Author : Kriti M. Shah

Expert Speak Raisina Debates
Published on Jan 25, 2024 Updated 0 Hours ago

ईरान-पाकिस्तान का एक-दूसरे पर हमला इस बात का बड़ा उदाहरण है कि कैसे आतंकवाद विरोधी सहयोग की गैर-मौजूदगी कूटनीतिक और ज़मीनी संघर्ष में बदल सकती है.

ईरान, पाकिस्तान और बलोचिस्तान का बड़ा सवाल!

ईरान और पाकिस्तान के बीच मौजूदा झगड़े और बढ़ते तनाव से सवाल मंडरा रहा है कि आगे क्या होगा? क्या ईरान के द्वारा बलोचिस्तान में सुन्नी इस्लामिक उग्रवादी संगठन जैश अल-अदल के गढ़ में हमला और 48 घंटे के बाद पाकिस्तान के द्वारा इसका जवाब दोनों पड़ोसियों के बीच बड़े संघर्ष में बदल सकता है? शायद. आने वाले हफ्तों में ये कैसे होगा इसका जवाब इस क्षेत्र के इतिहास और उन आतंकी संगठनों की विचारधारा में छिपा है जिनको दोनों देशों ने निशाना बनाया है.

ईरान में हमलों के ज़रिए पाकिस्तान ने बलोच लिबरेशन फ्रंट (BLF) और बलोच लिबरेशन आर्मी (BLA) को निशाना बनाने का दावा किया है. इन दोनों संगठनों का घोषित लक्ष्य पाकिस्तान सरकार के द्वारा बलोच लोगों के आर्थिक एवं संसाधनों से जुड़े शोषण से रक्षा करना है.

ईरान के निशाने पर आया संगठन जैश अल-अदल ईरान के सिस्तान-बलोचिस्तान प्रांत की आज़ादी चाहता है. इस संगठन के सदस्य सुन्नी बलोच हैं जो शिया दबदबे वाले ईरान में एक जातीय और धार्मिक अल्पसंख्यक समूह है. अतीत के जुनदुल्लाह संगठन की शाखा जैश अल-अदल ईरान के ख़िलाफ़ कई गंभीर हमलों के लिए ज़िम्मेदार रहा है. पिछले कुछ वर्षों में इसने कई आत्मघाती बम विस्फोट किए हैं. इसके अलावा अपहरण और पूर्व राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद की जान लेने की कोशिश भी की थी. इसका सबसे ताज़ा हमला एक पुलिस स्टेशन में ईरान के 11 सुरक्षाकर्मियों की हत्या था. इसी के जवाब में ईरान ने हमला किया. 2007 में एक इंटरव्यू के दौरान इस संगठन के नेता, जो अब मारा जा चुका है, अब्दुलमलिक रिगि ने कहा था कि उसका समूह बलोच लोगों के अधिकारों की लड़ाई लड़ रहा है. इन अधिकारों में ईरान में बलोचों के राजनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक अधिकारों की मान्यता शामिल हैं. 

ईरान में हमलों के ज़रिए पाकिस्तान ने बलोच लिबरेशन फ्रंट (BLF) और बलोच लिबरेशन आर्मी (BLA) को निशाना बनाने का दावा किया है. इन दोनों संगठनों का घोषित लक्ष्य पाकिस्तान सरकार के द्वारा बलोच लोगों के आर्थिक एवं संसाधनों से जुड़े शोषण से रक्षा करना है. दक्षिणी अफ़ग़ानिस्तान और पूर्वी ईरान तक व्यापार के रास्ते के साथ अरब सागर के किनारे बलोचिस्तान की सामरिक लोकेशन को देखते हुए ये इलाका अतीत के अलग-अलग शासकों के लिए हमेशा से महत्वपूर्ण बना रहा है, चाहे वो फारस के शासक हों या अफ़ग़ानिस्तान के या सिख हों या ब्रिटिश. 1947 से और पाकिस्तान के द्वारा तत्कालीन कलात साम्राज्य (मौजूदा समय का बलोचिस्तान) को मिलाने के समय से बलोच लोगों ने सरकार के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी है. इस दौरान उन्होंने अलग-अलग मांग की है जिनमें अधिक राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों के साथ-साथ राजनीतिक स्वायत्तता शामिल हैं.

