहा है. हालांकि, केन्यायी राष्ट्रपति रूटो की वर्तमान भारत यात्रा के दौरान समुद्री सुरक्षा पर साझा नज़रिए वाला वक्तव्य एक अच्छा संकेत देता है. दोनों का यह साझा दृष्टिकोण कहीं कहीं भारत और केन्या को हिंद महासागर पर सहयोग के एक नए मार्ग पर लाने का काम करता है और एकजुट भी करता है. नीली अर्थव्यवस्था, HADR और गैर-पारंपरिक ख़तरों जैसे विषयों पर भारत और केन्या के विचार काफ़ी मिलते हैं. ज़ाहिर है कि इन मुद्दों पर वैचारिक समानता का अब बेहतर उपयोग किया जा सकता है. भारत और केन्या बहुपक्षीय जुड़ाव वाले IORA एवं जिबूती आचार संहिता (Djibouti Code of Conduct) जैसे संस्थानों एवं माध्यमों का, जिनके कि ये दोनों देश सदस्य हैं, भरपूर उपयोग करने का विचार करते हैं. केन्या ने पिछले दो वर्षों में भारत-अफ्रीकी सैन्य अभ्यास और सैन्य सम्मेलनों में हिस्सा लिया है. अब केन्या भारत के पूर्वी तट पर बहुपक्षीय MILAN में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर सकता है. शायद यह राष्ट्रपति रूटो की भारत यात्रा के सबसे महत्वपूर्ण नतीज़ों में से एक है.

 

आगे की राह

 

भारत को लेकर केन्या की सोच, उसकी समझ और उसके नज़रिए में उल्लेखनीय रूप से परिवर्तन हुआ है और यह सब राष्ट्रपति रूटो की भारत यात्रा के दौरान दिखाई भी दिया है. रूटो की इस यात्रा के दौरान जिस प्रकार से विभिन्न मुद्दों पर समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए, साझा बयान जारी किया गया और समुद्री सुरक्षा पर साझा विज़न स्टेटमेंट दिया गया, वो सब यह बताते हैं कि दोनों देशों की रणनीतिक स्तर पर पारस्परिक समझ-बूझ बढ़ी है. हालांकि, कुछ लोगों को यह लगता है कि केन्या ऐसा करके चीन के साथ अपने संबंधों में खटास पैदा कर रहा है, लेकिन फिलहाल ऐसा कहना ज़ल्दबाज़ी होगी. सच्चाई यह है कि केन्या अपनी साझेदारियों में विविधता लाने की कोशिश कर रहा है और मौज़ूदा परिस्थितियों जिस प्रकार से अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था बदल रही है, उसमें उसे भारत में अपना एक भरोसेमंद भागीदार नज़र आता है. भारत का ग्लोबल साउथ पर विशेष ध्यान, G20 की सफलतापूर्वक अध्यक्षता और जन कल्याण की योजनाओं पर भारत की डिजिटल पहलों की प्रभावशीलता, ये कुछ ऐसी चीज़ें हैं, जिन्होंने केन्या की सरकार और राजनेताओं को अत्यधिक प्रभावित किया है. यही वजह है कि केन्या अब भारत के साथ अपने संबंधों को सशक्त करने के लिए नए सिरे से प्रयास कर रहा है और इसके लिए नए क्षेत्रों पर भी विचार कर रहा है.


गुरजीत सिंह जर्मनी, इंडोनेशिया, इथियोपिया, आसियान और अफ्रीकी संघ में भारतीय राजदूत के रूप में अपने सेवाएं दे चुके हैं. वह एशिया अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर (AAGC) पर CII टास्क फोर्स के अध्यक्ष हैं.

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