Author : Farheen Nahvi

Published on Dec 27, 2022 Updated 1 Days ago

विरोध-प्रदर्शनों के बीच ईरान के अगले क़दमों से उसके रुख़ की व्यापक तस्वीर सामने आएगी और इससे आंदोलन की भावी दशा-दिशा भी तय होगी.  

नैतिकता पुलिस को ख़त्म करने की ख़बर पर मंडराते संदेह के बादल

3 दिसंबर को ईरान के अटॉर्नी जनरल मोहम्मद जफ़र मॉन्ताज़ेरी ने एक सम्मेलन में बताया कि "नैतिकता पुलिस का देश की न्यायपालिका से कोई लेना-देना नहीं है और इसका जड़ समेत ख़ात्मा कर दिया गया है" मॉन्ताज़ेरी ने मुल्क की विवादास्पद धार्मिक या मॉरैलिटी पुलिस (निगरानी गश्त या गश्त-ए-इरशाद) से जुड़े सवाल का जवाब देते हुए ये टिप्पणी की. ईरान में सरकार के ख़िलाफ़ जारी प्रदर्शनों के बीच ये बयान सामने आया. 22 साल की ईरानी महिला की मौत के बाद मुल्क में प्रदर्शन की ताज़ा आग भड़की है. आरोप है कि नैतिकता पुलिस ने उसका क़त्ल कर दिया.

न्यूयॉक टाइम्स जैसे अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थानों में मॉन्ताज़ेरी का बयान तत्काल सुर्ख़ियों में आ गया. मीडिया ने बयान का मतलब ये निकाला कि ईरानी सरकार ने इस गश्ती दल को भंग कर दिया है और वो नैतिकता क़ानूनों को वापस लेने की मांगों पर विचार कर रही है. हालांकि क़ानून का पालन कराने वालों या मजहबी नेताओं की ओर से इस बाबत कोई आधिकारिक ऐलान नहीं हुआ है. अल-आलम जैसे सरकारी मीडिया संस्थानों ने इन क़ानूनों को हटाए जाने के दावों को झुठलाया है. वो इसे मॉन्ताज़ेरी के बयान की 'ग़लत व्याख्या' क़रार दे रहे हैं. ईरानी सामाजिक कार्यकर्ता मसीह अलीनेजाद ने इसे राज्यसत्ता की ओर से प्रॉपेगैंडा फैलाने वाला क़दम क़रार दिया है. साथ ही उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मीडिया द्वारा अनजाने में ईरानी सरकार के दुष्प्रचार का समर्थन किए जाने की बात पर भी ज़ोर दिया है.

जैसे अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थानों में मॉन्ताज़ेरी का बयान तत्काल सुर्ख़ियों में आ गया. मीडिया ने बयान का मतलब ये निकाला कि ईरानी सरकार ने इस गश्ती दल को भंग कर दिया है और वो नैतिकता क़ानूनों को वापस लेने की मांगों पर विचार कर रही है.

नैतिकता पुलिस के ख़ात्मे की अहमियत

सितंबर के मध्य से ईरान में विरोध-प्रदर्शनों का दौर जारी है. वहां तमाम लैंगिक और नस्ली समूहों के लोग अभूतपूर्व रूप से एकजुट होकर सत्ता-विरोधी भावनाओं का इज़हार कर रहे हैं. ईरान प्रदर्शनकारी सड़कों पर नैतिकता क़ानूनों की खुली मुख़ालिफ़त कर रहे हैं. वो हुकूमत-विरोधी तराने गाते हुए आपस में तालमेल बिठाकर ज़बरदस्त विरोध-प्रदर्शनों को अंजाम दे रहे हैं. इनके समर्थन में व्यापारी और दुकानदार राष्ट्रव्यापी बंद का ऐलान कर रहे हैं. ये तमाम समूह इन्हीं तरीक़ों से विरोध-प्रदर्शनों को आगे बढ़ा रहे हैं. फ़िलहाल आंदोलन ख़त्म होने के कोई संकेत दिखाई नहीं दे रहे हैं. उधर, ईरानी हुकूमत इन वाक़यों को महज़ उत्पात समझकर उसी अंदाज़ में उससे निपट रही है. प्रदर्शनकारियों को 'दंगाई' बताकर इस अशांति के लिए विदेशी प्रभावों को ज़िम्मेदार ठहराया जा रहा है. प्रदर्शनों के ज़रिए जायज़ शिकायतों के उभार को स्वीकार नहीं किया जा रहा है. इस दिशा में सरकार द्वारा अब तक उठाए गए तमाम क़दम दंडात्मक रहे हैं. ऐसी पृष्ठभूमि में नैतिकता पुलिस के अधिकार ख़त्म करने की संभावना या नैतिकता क़ानूनों में रियायत दिया जाना, राज्यसत्ता की ओर से एक बड़ा उदारवादी क़दम होगा, जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्ख़ियां मिलना तय है.

