भारत और दक्षिण कोरिया के बीच 10 दिसंबर 1973 को स्थापित कूटनीतिक संबंधों के 50 साल पूरे हो रहे हैं. 50वीं सालगिरह के मौक़े पर आयोजन, सेमिनार और दौरे होंगे जिनमें राजनीतिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक संबंधों पर चर्चा होगी और दोनों देशों के बीच पुराने रिश्तों पर विचार किया जाएगा. लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि इस अवसर पर मौजूदा संबंधों को और मज़बूत करने के लिए क्या करने की ज़रूरत है, उसको लेकर आत्ममंथन की बात कही गई है. जिस समय भारत और दक्षिण कोरिया कूटनीतिक संबंधों की 50वीं सालगिरह मना रहे हैं, हमें ये ज़रूर पता लगाना चाहिए कि ये रिश्ता अपनी वास्तविक संभावना तक क्यों नहीं पहुंचा है और कौन सी चीज़ें इसे और आगे बढ़ा सकती है.
ग़ायब तत्व की पहचान: तकनीक
वैसे तो भारत और दक्षिण कोरिया बौद्ध धर्म से लेकर लोकतांत्रिक मूल्यों और उपनिवेशवाद का इतिहास साझा करते हैं लेकिन दोनों देशों के बीच एक ठोस संपर्क की अभी भी कमी है. भारत और दक्षिण कोरिया ने अपने राजनीतिक और विकास के रास्ते में अलग-अलग यात्राएं की. भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, विकासशील देशों की एक आवाज़ है और दवाइयों, IT एवं इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए एक उत्पादन केंद्र है. इसी तरह दक्षिण कोरिया भी आगे बढ़कर एशिया में डिजिटल तकनीक, इनोवेशन, रिसर्च और उदारवादी लोकतंत्र के मामले में एक अग्रणी देश बन गया है. दोनों देशों के बीच व्यापार की मात्रा 2022 में 27.8 अरब अमेरिकी डॉलर पर पहुंच गई. ये और बेहतर करने की संभावना दिखाता है लेकिन किसी चीज़ की अभी भी कमी है.
.भारत और दक्षिण कोरिया पारस्परिक हितों और व्यापक वैश्विक स्थायित्व के लिए जुड़ सकते हैं. इसे लेकर इस साल जनवरी में पांचवें भारत-कोरिया विदेश नीति एवं सुरक्षा संवाद के दौरान चर्चा हो चुकी है.
संबंधों के आगे नहीं बढ़ने का कारण है भारत के सामरिक रूप से नज़रअंदाज़ करना. दोनों देशों के बीच ‘विशेष सामरिक साझेदारी’ होने के बावजूद ये न तो ‘विशेष’ है न ही इसमें कुछ ‘सामरिक’ है. ऐसा इसलिए है क्योंकि परंपरागत आर्थिक हित का दबदबा प्राथमिक तौर पर बना हुआ है. इसके कारण संबंध ठहरे हुए हैं और नये क्षेत्रों में रिश्तों का विस्तार नहीं हो रहा है. एक साझा दृष्टिकोण की अनुपस्थिति पूरी तरह से बनी हुई है. हालांकि ‘तकनीक’ रिश्तों का विस्तार और उसे गहरा कर सकती है. दो देशों को एक तरफ़ लाने में तकनीक नई प्रेरक है और साझा मूल्यों वाले देशों से चीज़ें हासिल करना, भरोसा और लोकतांत्रिक प्रणाली स्थायित्व, समृद्धि और सुरक्षा के महत्वपूर्ण निशान के रूप में उभर रहे हैं. भारत और दक्षिण कोरिया पारस्परिक हितों और व्यापक वैश्विक स्थायित्व के लिए जुड़ सकते हैं. इसे लेकर इस साल जनवरी में पांचवें भारत-कोरिया विदेश नीति एवं सुरक्षा संवाद के दौरान चर्चा हो चुकी है.
