19 जनवरी को उत्तराखंड में सीमा सड़क संगठन (BRO) की 35 इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं का उद्घाटन करते समय भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि “देश (भारत) में जलवायु परिवर्तन केवल मौसम से जुड़ी घटना नहीं है बल्कि ये मामला राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा है”. राजनाथ सिंह ने ये स्पष्ट बयान चीन का ज़िक्र किए बिना दिया. उन्होंने संकेत दिया कि “कुछ (भारतीय) सीमावर्ती राज्यों जैसे कि उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश एवं सिक्किम और केंद्र शासित प्रदेशों (UT) जैसे कि लद्दाख में हाल के वर्षों में प्राकृतिक आपदाओं की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. हिमालय का विस्तार दूसरे राज्यों में भी है लेकिन ऐसी घटनाएं सिर्फ कुछ राज्यों तक ही सीमित हैं और हम इसे नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते.”
हालांकि संकेत बिल्कुल साफ है क्योंकि ये राज्य तिब्बत के साथ सीमा साझा करते हैं और इन राज्यों में भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) विवादित है: पश्चिमी सेक्टर (लद्दाख क्षेत्र में अक्साई चिन), मध्य सेक्टर (हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड) और पूर्वी सेक्टर (सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश).
2018 में असम की राज्य सरकार ने मज़बूती से कहा था कि बहुत ज़्यादा बारिश नहीं होने के बावजूद राज्य में बहुत ज़्यादा बाढ़ आ गई जिसके परिणामस्वरूप बाढ़ की तीसरी लहर आई जिसे तिब्बत के प्राकृतिक इकोसिस्टम में चीन के द्वारा दखल के रूप में माना जाता है.
राजनाथ सिंह ने ये भी मज़बूती से कहा कि, “भारत के रक्षा मंत्रालय ने इसे काफी गंभीरता से लिया है और इस मुद्दे पर किसी दुश्मन देश के शामिल होने को खारिज करने और अध्ययन करने के लिए मित्र देशों से मदद लेगा.” ‘शत्रु’ शब्द अपने आप में स्पष्ट है क्योंकि चीन के साथ भारत के संबंध ख़राब हैं. अतीत में भारत के कुछ राज्यों ने चीन के हस्तक्षेप के कयास लगाए थे. 2018 में असम की राज्य सरकार ने मज़बूती से कहा था कि बहुत ज़्यादा बारिश नहीं होने के बावजूद राज्य में बहुत ज़्यादा बाढ़ आ गई जिसके परिणामस्वरूप बाढ़ की तीसरी लहर आई जिसे तिब्बत के प्राकृतिक इकोसिस्टम में चीन के द्वारा दखल के रूप में माना जाता है. इस तरह ये सवाल बना हुआ है कि क्या चीन मौसम में फेरबदल कर रहा है?
2020 में चीन के स्टेट काउंसिल ने एक सर्कुलर जारी किया जिसमें कहा गया था कि चीन के पास 2025 तक मौसम में फेरबदल की एक विकसित प्रणाली होगी और कृत्रिम बारिश के संचालन का कुल क्षेत्र 55 लाख वर्ग किलोमीटर के पार पहुंच जाएगा. 2035 तक चीन की मौसम फेरबदल प्रणाली संचालन, तकनीकों और सेवाओं के मामले में दुनिया भर में आधुनिक स्तर तक पहुंच जानी चाहिए. जून 2023 में राष्ट्रीय विकास एवं सुधार आयोग और चीन मौसम विज्ञान प्रशासन (CMA) ने मौसम बदलाव के काम पर एक बैठक बुलाई जिसमें एक संपूर्ण प्रणाली के साथ चीन के बड़े पैमाने के और प्रभावी मौसम फेरबदल के संचालन की ताकत का दावा किया गया. वैसे तो चीन के इरादों का आकलन करना मुश्किल है लेकिन ये बात तय है कि चीन मौसम में फेरबदल को लेकर गंभीर है.
इस बात पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि विश्व मौसम विज्ञान संगठन मौसम में फेरबदल के अभ्यास की वकालत नहीं करता है क्योंकि ‘एक हथियार के रूप में मौसम’ का इस्तेमाल अतीत में किया गया है.
इस बात पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि विश्व मौसम विज्ञान संगठन मौसम में फेरबदल के अभ्यास की वकालत नहीं करता है क्योंकि ‘एक हथियार के रूप में मौसम’ का इस्तेमाल अतीत में किया गया है. वियतनाम युद्ध के दौरान अमेरिका ने अपने ‘ऑपरेशन पोपेये’ के तहत बारिश कराने के लिए, मॉनसून के मौसम का विस्तार करने के लिए और हो ची मिन्ह पगडंडी में बाढ़ लाने के लिए क्लाउड सीडिंग तकनीक का इस्तेमाल किया. हो ची मिन्ह पगडंडी का इस्तेमाल दुश्मन की सेना अपनी सप्लाई पहुंचाने के लिए मुख्य रास्ते के तौर पर करती थी. इसके बाद 1976 में संयुक्त राष्ट्र ने पर्यावरण में फेरबदल की तकनीक के सैन्य या किसी अन्य शत्रुतापूर्ण उपयोग के निषेध पर संधि (ENMOD) को पारित किया. ये संधि किसी देश को किसी दूसरे देश की बर्बादी, नुकसान या चोट के साधन के रूप में व्यापक, स्थायी या गंभीर असर वाली पर्यावरण में बदलाव की तकनीकों के सैन्य या किसी दूसरे शत्रुतापूर्ण उपयोग में शामिल होने से रोकती है. मौजूदा समय में 78 देश इस संधि के पक्षकार हैं.
