Author : Ayjaz Wani

Published on Sep 01, 2022 Updated 0 Hours ago

कश्मीर में नार्को-टेररिज़्म चिंताजनक रूप से बड़ी तेज़ी से बढ़ रहा है. मज़हबी नेताओं ने इस समस्या को लेकर जो उदासीनता दिखाई है, उससे चुनौती और बढ़ गई है.

कश्मीर में पैर पसार रहा है ‘ड्रग्स-आतंकवाद’: मज़हबी नेताओं की ख़ामोशी ने बढ़ाई चिंता?

भारत के ख़िलाफ़ अपने छद्म युद्ध में पाकिस्तान ने ड्रग्स के आतंकवाद को अपना नया हथियार बना लिया है. ऐसे में पिछले पांच वर्षों के दौरान कश्मीर में हेरोइन के इस्तेमाल मे दो हज़ार प्रतिशत का इज़ाफ़ा दर्ज किया गया है. कश्मीर के युवाओं को निशाना बनाकर की जा रही ड्रग्स की तस्करी का इस्तेमाल पाकिस्तान के समर्थन से चलने वाली आतंकवादी गतिविधियों को रक़म मुहैया कराने के लिए किया जा रहा है. जम्मू और कश्मीर के पुलिस प्रमुख दिलबाग़ सिंह ने नार्को टेररिज़्म को पाकिस्तान की तरह से खड़ी की गई ‘सबसे बड़ी चुनौती’ बताया है. सुरक्षा ढांचे को मज़बूत बनाने और तमाम सुरक्षा एजेंसियों के बीच तालमेल बढ़ने के चलते आतंकवादी गतिविधियों पर काफ़ी हद लगाम लग गई है. हालांकि, ड्रग्स की समस्या पर क़ाबू पाना बहुत मुश्किल है क्योंकि अब पाकिस्तान ने कश्मीर में बड़ी तादाद में ड्रग्स भेजने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है. 

जम्मू और कश्मीर के पुलिस प्रमुख दिलबाग़ सिंह ने नार्को टेररिज़्म को पाकिस्तान की तरह से खड़ी की गई ‘सबसे बड़ी चुनौती’ बताया है.

कश्मीर में ड्रग्स का आतंकवाद

कश्मीर समाज के सामाजिक आर्थिक ताने-बाने को खड़ा करने में कश्मीरी पंडितों और मुसलमानों के बीच सदियों पुराने सांस्कृतिक और धार्मिक रिश्तों के मेल ने बहुत अहम भूमिका अदा की थी. इस अनूठे सामाजिक धार्मिक संगम ने कश्मीर में बिल्कुल अलग तरह के मिले-जुले, भक्ति और दर्शन पर आधारित रहन-सहन को जन्म दिया था, जिसे ‘कश्मीरियत’ के नाम से जाना जाता है. आपसी रिश्तों पर आधारित सामाजिक सुरक्षा के इस ढांचे ने एक ‘अनौपचारिक सामाजिक नियंत्रण की व्यवस्था’ को जन्म दिया था, जो कश्मीरी समाज में दबदबा रखती थी और लोगों के चाल-चलन पर बारीक़ी से नियंत्रण रखती थी. हालांकि, कट्टरपंथ, आतंकवाद और 1989 से सीमा पार से ‘प्रायोजित’ किए जा रहे संघर्ष ने आपसी मेल-जोल वाली इस जीवन शैली को नष्ट कर दिया है. आतंकवाद ने कश्मीर के ताने-बाने और मिल-जुलकर रहने वाली तहज़ीब को तहस-नहस कर डाला है और सदियों पुरानी व्यवस्था को कमज़ोर बना दिया है. इसके अलावा, अलगाववादियों और आतंकवादियों द्वारा बार-बार बुलाई जाने वाली हड़तालों, सुरक्षा एजेंसियों द्वारा लंबे-लंबे समय के लिए लगाए जाने वाले कर्फ्यू और अंतहीन संघर्ष ने कश्मीरियों के बीच चिंता, अवसाद, बोरियत और मनोवैज्ञानिक तनाव को बढ़ा दिया है. इसके साथ साथ कश्मीर घाटी में मनोरंजन के संसाधन बिल्कुल ही न होने के चलते आसानी से बहकाए जा सकने वाले जम्मू कश्मीर के युवाओं को ड्रग्स के जाल में धकेल दिया है.

