Author : Soumya Awasthi

Expert Speak Raisina Debates
Published on Aug 20, 2025 Updated 0 Hours ago

डीपफेक से लेकर चैटबॉट तक, युवाओं को कट्टरपंथी बनाने के लिए जिहादी समूह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल कर रहे हैं. आतंकवाद विरोधी अभियानों को नाकाम करने के लिए भी इसका उपयोग बढ़ रहा है. 

जिहादी संगठनों का आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस इस्तेमाल: डिजिटल युग का बढ़ता ख़तरा

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वैश्विक सुरक्षा का परिदृश्य तेज़ी से बदल रहा है. तकनीकी क्षेत्र में हो रहे नवाचार अब सिर्फ सरकारी अधिकारियों या कॉर्पोरेट दिग्गजों तक ही सीमित नहीं रह गए हैं. चरमपंथी समूह, खासकर जिहादी नेटवर्क, अपनी भर्ती, विचारधारा और प्रचार-प्रसार की रणनीतियों को मज़बूत करने के लिए अत्यधिक उन्नत उपकरणों और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का तेज़ी से इस्तेमाल करने लगे हैं. जैसे-जैसे डिजिटल प्रौद्योगिकी पर पलने वाली पीढ़ी यानी ऑनलाइन दुनिया के निर्माता और लक्ष्य, दोनों के रूप में अपनी भूमिकाओं में परिपक्व होते जा रही है, वैसे-वैसे जिहादी समूह भी खुद को नई तकनीकी के हिसाब से ढाल रहे हैं. ये उग्रवादी संगठन एआई का इस्तेमाल ना सिर्फ एक साथ व्यापक दर्शकों तक पहुंचने के लिए कर रहे हैं, बल्कि कई बार पारंपरिक आतंकवाद-रोधी कोशिशों को चकमा देने में कामयाब हो रहे हैं.

ये उग्रवादी संगठन एआई का इस्तेमाल ना सिर्फ एक साथ व्यापक दर्शकों तक पहुंचने के लिए कर रहे हैं, बल्कि कई बार पारंपरिक आतंकवाद-रोधी कोशिशों को चकमा देने में कामयाब हो रहे हैं.

चरमपंथी समूहों द्वारा एआई का बढ़ता इस्तेमाल

जिहादी संगठनों द्वारा एआई का इस्तेमाल एक उल्लेखनीय बदलाव का प्रतीक है. एआई पारंपरिक डिजिटल प्रचार रणनीतियों से अलग ज़्यादा गतिशील और व्यक्तिगत जुड़ाव दिखाता है. ये समूह अब सिर्फ अनजान मंचों पर वीडियो या पीडीएफ पोस्ट नहीं कर रहे हैं; वो ऐसे एआई टूल्स का इस्तेमाल करने लगे हैं जो व्यावसायिक संस्थाओं द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली मार्केटिंग रणनीतियों की नकल करते हैं.

उदाहरण के लिए, "डिजिटलीकरण और आतंकवाद" पर यूरोपोल की 2022 की रिपोर्ट ने इसे लेकर पहले ही चेतावनी दे दी थी. रिपोर्ट में कहा गया कि स्वचालित सामग्री निर्माण, चेहरे की पहचान से बचने और प्रवृत्तियों का विश्लेषण करने के लिए एआई के साथ कई तरह के चरमपंथी प्रयोग किए जाएंगे. हालांकि, कुछ जिहादी गुटों के पास आंतरिक एआई के लिए ज़रूरी विशेषज्ञता नहीं होती, फिर भी वो अक्सर ओपन-सोर्स एआई टूल्स और डार्कनेट सेवाओं का फायदा उठाते हैं. इसका लाभ ये होता है कि न्यूनतम मानवीय दख़ल के बिना भर्ती संदेशों का स्वचालन और लक्षित लोगों और संगठनों तक पहुंचना संभव हो जाता है.


