अनुच्छेद 370 के ख़ात्मे और कोविड-19 महामारी की आमद के बाद पहली बार कश्मीर घाटी में पर्यटन के क्षेत्र में रिकॉर्डतोड़ उछाल देखा गया है. पर्यटन उद्योग यहां की अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख सहारा है. जनवरी से अप्रैल की मियाद में 3.4 लाख से भी ज़्यादा सैलानी घाटी आ चुके हैं. इससे स्थानीय पर्यटन उद्योग में नई जान आ गई है. 11 अप्रैल को शेख़-अल-आलम अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर रिकॉर्डतोड़ संख्या में यात्रियों की आवाजाही हुई. सैलानियों की आवक का ये आंकड़ा अब तक दर्ज आंकड़ों में सबसे ज़्यादा है. इस दिन यहां से 102 उड़ानों का संचालन किया गया.
होटल कारोबारियों और शिकारे के मालिक़ों के पास 20 दिन की एडवांस बुकिंग है और उनके किराए 30 से 50 फ़ीसदी तक बढ़ चुके हैं. दूसरी ओर टैक्सी ड्राइवरों का काम धंधा भी ज़ोरों पर है. तीन सालों के बाद ऐसा मौक़ा आया है जब उनके पास सांस लेने तक की फ़ुर्सत नहीं है.
प्राथमिक तौर पर पर्यटन के क्षेत्र में आए उछाल की वजह घाटी के सियासी और सुरक्षा माहौल में आया सकारात्मक बदलाव है. हालांकि निशाना बनाकर की जाने वाली हत्याएं और बीच-बीच में अशांति फैलाने की घटनाएं अब भी जारी हैं. बहरहाल, पर्यटन उद्योग को ज़बरदस्त मुनाफ़ा हुआ है और इस साल से पर्यटन कारोबार में उछाल आने की उम्मीद की जा रही है. होटल कारोबारियों और शिकारे के मालिक़ों के पास 20 दिन की एडवांस बुकिंग है और उनके किराए 30 से 50 फ़ीसदी तक बढ़ चुके हैं. दूसरी ओर टैक्सी ड्राइवरों का काम धंधा भी ज़ोरों पर है. तीन सालों के बाद ऐसा मौक़ा आया है जब उनके पास सांस लेने तक की फ़ुर्सत नहीं है.
हालांकि घाटी में पर्यटन से जुड़ा बुनियादी ढांचा और यहां का सड़क संपर्क एक लंबे अर्से से ख़स्ताहाल है. अगर केंद्र सरकार की ओर से इन मसलों को प्राथमिकता नहीं मिली तो पर्यटन उद्योग में उछाल से मिल रहे आर्थिक फ़ायदे जल्द ही काफ़ूर हो सकते हैं. साथ ही बढ़ती बेरोज़गारी से निपटने की क़वायद भी कमज़ोर पड़ सकती है. इन प्रतिकूल कारकों की वजह से कृषि और बाग़वानी क्षेत्र की तकलीफ़ें भी बदस्तूर जारी रहेंगी. ग़ौरतलब है कि इस पूरे इलाक़े की अर्थव्यवस्था में इन दोनों क्षेत्रों का भी बड़ा योगदान है.
बुनियादी ढांचे की किल्लत
भूसामरिक रूप से अहम कश्मीर घाटी को भारतीय संघ से जोड़ने वाली और हर मौसम में उपयोग में आने वाली इकलौती सड़क एनएच 44 है. 295 किमी लंबे इस राजमार्ग को कश्मीर की जीवनरेखा माना जाता है. हालांकि सर्दियों में चट्टान खिसकने की वजह से ये हाईवे अक्सर लंबे अर्से तक ठप रहता है. श्रीनगर से नई दिल्ली के सफ़र में 10 घंटे से 4 घंटे की कटौती करने के मक़सद से भारत सरकार ने 2011 में इसका चौड़ीकरण कर इसे चार लेन वाला हाईवे बनाने का काम शुरू किया था. 2016 तक इस परियोजना के पूरा होने का लक्ष्य रखा गया था. ये समयसीमा कई बार बढ़ चुकी है. भू-सामरिक रूप से अहम इस सड़क का चार लेन तक विस्तार करने के काम को 6 खंडों में बांटा गया है: जम्मू-उधमपुर रोड (65 किमी), चेनानी-नाशरी सुरंग (9.2 किमी), रामबन-उधमपुर सड़क चौड़ीकरण (43 किमी), बनिहाल-रामबन रोड (36 किमी), क़ाज़ीगुंड-बनिहाल रोड (15.25 किमी) और श्रीनगर-बनिहाल रोड (67.7 किमी).
