Published on Sep 15, 2023 Updated 0 Hours ago

संघर्ष-ग्रस्त इलाक़ों में मानवीय मदद सुनिश्चित करने में सहायता कर्मियों की भूमिका बेहद अहम है, लिहाज़ा सभी कर्मियों की सुरक्षा में मज़बूती लाने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग की दरकार है.

ह्यूमैनेटेरियन (मानवतावादी) सहायता कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग की ज़रूरत!

19 अगस्त की तारीख़ को हर साल विश्व मानवतावादी दिवस (WHD) के रूप में मनाया जाता है. इस क़वायद का लक्ष्य उन मानवतावादी कार्यकर्ताओं को सम्मानित करना है, जो लोगों की मदद करते वक़्त ख़ुद संकट के शिकार हुए थे. विश्व मानवतावादी दिवस का मक़सद दुनिया भर के साझेदारों को साथ लाना है. इस कड़ी में सहायता कर्मियों की संरक्षा और सुरक्षा की वक़ालत की गई है. अंतरराष्ट्रीय सहयोग, प्रभावित आबादी के लिए निरंतर सहायता को लेकर समन्वित और सामूहिक उपाय सुनिश्चित कर सकता है. यही वजह है कि मानव निर्मित और प्राकृतिक आपदाओं से उभरी आपात स्थितियों के दौरान राहत गतिविधियों में सहयोग के लिए, संयुक्त राष्ट्र (UN) अंतरराष्ट्रीय समुदाय पर निर्भर करता है. संयुक्त राष्ट्र के झंडे तले कई प्रमुख एजेंसियां प्राथमिक रूप से सहायता पहुंचाने का काम करती हैं. इनमें- मानवीय मामलों के समन्वय के लिए संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (OCHA), संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP), संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (UNHCR), संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF), विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP), संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष, और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) शामिल हैं. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक मानवतावादी सहायता की आवश्यकता वाले लोगों की संख्या 2023 में 23.5 करोड़ से बढ़कर लगभग 36 करोड़ हो गई है. इतना ही नहीं, संयुक्त राष्ट्र के अनुमानों के अनुसार ऐसी मदद सुनिश्चित करने के लिए 55.21 अरब अमेरिकी डॉलर की भारी-भरकम रकम की दरकार होगी. ऐसे में अंतरराष्ट्रीय सहयोग, संसाधन जुटाने और कोष जमा करने का एक ज़रिया बन गया है.

संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक मानवतावादी सहायता की आवश्यकता वाले लोगों की संख्या 2023 में 23.5 करोड़ से बढ़कर लगभग 36 करोड़ हो गई है. इतना ही नहीं, संयुक्त राष्ट्र के अनुमानों के अनुसार ऐसी मदद सुनिश्चित करने के लिए 55.21 अरब अमेरिकी डॉलर की भारी-भरकम रकम की दरकार होगी.