वर्तमान में भारत-दक्षिण कोरिया का संबंध सुस्त रफ़्तार से आगे बढ़ रहा है, विशेष रूप से जापान- भारत रिश्तों की तुलना में. जापान-भारत के बीच संबंध वास्तविक तौर पर एक ‘विशेष सामरिक और वैश्विक साझेदारी’ है. जापान और भारत अपने भौगोलिक क्षेत्र से परे तीसरे देशों में और द्विपक्षीय परिस्थितियों में काम करते हैं, क्वॉड के ज़रिए क्षेत्रीय चिंताओं का समाधान करते हैं और G4 के माध्यम से बहुपक्षीय संस्थानों जैसे कि संयुक्त राष्ट्र (UN) में सुधार के लिए काम कर रहे हैं. भारत और जापान के बीच व्यापार केवल 20 अरब अमेरिकी डॉलर, जो कि भारत और दक्षिण कोरिया के बीच व्यापार से कम है, होने के बावजूद संबंध ज़्यादा महत्वपूर्ण है. ORF की विदेश नीति सर्वे 2022 में जापान इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भारत के लिए सबसे बड़े साझेदार के तौर पर उभरा है. 31 प्रतिशत लोगों ने इसके पक्ष में मतदान किया जबकि 73 प्रतिशत लोग जापान को भारत के अग्रणी साझेदार के रूप में देखते हैं. रक्षा, सार्वजनिक बुनियादी ढांचे, कनेक्टिविटी और तकनीक के क्षेत्र में संबंधों में गहराई और इससे भी बढ़कर एक-दूसरे के भविष्य में हिस्सेदारी ने भारत-जापान के बीच संबंध को दूसरे देशों से अलग कर दिया है. 2022 में अपने भारत दौरे में जापान के प्रधानमंत्री फूमियो किशिदा ने अगले पांच साल के लिए 5 ट्रिलियन येन की रक़म ‘सार्वजनिक एवं निजी परियोजनाओं के लिए वित्त’ के तौर पर देने की प्रतिबद्धता जताई. ये रक़म 3.5 ट्रिलियन येन की पहले की रक़म से परियोजनाओं के सफलतापूर्वक पूरा होने के बाद दी जा रही है. जापान और भारत के संबंध दिखाते हैं कि दो देश केवल व्यापार साझेदार नहीं बल्कि एक-दूसरे के विकास के हिस्से हो सकते हैं. ये भरोसे के ऊंचे स्तर को दिखाता है. भारत और दक्षिण कोरिया के बीच एक-दूसरे के भविष्य को लेकर महत्वपूर्ण प्रतिबद्धता की कमी है. उनका दृष्टिकोण गतिहीन, तकनीकी साझेदारी से अलग बना हुआ है.
संबंधों में तकनीकी क़दम उठाना
कोविड-19 महामारी के आने के बाद सहयोग का महत्व, विशेष रूप से अहम उभरती तकनीक के क्षेत्र में, दुनिया भर में बढ़ गया है. भारत ने भी सुरक्षा, सार्वजनिक बचाव और एक देश की समृद्धि के लिए तकनीक की महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार किया है. पिछले दिनों भारत और अमेरिका ने क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक (iCET) में अपनी सामरिक साझेदारी की पहल को बढ़ाया है और ‘नज़दीकी सहयोग’, ‘एक साथ विकास एवं उत्पादन’ पर ध्यान दिया है. ये पहल जैव प्रौद्योगिकी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्वॉन्टम टेक्नोलॉजी, हाई-परफॉर्मेंस कम्प्यूटिंग (HPC), एडवांस मैटेरियल और रेयर-अर्थ प्रोसेसिंग टेक्नोलॉजी में संभावनाओं को स्वीकार करती है और उसका पता लगाती है. इस तरह एक ऐसी साझेदारी का संकेत देती है जो कि ‘लोकतांत्रिक मूल्यों और लोकतांत्रिक संस्थाओं’ पर आधारित ‘एक खुले, सुलभ और सुरक्षित तकनीकी इकोसिस्टम को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है.” iCET के अलावा केवल एक और इससे मिलती-जुलती पहल भारत-EU तकनीकी एवं व्यापार परिषद है. परिषद में तीन कार्यकारी समूह है: ‘सामरिक तकनीक, डिजिटल शासन व्यवस्था एवं डिजिटल तकनीक’; ‘हरित एवं स्वच्छ ऊर्जा तकनीक’; और ‘व्यापार, निवेश एवं लचीलापन मूल्य श्रृंखलाएं’. भारत और दूसरी बड़ी शक्तियों के बीच तकनीकी साझेदारी भारत के इनोवेशन इकोसिस्टम एवं विकास में विश्वास पर आधारित है. ऑस्ट्रेलिया के एक थिंक टैंक ASPI के द्वारा अहम तकनीकों पर नज़र रखने वाली ताज़ा रिपोर्ट में भारत को पांच बड़े देशों में रखा गया है जो 44 में से 29 तकनीकों में अग्रणी है.
