ईरान के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति मसूद पेज़ेशकियान की ताजपोशी के महज़ कुछ घंटों बाद ही, हमास के राजनीतिक ब्यूरो के प्रमुख इस्माइल हानिया की तेहरान में हत्या कर दी गई. ईरान के नए राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह में इलाक़े के बहुत से प्रमुख नेता शामिल हुए. इनमें भारत और कई अरब देशों के प्रतिनिधि भी शामिल थे. ताजपोशी के कुछ ही घंटों बाद इस्माइल हानिया की हत्या की घटना कितनी गंभीर थी, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हानिया की हत्या की ख़बर ईरान की बेहद ताक़तवर इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कोर (IRGC) ने की.
ईरान के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति मसूद पेज़ेशकियान की ताजपोशी के महज़ कुछ घंटों बाद ही, हमास के राजनीतिक ब्यूरो के प्रमुख इस्माइल हानिया की तेहरान में हत्या कर दी गई.
इस्माइल हानिया 7 अक्टूबर को इज़राइल पर हुए आतंकी हमलों के बाद से ही हमास और इज़राइल के बीच युद्ध का केंद्र बिंदु बने हुए थे. हमास द्वारा इज़राइलियों को बंधक बनाए जाने के बाद इज़राइल और फ़िलिस्तीनी संगठन हमास पिछले कई महीनों से एक दूसरे से उलझे हुए हैं. हमास को आतंकी संगठन घोषित करके अमेरिका समेत कई देशों ने उस पर पाबंदी लगा रखी है. क़तर, मिस्र और अमेरिका जैसी इस इलाक़े की बड़ी ताक़तें बंधकों की रिहाई के लिए समझौता कराने की कोशिशों में शामिल रही हैं. इस मायने में इस्माइ हानिया, हमास के लिए बाक़ी दुनिया से ताल्लुक़ का सबसे बड़ा ज़रिया थे. एक व्यापक रूप-रेखा में देखें, तो हमास को ‘प्रतिरोध की धुरी’ का हिस्सा होने की वजह से ईरान से काफ़ी सहयोग प्राप्त होता रहा है. इस धुरी में लेबनान का हिज़्बुल्लाह, यमन के (अंसारल्लाह के नाम से भी जाने जाने वाले) हूती और सीरिया से लेकर इराक़ के बीच की राजनीतिक अराजकता में फैले दूसरे छोटे संगठन भी शामिल हैं.
इस्माइल हानिया के दबदबे को समझने की कोशिश
इस्माइल हानिया की हत्या इस वक़्त और तेहरान में ही क्यों हुई, इसे लेकर बहुत से सवाल खड़े हुए हैं. ईरान को तो पहले से ही अपनी ज़मीन पर ऐसी शख़्सियतों की हत्या का झटका झेलना पड़ा है, जो ईरान के लिए काफ़ी अहम और दुश्मनों की नज़र में ख़तरनाक थे. नवंबर 2020 में तेहरान के बाहरी इलाक़े में आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस से लैस के स्वचालित हथियार के ज़रिए ईरान के एक बड़े परमाणु वैज्ञानिक मोहसिन फ़ख़रीज़देह की हत्या कर दी गई थी. ईरान में ऐसी कई और भी घटनाएं हो चुकी हैं. इनमें 2018 में ईरान के एक परमाणु केंद्र में हुई लूट भी शामिल है, जिसके बारे में कहा जाता है कि तब इज़राइल ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम और उसके इरादों का पर्दाफ़ाश करने वाली फाइलें चुराई थीं. इस्माइल हानिया की हत्या ये दिखाती है कि एक दूसरे के दुश्मन ईरान और इज़राइल के बीच चूहे बिल्ली का खेल लंबे वक़्त से चला आ रहा है.
