उत्तर कोरिया में खाद्य सुरक्षा का परिदृश्य लगातार ख़तरे में होने के साथ ये पूरी तरह से उचित है कि अंतर्राष्ट्रीय विकास सहयोग के पहलुओं के बारे में छानबीन की जाए जिस पर एजेंडा 2030 के टिकाऊ विकास लक्ष्य (एसडीजी) 17 को ध्यान में रखते हुए सख़्ती के साथ ज़ोर दिया गया है. पिछले कुछ वर्षों के दौरान उत्तर कोरिया में खाद्यान्न की भीषण कमी के साथ भयंकर प्राकृतिक आपदाओं और मूलभूत मानवाधिकार पर चोट करने वाले किम जोंग–उन की सरकार के निरंकुश रवैये का नतीजा एक संकट के रूप में सामने आया है. इसके अलावा उत्तर कोरिया के परमाणु हथियारों और मिसाइल बैलिस्टिक कार्यक्रमों की वजह से संयुक्त राष्ट्र के द्वारा उस पर कई अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक पाबंदियां लगाई गई हैं. इन पाबंदियों के कारण उत्तर कोरिया आर्थिक व्यापार नहीं कर सकता है; परमाणु हथियारों पर पाबंदियां हैं; कोयला और दूसरे खनिजों के निर्यात पर रोक है; और कच्चे तेल, पेट्रोलियम उत्पादों और लग्ज़री सामानों, इत्यादि के आयात में कटौती की गई है. इन पाबंदियों के बावजूद उत्तर कोरिया में संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों के द्वारा स्वास्थ्य, पानी, पोषण और कृषि के क्षेत्र में मानवीय सहायता मुहैया कराने की इजाज़त दी गई है.
पिछले कुछ वर्षों के दौरान उत्तर कोरिया में खाद्यान्न की भीषण कमी के साथ भयंकर प्राकृतिक आपदाओं और मूलभूत मानवाधिकार पर चोट करने वाले किम जोंग-उन की सरकार के निरंकुश रवैये का नतीजा एक संकट के रूप में सामने आया है.
लेकिन विकास सहयोग का विचार कभी भी बिना मीन–मेख के नहीं रहा है. आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) के दानकर्ताओं और उभरते विकासशील साझेदारों के द्वारा चलाई जा रही मानवीय सहायता का आवंटन, वितरण और पैमाना एक विभाजित भौगोलिक स्थिति बता रहा है जो काफ़ी हद तक लेन–देन वाले सामरिक हितों से प्रभावित है. विचारधारा से आगे की बात करें तो इसने दुनिया को तेज़ी से एक–दूसरे से जुड़ा हुआ बनाया है जहां संपर्क और साझेदारी विकास का अनूठा नमूना पेश करती है. इसके अलावा नई वैश्विक व्यवस्था का आगमन सहयोग का विरोधाभास पेश करती है; पहला, जहां अलग–अलग देश नेतृत्व पर कब्ज़ा करने के लिए भूरणनीतिक तरीक़ों में मज़बूती से शामिल होना चाहते हैं; और दूसरा जहां कूटनीति के वैकल्पिक तरीक़े सामने आ रहे हैं. उदाहरण के लिए, विकासशील देशों में इंफ्रास्ट्रक्चर या तकनीकी आदान–प्रदान के रूप में क्षमता के निर्माण को ख़ुद की मौजूदगी दिखाने, आत्मविश्वास की स्थिति हासिल करने और वैश्विक नेतृत्व के लिए नये द्वार के रूप में भी देखा जा सकता है.
