ईरान पाकिस्तान की सीमा पर जो अराजक क्षेत्र है, वो बरसों से स्मगलिंग, मानव तस्करी, ड्रग्स के कारोबार और हां उग्रवादियों और आतंकवादियों की पनाहगाह के तौर पर बदनाम रहा है. दोनों देशों का ये सीमावर्ती इलाक़ा किसी भी सूरत में शांत नहीं कहा जा सकता. क्योंकि यहां अक्सर संघर्ष, हल्की फुल्की घुसपैठ, छापेमारी और कई बार तो गोलीबारी की घटनाएं होती रहती हैं. लेकिन, दोनों ही देश किसी न किसी तरह से हालात को बेक़ाबू होने से रोकने में अब तक सफल रहे हैं. ईरान और पाकिस्तान दोनों ही एक दूसरे से हर स्तर पर संवाद करते रहे हैं और यहां तक कि उन्होंने न केवल सीमा पर नियमित रूप से पैदा होने वाले संकटों बल्कि आतंकवाद के ख़तरे से निपटारे की व्यवस्था भी बना रखी है. अब तक ये व्यवस्था अच्छी तरह से काम करती रही थी.
ईरान-पाकिस्तान के हमले: वार और पलटवार
16 जनवरी को ईरान ने पाकिस्तान की सीमा के भीतर वहां से संचालित होने वाले सुन्नी आतंकवादी संगठन जैश अल-अद्ल को निशाना बनाकर मिसाइल और ड्रोन से हमले किए. ईरान की तरफ़ से टकराव बढ़ाने वाला ये बेहद गंभीर क़दम था. ईरान ने ये हमला कोई चेतावनी दिए बग़ैर किया और पाकिस्तान की नज़र में ईरान का ये हमला बिना उकसावे की कार्रवाई था. शुरुआत में पाकिस्तान ने इस हमले के जवाब में ईरान से कूटनीतिक रिश्ते कम कर दिए और सारे द्विपक्षीय दौरे भी रद्द कर दिए. मगर, 18 जनवरी को पाकिस्तान ने ईरान के भीतर जवाबी हमले किए. पाकिस्तान के मुताबिक़, उसने ये हमले बलोच अलगाववादियों के अड्डों पर किए. अब गेंद ईरान के पाले में है. हर कोई देख रहा है और इंतज़ार कर रहा है कि क्या ईरान इस टकराव को अगले दौर में ले जाकर, संघर्ष को और बढ़ाएगा, या फिर पीछे हट जाएगा?
सोशल मीडिया में ऐसी कुछ अपुष्ट ख़बरें चल रही हैं कि ईरान ने पाकिस्तान की सीमा से लगने वाले इलाक़े ख़ाली करा लिए हैं और अपने सैनिकों को उस सीमा की तरफ़ तैनात कर दिया है और बैलिस्टिक मिसाइलों की कुछ टुकड़ियां भी तैनात कर दी हैं. ईरान ने पाकिस्तान से लगने वाली अपनी सीमा के क़रीब हवाई रक्षा का एक बड़ा अभ्यास भी किया, जिसे ईरान की तरफ़ से अपनी ताक़त का प्रदर्शन करना कहा जा रहा है. पूरी संभावना इसी बात की है कि ईरान ये सारे क़दम बस दिखावे के लिए कर रहा है और हम इसे युद्ध की कार्रवाई की तैयारी का संकेत नहीं कह सकते हैं. ईरान तो ज़मीनी स्तर पर ऐसी कवायद करने के लिए ही जाना जाता है. 1998 में जब तालिबान ने मज़ार-ए-शरीफ़ में ईरान के राजनयिकों की हत्या कर दी थी, तब ईरान ने ज़बरदस्त ग़ुस्से का इज़हार करते हुए अपनी सेना की टुकड़ियां अफ़ग़ानिस्तान से लगने वाली सीमा पर तैनात कर दी थी और युद्ध छे़ने की धमकी दी थी. मगर वो कभी भी आगे नहीं बढ़ा. पाकिस्तान के साथ टकराव के ताज़ा मामले में भी यही बात दोहराए जाने की उम्मीद ज़्यादा है. दोनों ही देश न तो एक दूसरे से युद्ध चाहते हैं और न ही इसका झटका बर्दाश्त करने की हालत में हैं. जहां तक पाकिस्तान की बात है, तो वो सार्वजनिक बयानों में तल्ख़ी को कम करेगा और समझौते वाली बातें करने के संकेत देगा. दोनों देश पहले ही ऐसे बयान दे रहे हैं, जिससे संकेत मिलता है कि वो इस टकराव को और आगे नहीं बढ़ाने जा रहे हैं.