चित्र 1: मानवतावादी सहायता की आवश्यकता वाले लोगों की संख्या

स्रोत: मानवतावादी सहायता कर्मी – CDC येलो बुक 2024

इंसानी तकलीफ़ दूर करने, ज़िंदगी को दोबारा पटरी पर लाने और भावी आपदाओं को लेकर तैयारियों को मज़बूत करने के लिए मानवीय सहायता उपलब्ध कराई जाती है. सहायता कार्यकर्ता, मानवतावादी सहायता के तौर-तरीक़े और प्रभाव को निर्धारित करने वाले अहम कारकों में से एक हैं. इनमें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय, दोनों प्रकार की एजेंसियों से ताल्लुक़ रखने वाले और अलग-अलग पेशेवर पृष्ठभूमियों वाले व्यक्तियों का विविधतापूर्ण समूह शामिल है. 19 अगस्त 2003 को बग़दाद के कैनाल होटल पर हुए बम हमले में 22 मानवतावादी सहायता कर्मियों की जान चली गई थी. इस घटना के बाद संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सहायता कर्मियों की सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए 19 अगस्त को विश्व मानवतावादी दिवस (WHD) के रूप में मनाए जाने का प्रस्ताव पारित किया. टकरावपूर्ण माहौल के संपर्क में आने से पैदा होने वाली संरक्षा और सुरक्षा संबंधी चुनौतियां, चिंता का विषय हैं. जैसा कि टेबल 1 में दिखाया गया है सुरक्षा से जुड़ी चुनौतियां अब भी परेशानी का सबब बनी हुई हैं. शोध से ये भी पता चला है कि मानवतावादी सहायता से जुड़े कार्य, तनावपूर्ण हैं और श्रमिकों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं. एक ओर काम से संबंधित तनाव, संसाधनों तक पहुंच से लेकर नैतिक दुविधाओं तक जाता है, वहीं संगठनात्मक स्तर पर आंतरिक और बाहरी तनावों का भी इसमें हाथ रहता है. वैसे तो मानवतावादी कार्यकर्ताओं को इस तरह से प्रशिक्षित किया जाता है कि संघर्षपूर्ण स्थितियों के प्रति उनका लचीलापन बढ़ जाए और उन हालातों में वो ख़ुद को आसानी से ढाल सकें. बहरहाल, मिशन पर लंबे कालखंड के लिए तैनाती के चलते दीर्घकालिक तनाव, घबराहट और पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसॉर्डर (PTSD) के हालात बन सकते हैं.

स्रोत: सहायता कार्यकर्ता सुरक्षा डेटाबेस (AWSD) 

मानवीय कार्यकर्ताओं और मदद को हमले से बचाना बड़ी चुनौती है. अगर ऐसे हमलों पर क़ाबू पा लिया जाए तो समग्र सहायता की दक्षता बढ़ाने में मदद मिल सकती है. मानवतावादी संगठनों ने हिंसा की जानकारी साझा करने के लिए आंतरिक रूप से प्रणालियां विकसित की हैं. इनमें संयुक्त राष्ट्र संरक्षा और सुरक्षा विभाग (UNDSS) का सिक्योरिटी इंसिडेंट रिपोर्टिंग सिस्टम प्रमुख है. इसी प्रकार, इंटरनेशनल कमिटी ऑफ द रेड क्रॉस और WHO के पास ऐसे डेटाबेस मौजूद हैं जिनमें स्वास्थ्य कर्मियों से जुड़ी जानकारियां दर्ज रहती हैं. निश्चित रूप से ये तमाम उपाय, सहायता कर्मियों की शारीरिक सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में अहम क़दम हैं. बहरहाल सहायता कर्मियों पर लगातार जारी हमलों के बीच अंतरराष्ट्रीय मानवतावादी क़ानून (IHL) की अनुपालना में मज़बूती लाना ज़्यादा सटीक दिखाई देता है. इसकी एक वजह IHL से जुड़े बचावकारी उपायों की क़ानूनी संरचना है. इसके तहत ग़ैर-सरकारी संगठनों के सहायता कर्मी (जिनकी संख्या बहुमत में है), विशिष्ट श्रेणी के श्रमिकों को मिलने वाली सुरक्षा से चूक जाते हैं. फ़िलहाल IHL, श्रमिकों के ख़िलाफ़ हमलों पर रोक लगाकर उनका बचाव करता है. ये उपाय, असैनिक आबादी के किसी भी अन्य हिस्से के लिए प्रभावी प्रावधान जैसे हैं. इसके अतिरिक्त ये क़ानून, संयुक्त राष्ट्र शांति-स्थापना मिशनों और सशस्त्र बलों के चिकित्सा कर्मियों को भी विशेष सुरक्षा मुहैया कराता है. संघर्षपूर्ण स्थितियों में सहायता सुनिश्चित करने में इन सहायता कर्मियों की अहम भूमिका रहती है. ज़ाहिर तौर पर, मानवतावादी ज़रूरतों के आगे भी बरक़रार रहने की संभावनाओं के बीच, तमाम सहायता कर्मियों की सुरक्षा को मज़बूत करना ज़रूरी हो जाता है.