किम जोंग उन का ‘हरमिट किंगडम’
इस बात पर विचार करते हुए कि अंतर्राष्ट्रीय विकास सहयोग इस बुनियाद पर टिका है कि जो देश उतने साधन संपन्न नहीं हैं, उनकी पहुंच वैश्विक सार्वजनिक सामानों तक सुलभ की जाए, ये अनजाने में मानवीय संवेदना और नैतिक विचार उत्पन्न करता है. लेकिन उत्तर कोरिया का मामला थोड़ा जटिल है. बाक़ी दुनिया के साथ ‘हरमिट किंगडम’ (ऐसा देश जो दूसरे देशों से अलग–थलग हो) के तौर पर उत्तर कोरिया की भागीदारी असाधारण रूप से सीमित है. इसकी वजह किम जोंग–उन की तानाशाही सत्ता है जो दुनिया की निगाहों से अपने देश को अलग–थलग करने के लिए गुप्त रूप से काम कर रही है. 90 के दशक में एक–के–बाद–एक प्राकृतिक आपदाओं के साथ रुकी हुई अर्थव्यवस्था का नतीजा मानवीय सहायता के प्रवेश के रूप में निकला. इसके साथ–साथ उत्तर कोरिया की सरकार पनडुब्बी आधारित मिसाइल लॉन्च करके और नई सुविधाओं की स्थापना के ज़रिए परमाणु हथियार बढ़ाने में लगी रही. उत्तर कोरिया के द्वारा परमाणु हथियारों के विस्तार की गतिविधियों को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र ने अपनी आर्थिक पाबंदियां बढ़ा दी.
लेकिन इसके बावजूद सामरिक सोच और ताक़त दिखाने की राजनीति सहायता पहुंचाने की रणनीति में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है. ये निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि उत्तर कोरिया में चीन खाद्यान्न मुहैया कराने वाले सबसे बड़े देशों में से एक है. हालांकि ताज़ा आंकड़े मौजूद नहीं हैं और किसी तरह की निगरानी प्रणाली नाममात्र की है. समुद्री रास्ते के ज़रिए ज़रूरी अनाज, उर्वरक, पेट्रोलियम, खाना बनाने वाला कोयला और दूसरे वस्त्र उपकरण चीन से हासिल करके उत्तर कोरिया अपने एशियाई पड़ोसी पर काफ़ी हद तक निर्भर है. आर्थिक प्रतिबंधों और व्यापार पाबंदियों के बावजूद ऐसी ख़बरें आई हैं कि उत्तर कोरिया अपनी अर्थव्यवस्था को बचाए रखने के लिए पैसा हासिल करने की कोशिश के तहत धातु उत्पादों और दूसरे खनिजों का अवैध तरीक़े से आयात–निर्यात कर रहा है. लेकिन उत्तर कोरिया के प्रधानमंत्री के द्वारा कोविड-19 के प्रोटोकॉल और बाहरी लोगों के साथ कोई संपर्क नहीं रखने के सख़्त निर्देशों को देखते हुए इस अवैध व्यापार को गंभीर नुक़सान पहुंचा है.
आर्थिक प्रतिबंधों और व्यापार पाबंदियों के बावजूद ऐसी ख़बरें आई हैं कि उत्तर कोरिया अपनी अर्थव्यवस्था को बचाए रखने के लिए पैसा हासिल करने की कोशिश के तहत धातु उत्पादों और दूसरे खनिजों का अवैध तरीक़े से आयात-निर्यात कर रहा है
इसके अलावा यूरोप के कई देशों के साथ रूस और अमेरिका भी द्विपक्षीय और बहुपक्षीय माध्यमों जैसे संयुक्त राष्ट्र, विश्व खाद्य कार्यक्रम और दूसरे अंतर्राष्ट्रीय ग़ैर–सरकारी संगठनों के ज़रिए उत्तर कोरिया को मानवीय सहायता मुहैया करा रहे हैं. स्वाभाविक तौर पर आर्थिक पाबंदियां लगाने और देरी से मानवीय सहायता मुहैया कराने में दिक़्क़त आती है. ये दिक़्क़त और भी बढ़ जाती है क्योंकि सूचनाओं के प्रवाह से किम का डर काफ़ी पुराना है. ऐसा इसलिए है कि किम की सत्ता के लिए सूचनाओं का आना एक ख़तरा है. महामारी के फैलने के बाद किम के द्वारा 2020 में उत्तर कोरिया के दरवाज़ों को बंद करने का फ़ैसला इसी वजह से लिया गया था. ख़तरनाक वायरस से बचने के साथ–साथ अपनी विचारधारा को बचाने के लिए उत्तर कोरिया दुनिया के उन देशों में सबसे पहले है जिसने अपनी सीमा को बंद कर दिया. इस तरह उत्तर कोरिया और भी अलग–थलग हो गया.