पर, दोनों ही देशों की तरफ़ से ग़लत आकलन करने की आशंका को भी पूरी तरह से नहीं ख़ारिज किया जा सकता. शायद ये ईरान की तरफ़ से ग़लत अंदाज़ा लगाना ही था कि उसने उसी दिन पाकिस्तान पर भी हमला कर दिया, जिस दिन इराक़ और सीरिया पर हमला किया था. इस बात की संभावना सबसे अधिक है कि ईरान ने पाकिस्तान को एक कमज़ोर विकल्प और तुलनात्मक रूप से क़ीमत चुकाने वाले विकल्प के तौर पर देखा. पाकिस्तान अपने अस्तित्व के संकटों से ही इस क़दर घिरा हुआ था कि ईरान को लगा कि वो उसके हमले पर पलटवार नहीं करेगा या नहीं कर सकेगा. पाकिस्तान पहले ही तीन मोर्चों में उलझा हुआ था- भारत, अफ़ग़ानिस्तान से हो रहे इस्लामिक उग्रवादी हमले और घरेलू मोर्चे पर इमरान ख़ान के ख़िलाफ़ संघर्ष. ईरान को लगा कि उसके साथ टकराव का चौथा मोर्चा खोलना एक ऐसा ख़तरा था, जिससे पाकिस्तान बचना ही चाहेगा. पाकिस्तान की सेना भी कोई जंग लड़ने की स्थिति में नहीं है. उसके पूर्व सेनाध्यक्ष ने इसका संकेत दिया ही था. आर्थिक रूप से पाकिस्तान की हालत पतली है और वो कोई युद्ध लड़ने की क़ीमत अदा कर पाने की हैसियत में नहीं है. ईरान को लगा कि पाकिस्तान, ज़्यादा से ज़्यादा कुछ कूटनीतिक क़दम उठाएगा, जिससे उसके ऊपर कोई ख़ास असर नहीं होगा. वहीं, जैश अल-अद्ल के आतंकवादियों को पाकिस्तान के भीतर निशाना बनाने से ईरान की जनता को तसल्ली होगी. क्योंकि पिछले कुछ हफ़्तों और महीनों के दौरान, ईरान के सिस्तान- बलोचिस्तान के उथल-पुथल भरे सूबे में कई आतंकवादी हमले हुए हैं. ईरान ने पाकिस्तान पर मिसाइलें दाग़कर ये संकेत भी देना चाहा था कि मोहरों के ज़रिए उसकी घेरेबंदी करने और हाशिए पर धकेलने की उन देशों को भारी क़ीमत चुकानी पड़ेगी, जो अपनी सरज़मीं को ईरान के ख़िलाफ़ इस्तेमाल होने दे रहे हैं.
पाकिस्तान एक कमज़ोर देश है, जो भयंकर आर्थिक, राजनीतिक, सुरक्षा संबंधी, सामाजिक और संस्थागत दबाव में है. ये सच्चाई ही वो वजह बन गई, जिसके कारण पाकिस्तान पलटवार करने के लिए बेसब्र हो गया. क्योंकि, ऐसा न करने का मतलब था कि पाकिस्तान को न केवल ईरान ही बहुत ही हल्का समझ लेता, बल्कि अन्य क्षेत्रीय खिलाड़ी और ख़ास तौर से भारत के लिए भी यही संदेश जाता.