iCET के अलावा केवल एक और इससे मिलती-जुलती पहल भारत-EU तकनीकी एवं व्यापार परिषद है. परिषद में तीन कार्यकारी समूह है: ‘सामरिक तकनीक, डिजिटल शासन व्यवस्था एवं डिजिटल तकनीक’; ‘हरित एवं स्वच्छ ऊर्जा तकनीक’; और ‘व्यापार, निवेश एवं लचीलापन मूल्य श्रृंखलाएं’.
इसके विपरीत दक्षिण कोरिया 20 तकनीकों में अग्रणी है. आश्चर्य की बात ये है कि बढ़ते इनोवेशन और रिसर्च इकोसिस्टम के साथ एक महत्वपूर्ण तकनीकी केंद्र होने के बावजूद भारत और दक्षिण कोरिया के बीच ‘महत्वपूर्ण तकनीकी’ साझेदारी का पता नहीं लगाया गया है. एक और क्षेत्र सेमीकंडक्टर सप्लाई चेन का है; दक्षिण कोरिया इस क्षेत्र में एक बड़ा किरदार है और वो ख़ुद को अमेरिका के सामरिक बदलाव के साथ जोड़ने का इरादा रखता है. भारत ने भी सेमीकंडक्टर सेक्टर में 10 अरब अमेरिकी डॉलर के प्रोत्साहन की पेशकश करके PLI पहल के ज़रिए सामरिक निवेश के साथ क्षमता निर्माण और उत्पादन को लेकर अपने रणनीतिक इरादे का संकेत दिया है. अमेरिका और ताइवान जैसे कई देशों ने दिलचस्पी दिखाई है. इंटरनेशनल सेमीकंडक्टर कंसोर्टियम (ISMC) के द्वारा 3 अरब अमेरिकी डॉलर के निवेश की घोषणा भारत में सेमीकंडक्टर निर्माण की यूनिट स्थापित करने की पहली योजना थी. इसके बाद सिंगापुर की IGSS वेंचर ने भी सेमीकंडक्टर निर्माण की यूनिट स्थापित करने का ऐलान किया. अमेरिका ने भी व्यावसायिक संवाद के तहत एक सेमीकंडक्टर उप-समिति की स्थापना के लिए भारत के साथ एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए है. इस संवाद का केंद्र बिंदु ‘सेमीकंडक्टर सेक्टर में औद्योगिक सहयोग को बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक एवं निजी प्रयासों को बढ़ाने’ से लेकर ‘सेमीकंडक्टर के लिए मज़बूत संपर्क, अतिरिक्त इकोसिस्टम और अधिक विविधतापूर्ण सप्लाई चेन विकसित करना’ है. कुछ घरेलू उत्पादकों ने भी इस स्पर्धा में शामिल होने के निर्णय की घोषणा की है. वेदांता-फॉक्सकॉन इस मामले में पहली कंपनी है. ख़बरें ये भी हैं कि फॉक्सकॉन दूसरी यूनिट के बारे में भी विचार कर रही है. दक्षिण कोरिया को महत्वपूर्ण तकनीकी क्षेत्र में प्रोत्साहन की पेशकश करने वाली PLI योजना के तहत अवसरों का पता लगाना चाहिए. ये तकनीकी साझेदारी के क्षेत्र में एक बाध्यकारी कारक के रूप में उभर सकता है जिससे बेहतर सामरिक संबंध बन सकते हैं. ऐसा ही वो जापान के साथ करने की कोशिश कर रहा है. तकनीकी क्षेत्र में नज़दीकी सहयोग के लिए लोगों के बीच बेहतर संबंध की आवश्यकता होगी जो व्यवसायों, अनुसंधानकर्ताओं और स्टार्टअप्स के लिए आसान