कश्मीर घाटी में समाज के हर तबक़े के बीच ड्रग्स की लत लगने की समस्या बहुत चिंताजनक रूप से बढ़ गई है. कश्मीर में लगभग हर घंटे एक नया नशाखोर इससे छुटकारा पाने के लिए नशा मुक्ति केंद्र में दाख़िल होता है. श्रीनगर के सरकारी मेडिकल कॉलेज के ओरल सब्सटीट्यूशन थेरेपी सेंटर ने 2016 में जहां ड्रग्स के शिकार 489 लोगों का इलाज करने की जानकारी दी थी, वहीं 2021 में ऐसे लोगों की संख्या दस हज़ार को भी पार कर गई. यानी पिछले पांच साल के भीतर ड्रग्स के शिकंजे में फंसे लोगों की तादाद चिंताजनक रूप से 2000 प्रतिशत बढ़ गई. इस आंकड़े ने जम्मू और कश्मीर सरकार और सुरक्षा के ढांचे को झिंझोड़ कर रख दिया है. कश्मीर घाटी के श्रीनगर और अनंतनाग ज़िलों में हर दिन ड्रग्स ख़रीदने पर 3.7 करोड़ रुपए ख़र्च किए जा रहे हैं. पिछले दो वर्षों के दौरान शोपियां और पुलवामा ज़िलों में भी ड्रग्स के इस्तेमाल के ऐसे ही आंकड़े देखने को मिले हैं. इन ज़िलों में ड्रग्स की ज़्यादा मात्रा लेने से कई लोगों की मौत होने की ख़बरें भी आई हैं. भारत सरकार के सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण मंत्रालय और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) द्वारा 2019 में किए गए एक सर्वे के मुताबिक़, कश्मीर की 4.5 प्रतिशत से भी ज़्यादा आबादी ड्रग्स का सेवन करती है.

कश्मीर घाटी में समाज के हर तबक़े के बीच ड्रग्स की लत लगने की समस्या बहुत चिंताजनक रूप से बढ़ गई है. कश्मीर में लगभग हर घंटे एक नया नशाखोर इससे छुटकारा पाने के लिए नशा मुक्ति केंद्र में दाख़िल होता है.

हाल के वर्षों में पाकिस्तान ने कश्मीर में संघर्ष को ज़िंदा रखने और घाटी के सामाजिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न करने के लिए दोहरी रणनीति अपनाई हुई है और इसके तहत वो सीमा पार से हथियारों के साथ साथ ड्रग्स भी भेज रहा है. पूरे कश्मीर में सबसे ज़्यादा इस्तेमाल की जाने वाली ड्रग हेरोइन है जो सीमा पार से तस्करी करके लाई जाती है. सरहद के उस पार से ड्रग्स की तस्करी, आतंकवाद की वित्तीय मदद के लिए ऑक्सीजन का काम करती है और अगर जल्द ही इस पर क़ाबू न पाया गया तो, इससे इस इलाक़े के नौजवानों की ज़िंदगी तबाह हो जाएगी. हेरोइन जैसी ड्रग्स बेचने से हासिल हुई रक़म अगलाववादी और अन्य देशविरोधी गतिविधियां चलाने में मदद करती है. हाल के दिनों में आतंकवाद के जितने मॉड्यूल सुरक्षा एजेंसियों ने ध्वस्त किए हैं उससे समाज और सुरक्षा के लिए एक बड़ी चुनौती का अंदाज़ा लगता है. पिछले साल जून में बारामुला में ड्रग्स और आतंकवाद के एक मॉड्यूल को तबाह किया गया था. इस दौरान दस लोग गिरफ़्तार किए गए थे, जिनके पास से 45 करोड़ रुपए की हेरोइन और चीन में बने ग्रेनेड और चार पिस्तौलें भी बरामद हुई थीं. आतंकवाद का ये मॉड्यूल पूरे जम्मू-कश्मीर में ही नहीं, उसके बाहर भी अपनी गतिविधियां चला रहा था.