डिजिटल 'नेटिव्स' तक पहुंचना

सबसे पहले ये समझना ज़रूरी है कि 'डिजिटल नेटिव्स' किसे कहते हैं? दरअसल 'डिजिटल नेटिव्स' शब्द उन लोगों के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जिनका जन्म डिजिटल तकनीकी के ज़माने में हुआ है, जो कम्प्यूटर और इंटरनेट को समझते हों. 2025 में, कट्टरपंथ की कोशिशें इन्हीं 'डिजिटल नेटिव्स' पर केंद्रित होगी. ये लोग सोशल मीडिया, गेमिंग और व्यक्तिगत कंटेंट एल्गोरिदम के साथ पले-बढ़े हैं. इन्हें एआई-संचालित भर्ती रणनीतियों से बहकाया जा सकता है.

अमेरिकी-यमनी मौलवी और अल-क़ायदा के अंग्रेज़ी भाषा के प्रचारक अनवर अल-अवलाकी, ऑनलाइन कट्टरपंथी कार्यक्रमों का सबसे बड़ा चेहरा बने हुए हैं. उनकी अनुवादित चरमपंथी सामग्री व्यापक रूप से प्रसारित हो रही है और जिहादी विचारधारा में अक्सर इसका उल्लेख किया जाता है. एआई के ज़रिए अनुशंसा करने वाली प्रणालियों का इस्तेमाल करते हुए, चरमपंथी सामग्री अक्सर ऑटोप्ले सुझावों या खोज परिणामों में हेरफेर की वजह से खुद-ब-खुद टाइमलाइन में दिखने लगती है. ये तब और भी आसानी से होता है, जब इसे विशिष्ट कीवर्ड के साथ संरेखित किया जाता है. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के लिए कट्टरपंथी सामग्री को पूरी तरह से हटाना मुश्किल हो जाता है.

इसके अलावा, एआई उपकरण कट्टरपंथी युवाओं की भर्ती करने वालों को हानिरहित प्रोफाइल, ब्लॉग या चैट रूम के माध्यम से वैध बातचीत का रास्ता सुझाने में मदद करते हैं. प्रभावशाली लोगों या रुचि-आधारित समुदायों की नकल करके ये चरमपंथी भर्ती कर्ता सूक्ष्म रूप से कट्टरपंथी विचारधारा पेश करने से पहले उपयोगकर्ताओं का भरोसा जीत लेते हैं. ये बॉट मानवीय बातचीत की नकल करते हैं, भावनात्मक तथा भाषाई संकेतों के आधार पर अपनी प्रतिक्रियाओं को उस हिसाब से समायोजित करते हैं, जिससे कमज़ोर व्यक्तियों में विश्वास और मान्यता का झूठा एहसास पैदा होता है.

डीपफेक और सिंथेटिक मीडिया उपयोग

चरमपंथी समूहों के शायद सबसे चिंताजनक घटनाक्रमों में से एक है जिहादी गुटों द्वारा डीपफेक और सिंथेटिक मीडिया का संभावित इस्तेमाल. सिंथेटिक मीडिया का मतलब उस मीडिया से है, जहां एआई और मशीन लर्निंग एल्गोरिदम के माध्यम से फोटो, वीडियो, ऑडियो और टेक्स्ट में हेरफेर की जा सकती है. सामान्य एआई उपकरणों से चरमपंथी कलाकार प्रमुख धार्मिक विद्वानों या सरकारी नेताओं का रूप धारण करके, या तो दुष्प्रचार फैलाने या शहादत का महिमामंडन करने के लिए, आकर्षक वीडियो बनाते हैं.

आतंकवादी समूह जनरेटिव एआई के ज़रिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल दुष्प्रचार बढ़ाने, उपयोगकर्ताओं को प्रभावित करने और अनुयायी बनाने के लिए कर रहे हैं. वो ऐसी अति-यथार्थवादी नकली तस्वीरें, वीडियो और टेक्स्ट बनाते हैं, जो बिल्कुल असली लगती है. जैसे कि घायल बच्चों के वीडियो या मनगढ़ंत हमले, जो तीव्र भावनाएं जगाते हैं और असली लगते हैं. इनकी पहचान करना और इन पर नियंत्रण पाना मुश्किल हो जाता है.

डीपफेक तकनीक जिहादी प्रचारकों की पहचान छुपाकर आतंकवाद-रोधी अभियान के लिए भी महत्वपूर्ण ख़तरा पैदा करती है. इससे चेहरे की पहचान करने वाले उपकरणों का प्रभाव कम हो जाता है.