औरतों के जिस्म पर निगरानी रखने की क़वायद (ख़ासतौर से नैतिकता पुलिस द्वारा) के ख़िलाफ़ ग़ुस्से ने इस मुहिम को खूब हवा दी है. इस वक़्त पूरे मुल्क में ये तूफ़ान फैल चुका है. इस मसले ने व्यापक रूप से सत्ता-विरोधी शिगूफ़े का रूप ले लिया है. ऐसे में हिजाब की अनिवार्यता पर कोई क़दम उठाए जाने या नैतिकता पुलिस के ख़ात्मे से जुड़ी किसी कार्रवाई से सांकेतिक तौर पर बड़ा असर होगा. हालांकि इस मसले पर अपने अधिकार कम करने से हुकूमत की ताक़त में और कटौती होगी और दुनिया में पेश की जा रही ईरान की सांस्कृतिक पहचान पर सवाल खड़े होंगे. लिहाज़ा राज्यसत्ता के लिए ये मसला बेहद संगीन हो जाता है. दूसरी ओर इस रास्ते पर आगे बढ़ने के फ़ायदे शायद उतने लुभावने नहीं होंगे.

अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा है कि नैतिकता पुलिस को भंग किया जाना एक सकारात्मक क़दम हो सकता है, लेकिन लगता है कि ईरान की ज़्यादातर आबादी इससे इत्तेफ़ाक नहीं रखती. मॉन्ताज़ेरी के बयान से जुड़ी ख़बर फैलने पर कुछ लोगों ने जीत का का जश्न मनाया, लेकिन कई ईरानियों ने इस क़दम (अगर सचमुच ऐसा होता है तो) पर उदासीन रुख़ दिखाया है. दरअसल ईरान की एक बड़ी आबादी, हुकूमत में बदलाव को अपना मक़सद मानकर आगे बढ़ रही है. ऐसे में वो ज़ोरशोर से कह रहे हैं कि इस तरह की बड़ी रियायत भी उनके लिए नाकाफ़ी रहने वाली है. भले ही आबादी का एक तबक़ा इस छूट को सरकार के साथ समझौते के लिए पर्याप्त समझ सकता है, लेकिन अब ये मुहिम महज़ महिलाओं के अधिकारों तक ही सीमित नहीं रह गई है. ईरानी समाज में ये भावनाएं ज़्यादा भीतर तक प्रवेश कर गई है. ऐसे में अगर वहां की राज्यसत्ता ऐसा कोई क़दम उठाती है तो इससे प्रदर्शनकारियों का हौसला बढ़ सकता है.

औरतों के जिस्म पर निगरानी रखने की क़वायद के ख़िलाफ़ ग़ुस्से ने इस मुहिम को खूब हवा दी है. इस वक़्त पूरे मुल्क में ये तूफ़ान फैल चुका है. इस मसले ने व्यापक रूप से सत्ता-विरोधी शिगूफ़े का रूप ले लिया है.

मौजूदा परिदृश्य

मॉन्ताज़ेरी की टिप्पणी पर हुकूमत के संदिग्ध रुख़ से सारा परिदृश्य और धुंधला हो गया है. उनकी टिप्पणी को ख़ारिज करने वाला कोई आधिकारिक बयान अब तक जारी नहीं हुआ है और ना ही इसको लेकर आगे की कोई योजना सामने रखी गई है. इसके बावजूद अंदरुनी तौर पर सामंजस्य बिठाने की क़वायद ज़रूर दिखाई देती है. अयातुल्लाह ने सुप्रीम काउंसिल से ईरान की सांस्कृतिक कमज़ोरियों की पड़ताल करने और देश के सांस्कृतिक ढांचे में क्रांति लाने का आह्वान किया है. हालांकि, इसका मतलब पहले से ज़्यादा सख़्त नियंत्रण है या उनमें ढिलाई दिया जाना, ये अब तक साफ़ नहीं है. सर्बिया के दौरे पर पहुंचे ईरानी विदेश मंत्री हुसैन अमीर-अब्दुल्लाहैन ने मॉन्ताज़ेरी की टिप्पणी का ना तो खंडन किया और ना ही पुष्टि. बार-बार पूछे जाने पर उन्होंने बस इतना कहा कि "लोकतांत्रिक ढांचे के भीतर सबकुछ अच्छे से चल रहा है." चैटम हाउस (Chatham House) के मध्य पूर्व और उत्तरी अफ़्रीका प्रोग्राम के उप निदेशक सनम वकील का अनुमान है कि मौजूदा क़वायद ईरानी राज्यसत्ता की ओर से 'अभ्यास दौड़' हो सकती है, ताकि ये जांचा जा सके कि इस क़दम को अवाम द्वारा प्रभावी रूप में कैसे लिया जाएगा. अगर ये विवाद और लंबा खिंचता है तो अंतरराष्ट्रीय दवाब से जुड़ी चिंताएं, दीर्घकालिक आंतरिक स्थिरता और कमज़ोर पड़ती अर्थव्यवस्था, हुकूमत को संवाद के रास्ते पर आगे बढ़ने को प्रेरित कर सकती हैं.