मुल्लाओं की ख़ामोशी से हालात और ख़राब हुए

सुरक्षा बलों द्वारा चौकसी बढ़ाने के अलावा जम्मू-कश्मीर सरकार ने भी ड्रग्स के बढ़ते जाल से निपटने के लिए कई क़दम उठाए हैं. दस नशा मुक्ति केंद्रों की स्थापना की है. इनमें श्रीनगर और जम्मू में दो बड़े केंद्र भी शामिल हैं. सरकार ने हर ज़िले में नौजवानों को सलाह मशविरा देने के लिए काउंसेलिंग सेंटर भी खोले हैं, जिनमें बहुत तजुर्बेकार सलाहकार और डॉक्टर तैनात किए गए हैं. ड्रग्स के ख़िलाफ़ जानकारी बढ़ाने के लिए प्रशासन और सुरक्षा बल सार्वजनिक लेक्चर, सेमिनार और वर्कशॉप भी आयोजित कर रहे हैं. हालांकि, हैरानी की बात ये है कि कश्मीर घाटी में तेज़ी से बढ़ रही नशाखोरी और मुश्किल हालात को लेकर मज़हबी नेता बिल्कुल ख़ामोश हैं. इससे पता चलता है कि ‘अनौपचारिक नियंत्रण व्यवस्था’ वाली कश्मीर घाटी के अनूठे ताने-बाने को किस तरह बर्बाद कर दिया गया है. पिछले तीस वर्षों के दौरान पाकिस्तान, समाज पर नज़र रखने वाले अनौपचारिक ताने-बाने और पारंपरिक ढांचे को पूरी तरह बर्बाद करने में कामयाब रहा है. इसके लिए पाकिस्तान ने आपस में टकराने वाले मज़हबी फ़िरक़ों और विचारधाराओं जैसे कि जमात-ए-इस्लामी, सलाफ़ीवाद और तब्लीग को बढ़ावा दिया है. आपस में लड़ने वाली इन मज़हबी विचारधाराओं ने समाज की समझदार आवाज़ों को ख़ामोश कर दिया है. आज कश्मीर का पारंपरिक सामाजिक ढांचा और उसकी पहचान अप्रासंगिक हो चुकी है. इसके बाद, इन विचारधाराओं से लोगों के ताल्लुक़ ने समाज को को सामुदायिक स्तर पर विभाजित कर दिया है. इससे युवाओं के राह से भटकने की घटनाओं में इज़ाफ़ा ही हुआ है. नौजवानों के बहक जाने पर किसी भी तरह की सामाजिक लगाम न होना ही कश्मीर घाटी में कट्टरपंथ, उग्रवाद और अब नशाखोरी को बढ़ाने का काम किया है.

पिछले साल जून में बारामुला में ड्रग्स और आतंकवाद के एक मॉड्यूल को तबाह किया गया था. इस दौरान दस लोग गिरफ़्तार किए गए थे, जिनके पास से 45 करोड़ रुपए की हेरोइन और चीन में बने ग्रेनेड और चार पिस्तौलें भी बरामद हुई थीं

इन आपसी टकराव वाली विचारधाराओं से जुड़े मुल्ला हर शुक्रवार और किसी त्यौहार पर ख़ुत्बे पढ़ते हैं. वो अपने मज़हबी सिद्धांतों और उस पर आधारित चाल-चलन को लेकर तो बहुत गंभीर रहते हैं. जनता भी उनकी बातों को बहुत तवज्जो देती है. लेकिन, ये मुल्ला अपने भाषणों में कभी भी समाज में ड्रग्स के बढ़ते उपयोग के ख़िलाफ़ नहीं बोलते हैं. ऐसी मज़हबी सभाओं में ड्रग्स के बढ़ते चलन और इसके पीछे पाकिस्तान के हाथ होने को लेकर ये मुल्ला कभी भी गंभीरता से बात नहीं करते हैं. वो न तो लोगों को ड्रग्स के ख़िलाफ़ क़ुरान में लिखी बातें बताते हैं और न ही पैग़ंबर का संदेश सिखाते हैं. इसके बजाय ज़्यादातर मुल्ला अपनी विचारधारा के प्रचार प्रसार में ही जुटे रहते हैं. युवा पीढ़ी और कश्मीर की साझा संस्कृति को बचाने के बजाय इन धार्मिक नेताओं ने अलगाववादियों के साथ साठ-गांठ कर रखी है और वो इस कभी न ख़त्म होने वाले संघर्ष को बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं.

ड्रग्स की लत, आतंकवाद और कट्टरपंथ की चुनौतियों से निपटने और परिवर्तन लाने के लिए प्रशासन को लगातार अपनी नीतियों में बदलाव करना होगा. जिस बदलाव की अपेक्षा प्रशासन कर रहा है वो समाज के भीतर तब तक नहीं आ सकता है, जब तक धार्मिक नेता और उनकी परस्पर विरोधी विचारधाराएं अपने अपने फ़िरक़े के फ़ायदों वाली सोच के पाबंद बने रहेंगे और जनता की वास्तविक भलाई के लिए काम नहीं करेंगे. गांव स्तर के मौलानाओं को चाहिए कि वो समुदाय के बुज़ुर्गों, नागरिक संगठनों के सदस्यों और प्रशासन के साथ मिलकर काम करें, ताकि वो पाकिस्तान द्वारा कश्मीर और कश्मीरी नौजवानों के बीच ड्रग्स लत को बढ़ावा देने की चुनौती से पार पा सकें.

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