 

कट्टरपंथ के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल


इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (आईएसआईएस), अल-कायदा, हमास और हिजबुल्लाह जैसे समूह पहले से ही ऐसे उपकरणों का इस्तेमाल करके विभिन्न प्लेटफार्मों और भाषाओं में तेज़ी से अपनी विचारधारा फैला रहे हैं. एआई-संचालित चैटबॉट वास्तविक समय में व्यक्तिगत बातचीत की नकल करके जिहादियों की भर्ती के प्रयासों को और बेहतर बनाते हैं.

 ये वीडियो बिल्कुल असली जैसे लगते हैं. इनकी पहचान करना और नियंत्रण मुश्किल हो जाता है. चरमपंथी समूहों के लिए भर्ती करने वाले ट्रेंडिंग हैशटैग का फायदा उठाते हैं. दुष्प्रचार फैलाने के लिए वायरल सामग्री के कमेंट सेक्शन को हाईजैक कर लेते हैं.

आतंकवादी नकली चित्र, वीडियो और टेक्स्ट बनाते हैं, लेकिन वो बिल्कुल असली लगते हैं. ग़ाज़ा के मामले में ऐसा देखा जा चुका है. एआई के माध्यम से घायल बच्चों या मनगढ़ंत हमलों के वीडियो बनाए जाते हैं. इन पर काफ़ी तीखी भावनात्मक प्रतिक्रिया होती है. ये वीडियो बिल्कुल असली जैसे लगते हैं. इनकी पहचान करना और नियंत्रण मुश्किल हो जाता है. चरमपंथी समूहों के लिए भर्ती करने वाले ट्रेंडिंग हैशटैग का फायदा उठाते हैं. दुष्प्रचार फैलाने के लिए वायरल सामग्री के कमेंट सेक्शन को हाईजैक कर लेते हैं. कुछ समूह इससे भी आगे बढ़ जाते हैं, क्लिक-थ्रू रेट्स, ड्रॉप-ऑफ प्वाइंट्स और उपयोगकर्ताओं की भावना के विश्लेषण जैसे जुड़ाव मैट्रिक्स की निगरानी के लिए एआई-संचालित एनालिटिक्स का उपयोग करते हैं. ऐसा करने के बाद वो अपने संदेशों को उपयोगकर्ता के साथ सटीकता से अनुकूलित कर पाते हैं. ऐसे तरीके पहले सिर्फ पेशेवर राजनीतिक अभियानों के लिए ही इस्तेमाल किए जाते थे.

मुख्यधारा के प्लेटफॉर्म से हटाए जाने पर, ये आतंकवादी समूह टेलीग्राम या Justpaste.it जैसे मंचों का इस्तेमाल करने लगते हैं, क्योंकि इनमें कानूनी नियंत्रण कम होता है. इन प्लेटफ़ॉर्म पर एआई द्वारा उत्पन्न सामग्री और भी तेज़ी से फैलती है. इसके अलावा, जनरेटिव एडवर्सरियल नेटवर्क्स (जीएएन) द्वारा उत्पन्न चेहरों द्वारा संचालित नकली व्यक्तित्वों का इस्तेमाल समन्वित दुष्प्रचार अभियानों के माध्यम से चरमपंथी सामग्री फैलाने के लिए किया जाता है. ये नकली सामग्री ऑनलाइन समुदायों में घुल-मिल जाती है. जनरेटिव एआई, एल्गोरिदम एम्प्लीफिकेशन और व्यवहार विश्लेषण के इस मिश्रण ने सोशल मीडिया को चरमपंथी समूहों के हाथों में एक बेहद कुशल और कम लागत वाला हथियार बना दिया है.