सामरिक रूप से अहम इस हाईवे की मौजूदा हालत ने इलाक़े के कृषि और बाग़वानी सेक्टर की परेशानियों में भी इज़ाफ़ा कर दिया है. भारत के दूसरे हिस्सों में फलों को पहुंचाने के काम में काफ़ी लंबा वक़्त लग रहा है. यहां की कुल आबादी का तक़रीबन 70 फ़ीसदी हिस्सा खेतीबाड़ी और फल उगाने के काम से जुड़ा है.
बनिहाल-रामबन रोड (36 किमी) और रामबन-उधमपुर रोड (43 किमी) को छोड़कर इस परियोजना के ज़्यादार हिस्से पूरे हो चुके हैं. दरअसल 79 किमी लंबे इस भूभाग की भौगोलिक बनावट बेहद पेचीदा है और कई जगह मिट्टी धंसने का ख़तरा है. लिहाज़ा NHAI ने अपनी योजनाओं में बदलाव किए हैं. अब यहां 14 सुरंगें तैयार की जा रही हैं. बहरहाल इन बदलावों से न सिर्फ़ इस हिस्से की लागत बढ़ गई है बल्कि परियोजना के पूरा होने की नई संभावित समयसीमा भी 2025 तक खिसक गई है. उधमपुर-रामबन सेक्शन की नई बदली हुई लागत अब पहले के 1,238.68 करोड़ रु. की बजाए 2,233.65 करोड़ रु. तय की गई है. दूसरी ओर रामबन-बनिहाल खंड की लागत पहले के 1,331.66 करोड़ के मुक़ाबले 2,885.35 करोड़ रु. रहने का अनुमान है. बहरहाल सड़क चौड़ीकरण के काम में हो रही इस देरी से कश्मीरी समाज के हर तबके की चिंताएं बढ़ गई हैं.
सामरिक रूप से अहम इस हाईवे की मौजूदा हालत ने इलाक़े के कृषि और बाग़वानी सेक्टर (जिनका अनुमानित टर्नओवर 9000 करोड़ रु है) की परेशानियों में भी इज़ाफ़ा कर दिया है. भारत के दूसरे हिस्सों में फलों को पहुंचाने के काम में काफ़ी लंबा वक़्त लग रहा है. यहां की कुल आबादी का तक़रीबन 70 फ़ीसदी हिस्सा खेतीबाड़ी और फल उगाने के काम से जुड़ा है. दूसरी तरफ़, हाईवे की ख़स्ता हालत के चलते यहां आने वाले टूरिस्ट हवाई मार्ग का सहारा लेने लगे हैं. सैलानियों की ज़्यादा आमद वाले मौसम में हवाई किराए नियमित भाड़े से दोगुना महंगे हो जाते हैं. कई बार तो ये अंतरराष्ट्रीय हवाई किरायों से भी आगे निकल जाते हैं. इससे पटरी पर आ रहे पर्यटन उद्योग और देश भर के कॉलेजों में दाखिल कश्मीरी छात्र समुदाय पर बुरा असर पड़ता है. ग़ौरतलब है कि कश्मीर घाटी भूसामरिक रूप से बेहद अहम स्थान पर मौजूद है. ऐसे में सड़क के चौड़ीकरण के काम में हो रही देरी से सुरक्षा बलों की आवाजाही में भी रुकावट आती है.
पर्यटन केंद्रित बुनियादी ढांचा
भले ही महामारी के बाद पर्यटन व्यवसाय में तेज़ी का रुख़ है, लेकिन सरकार पर्यटन क्षेत्र के लिए ज़रूरी बुनियादी ढांचे और दूसरी सहायक सुविधाओं के विकास में बुरी तरह से नाकाम रही है. सैलानियों की एक बड़ी तादाद को आकर्षित करने वाले इलाक़ों में भी ऐसी सहूलियतें नदारद दिखती हैं. केंद्रशासित जम्मू और कश्मीर के पर्यटन विभाग के मुताबिक कश्मीर में सैलानियों की रिहाइश की कुल रजिस्टर्ड क्षमता 62,488 बिस्तरों की है. इनमें A, B और C श्रेणियों के तमाम होटलों के साथ-साथ गेस्टहाउस और शिकारे शामिल हैं. इनमें से ज़्यादातर सुविधाएं श्रीनगर में डल झील के आसपास के इलाक़ों के अलावा गुलमर्ग और पहलगाम (सैलानियों के लिहाज़ से दो और अहम ठिकाने) में मौजूद हैं. श्रीनगर में समूचे टूरिस्ट सीज़न में देश और विदेश के सैलानियों का तांता लगा रहता है. यहां सैलानियों के लिए अनुमानित तौर पर 48,000 बिस्तर उपलब्ध हैं. सैलानियों की आमद वाले मौसम में श्रीनगर-निशात रोड ट्रैफ़िक से ठसाठस भरा रहता है. इस दौरान यहां ध्वनि और वायु प्रदूषण चरम पर पहुंच जाता है. पहलगाम में भी कमोबेश ऐसे ही हालात रहते हैं. यहां 10,000 बिस्तरों की क्षमता के साथ होटल के 5000 से ज़्यादा कमरे मौजूद हैं. जबकि गुलमर्ग के होटलों में 800 से अधिक कमरे हैं. सोनमर्ग, युसमर्ग, दूधपथरी, पीर की गली, सिंथन टॉप, गंगाबल झील जैसे बाक़ी पर्यटक केंद्रों में तो होटल और रेस्टोरेंट जैसी पर्यटन से जुड़ी बुनियादी सुविधाएं भी मौजूद नहीं हैं. ज़ाहिर तौर पर सैलानियों के लिए ज़रूरी सहूलियतों के पैमाने पर ये तमाम ठिकाने फिसड्डी साबित हो रहे हैं.