शोध से ये भी पता चला है कि मानवतावादी सहायता से जुड़े कार्य, तनावपूर्ण हैं और श्रमिकों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं. एक ओर काम से संबंधित तनाव, संसाधनों तक पहुंच से लेकर नैतिक दुविधाओं तक जाता है, वहीं संगठनात्मक स्तर पर आंतरिक और बाहरी तनावों का भी इसमें हाथ रहता है.

भले ही भौतिक या शारीरिक सुरक्षा एक ठोस तत्व है, लेकिन स्वास्थ्य प्राथमिकताओं (ख़ासकर मानसिक स्वास्थ्य) की बेहतरी सुनिश्चित करना भी उतना ही अहम है. वर्तमान में, मानवीय कार्यकर्ताओं की मनोवैज्ञानिक देखभाल के लिए दिशानिर्देश मौजूद हैं. इनमें संयुक्त राष्ट्र की अंतर-एजेंसी स्थायी समिति (IASC) द्वारा स्थापित “अच्छे तौर-तरीक़े के लिए दिशानिर्देश: मानवतावादी कर्मियों में तनाव का प्रबंधन करना” और “आपातकालीन परिस्थितियों में मानसिक स्वास्थ्य और मनोवैज्ञानिक सहायता पर दिशा निर्देश ” शामिल हैं. हालांकि, इन तमाम दिशानिर्देशों को ऊपर से नीचे की ओर प्रवाह वाले दृष्टिकोण के तौर पर देखा जाता है. नतीजतन, सहायता कर्मियों की समग्र सलामती सुनिश्चित करने के लिए एक व्यापक और व्यावहारिक ढांचे की सिफारिश की जाती है. इस कड़ी में विश्व आर्थिक मंच के आह्वान के बलबूते, दान (charity) से आगे निकलकर लचीलेपन की दिशा में जाने की क़वायद को शामिल किए जाने की आवश्यकता है. सहायता कर्मियों के मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य पर विचार करने की आवश्यकता, चिंता का प्रमुख विषय रही है. विभिन्न शोधों में भी इसे रेखांकित किया गया है. हालांकि, ये क़वायद शिक्षाविदों तक ही सीमित दिखाई देती है. लिहाज़ा, ऐस अध्ययनों से प्रेरणा लेकर कार्रवाई योग्य (actionable) सुझाव तैयार करना ज़रूरी हो जाता है. कुछ क़दम, मनोवैज्ञानिक सहायता प्राप्त करने की प्रक्रियाओं को परिभाषित कर रहे हैं. साथ ही उन कर्मचारियों की पहचान करने की दिशा में भी काम कर रहे हैं, जिन्हें इस तरह की मदद की आवश्यकता है. तैनातियों की संख्या और गहनता के आधार पर कामगारों को वर्गीकृत करने के लिए एक इन-हाउस डेटाबेस तैयार किया जाना चाहिए. इसके अलावा, कर्मियों को उन इलाक़ों की अच्छी समझ विकसित करनी चाहिए जहां उन्हें तैनात किया जाना है. लिहाज़ा ऐसी तैनातियों से पहले उनको जानकारी देने वाले सत्रों को अनिवार्य बनाया जाना चाहिए. इन सत्रों में उन्हें ऐसे संभावित ख़तरों का ब्योरा दिया जाना चाहिए जिनका उन्हें सामना करना पड़ सकता है. इससे इन सहायता कर्मियों को नए इलाक़े और माहौल के हिसाब से ढलने में मदद मिल सकती है. इसके अलावा, तैनाती के बाद तमाम ज़रूरी जानकारियां दिए जाने वाली क़वायद को शामिल करना भी आवश्यक है. ये ज़रूरी मानसिक स्वास्थ्य सहायता और इसे हासिल करने के तौर-तरीक़ों का विश्लेषण करने वाले मंच के तौर पर भी काम कर सकता है.

