Published on Jan 24, 2024 Updated 0 Hours ago
ईरान और पाकिस्तान: नया संघर्ष, नया मोड़

पाकिस्तान के बलूचिस्तान सूबे में ईरान के मिसाइल और ड्रोन हमले के फ़ौरन बाद, पाकिस्तान ने ईरान के साथ अपने कूटनीतिक रिश्ते घटा दिए थे. पाकिस्तान ने ईरान से अपने राजदूत को वापस बुला लिया था और ईरान के राजदूत को इस्लामाबाद लौटने से रोक दिया था. पाकिस्तान ने आने वाले समय में किसी भी उच्च स्तरीय दौरे को रद्द कर दिया था और उसके विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता ने कई बार कहा कि उनका देश ‘बिना उकसावे के’ किए गए इस ‘अवैध’ हमले का जवाब देने का पूरा अधिकार रखता है. मध्य पूर्व में चल रहे संकट को ध्यान में रखकर देखें, तो पाकिस्तान के पलटवार और इसकी वजह से तनाव और बढ़ने की आशंकाओं पर तेज़ बहस चल रही है. एक सैन्य पलटवार करने या न करने से पाकिस्तान की पहले से ख़राब अंदरूनी राजनीतिक और आर्थिक स्थिति और लड़खड़ा सकती है. यही नहीं, इमरान ख़ान की गिरफ़्तारी को लेकर हो रहे विरोध प्रदर्शनों के संदर्भ में फ़ौज की स्थिति और भी ख़राब हो सकती है.

मध्य पूर्व में चल रहे संकट को ध्यान में रखकर देखें, तो पाकिस्तान के पलटवार और इसकी वजह से तनाव और बढ़ने की आशंकाओं पर तेज़ बहस चल रही है. एक सैन्य पलटवार करने या न करने से पाकिस्तान की पहले से ख़राब अंदरूनी राजनीतिक और आर्थिक स्थिति और लड़खड़ा सकती है.

ईरान के हमला करने के 48 घंटे से भी कम समय के भीतर, पाकिस्तानी सैन्य बलों के ज्वाइंट स्टाफ हेडक्वार्टर्स ने बेहद उच्च स्तरीय समन्वय के साथ दक्षिणी पश्चिमी ईरान के सिस्तान वा बलूचिस्तान सूबे में आतंकवादियों के छुपने के अड्डों’ को विशेष रूप से लक्ष्य करके सटीक हमला किया. कुछ ख़बरों के मुताबिक़, पाकिस्तान ने ये हमले ईरान की सीमा के लगभग 80 किलोमीटर भीतर किए और सरावन शहर को निशाना बनाया. उसके हमले में नौ लोग मारे गए, जो सभी विदेशी नागरिक थे. पाकिस्तान ने इन हमलों के ज़रिए उन सात ठिकानों को निशाना बनाया, जहां बलूचिस्तान लिबरेशन फोर्स और बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी के अड्डे थे. इन लक्ष्यों का चुनाव एक हवाई सर्वेक्षण के बाद किया गया था. पाकिस्तान ने इन हमलों को गोपनीय सूचना पर आधारित अभियान करार दिया और अपने आधिकारिक बयान में ईरान द्वारा किए गए हमलों का कोई ज़िक्र नहीं किया. मगर, पाकिस्तान ने कहा कि जब बात बलोच आतंकवादियों के ईरान के ‘कुछ अप्रशासित इलाक़ों’ में छुपे होने की आती है, तो ईरान उनकी चिंताएं दूर करने के बजाय अड़ियल रवैया अपना लेता है. पाकिस्तान द्वारा किए गए इन हमलों का मक़सद, बड़े पैमाने पर आतंकवादी हमलों की आशंका को ख़त्म करना था.

इन हमलों को सफलतापूर्वक क्रियान्वित करके पाकिस्तानी फ़ौज की ‘पेशेवराना क्षमता’ का भी प्रदर्शन किया गया. पाकिस्तान की सेना, पहले से ही इमरान ख़ान के समर्थकों के दबाव में हैं. इमरान ख़ान इस वक़्त जेल में हैं. ऐसे में फ़ौज को अपने देश पर हुए अभूतपूर्व हमलों का जवाब देकर अपनी ताक़त भी दिखानी थी. भले ही पलटवार में किए गए इन हमलों से जनता के बीच फ़ौज को लेकर नाराज़गी पूरी तरह ख़त्म न हो. लेकिन, अगर पाकिस्तान मज़बूती से पलटवार नहीं करता, तो उससे उसकी अंदरूनी मुश्किलें और भी जटिल हो जातीं. आज जब पाकिस्तान अगले महीने होने वाले चुनावों की तैयारी कर रहा है, तो सुरक्षा के हालात में किसी भी तरह की गिरावट- तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) के हमले की आशंका अभी भी बनी हुई है- तो इससे पाकिस्तान और अस्थिरता की ओर बढ़ जाता.