पाकिस्तान की इन कमज़ोरियों को लेकर ईरान का विश्लेषण ग़लत भी नहीं था; मगर, इसके जवाब में पाकिस्तान ने जो क़दम उठाया, उसको लेकर ईरान का अंदाज़ा ज़रूर ग़लत साबित हुआ. पाकिस्तान एक कमज़ोर देश है, जो भयंकर आर्थिक, राजनीतिक, सुरक्षा संबंधी, सामाजिक और संस्थागत दबाव में है. ये सच्चाई ही वो वजह बन गई, जिसके कारण पाकिस्तान पलटवार करने के लिए बेसब्र हो गया. क्योंकि, ऐसा न करने का मतलब था कि पाकिस्तान को न केवल ईरान ही बहुत ही हल्का समझ लेता, बल्कि अन्य क्षेत्रीय खिलाड़ी और ख़ास तौर से भारत के लिए भी यही संदेश जाता. पाकिस्तान के लिए ईरान को न केवल कूटनीतिक बल्कि फ़ौजी तरीक़े से जवाब देना उसके सामरिक अस्तित्व का सवार बन गया. हालांकि, पाकिस्तान ने ये सावधानी ज़रूर बरती की उसका पलटवार ऐसा हो, जो ईरान के ग़ुस्से को भड़का न दे. घरेलू स्तर पर पाकिस्तान की फ़ौज के निर्देश में चल रही हाइब्रिड सरकार के पास ईरान पर पलटवार करने के सिवा कोई और चारा भी नहीं था. पाकिस्तान की फ़ौज बेहद अलोकप्रिय है और ईरान के हमले के बाद उसका मज़ाक भी बनाया जा रहा था. पाकिस्तानी सेना की इज़्ज़त और पाकिस्तान की भौतिक और वैचारिक सरहदों की संरक्षक होने की भूमिका पर सवालिया निशान लग रहे थे. सोशल मीडिया पर ट्रोल सवाल कर रहे थे कि क्या पाकिस्तान की फ़ौज केवल क़ैद में बंद इमरान ख़ान से ही लड़ना जानती है और क्या वो मुल्क को विदेशी हमले से बचाने में सक्षम नहीं है. ऐसे में ईरान के हमले का उसी मात्रा और तरीक़े से जवाब देना पाकिस्तानी फ़ौज के राजनीतिक अस्तित्व का सवाल भी बन गया. जवाबी कार्रवाई करने के बाद पाकिस्तान की फ़ौज बस ऊपरवाले से यही प्रार्थना कर सकती थी कि वार और पलटवार के पहले राउंड के बाद हालात बेक़ाबू न हो जाएं.
अब अगर हालात ऐसे ही रहते हैं, तो पाकिस्तान बहुत ख़ुश होगा. इस हमले से पाकिस्तान पारंपरिक शक्ति संतुलन स्थापित करने के साथ साथ, अपने पड़ोसी देशों (उल्लेखनीय रूप से अफ़ग़ानिस्तान और भारत) को ये संदेश भी दे सकेगा कि अगर उस पर हमला हुआ, तो पाकिस्तान चुप नहीं बैठेगा और पूरी ताक़त से हमले का जवाब देगा; इससे पाकिस्तानी फ़ौज की सियासी छवि भी दमक उठेगी और जनता के बीच उसकी हैसियत, अस्थायी तौर पर ही सही, मगर दोबारा बहाल हो जाएगी. अगर पाकिस्तान ख़ुशक़िस्मत है, तो वो इस टकराव का इस्तेमाल न केवल अरब दुनिया में अपने मददगारों की नज़र में अपनी अहमियत दिखाने के लिए कर सकेगा, बल्कि अमेरिका को भी अपनी उपयोगिता दिखा सकेगा. हां, ये बात और है कि पाकिस्तान, किसी भी सूरत में ईरान को नाराज़ नहीं करना चाहेगा. पाकिस्तान को बख़ूबी पता है कि उसके यहां ईरान के ऐसे कई समर्थक हैं, जो हालात बिगड़ने पर खलल भी डाल सकते हैं और नुक़सान भी पहुंचा सकते हैं. हालांकि, पाकिस्तान इस स्थिति का फ़ायदा उठाते हुए अरब देशों और अमेरिका से भरपूर फ़ायदा उठाने की भी कोशिश करेगा. इसके उलट, आज पाकिस्तान ने अपने सभी तीन पड़ोसियों- अफ़ग़ानिस्तान, ईरान और भारत- के साथ अपने कूटनीतिक संबंध घटा दिए हैं. आज जब पाकिस्तान की सरकार निवेश आकर्षित करने के लिए पुरज़ोर प्रयास के साथ साथ अपने देश को आतंकवाद के बजाय व्यापार का केंद्र साबित करने की कोशिश कर रही है, तो ईरान के साथ टकराव उसकी कोशिशों पर पानी फेर सकता है.