दोनों संगठनों में BLF ज़्यादा पुराना है और वो 60 के दशक के आख़िर से बलोच विद्रोह के आंदोलन में सबसे आगे रहा है. दूसरी तरफ BLA एक अधिक हिंसक और कट्टरपंथी संगठन रहा है और इसने संसाधनों में बेहतर हिस्से एवं ज़्यादा स्वायत्तता की मांग को लेकर पाकिस्तान की सरकार से लड़ाई लड़ी है. अपनी मांग के लिए BLA ने सैन्य काफिलों एवं कर्मियों पर हमला किया है, चीन के इंजीनियरों को अगवा किया है और क्षेत्र में आम लोगों एवं सुरक्षा बलों के जवानों की हत्या की है. 

वैश्विक जिहाद

पिछले कुछ वर्षों में बलोचिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों जैसे कि खनिजों एवं हाइड्रोकार्बन के आर्थिक शोषण; राजनीतिक एवं सैन्य उत्पीड़न; स्वायत्तता की कमी और अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिका के युद्ध की वजह से इस प्रांत में चरमपंथ में बढ़ोतरी हुई है. पाकिस्तान की सेना ने जहां लश्कर-ए-झंगवी जैसे संगठनों का इस्तेमाल बलोचिस्तान में कट्टरपंथी इस्लाम को बढ़ावा देने में किया है, वहीं BLF और BLA जैसे संगठन एक समान साझा मक़सद के साथ तालमेल और साथ काम करने के लिए जाने जाते हैं. चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) और बलोचिस्तान के ग्वादर पोर्ट में इसके प्रमुख प्रोजेक्ट ने बलोच लोगों एवं उनकी ज़मीन के उत्पीड़न और ‘औपनिवेशीकरण’ को और बढ़ा दिया है. स्थानीय लोग इन “भव्य” विकास परियोजनाओं का फायदा नहीं उठा पा रहे हैं. 

इस क्षेत्र के इतिहास और यहां के संगठनों की विचारधारा को देखते हुए ईरान के नेता जहां इस मामले को लेकर पूरी तरह बेख़बर बने रहने का ढोंग करते हुए जैश अल-अदल के सदस्यों को पनाह देने के लिए पाकिस्तान के ख़िलाफ़ कठोर चेतावनी जारी कर सकते हैं वहीं दोनों देशों का शक संभवत: मान्य हो सकता है. दूसरे शब्दों में कहें तो पाकिस्तान के बलोचिस्तान में जहां जैश अल-अदल की कुछ हद तक पकड़ है, वहीं BLF और BLA को भी सिस्तान-बलोचिस्तान में कुछ समर्थन हासिल है. इस क्षेत्र की बलोच आबादी और जनजाति दोनों देशों के बीच सरहद के द्वारा बंटे हो सकते हैं लेकिन दोनों पक्षों के लोगों के बीच रोज़ाना के सामान के लेन-देन के साथ-साथ गहरे ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, जातीय एवं धार्मिक रिश्ते ईरान और पाकिस्तान के लिए चिंता का विषय है. 

जैश अल-अदल जहां ईरान के हाथों अपने नस्लीय, जातीय और धार्मिक भेदभाव एवं उत्पीड़न के ख़िलाफ़ लड़ सकता है, वहीं BLA और BLF अपनी ज़मीन के आर्थिक शोषण एवं प्रांतीय स्वायत्तता की कमी के लिए पाकिस्तान की सेना के विरुद्ध अपनी लड़ाई जारी रख सकते हैं.