आने वाले समय में क्या

जब इस टकराव के और गंभीर होने को लेकर तनाव बढ़ने लगा, तो पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता ने कहा कि वो हालात को और बिगड़ने नहीं देना चाहते और अपने विरोधियों से ये अपेक्षा करते हैं कि वो भी ऐसा ही करें. ईरान ने पाकिस्तान के दूतावास के प्रतिनिधि को बुलाकर इन हमलों पर ‘जवाब तलब’ किया. वैसे तो पाकिस्तान की सेना इस समय हाई एलर्ट पर है. लेकिन, ये संकट आज जिस मोड़ पर आया है- फिर चाहे पाकिस्तान के अंदरूनी हालात हों या फिर बाहरी- उस वक़्त पाकिस्तान के अफ़ग़ानिस्तान और भारत के साथ रिश्ते बिगड़े हुए हैं. ऐसे में वो पूरे क्षेत्र में सबसे मुश्किल स्थिति में है. हालात पर प्रतिक्रिया देते हुए भारत ने कहा कि वो समझता है कि कुछ देशों को आत्मरक्षा में क़दम उठाने पड़ते हैं. ये अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान से होने वाले आतंकवादी हमलों को लेकर ईरान की वाजिब चिंताओं की तरफ़ ही इशारा था. वैसे तो इन शुरुआती हमलों का मध्य पूर्व में चल रहे संघर्ष पर कोई ख़ास असर नहीं पड़ने वाला, क्योंकि इसका संबंध सीमा के आर-पार लंबे समय से चले आ रहे मतभेदों से अधिक है. लेकिन, बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि आने वाले समय में क्या होता है.

ईरान ने पाकिस्तान पर हमला ऐसे दिलचस्प समय में किया, जब वो पूरे मध्य पूर्व में बढ़ते तनावों में अप्रत्यक्ष रूप से शामिल है. ग़ज़ा में चल रहे युद्ध के पूरे इलाक़े को अपनी चपेट में लेने की आशंका मंडरा रही है. कुछ हद तक ऐसा पहले से हो ही रहा है, क्योंकि ईरान से नज़दीकी संबंध रखने वाले उग्रवादी संगठन जैसे कि यमन के हूथी बाग़ी, पूरे लाल सागर क्षेत्र में कारोबारी जहाज़ों को निशाना बनाकर हमले कर रहे हैं. इसके जवाब में अमेरिका ने हूथियों के सैन्य ठिकानों जैसे कि मिसाइल लॉन्चर्स को निशाना बनाते हुए यमन पर हवाई हमले किए हैं.

हालांकि, पाकिस्तान के ऊपर ईरान के हमले का खाड़ी क्षेत्र में उसके सामरिक दांव-पेंच से कोई ख़ास ताल्लुक़ नहीं है. पाकिस्तान के उथल-पुथल भरे बलूचिस्तान सूबे और ईरान के सिस्तान वा बलूचिस्तान सूबे के बीच की सीमा बरसों से दोनों देशों के बीच मतभेदों और वार-पलटवार का केंद्र बनी हुई है. अगर बेहद क्षेत्रीय संघर्ष का ये मोर्चा मुख्यधारा की परिचर्चाओं में शामिल नहीं होता, तो इसकी वजह ये है कि ये दोनों देशों का आपसी मामला है, और ये टकराव अपने सीमित भौगोलिक क्षेत्र से आगे नहीं फैला है. हालांकि, पिछले हफ़्ते जो टकराव बढ़ा उसने एक नई मिसाल बना दी है और ये पाकिस्तान और ईरान दोनों ही देशों के रिश्तों में आई गिरावट का नतीजा है.

कुछ ख़बरों के मुताबिक़, चीन और सऊदी अरब ने तनाव कम करने के लिए मध्यस्थता करने की कोशिशें की थीं. ईरान की नज़र में इस संकट की जड़ में एक सुन्नी सलाफी बलोच आतंकवादी समूह जैश उल-अद्ल है, जो दोनों ही देशों की सीमाओं के आर-पार गतिविधियां चलाता है और इसका मक़सद ईरान के सिस्तान वा बलूचिस्तान सूबे और पाकिस्तान के बलूचिस्तान में बलोच नागरिकों के लिए अधिक स्वायत्तता और अधिकार हासिल करना है. ईरान ने अपने हमलों से सीमा के इस पार जैश के ठिकानों को निशाना बनाया था और जैश उल-अद्ल ने भी माना था कि उसके अड्डों को ईरान ने नुक़सान पहुंचाया है. हमले के कुछ घंटों के भीतर ही जैश उल-अद्ल ने दावा किया कि उसने ईरान की इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कोर (IRGC) के एक कमांडर कर्नल हुसैन अली जवदानफार की हत्या कर दी है.

ये घटना एक अनअपेक्षित सक्रिय संघर्ष के मोर्चे के तौर पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए एक और चुनौती पेश करती है, वो भी उस वक़्त जब दुनिया कई संघर्षों का सामना कर रही है और साल 2024 के पहले महीने की शुरुआत ही इस गिनती में एक और बढ़ोत्तरी के साथ हुई है.

नई टकराव से बचते ईरान-पाक 

जहां तक क्षेत्रीय संघर्षों की बात है, तो ईरान और पाकिस्तान, दोनों बुरी तरह फंसे हुए हैं. आदर्श स्थिति में दोनों में से कोई भी नहीं चाहेगा कि टकराव एक हद से आगे बढ़े. क्योंकि, दोनों देशों के संसाधन आर्थिक और भू-राजनीतिक रूप से बहुत दबाव में हैं. हालांकि, ये घटना एक अनअपेक्षित सक्रिय संघर्ष के मोर्चे के तौर पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए एक और चुनौती पेश करती है, वो भी उस वक़्त जब दुनिया कई संघर्षों का सामना कर रही है और साल 2024 के पहले महीने की शुरुआत ही इस गिनती में एक और बढ़ोत्तरी के साथ हुई है.

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Authors

Shivam Shekhawat

Shivam Shekhawat

Shivam Shekhawat is a Junior Fellow with ORF’s Strategic Studies Programme. Her research focuses primarily on India’s neighbourhood- particularly tracking the security, political and economic ...

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Kabir Taneja

Kabir Taneja

Kabir Taneja is a Fellow with Strategic Studies programme. His research focuses on Indias relations with West Asia specifically looking at the domestic political dynamics ...

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