Published on Jun 01, 2023 Updated 0 Hours ago
क्या श्रीलंका का आर्थिक संकट जल्द ख़त्म होने वाला है?

क्या श्रीलंका 2022 के अभूतपूर्व आर्थिक संकट को पीछे छोड़कर आगे बढ़ रहा है? और, भारत एवं श्रीलंका के संबंध इस नई परिस्थिति के हिसाब से ख़ुद को कैसे ढालें? ये कुछ सवाल हैं जो भारत के सामने खड़े हैं. बहुत से लोग श्रीलंका को आर्थिक विकास के ग़लत दिशा में बढ़ने से मची तबाही की सबसे बड़ी मिसाल बताने लगे थे. वो लोग ये रेखांकित कर रहे थे कि श्रीलंका ने चीन के बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव के लिए भारी मात्रा में क़र्ज़ लिया, जिसके नतीजे में वो आर्थिक रूप से तबाह हो गया. इसमें बिल्कुल शक नहीं कि श्रीलंका का आर्थिक संकट बहुत से विकासशील देशों के लिए सावधानी बरतने का एक सबक़ है. भुगतान के संतुलन के भयंकर संकट ने श्रीलंका को मजबूर किया कि वो अप्रैल 2022 में 50 अरब डॉलर के क़र्ज़ का भुगतान करने से पहले ख़ुद को दिवालिया घोषित कर दे. इसके चलते श्रीलंका की अर्थव्यवस्था तेज़ रफ़्तार से घटने लगी, जबकि महंगाई आसमान छूने लगी. 2022 में श्रीलंका की GDP में 7.8 प्रतिशत की गिरावट आ गई. जबकि, महंगाई की दर सितंबर 2022 में (कोलंबो कंज़्यूमर प्राइस इंडेक्स के मुताबिक़) बढ़कर 69.8 प्रतिशत पहुंच गई

ग़रीबी उन्मूलन में हासिल की गई उपलब्धियां भी वहीं पहुंच गईं, जहां से शुरुआत हुई थी. श्रीलंका के नागरिकों ने परिवार केंद्रित प्रशासन और आर्थिक कुप्रबंधन के ख़िलाफ़ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किए, जिसके कारण राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे और उनके भाई महिंदा राजपक्षे की सरकार को इस्तीफ़ा देना पड़ा था.

अर्थव्यवस्था में वृद्धि होने की उम्मीद

अब अच्छी ख़बर ये है कि श्रीलंका की अर्थव्यवस्था स्थिर होने के संकेत देने लगी है. अगले साल श्रीलंका की अर्थव्यवस्था में वृद्धि होने की उम्मीद है. अप्रैल 2023 में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) द्वारा जारी पूर्वानुमानों के मुताबिक़ 2023 में श्रीलंका की अर्थव्यवस्था -3.1 प्रतिशत घटेगी और 2024 में उसमें 1.5 प्रतिशत की वृद्धि होगी. सालाना महंगाई दर भी अप्रैल 2023 में कम होकर 35.3 प्रतिशत रह गई है. लेकिन, इस साल नकारात्मक विकास दर का मतलब है पूरी अर्थव्यवस्था में लोगों की नौकरियां जाएंगी. आमदनी की ग़रीबी दोगुना बढ़कर आबादी का 25 प्रतिशत हो जाएगी (2017 की परचेजिंग पावर पैरिटी (PPP) के आधार 3.65 डॉलर प्रति व्यक्ति की दर से) और बच्चों के बीच कुपोषण बढ़ेगा, क्योंकि बहुत से परिवार कम पोषक आहार लेने को मजबूर होंगे.

श्रीलंका को लेकर ये संशोधित आर्थिक भविष्यवाणी इस बात पर आधारित है कि, उथल-पुथल भरे सियासी हालात शांत होंगे. जिससे श्रीलंका के सामान्य नागरिक अपना जीवन सुकून से जी सकेंगे; राष्ट्रपति रनिल विक्रमसिंघे की सरकार ने निर्णायक आर्थिक फ़ैसले लिए हैं और सही समय पर भारत ने मदद की है. जुलाई 2022 के अंत से विक्रमसिंघे की सरकार ने अर्थव्यवस्था को स्थिर करने के क़दम उठाने शुरू कर दिए थे. IMF से मदद लेने पर बातचीत भी तेज़ कर दी थी, और उन्होंने श्रीलंका को क़र्ज़ देने वाले देशों से भी क़र्ज़ लौटाने में कुछ रियायतें लेने के लिए बातचीत शुरू कर दी थी. आर्थिक स्थिरता लाने के लिए जो ठोस क़दम उठाए गए थे, उनमें बेक़ाबू महंगाई पर लगाम लगाने के लिए सख़्त मौद्रिक नीतियां लागू करना, टैक्स बढ़ाना, ईंधन और बिजली पर दी जाने वाली सब्सिडी कम करना और श्रीलंका की सरकारी कंपनियों (SOEs) जैसे कि श्रीलंका एयरलाइंस, श्रीलंका टेलीकॉम और श्रीलंका इंश्योरेंस के निजीकरण की योजना पर काम करने जैसे उपाय शामिल थे.