पहुंच, गतिशीलता और बातचीत से प्राप्त की जा सकती है. दक्षिण कोरिया सेमीकंडक्टर इंजीनियर को बढ़ावा देने वाली तकनीकी यूनिवर्सिटी के छात्रों को स्कॉलरशिप की पेशकश करके भारत के टैलेंट पूल का फ़ायदा उठा सकता है. भारत के बढ़ते रक्षा क्षेत्र और तेज़ होते निर्यात के साथ सेमीकंडक्टर की ‘सुरक्षित’ और ‘लचीली सप्लाई चेन’ महत्वपूर्ण हो जाती है.
इसके अतिरिक्त दक्षिण कोरिया और भारत के बीच बढ़ता रक्षा सहयोग एक और क्षेत्र है जहां सेमीकंडक्टर की सुरक्षा और लचीलापन महत्वपूर्ण बन जाती है. परंपरागत तौर पर दूसरे देशों के साथ भारत के सामरिक संबंधों में प्रगति कई कारणों से मज़बूत रिश्तों की वजह से हुई है जैसे कि रक्षा सहयोग, सामरिक विकास की साझेदारी या फिर दोनों के मिश्रण के कारण. रूस, अमेरिका, इज़रायल और फ्रांस के साथ भारत के संबंधों में प्रगति बढ़ते रक्षा सहयोग की वजह से हुई है; दूसरी तरफ़ जापान के साथ भारत के रिश्ते साल-दर-साल जापान के द्वारा घरेलू और उससे आगे भारत के बुनियादी ढांचे और कनेक्टिविटी को आधुनिक करने के प्रयासों और हाल के वर्षों में बढ़ते रक्षा संबंधों के कारण भी मज़बूत हुए है. भारत और दक्षिण कोरिया के संबंध व्यापार एवं वाणिज्य पर आधारित है. इसके साथ-साथ रक्षा सहयोग के भी कुछ उदाहरण है. दोनों देशों के बीच मज़बूत व्यापार ने दूसरे क्षेत्रों में सहयोग की कमी के बावजूद रिश्तों को सकारात्मक बनाए रखा है लेकिन मौजूदा प्रशासन के तहत व्यापार घाटे की वजह से बढ़ती नकारात्मक सोच ने एक बेचैनी के अंश की शुरुआत की है. पिछले दिनों भारत के वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल के द्वारा CEPA (व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौता) से दक्षिण कोरिया की कंपनियों के फ़ायदा उठाने को लेकर सीधी टिप्पणी ने अन्याय की तरफ़ इशारा किया है और अगर CEPA को लेकर फिर से बातचीत में प्रगति नहीं होती है तो इससे संबंधों पर ख़राब असर पड़ सकता है. CEPA को लेकर ये बातचीत कई वर्षों से चल रही है और कोविड-19 की वजह से इसमें देरी हुई है. ये रवैया घरेलू राजनीतिक सोच-विचारों से तय होता है और यदि CEPA को लेकर बातचीत के दौरान समाधान नहीं होता है तो इसमें और बढ़ोतरी होगी. पिछले साल व्यापार मंत्रियों की बैठक के दौरान 2030 के लिए 50 अरब अमेरिकी डॉलर का नया व्यापार लक्ष्य तय किया गया है और इस बात पर सहमति बनी कि ‘दोनों पक्षों के लिए परस्पर लाभदायक एक न्याय संगत और संतुलित ढंग से विकास’ को हासिल करना दोनों देशों के बीच तकनीकी क्षेत्र में और ज़्यादा सहयोग के बिना संभव नहीं होगा.