बड़े दानकर्ताओं ने हाथ खींचे
संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों का मानना है कि 2011 से 2019 के बीच बड़े दानकर्ताओं की तरफ़ से उत्तर कोरिया को दी जाने वाली रक़म में काफ़ी कमी आई. उदाहरण के लिए 2017 में उत्तर कोरिया को लगभग 35 मिलियन अमेरिकी डॉलर मदद के तौर पर मिले जबकि संयुक्त राष्ट्र ने 120 मिलियन अमेरिकी डॉलर की भारी–भरकम मदद की अपील की थी. इसी तरह संयुक्त राष्ट्र के विश्व खाद्य कार्यक्रम के मुताबिक़ उत्तर कोरिया को मिलने वाली खाद्यान्न सहायता में भी कमी दर्ज की गई और 2015 के लगभग 35,000 टन के मुक़ाबले 2018 में खाद्यान्न के तौर पर 14,000 टन की मदद ही मिली. इस संदर्भ में 2017 में अमेरिका की तरफ़ से उत्तर कोरिया में आई बाढ़ को लेकर यूनिसेफ की राहत गतिविधियों में सामरिक लेकिन बुद्धिमानी भरे 1 मिलियन अमेरिकी डॉलर की मदद के संकल्प को मानवीय सहायता तेज़ करने में महत्वपूर्ण क़दम माना जा सकता है.
वैसे तो मानवीय सहायता बिना किसी राजनीति के होनी चाहिए लेकिन ऐसा लगता है कि मदद का एक बड़ा हिस्सा उन देशों से आ रहा है जिनका उत्तर कोरियाई क्षेत्र में सामरिक हित है. उदाहरण के तौर पर चीन को लीजिए जो एशिया में लगातार अपनी गतिविधियां बढ़ा रहा है और उत्तर कोरिया की तरफ़ महाशक्तियों के संतुलन के साथ–साथ व्यावहारिकता के नज़रिए से देखता है यानी कोरियाई प्रायद्वीप में चीन–अमेरिका के बीच सामरिक प्रतिस्पर्धा. इसी तरह पिछले कुछ वर्षों के दौरान उत्तर कोरिया पर एकतरफ़ा आर्थिक पाबंदियों के बावजूद अमेरिका मानवीय सहायता की पेशकश करके कूटनीतिक पुल को फिर से बनाने के लिए उत्सुक है.
महामारी के दौरान मानवीय सहायता स्वीकार करने से किम के इनकार के बाद विश्व खाद्य कार्यक्रम के द्वारा चलाए जा रहे राहत के काम पर नकारात्मक असर पड़ रहा है और वो आने वाले महीनों में अपनी गतिविधियां बंद कर सकता है. ऐसे में मानवीय सहायता पहुंचाने वाले संस्थानों के लिए उत्तर कोरिया एक बेहद मुश्किल क्षेत्र बन गया है
लेकिन इसके बावजूद उत्तर कोरिया की खाद्यान्न सुरक्षा की पहेली का कोई अंत नहीं है. ऐसी अटकलें लग रही हैं कि महामारी के दौरान मानवीय सहायता स्वीकार करने से किम के इनकार के बाद विश्व खाद्य कार्यक्रम के द्वारा चलाए जा रहे राहत के काम पर नकारात्मक असर पड़ रहा है और वो आने वाले महीनों में अपनी गतिविधियां बंद कर सकता है. ऐसे में मानवीय सहायता पहुंचाने वाले संस्थानों के लिए उत्तर कोरिया एक बेहद मुश्किल क्षेत्र बन गया है जहां वो कमज़ोर तबके के लोगों को बचाने की अपनी नैतिक ज़िम्मेदारी पर खरा उतर सकते हैं. इसके अलावा मौजूदा महामारी ने मज़बूत हेल्थकेयर इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ लचीला समाज बनाने की ज़रूरत पर काफ़ी ज़ोर डाला है जो कि तभी संभव है जब व्यावहारिक और असरदार साझेदारी हो. बेशक, अंतर्राष्ट्रीय विकास सहयोग दानकर्ताओं की प्रेरणा के उतार–चढ़ाव और प्रवाह की झलक दिखाता है लेकिन उत्तर कोरिया के मामले में तो सब कुछ जानते हुए भी कोई इस पर बात नहीं करना चाहता है. लेकिन ये ध्यान रखना दिलचस्प होगा कि कैसे और कौन इस पर बात करता है, ख़ासतौर पर ऐसी दुनिया में जहां निरंतरता की सोच का दबदबा है.
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