संकट के शिकार श्रीलंका को जब IMF से मदद मिलने का इंतज़ार था, तब उसने भारत से फ़ौरी तौर पर मदद करने की गुहार लगाई थी. जिसके बाद भारत ने अपने इतिहास में मदद के सबसे बड़े पैकेज का एलान किया था. भारत की इस मदद की वजह श्रीलंका में तेज़ी से बढ़ रहा मानवीय संकट था, जो श्रीलंका की जनता पर क़हर बरपा रहा था. भारत को ये चिंता भी थी कि श्रीलंका के हालात और ख़राब हुए तो लोग वहां से भागकर भारत आ सकते हैं. इसके अलावा दक्षिणी भारत से सियासी दबाव भी था. भारत ने 2022 के पहले उत्तरार्ध में श्रीलंका को 4 अरब डॉलर की मदद दी थी. इसमें रियायती दर पर लोन और मदद शामिल थे. 2022 में श्रीलंका को जितनी मदद भारत ने दी, वो उसको किसी और देश से मिली आर्थिक मदद से कई गुना ज़्यादा है. इस वजह से भारत ने, श्रीलंका के एक प्रमुख उभरते हुए दानदाता के तौर पर अपनी स्थिति मज़बूत कर ली. भारत ने श्रीलंका को IMF से मदद दिलाने के लिए कूटनीतिक प्रयास भी किए और मार्च 2024 तक उसको एक अरब डॉलर की क्रेडिट लाइन भी बढ़ा दी है. जुलाई 2020 में ही भारत के रिज़र्व बैंक ने श्रीलंका के केंद्रीय बैंक के साथ करेंसी स्वैप का समझा किया था, जिससे कोविड-19 महामारी के बीच श्रीलंका को फ़ौरी तौर पर 40 करोड़ डॉलर की मदद मिल सके.

मार्च 2023 में IMF के बोर्ड ने श्रीलंका की मदद के लंबे समय से लटके मदद के कार्यक्रम को मंज़ूरी दे दी, जिससे अगले 48 महीनों में श्रीलंका क 2.9 अरब डॉलर की सहायता प्राप्त होगी. इससे पहले श्रीलंका के सभी क़र्ज़दाताओं की तरफ़ से IMF को इस बात का भरोसा दिया गया था कि वो या तो श्रीलंका को क़र्ज़ लौटाने में रियायतें देंगे या फिर उसको और लोन देकर मदद करेंगे, जो IMF के स्थिरता लाने वाले कार्यक्रम के अनुरूप होंगे. दिवालिया होने के बाद IFM से मिलने वाली मदद के कार्यक्रम के भू-राजनीतिक नतीजे भी निकलते ही हैं. श्रीलंका के कुल सरकारी क़र्ज़ में चीन से लिए गए लोन का हिस्सा लगभग 8.5 प्रतिशत (जून 2022 तक) है. लेकिन, इस क़र्ज़ को लौटाने में रियायत के लिए श्रीलंका और चीन के बीच बातचीत लंबी चली. इसकी एक वजह तो चीन की सख़्त ज़ीरो कोविड-19 नीति के अलावा चीन की ये मांग भी थी कि श्रीलंका और IMF उसके क़र्ज़ को दूसरे देशों से मिले लोन से अलग करके देखें. हालांकि, राष्ट्रपति विक्रमसिंघे और चीन के वरिष्ठ अधिकारियों के बीच उच्च स्तर की बातचीत के बाद आख़िरकार चीन ने IMF की तसल्ली लायक़ मदद का भरोसा दे दिया.

श्रीलंका के इतिहास का सबसे कड़ा और IMF का 17वां मदद का कार्यक्रम, देश के आर्थिक संकट से निपटने के लिए बेहद अहम है. इस कार्यक्रम के तहत टैक्स बढ़ाकर और टैक्स वसूली की व्यवस्था में सुधार लाकर, सरकारी ख़र्च सुधारकर, भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ सख़्त उपायों के ज़रिए, ग़रीबी उन्मूलन के अधिक सटीक कार्यक्रमों, स्वतंत्र केंद्रीय बैंक की स्थापना और बैंकों को पूंजी देकर देश की वित्तीय और क़र्ज़ लेने की क्षमता को टिकाऊ बनाया जाना है. इस कार्यक्रम से श्रीलंका को फौरी तौर पर 33.3 करोड़ डॉलर की आर्थिक मदद मिलेगी. जिसके बाद एशियाई विकास बैंक और विश्व बैंक भी श्रीलंका को पूंजी देंगे. हालांकि, कुछ जोखिम ऐसे हैं जो IMF का कार्यक्रम लागू करने में बाधा डाल सकते हैं. इनमें पुराने क़र्ज़ को लौटाने की नई मियाद तय करने में आने वाली मुश्किल, IMF कार्यक्रम को लेकर सियासी दलों में आम सहमति का अभाव और दुनिया में तेज़ी से आ रही आर्थिक सुस्ती जैसी चुनौतियां शामिल हैं. 