दक्षिण कोरिया और भारत के बीच बढ़ता रक्षा सहयोग एक और क्षेत्र है जहां सेमीकंडक्टर की सुरक्षा और लचीलापन महत्वपूर्ण बन जाती है. परंपरागत तौर पर दूसरे देशों के साथ भारत के सामरिक संबंधों में प्रगति कई कारणों से मज़बूत रिश्तों की वजह से हुई है
आगे का रास्ता
ये सुनिश्चित करने के लिए कि दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंध मज़बूत बना रहे, दक्षिण कोरिया को हर हाल में दूसरे क्षेत्रों में संबंधों में विविधता लानी चाहिए ताकि जोखिम का बंटवारा हो सके. रक्षा, विज्ञान एवं तकनीक, स्वच्छ ऊर्जा, बुनियादी ढांचा और कनेक्टिविटी महत्वपूर्ण क्षेत्र है जहां भारत और दक्षिण कोरिया मज़बूत बदलाव लाने में योगदान दे सकते हैं. चूंकि चीन से बढ़ते ख़तरे की वजह से भारत अपनी सेना का आधुनिकीकरण और विस्तार कर रहा है, ऐसे में दक्षिण कोरिया के रक्षा उत्पादक भारत और इस क्षेत्र के दूसरे देशों की मांगों को पूरा करने में नीतियों से लाभ उठा सकते है. एक और महत्वपूर्ण क्षेत्र स्वच्छ ऊर्जा का है; भारत में ऊर्जा बदलाव पर ध्यान से दक्षिण कोरिया को स्वच्छ ऊर्जा की पहल पर सहयोग की अनुमति मिलती है, विशेष रूप से ग्रीन हाइड्रोजन और पवन ऊर्जा में. दक्षिण कोरिया ने 90 के दशक के दौरान ऑटो सेक्टर में निवेश के ज़रिए भारत पर जो दांव लगाया था, उसे एक बार फिर से दोहराना चाहिए और इस बार ये ‘तकनीक’ पर होना चाहिए. तकनीक के क्षेत्र में ये क़दम दोनों देशों को संस्थानों के बीच सामरिक भरोसा बनाने में मदद करेगा और एक-दूसरे की प्रगति को लेकर एक प्रतिबद्धता का संकेत देगा. ये तकनीकी और सामरिक साझेदारी का एजेंडा आगे नहीं बढ़ पाया है क्योंकि महामारी के समय से दोनों देशों के बीच उच्च-स्तरीय राजनीतिक बैठक नहीं हो पाई है. दोनों देशों के नेताओं के द्वारा ‘अपनी सामरिक साझेदारी को विकसित और गहरा करने’ का जताया गया इरादा ठहरा हुआ है. इस साल दोनों देशों के बीच संबंधों में परिवर्तन आ सकता है अगर साझेदारी का विस्तार करके उसमें महत्वपूर्ण उभरती तकनीक को शामिल कर लिया जाए. इससे आर्थिक रिश्तों में और मज़बूती आ सकती है और भरोसे का निर्माण हो सकता है. G20 के सदस्य देशों के प्रमुखों की बैठक के दौरान राष्ट्रपति यून और प्रधानमंत्री मोदी इस साझेदारी का विस्तार नये क्षेत्रों में करके इसे बढ़ा सकते है. इससे सहयोग के एक व्यापक क्षेत्र का निर्माण हो सकता है और ‘2+2’ फॉर्मेट को विदेश एवं रक्षा मंत्रियों तक बढ़ाकर द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत किया जा सकता है. ऐसा होने से तकनीकी स्टार्टअप और छोटी कंपनियों को भी प्रेरणा मिलेगी कि वो एक-दूसरे के इकोसिस्टम में शामिल हों और परस्पर हितों के लिए अवसरों का लाभ उठाएं.
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