इस्माइल हानिया, 7 अक्टूबर के हमले से पहले से ही निशाने पर थे. मगर उस हमले के बाद उनके ऊपर ख़तरा और भी बढ़ गया था. बंधकों की रिहाई को लेकर वार्ता में इस्माइल हानिया की जो भूमिका थी, उससे उन्हें हमास की तरफ़ से बात रखने के भरपूर मौक़े मिले थे. हालांकि, बुधवार तक ये बातचीत अधर में ही लटकी हुई थी. हमास ने सार्वजनिक परिचर्चाओं में बड़ी कामयाबी से ख़ुद की एक आतंकवादी संगठन की जगह एक ‘क्रांतिकारी’ संगठन की छवि बना ली है. जब ग़ज़ा में तबाही मची हुई है, तब इस्माइल हानिया तुलनात्मक रूप से कहीं अधिक सुरक्षित ठिकाने यानी क़तर की राजधानी दोहा की चमकती ऊंची इमारतों में रह रहे थे. इसी साल जून में इज़राइल के एक हवाई हमले में हानिया के परिवार के 10 लोग मारे गए थे. इससे पहले अप्रैल में उत्तरी ग़ज़ा में हुए एक हमले में हानिया के तीन बेटों की मौत हो गई थी.
आगे क्या होगा?
अब सवाल ये खड़ा होता है कि हमास की कमान अब किसके हाथ में होगी और उससे भी बड़ा सवाल तो ये है कि ग़ज़ा में युद्ध पर इस हत्या का क्या असर होगा. इस आयाम से इतर एक बड़ा सवाल ये भी मौजूद है कि क्या ग़ज़ा की लड़ाई इस पूरे इलाक़े में फैलने का डर है. इस बात की संभावना कम ही है कि ईरान, इस्माइल हानिया की हत्या के बदले में तुलनात्मक रूप से कहीं बड़ा हमला करेगा. हमें ये बात समझ लेनी चाहिए कि हमास जैसे संगठनों के लिए मसीहा के बराबर की हैसियत रखने वाले किसी नेता की ज़रूरत नहीं रह जाती है. एक स्तर तक तथाकथित लोकप्रियता के बावजूद, ऐसे संगठनों के लिए किसी नेता विशेष के मायने नहीं रह जाते. किसी नेता की जगह लेने के लिए दूसरे लोग हमेशा तैयार रहते हैं. शर्त बस यही होती है कि संगठन की सियासी और वैचारिक धुरी ऊपर से नीचे तक एक ही हो. ख़ालिद मशाल जैसे हमास के पोलित ब्यूरो के वरिष्ठ सदस्य, इस्माइल हानिया की जगह लेने के लिए तैयार हैं. ये भी हो सकता है कि मशाल के अलावा हमास के दूसरे भी कुछ नेता हों, जो ग़ज़ा में मची तबाही का कोई समाधान निकालने के लिए ज़्यादा नरम रुख़ अपनाएं और बंधकों की रिहाई को लेकर हो रही बातचीत में भी रियायतें देने को तैयार हों. यहां ये याद रखना ज़रूरी है कि रणनीतिक रूप से ग़ज़ा में हमास की सैन्य शाखा, यहां सिनवार की कमान में काम करने वाली अल क़स्साम ब्रिगेड के पास ही निर्णय लेने की ताक़त है. पहले गुपचुप बातचीत के दौरान ये कहा जाता रहा है कि 7 अक्टूबर को इज़राइल पर हमला करना हो या फिर उसके बाद इज़राइली बंधकों को क़स्साम ब्रिगेड द्वारा क़ैद में रखना हो, इन बातों को लेकर हमास के भीतर अंदरूनी तनाव रहा है. इसकी वजह से निर्णय लेने की प्रक्रिया कहीं ज़्यादा मुश्किल और मतभेद भरी हो गई है.
इस बात की संभावना कम ही है कि ईरान, इस्माइल हानिया की हत्या के बदले में तुलनात्मक रूप से कहीं बड़ा हमला करेगा. हमें ये बात समझ लेनी चाहिए कि हमास जैसे संगठनों के लिए मसीहा के बराबर की हैसियत रखने वाले किसी नेता की ज़रूरत नहीं रह जाती है.