भारत से बढ़ता निवेश

इसके बावजूद, श्रीलंका को लेकर बदलता नज़रिया एक अच्छा मौक़ा है, जब भारत और श्रीलंका के रिश्ते मददगार से आगे बढ़कर गहरे द्विपक्षीय व्यापार और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में इज़ाफ़े की दिशा में बढ़ सकते हैं. अदानी समूह ने हाल ही में श्रीलंका के मन्नार बेसिन में पवन ऊर्जा के नवीनीकरण योग्य ऊर्जा कारखाने और कोलंबो बंदरगाह के वेस्ट कंटेनर टर्मिनल में 1.142 अरब डॉलर के निवेश का वादा किया है. अदानी समूह की ये विशाल परियोजनाएं 2005 से 2019 के बीच भारत से श्रीलंका में निवेश किए गए कुल FDI का 67 फ़ीसद हैं. द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देने के लिए, दोनों देशों के बीच हिंद महासागर से होकर गुज़रने वाली बिजली आपूर्ति की लाइन बिछाने पर भी चर्चा चल रही है. ख़बर आई थी कि टाटा समूह, जिसने जनवरी 2022 में एयर इंडिया को ख़रीदा था, वो इस वक़्त श्रीलंका एयरलाइंस ख़रीदने के लिए बातचीत कर रहा है. हम ये उम्मीद कर सकते हैं कि भारतीय कंपनियों के मूलभूत ढांचे के ये प्रोजेक्ट श्रीलंका की कायापलट करने वाले होंगे. इनके ज़रिए देश में पूंजी भी आएगी और श्रीलंका को कौशल और तकनीक भी मिलेंगे. इन निवेशों के ज़रिए जो भरोसा क़ायम होगा, उससे श्रीलंका के एग्रो-प्रॉसेसिंग, टेक्सटाइल और लाइट मैन्युफैक्चरिंग के साथ साथ सूचना प्रौद्योगिकी उद्योगों में भारत से निवेश बढ़ेगा.

इसी तरह दुनिया में कारोबार करने वाली श्रीलंका की कंपनियों को भी चाहिए कि वो दक्षिण भारतीय राज्यों में निवेश करें. जैसे कि ब्रांडिक्स कपड़ा उद्योग में, दिलमाह, चाय और पर्यटन उद्योग में और जॉन कील्स होल्डिंग फूड प्रॉसेसिंग और पर्यटन के क्षेत्र में. भारत और श्रीलंका को चाहिए कि वो निवेशकों के बीच अच्छे से प्रचार करके, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आने के नियमों में उदारीकरण और डिजिटलीकरण करके निवेश में आने वाली सरकारी बाधाओं को दूर करते हुए, FDI के द्विपक्षीय प्रवाह को सक्रियता से बढ़ावा दें. नियम आधारित क्षेत्रीय व्यापार और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए अगर भारत और श्रीलंका जल्द से जल्द व्यापक व्यापार समझौते की शुरुआत करते हैं, तो ये सोने पर सुहागा होगा. इसका मक़सद ऊंचे दर्जे का व्यापार समझौता होना चाहिए. जिससे 21वीं सदी के व्यापारिक नियमों के मुताबिक़ आपूर्ति श्रृंखलाओं और सेवाओं के गहरे एकीकरण के लिए ऊंचे दर्जे का व्यापार समझौता हो सके.

आर्थिक संकट से उबरने की राह

एक साल बाद, ऐसा लग रहा है कि श्रीलंका आर्थिक संकट से उबरने की राह पर चल पड़ा है. अब IMF का कार्यक्रम लागू करने की राजनीतिक इच्छाशक्ति के ज़रिए आने वाले कुछ वर्षों में श्रीलंका के आर्थिक हालात सामान्य हो सकते हैं. ऐसे में भारत और श्रीलंका के रिश्ते सहायता देने और लेने वाले देशों से आगे बढ़कर गहरे व्यापारिक संबंधों और निवेश का प्रवाह तेज़ करने की दिशा में आगे बढ़ने चाहिए, जिससे दोनों देशों को लाभ हो. तेज़ी से प्रगति करता श्रीलंका, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति के लिए एक बड़ी जीत साबित होगा, और इससे वो अपनी G20 अध्यक्षता के दौरान एक उभरते हुए दानदाता के तौर पर चीन को पछाड़ सकेगा.

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