दरअसल, इस मसले पर एक और दलील ये है कि राज्यसत्ता मॉन्ताज़ेरी की टिप्पणियों के इर्द-गिर्द फैले असमंजस का फ़ायदा उठा रही है. वो ये दिखाना चाहती है कि संवाद और समझौता होने ही वाला है, ताकि ईरानी हुकूमत पर आरोपित अंतरराष्ट्रीय और घरेलू दबावों में कुछ सहूलियत हासिल की जा सके. बहरहाल, मजहबी पुलिस को भंग करने का कतई ये मतलब नहीं है कि महिलाओं के जिस्म पर हुकूमत की निगरानी रखने की क़वायद भी ख़त्म हो जाएगी. सनम वकील जैसे कार्यकर्ताओं और विद्वानों ने इस बात की ओर पहले ही इशारा कर दिया है. ग़ौरतलब है कि ईरान-इराक़ जंग के बाद बासिज (अर्धसैनिक स्वैच्छिक लड़ाका दल) को ईरानी प्रशासन और क़ानून का पालन कराने वाली व्यवस्था के विभिन्न दायरों में खपा लिया गया था. मौजूदा निगरानी गश्ती दल को भी इस तरीक़े से तितर-बितर किया जा सकता है ताकि सबको लगे कि एक क़िस्म का बदलाव हो रहा है. इस तरह नैतिकता क़ानून बदस्तूर जारी रह सकते हैं या उन्हें दूसरे तरीक़ों से अमल में लाया जा सकता है. मिसाल के तौर पर भविष्य में हुकूमत के महिला नुमाइंदों के ज़रिए (या नए जुड़ाव के मातहत) सामाजिक रूप से इन्हें लागू करवाया जा सकता है. अपनी टिप्पणियों में मॉन्ताज़ेरी ने यहां तक कह दिया कि "न्यायपालिका समाज में व्यावहार से जुड़ी क्रियाओं पर निगरानी रखने का काम जारी रखेगी." साफ़ है कि ये मसला ऐसा है जिसे ईरानी हुकूमत आसानी से अपने हाथ से नहीं जाने देगी.

राज्यसत्ता के संदिग्ध रुख़ की वजह चाहे जो भी हो, लेकिन इसने इस बात पर बहस ज़रूर छेड़ दी है कि 2023 में ईरान में हालात किस दिशा में आगे बढ़ेंगे- समझौता या टकराव? अगर हुकूमत समझौते की ओर आगे बढ़ती है तो ये खुले तौर पर आंदोलनकारियों के तुष्टिकरण की क़वायद होगी, जिससे वो प्रदर्शनकारियों की वैधानिकता स्वीकार करती नज़र आएगी. नतीजतन इन आंदोलनकारियों को भविष्य में सौदेबाज़ियों के लिए और ताक़त मिल जाएगी. दूसरी ओर, अगर हुकूमत अपने मौजूदा रास्ते पर बरक़रार रहने का फ़ैसला करती है, तब सिर्फ़ ये देखना बाक़ी रहेगा कि कौन सा पक्ष पहले थकान ज़ाहिर करता है. फ़िलहाल ईरान एक चौराहे पर खड़ा है. मौजूदा अफ़रातफ़री के बीच वहां की हुकूमत के भावी क़दमों से उसका रुख़ साफ़ होगा, जिससे आने वाले समय में इस मुहिम की दशा-दिशा और स्वरूप तय होगा.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.