क्षमता निर्माण और ख़ास क़िस्म के प्रशिक्षण, मानवतावादी प्रतिक्रियाओं की प्रभावशीलता को गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं. तमाम दस्तावेज़ों में इसकी अहमियत को अच्छी तरह से पहचाना गया है. बहरहाल, कुछ अवसर व्यापक कार्यक्रम मुहैया कराते हैं, जो कर्मियों को प्रशिक्षित, शिक्षित और तैयार कर सकते हैं. अंतरराष्ट्रीय सहयोग, संसाधन और विविध प्रकार की विशेषज्ञता लाते हैं. लिहाज़ा, इसकी बदौलत इस अंतर को दूर किया जा सकता है. ऐसी पहल, कर्मियों को सैद्धांतिक दृष्टि और कौशल से लैस करती हैं, जो समकालीन संघर्षों की जटिल प्रकृति से निपटने में मददगार साबित हो सकती है. 2030 एजेंडे से प्रभावित होकर 2016 का विश्व मानवतावादी शिखर सम्मेलन एक साथ काम करने का विचार सामने लेकर आया. लिहाज़ा, सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) और मानवीय सहायता को आपस में जोड़ने की क़वायदों से नीतिगत दायरे में अहम प्रभाव पड़ सकते हैं. दरअसल, अनेक लक्ष्यों को प्राप्त करने से संकट का समाधान हो सकता है और संकट का समाधान  हासिल करने से अनेक लक्ष्य प्राप्त हो सकते हैं. ख़ासतौर से सतत विकास लक्ष्य 16 और 17, मानवीय सहायता को अंतरराष्ट्रीय सहयोग के केंद्र बिंदु के रूप में रखते हैं. ये अंतरराष्ट्रीय सहयोग के ज़रिए शांति और न्याय के लिए लचीले संस्थानों की आवश्यकता पर ज़ोर देकर इन क़वायदों को आगे बढ़ाते हैं. इसलिए ऐसी सामूहिक पहल, SDGs को हासिल करने और अहम मानवीय ज़रूरतों को पूरा करने के दोहरे उद्देश्य की पूर्ति करती हैं.

इसी कड़ी में मानवतावादी क्रियाकलापों के परिचालनों में कुछ बदलाव लाने से कर्मियों के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से सुरक्षित वातावरण तैयार करने में मदद मिल सकती है.

ऊपर बताए गए तरीक़े, कुछ ऐसे क़दम हैं जो मौजूदा क़ानूनों को मज़बूत करने में मदद करके लचीलेपन को बढ़ावा दे सकते हैं. साथ ही सहायता कर्मियों की अनुकूलन क्षमता को बढ़ाने से जुड़ी क़वायदों का रास्ता साफ़ कर सकते हैं. इसमें कोई शक़ नहीं कि मानवता, निष्पक्षता और तटस्थता के मानदंडों के प्रति दृढ़ता और एकजुटता, मानवतावादी कार्यकर्ताओं की सुरक्षा में भूमिका निभाती है. इसी कड़ी में मानवतावादी क्रियाकलापों के परिचालनों में कुछ बदलाव लाने से कर्मियों के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से सुरक्षित वातावरण तैयार करने में मदद मिल सकती है. संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरस, आपदाओं और संघर्षों से प्रभावित क्षेत्रों में भोजन, पानी, शरण, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी अनिवार्य जीवन आवश्यकताओं का बचाव और आपूर्ति सुनिश्चित करने का आह्वान कर चुके हैं. इस प्रकार, सामूहिक क़वायदों को लेकर 2022 के आह्वान पर आगे बढ़ते हुए 2023 का विश्व मानवतावादी दिवस अभियान, ज़रूरतमंद समुदायों तक मदद पहुंचाने से जुड़ी प्रतिबद्धता को फिर से दोहराने का लक्ष्य रखता है #NoMatterWhat.


किरण भट्ट मणिपाल एकेडमी ऑफ हायर एजुकेशन के प्रसन्ना स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के डिपार्टमेंट ऑफ ग्लोबल हेल्थ के सेंटर फॉर हेल्थ डिप्लोमेसी  में रिसर्च फेलो हैं.

संजय पट्टनशेट्टी मणिपाल एकेडमी ऑफ हायर एजुकेशन के प्रसन्ना स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में ग्लोबल हेल्थ गवर्नेंस के हेड ऑफ डिपार्टमेंट और सेंटर फॉर हेल्थ डिप्लोमेसी  के कोऑर्डिनेटर  हैं.

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