गेमीफिकेशन और वर्चुअल वर्ल्ड से प्रचार

डिजिटल मनोरंजन और वैचारिक शिक्षा के बीच धुंधली होती रेखा एक और ख़तरा पेश करती है, और ये ख़तरा है कट्टरता का गेमीफिकेशन. जिहादी समूह लंबे समय से वीडियो गेम के आभाषी गुणों की तारीफ करते रहे हैं. अब जबकि, एआई-समर्थित गेम डिज़ाइन उपकरण ज़्यादा आसानी से मिल रहे हैं, तो इस बात को लेकर गंभीर चिंता जताई जा रही है कि युवाओं को आकर्षक तरीकों से प्रशिक्षित करने या कट्टरपंथी बनाने के लिए आभासी वातावरण (वर्चुअल एनवायरनमेंट)विकसित किया जा सकता है. उदाहरण के लिए, आईएसआईएस ने पहले भी अपने समर्थकों को कॉल ऑफ ड्यूटी जैसे लोकप्रिय फर्स्ट-पर्सन शूटर गेम्स में इस्लामिक स्टेट के प्रतीक डालकर उन्हें संशोधित करने के लिए प्रोत्साहित किया था.

आतंकवाद को वित्तीय मदद देना

आतंकवाद के लिए धन उगाहने के काम में एआई-सक्षम क्रिप्टो ट्रेडिंग बॉट्स के इस्तेमाल की खबरें आती रहती हैं. वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (एफएटीएफ) और अन्य वित्तीय नियामकों संस्थाओं ने एआई-सक्षम स्वचालन के माध्यम से संदिग्ध आतंकी वित्तपोषण की चेतावनी दी है. इसके अलावा, भारत में आतंकवादियों ने पुलवामा बम विस्फोट के लिए उपकरणों समेत, धन जुटाने और हमलों के लिए सामग्री खरीदने के लिए पे-पाल और अमेज़न ऐप का इस्तेमाल किया था.

कट्टरपंथ के लिए एन्क्रिप्टेड एआई चैटबॉट

एआई-संचालित चैटबॉट कट्टरपंथ के सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों में से एक हैं. नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग(एनएलपी) और एन्क्रिप्शन का इस्तेमाल करके, चरमपंथी चौबीसों घंटे रिक्रूटमेंट इंटरफेस तैनात कर सकते हैं. ये मानवीय बातचीत की नकल करते हैं और इनकी प्रभावी निगरानी लगभग असंभव है.

ग्लोबल डिसइन्फॉर्मेशन इंडेक्स के एक अध्ययन ने चैटबॉट कट्टरपंथ के बढ़ते चलन की चेतावनी दी गई है. इसमें उपयोगकर्ता एक स्वचालित व्यक्तित्व के साथ लंबे समय तक, लगातार कट्टरपंथी संवाद में संलग्न हो सकते हैं. ये बॉट धार्मिक गुरुओं की नकल कर सकते हैं, व्यक्तिगत मार्गदर्शन दे सकते हैं, धार्मिक प्रश्नों के उत्तर दे सकते हैं, और साथ ही चरमपंथी विचारधारा को मज़बूत कर सकते हैं.

मानवीय तौर पर भर्ती करने वालों के विपरीत, एआई बॉट हज़ारों नहीं तो कम से कम सैकड़ों लोगों को एक साथ वैचारिक प्रशिक्षण दे सकते हैं. उनका मार्गदर्शन कर सकते हैं.

आतंकवाद-विरोधी अभियान के लिए चुनौतियां

एआई और जिहादी प्रचार का ये संबंध वैश्विक आतंकवाद-रोधी एजेंसियों के लिए कड़ी चुनौतियां पेश करता है. पारंपरिक निगरानी तकनीकें, जैसे कि कीवर्ड ट्रैकिंग या अकाउंट फ़्लैगिंग, तेज़ी से अप्रभावी होती जा रही हैं. एक और गंभीर समस्या कंटेंट हैशिंग सिस्टम का पतन है, क्योंकि जनरेटिव एआई चरमपंथी सामग्री के अनगिनत रूप उत्पन्न करता है जो पारंपरिक हैश-मैचिंग टूल्स द्वारा पकड़े नहीं जाते. इसके अलावा, एआई अति-व्यक्तिगत, डेटा-संचालित संदेश भेजने में सक्षम होता है. इससे चरमपंथी समूह उपयोगकर्ता के व्यवहार, भावनाओं और भौगोलिक स्थिति के आधार पर ऐसी फर्ज़ी कहानियां भी गढ़ सकते हैं, जो उसका ब्रैनवॉश कर सकें.