कृत्रिम बारिश का प्रयोग
“राष्ट्रीय सुरक्षा के रूप में जलवायु” को लेकर भारत के रक्षा मंत्री का बयान सही है. चीन के इरादों और हरकतों पर भारत की चिंताएं निम्नलिखित कारणों से ठीक हैं: पहला, मौसम से छेड़खानी नहीं करने के मानकों का पालन करने के लिए चीन बाध्य नहीं है क्योंकि उसने ENMOD पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं. 2005 में चीन इस बात के लिए तैयार हुआ कि संधि सिर्फ हॉन्ग कॉन्ग और मकाऊ स्पेशल एडमिनिस्ट्रेटिव रीजन ऑफ चाइना में लागू होगी. दूसरा, चीन 2008 के बीजिंग ओलंपिक, 2014 में APEC शिखर सम्मेलन, नेशनल डे परेड, 2021 में चाइनीज़ कम्युनिस्ट पार्टी के शताब्दी समारोह, 2022 के विंटर ओलंपिक और दूसरे मौकों के दौरान बड़े पैमाने पर मौसम में बदलाव का अभ्यास करके अपनी क्षमता को पहले ही साबित कर चुका है. साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की ख़बर के मुताबिक एक रिसर्च पेपर में दावा किया गया है कि चाइनीज़ कम्युनिस्ट पार्टी के शताब्दी समारोह से पहले जो कृत्रिम बारिश कराई गई थी उसने वायु प्रदूषण के लिए ज़िम्मेदार PM 2.5 के स्तर में दो-तिहाई से ज़्यादा की कमी की और एयर क्वालिटी विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के मुताबिक “सामान्य” से बेहतर होकर “अच्छी” हो गई.
तीसरा, इस समय चीन मौसम में बदलाव का सबसे बड़ा कार्यक्रम चलाता है. 1949 से चीन ने अपने मौसम के फेरबदल कार्यक्रम में लगातार प्रगति की है, चाहे वो 1978 में चीनी मौसम विज्ञान संस्थान की स्थापना हो; 2022 में अपने पहले “मौसम फेरबदल कानून” को पास करना हो; 2005 में अपनी पंचवर्षीय योजना में मौसम को एक घटक के रूप में शामिल करना हो; 2012-2017 की अवधि में मौसम में फेरबदल के कार्यक्रम में सहायता के लिए 1.34 अरब अमेरिकी डॉलर का आवंटन हो; 2018 में तिब्बती पठार में मौसम पर नियंत्रण की सबसे बड़ी मशीन स्थापित करने की शुरुआत हो या कुछ और.
भारत को क्लाउड सीडिंग के अभ्यास से पैदा होने वाले अकारण जोख़िमों से परहेज़ करने के लिए तिब्बत के पठार में चीन की मौसम नियंत्रण गतिविधियों पर निगरानी रखनी चाहिए.
चौथा, भारत से करीबी को देखते हुए तिब्बती पठार में बारिश में बढ़ोतरी के लिए चीन के द्वारा ईंधन जलाने वाले चैंबर का निर्माण भारत और दक्षिण एशिया के दूसरे देशों के लिए चिंता पैदा करता है. साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक 500 से ज़्यादा बर्नर प्रयोग के लिए तिब्बत, शिनजियांग और दूसरे क्षेत्रों के अल्पाइन स्लोप में लगाए गए हैं.
वैसे तो तिब्बत के पठार में चीन के क्लाउड सीडिंग ऑपरेशन के संभावित तत्काल असर के बारे में भविष्यवाणी करना मुश्किल है लेकिन भारत को सतर्क रहना चाहिए. भारत को क्लाउड सीडिंग के अभ्यास से पैदा होने वाले अकारण जोख़िमों से परहेज़ करने के लिए तिब्बत के पठार में चीन की मौसम नियंत्रण गतिविधियों पर निगरानी रखनी चाहिए. चूंकि, ऐतिहासिक रूप से मौसम का इस्तेमाल युद्ध में एक हथियार के रूप में किया गया है, ऐसे में भारत को चीन की गतिविधियों के भू-राजनीतिक और सामरिक अर्थ की समीक्षा ज़रूर करनी चाहिए और इस तरह कृत्रिम मौसम से पैदा आपदाओं को हल्का करने के लिए अपनी विशेषज्ञता विकसित करनी चाहिए.
डॉ. अमृता जश मणिपाल एकेडमी ऑफ हायर एजुकेशन (इंस्टीट्यूशन ऑफ एमिनेंस) के डिपार्टमेंट ऑफ जियोपॉलिटिक्स एंड इंटरनेशनल रिलेशंस में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं.
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