केंद्रशासित प्रदेश के प्रशासन ने ये सुनिश्चित किया है कि पहलगाम और सोनमर्ग जैसे बड़े पर्यटक स्थानों में बिजली कटौती की घटनाएं कम से कम हों. नतीजतन पिछली सर्दियों में यहां अच्छी तादाद में सैलानियों की आवक हुई थी. बहरहाल यहां के दूसरे ख़ूबसूरत स्थानों में ज़रूरी सुविधाओं के अभाव के चलते सैलानी वहां से दूर ही रहे.
केंद्रशासित प्रदेश के प्रशासन ने ये सुनिश्चित किया है कि पहलगाम और सोनमर्ग जैसे बड़े पर्यटक स्थानों में बिजली कटौती की घटनाएं कम से कम हों. नतीजतन पिछली सर्दियों में यहां अच्छी तादाद में सैलानियों की आवक हुई थी. बहरहाल यहां के दूसरे ख़ूबसूरत स्थानों में ज़रूरी सुविधाओं के अभाव के चलते सैलानी वहां से दूर ही रहे. इनमें युसमर्ग, दूधपथरी, पीर की गली, सिंथन टॉप, गंगाबल प्रमुख हैं. घाटी और उससे बाहर के इलाक़ों में पर्यटन से जुड़ी तमाम संभावनाओं का पूरा-पूरा लाभ उठाने के लिए सरकार को तत्काल डल झील, गुलमर्ग और पहलगाम से इतर इस पूरे इलाक़े पर ध्यान देना होगा. हाल ही में अपनी दुबई यात्रा के दौरान उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने कश्मीर के रियल एस्टेट सेक्टर में विदेशी निवेशकों को प्रवेश करने की मंज़ूरी देने से जुड़ी योजनाओं का ख़ुलासा किया था. दरअसल रियल एस्टेट की बजाए हॉस्पिटैलिटी सेक्टर में ज़्यादा से ज़्यादा विदेशी निवेश हासिल करने पर ज़ोर दिया जाना चाहिए. इससे पर्यटन से जुड़े फ़ायदों को अधिकतम स्तर तक ले जाने में मदद मिलेगी. इस सेक्टर में निवेश से रोज़गार के अवसरों में भी बढ़ोतरी होगी. ग़ौरतलब है कि कश्मीर घाटी में रोज़गार से जुड़े मसलों की अब तक अनदेखी होती रही है. फ़िलहाल पर्यटन क्षेत्र में तक़रीबन एक लाख लोग प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से रोज़गार पा रहे हैं. जम्मू-कश्मीर की जीडीपी में पर्यटन क्षेत्र का योगदान 8 फ़ीसदी है. कश्मीर में सैलानियों की दिलचस्पी वाली अनेक जगहें हैं. अगर इन तमाम ठिकानों को बग़ैर किसी प्रशासनिक रुकावट के बुनियादी ढांचा मिल जाए तो पर्यटन के क्षेत्र में रोज़गार के और भी ज़्यादा मौक़े सामने आएंगे. ऐसे में राज्य की जीडीपी में भी पर्यटन का हिस्सा काफ़ी तेज़ी से बढ़ेगा.
पर्यटन से जुड़े बुनियादी ढांचे के युद्धस्तर पर निर्माण और एनएच 44 की चौड़ीकरण परियोजना को जल्द से जल्द पूरा कर लेने से धरती पर मौजूद इस जन्नत के माली हालात पूरी तरह से बदल जाएंगे. राष्ट्रीय मीडिया को भी अनुच्छेद 370 और 35ए के ख़ात्मे के बाद हाल ही में निशाना बनाकर की गई ग़ैर-स्थानीय लोगों की हत्याओं से जुड़ी वारदातों को प्रमुखता देने की बजाए 2019 के बाद उभरकर सामने आए नए अवसरों को सुर्ख़ियों में जगह देनी चाहिए.
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