 

डीपफेक और सिंथेटिक मीडिया का इस्तेमाल मामले को और जटिल बना देता है. इनकी मदद से आपत्तिजनक सामग्री के मूल, निर्माता और उद्देश्य को अस्पष्ट या गूढ़ रखकर उसे अस्वीकार किया जा सकता है. इससे कानूनी जवाबदेही कमज़ोर हो जाती है. नियामक संस्थाओं की विसंगतियां और प्लेटफ़ॉर्म की अलग-अलग कमियां इस समस्या को और बढ़ा देती हैं. इतना ही नहीं अक्सर आवश्यक भाषाई या तकनीकी विशेषज्ञता के अभाव में मानव मध्यस्थों द्वारा नियंत्रण में भी मुश्किल आती है. ऐसे में, ब्राउज़िंग इतिहास या भूगोल के आधार पर व्यक्तिगत प्रोफाइलों के लिए तैयार की गई चरमपंथी सामग्री का इस्तेमाल, कट्टरपंथ-विरोधी कोशिशों को और ज़्यादा जटिल बना देती है. इनकी पहचान करने और इन पर नियंत्रण पाने के लिए अधिक संसाधन जुटाना चुनौती बन जाता है.


एआई युग में आतंकवाद-रोधी अभियान को मजबूत करने के उपाय

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के युग में आतंकवाद-रोधी (सीटी) क्षमताओं को मज़बूत करने के लिए, एक महत्वपूर्ण कदम अगली पीढ़ी के एआई-संचालित कंटेंट मॉडरेशन सिस्टम को लागू करना है. ये उपकरण एआई-जनित दुष्प्रचार का पता लगाने में सक्षम होते हैं. ऐसे कंटेंट को चिह्नित करने के लिए अर्थ संबंधी पैटर्न, भाषाई चिह्नों और प्रासंगिक संकेतों का विश्लेषण करते हैं. टेक अगेंस्ट टेररिज्म जैसे संगठनों ने माइक्रोसॉफ्ट की मदद से ऐसी क्षमताओं को एकीकृत करने में छोटे प्लेटफार्मों का समर्थन करना शुरू कर दिया है.

ग्लोबल इंटरनेट फोरम टू काउंटर टेररिज़्म (जीआईएफसीटी) और ग्लोबल नेटवर्क ऑन एक्सट्रीमिज़्म एंड टेक्नोलॉजी (जीएनईटी) जैसी पहलों के माध्यम से क्रॉस-प्लेटफ़ॉर्म ख़तरा खुफ़िया जानकारी का विस्तार किया गया है. इनका उद्देश्य सिमेंटिक हैशिंग और एआई फिंगरप्रिंट-शेयरिंग को शामिल करना और चरमपंथी सामग्री का पता लगाना है, फिर चाहे वो पहली बार कहीं भी दिखाई दे. इसके अलावा, एक केंद्रीकृत बहुभाषी कंटेंट डेटाबेस के स्थापना की वकालत भी की जा रही है, जो एआई द्वारा उत्पन्न चरमपंथी सामग्री को ट्रैक कर सकें.

इसके समानांतर, ह्यूमन-इन-द-लूप सिस्टम भी आवश्यक साबित हो रही हैं. इस प्रणाली में मानवीय बुद्धिमत्ता और मशीन लर्निंग साथ मिलकर काम करते हैं. इंवेस्टिगेटिव पैटर्न डिटेक्शन फ्रेमवर्क फॉर काउंटर टेररिज़्म (INSPECT) जैसी परियोजनाएं, मशीन लर्निंग आधारित व्यवहार विश्लेषण को विशेषज्ञ मानवीय निगरानी के साथ जोड़कर कट्टरपंथ के शुरुआती संकेतों का पता लगाती हैं. मानव और मशीन के मिश्रण का ये दृष्टिकोण स्वचालन की गति और मानवीय निर्णय की सूक्ष्मता के बीच संतुलन बनाता है. भाषाई या सांस्कृतिक रूप से अस्पष्ट विषयों से निपटने में ये तरीका बहुत महत्वपूर्ण है.