ईरान के लिए पाकिस्तान के इस पलटवार से दुविधा खड़ी हो गई है. अगर ईरान इस संघर्ष को बढ़ाने का फ़ैसला करता है, तो वो अपने लिए एक और मोर्चा खोल लेगा.
ईरान के लिए पाकिस्तान के इस पलटवार से दुविधा खड़ी हो गई है. अगर ईरान इस संघर्ष को बढ़ाने का फ़ैसला करता है, तो वो अपने लिए एक और मोर्चा खोल लेगा. आज के हालात में ऐसा करता कतई बुद्धिमानी नहीं होगी. क्योंकि ईरान, पश्चिमी एशिया (मध्य पूर्व) में इज़राइल और फिलिस्तीन के युद्ध के बढ़ते दायरे में शामिल है. वहीं दूसरी तरफ़, अगर ईरान पीछे हटता है, तो वो इस क्षेत्र की अन्य ताक़तों को ये संदेश देगा कि ईरान के पूरे क्षेत्र में फैलते प्रभाव पर क़ाबू पाने के लिए उसके मोहरों के बजाय उस पर सीधा निशाना लगाना ज़्यादा ठीक है. इस बात को लेकर काफ़ी चर्चाएं चल रही हैं कि मध्य पूर्व की स्थिरता तब तक सुनिश्चित नहीं हो सकती, जब तक ‘नाग का फन’ (यानी ईरान) न कुचला जाए. ईरान अगर अपने भीतर पाकिस्तान द्वारा किए गए हमले के जवाब में कुछ नहीं करता है, तो उसके दुश्मनों को संकेत जाएगा कि वो भी ईरान पर हमला कर सकते हैं, ताकि वो इस क्षेत्र में अपने गैर सरकारी मोहरों के ज़रिए उथल-पुथल न पैदा कर सके. इससे भी बड़ी आशंका तो ये है कि ईरान के पीछे हटने से पाकिस्तान स्थित सुन्नी संगठनों का हौसला बढ़ेगा और वो ईरान पर अपने हमलों को तेज़ कर देंगे.
अगर इन तनावों से खुला टकराव होता है या फिर सीमा पर संघर्ष होता है, तो इससे मध्य पूर्व के पहले से ही ख़राब हालात और बिगड़ जाएंगे. इसका असर भारत पर भी पड़ेगा क्योंकि इससे भारत और अरब खाड़ी देशों के बीच, ऊर्जा आपूर्ति के मार्ग और व्यापार के गलियारों में बाधा आएगी.
मध्य पूर्व के जटिल हालात
अब अगर ईरान और पाकिस्तान के बीच तनाव और नहीं बढ़ता है, तब इस बात की संभावनाएं अधिक हैं कि अगले कुछ हफ़्तों या फिर शायद अगले कुछ महीनों के भीतर, दोनों देश एक दूसरे से फिर संवाद शुरू करेंगे. लेकिन, अगर इन तनावों से खुला टकराव होता है या फिर सीमा पर संघर्ष होता है, तो इससे मध्य पूर्व के पहले से ही ख़राब हालात और बिगड़ जाएंगे. इसका असर भारत पर भी पड़ेगा क्योंकि इससे भारत और अरब खाड़ी देशों के बीच, ऊर्जा आपूर्ति के मार्ग और व्यापार के गलियारों में बाधा आएगी. लगभग इतनी ही चिंताजनक बात ये भी है कि इन तनावों से चीन को मौक़ा मिल जाएगा कि वो अपने सामरिक साझीदार ईरान और अपने ग़ुलाम देश पाकिस्तान के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभा सके. इस क्षेत्र में अमेरिका अपनी बात मनवा पाने की स्थिति में नहीं है. ये जगह अभी ख़ाली है और चीन खुलकर ये भूमिका अपनाने की कोशिश कर रहा है.
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