संकट के इन अलग अलग बिंदुओं के बीच, हमास के सामने ख़ुद का राजनीतिक भविष्य अनिश्चितता भरा है. जिस तरह हिज़्बुल्लाह ने ख़ुद को लेबनान की सियासत का हिस्सा बना लिया है और वहां की संसद में भी हिज़्बुल्लाह के सदस्य हैं. उसी तरह 2006 का चुनाव जीतने के बाद से हमास ने भी अपनी सियासत को पाला पोसा है. जबकि इसकी जड़ें, फ़िलिस्तीन मामले के सैन्य समाधान को तरज़ीह देने से जुड़ी हैं. इन अंदरूनी बदलावों की हिफ़ाज़त करना भी हमास के भविष्य के लिहाज़ से काफ़ी अहम होगा. अगर हमास दोबारा पूरी तरह से उग्रवादी आंदोलन में तब्दील होता है, तो फिर हो सकता है कि न सिर्फ़ इज़राइल के हाथों हमास का ख़ात्मा हो जाए, बल्कि इस बात की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि उसके अरब पड़ोसी भी बड़ी ख़ामोशी से हमास से पल्ला झाड़ लें.
ईरान के लिए इस वक़्त बड़ा संकट शायद सिर्फ़ इस्माइल हानिया की मौत नहीं, बल्कि ये सच्चाई है कि हमास के नेता को तेहरान में मारा गया. इससे बाहरी साज़िशों से इतर ख़ुद ईरान के भीतर सुरक्षा को लेकर बड़े अहम सवाल खड़े हो गए हैं.
जहां तक इज़राइल की बात है तो कम से कम अपने समर्थकों के बीच तो प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की लोकप्रियता में उछाल आना तय है. ये बात इसलिए भी काफ़ी अहम है क्योंकि नेतन्याहू काफ़ी भयंकर सियासी मुश्किल का सामना कर रहे हैं (हानिया की हत्या को लेकर इज़राइल ने बुधवार तक कोई बयान नहीं दिया था). हमास से समझौता न कर पाने में नाकामी की वजह से इज़राइल की सड़कों पर बेंजामिन नेतन्याहू के ख़िलाफ़ लगातार विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. लेकिन, नेतन्याहू हों या कोई दूसरा इज़राइली प्रधानमंत्री, उसके लिए अपने देश की सरकार का मुखिया होते हुए हमास को रियायतें देना, राजनीतिक रूप से ऐसा क़दम होगा, जिसकी विरासत कोई भी छोड़कर नहीं जाना चाहेगा. और जहां तक नेतन्याहू की बात है, उनके लिए विरासत अगर सब कुछ नहीं, तो बहुत कुछ ज़रूर है.
निष्कर्ष
आख़िर में क्षेत्रीय संघर्ष छिड़ने का सवाल ऐसा है, जिसको लेकर चिंता वाजिब है. हालांकि इस बात की संभावना कम ही है कि ईरान, जिसने 2020 में क़ासिम सुलेमानी की हत्या के बाद भी कोई बड़ा पलटवार नहीं किया था. वो इस्माइल हानिया के लिए पूरे इलाक़े में जंग छेड़ेगा. लेकिन, ये तय है कि जवाब आएगा, ठीक उसी तरह जैसे इसी साल सीरिया में ईरान के कूटनीतिक ठिकाने पर इज़राइल के तथाकथित हमले के बाद ईरान ने किया था. ईरान के लिए इस वक़्त बड़ा संकट शायद सिर्फ़ इस्माइल हानिया की मौत नहीं, बल्कि ये सच्चाई है कि हमास के नेता को तेहरान में मारा गया. इससे बाहरी साज़िशों से इतर ख़ुद ईरान के भीतर सुरक्षा को लेकर बड़े अहम सवाल खड़े हो गए हैं.
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