 
इसके अलावा, सरकारों को एआई-सक्षम ख़तरों से निपटने के लिए एकीकृत, सीमा-पार नियम लागू करने होंगे. इसमें मानव मॉडरेटरों को अलग-अलग भाषाओं में प्रशिक्षण देना ज़रूरी है. इसके साथ ही, एआई सामग्री की उत्पत्ति में पारदर्शिता अनिवार्य करना, संस्थानों को त्वरित कार्रवाई के लिए कानूनी और तकनीकी ढांचे से लैस करना शामिल है.

भारत सरकार ने अपने आईटी अधिनियम 2000 को अपडेट किया है. हानिकारक सामग्री का पता लगाने के लिए स्वचालित उपकरणों के उपयोग को लागू करने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी नियम 2021 ('आईटी नियम, 2021) को अधिसूचित किया है. 

उदाहरण के लिए, भारत सरकार ने अपने आईटी अधिनियम 2000 को अपडेट किया है. हानिकारक सामग्री का पता लगाने के लिए स्वचालित उपकरणों के उपयोग को लागू करने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी नियम 2021 ('आईटी नियम, 2021) को अधिसूचित किया है. राष्ट्रीय साइबर समन्वय केंद्र ने 2025 तक 2,95,000 नकली सब्सक्राइबर आइडेंटिफिकेशन मॉड्यूल (सिम) कार्ड, 46,000 अंतर्राष्ट्रीय मोबाइल उपकरण पहचान (आईएमईआई), और 2,800 से ज़्यादा वेबसाइट/यूआरएल, 595 मोबाइल एप्लिकेशन को ब्लॉक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. इसी तरह, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और ब्रिटेन भी हानिकारक सामग्री को एल्गोरिदम के माध्यम से बढ़ाने से रोकने के लिए प्लेटफार्म की जवाबदेही को अनिवार्य करते हैं.

 
सामूहिक रूप से, इन रणनीतियों ने पहचान उपकरणों में बढ़ोतरी की. इसके अलावा, नीतिगत सुधारों में एकरूपता लाने का काम किया, जिससे चरमपंथी समूहों द्वारा एआई के बढ़ते दुरुपयोग के प्रति एक मज़बूत प्रतिक्रिया तैयार की जा सके.

निष्कर्ष

जिहादी भर्ती रणनीतियों में एआई का एकीकरण एक ख़तरनाक बदलाव का प्रतीक है. एल्गोरिदम द्वारा उन्नत प्रचार के ज़रिए डिजिटल नेटिव्स को निशाना बनाकर डीपफेक का लाभ उठाया जा रहा है. एन्क्रिप्टेड चैटबॉट जैसे स्केलेबल टूल का इस्तेमाल करके, चरमपंथी संगठन उन्हीं तकनीकों का फ़ायदा उठा रहे हैं जिन्हें लोगों से जुड़ने और सूचना देने के लिए डिज़ाइन किया गया है.

सरकारों, तकनीकी कंपनियों और नागरिक समाज को इस चुनौती का सामना करने के लिए तत्काल समन्वय करना होगा. इस पर प्रभावी रोक लगाने के लिए विभिन्न राष्ट्रों, प्लेटफ़ॉर्म, नियामकों और नागरिक समाज के बीच बुद्धिमत्तापूर्ण सहयोग ज़रूरी है. ऐसा करके ही एआई-संचालित जिहादवाद की लहर को वैश्विक सुरक्षा परिदृश्य के लिए बड़ा ख़तरा बनने से पहले ही रोका जा सकता है. एआई-संचालित जिहादवाद के खिलाफ़ लड़ाई के लिए ना सिर्फ आधुनिक उपकरणों की ज़रूरत होगी, बल्कि डिजिटल युग में कट्टरपंथ को बढ़ावा देने वाले सामाजिक और मनोवैज्ञानिक कारकों की गहरी समझ की भी आवश्यकता होगी.


सौम्या अवस्थी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर सिक्योरिटी, स्ट्रेटजी और टेक्नोलॉजी में फेलो हैं.

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Soumya Awasthi

Soumya Awasthi

Dr Soumya Awasthi is Fellow, Centre for Security, Strategy and Technology at the Observer Research Foundation. Her work focuses on the intersection of technology and national ...

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