जैश अल-अदल जहां ईरान के हाथों अपने नस्लीय, जातीय और धार्मिक भेदभाव एवं उत्पीड़न के ख़िलाफ़ लड़ सकता है, वहीं BLA और BLF अपनी ज़मीन के आर्थिक शोषण एवं प्रांतीय स्वायत्तता की कमी के लिए पाकिस्तान की सेना के विरुद्ध अपनी लड़ाई जारी रख सकते हैं. लेकिन ये सभी संगठन अपने-अपने देशों की सोच की तुलना में एक-दूसरे के अधिक समान हो सकते हैं. 

इसलिए एक-दूसरे के देश में ‘लक्ष्य बनाकर किए गए सटीक हमले’ राजनीतिक और अंतर्राष्ट्रीय दिखावे के अलावा कुछ नहीं हैं. वर्तमान समय में ईरान कई मोर्चों पर लड़ाई लड़ रहा है. इनमें अपने प्रॉक्सी (छद्म) संगठन हमास के ज़रिए गज़ा में युद्ध शामिल है. वहीं पाकिस्तान को अपनी खस्ताहाल अर्थव्यवस्था और नाकाम लोकतंत्र के साथ अगले महीने होने वाले आम चुनाव से पहले ख़ुद को मज़बूत दिखाने की ज़रूरत है. दोनों में से कोई भी देश लंबे समय तक चलने वाला संघर्ष नहीं चाहता है. यहां तक कि वो छोटे स्तर का संघर्ष भी नहीं झेल सकते हैं. बलोच लोगों की परेशानियां और शिकायतें वास्तविक हैं. जैश अल-अदल, BLA और BLF जैसे संगठन जहां चरमपंथी, हिंसक और क्रूर तरीकों का इस्तेमाल करके अपनी आवाज़ को तेज़ तो कर सकते हैं लेकिन वो अपने मकसद में बेअसर बन रहेंगे. 

वैसे तो पाकिस्तान की कार्रवाई भविष्य के लिए ख़तरनाक मिसाल कायम करती है लेकिन ये हमले इस बात का बड़ा उदाहरण है कि कैसे आतंकवाद विरोधी सहयोग का नहीं होना कूटनीतिक और ज़मीनी संघर्ष में बदल सकता है. 

ये पहला मौका नहीं है जब ईरान ने पाकिस्तान की हवाई सीमा का उल्लंघन किया है या पाकिस्तान में ईरान विरोधी तत्वों की हत्या की है लेकिन पाकिस्तान ने शायद पहली बार ईरान में हमला किया है. वैसे तो पाकिस्तान की कार्रवाई भविष्य के लिए ख़तरनाक मिसाल कायम करती है लेकिन ये हमले इस बात का बड़ा उदाहरण है कि कैसे आतंकवाद विरोधी सहयोग का नहीं होना कूटनीतिक और ज़मीनी संघर्ष में बदल सकता है. 

गज़ा में हमास के ख़िलाफ़ इज़रायल के युद्ध और लाल सागर में हूतियों के द्वारा हमले के साथ पश्चिम एशिया में संघर्ष एक ख़तरनाक दौर में पहुंच गया है. ऐसे में इस बात की संभावना बहुत ज़्यादा है कि स्थानीय मुद्दों वाले संगठन जैसे कि जैश अल-अदल, BLA और BLF को सुन्नी और शिया के बीच या इस्लाम और यहूदी धर्म के बीच व्यापक ‘वैश्विक जिहाद’ की परियोजना में शामिल किया जा सकता है. दूसरे शब्दों में कहें तो इन संगठनों के लिए एक अवसर है कि वो अपने-अपने विरोधी देशों को तबाह करने के मक़सद को आगे बढ़ाने के लिए किसी गठबंधन में शामिल हो जाएं, किसी पक्ष का साथ दें और दूसरे अंतर्राष्ट्रीय उग्रवादी या कट्टरपंथी विचारधारा वाले संगठनों जैसे कि तालिबान के साथ मिल जाएं. 

कृति एम. शाह ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में एसोसिएट फेलो थीं.

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