विश्लेषकों ने पाया है कि आपूर्ति में आ रही बाधाओं के चलते अभी भी दुनिया के कई अमीर देश कोरोना की वैक्सीन ख़रीदने की क़तार में लगे हैं. जबकि उनके पास वैक्सीन ख़रीदने की अथाह क्षमता है. इसके साथ ही साथ दुनिया में वैक्सीन की जो सीमित आपूर्ति हो भी पा रही है, वो बेहद असमान रूप से वितरित हो रही है. वर्ष 2021 की पहली तिमाही में अमेरिका और यूरोप के चार सबसे बड़े वैक्सीन निर्माताओं द्वारा बनाई गई टीके की ख़ुराक का 90 प्रतिशत हिस्सा, उत्तरी अमेरिका और यूरोप में रहने वाले लोगों को लगाया गया. वहीं, भारत का टीकाकरण अभियान, भयंकर दूसरी लहर के सामने लड़खड़ाने लगा. भारत का मीडिया वैश्विक स्तर पर कोविड-19 के टीकाकरण की तुलना अक्सर अपने देश के टीकाकरण अभियान से करता है. हालांकि, ये तुलना अक्सर अमेरिका और यूरोपीय देशों के टीकाकरण अभियान से होती है. इन तुलनाओं के आधार पर भारत का मीडिया इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि भारत में बहुत कम लोगों को ही वैक्सीन लगाई जा सकी है और टीकाकरण अभियान की रफ़्तार बेहद सुस्त है.
अधिक प्रासंगिक तुलनात्मक अध्ययन
हालांकि, जब हम भारत की तुलना उन देशों से करते हैं, जो सामाजिक, आर्थिक और आबादी के स्तर पर भारत से मिलते हैं, तो सच्चाई की बिल्कुल अलग ही तस्वीर उभरकर सामने आती है. फिगर 1 में हमने आबादी की तुलना में टीके की कम से कम एक ख़ुराक देने वाले देशों के टीकाकरण के आंकड़ों की तुलना को दिखाया है. ये 15 देश विश्व बैंक के वर्गीकरण (प्रति व्यक्ति 4045 डॉलर वार्षिक की सकल राष्ट्रीय आय) के पैमाने पर सबसे अधिक आबादी वाले कम और कम से मध्यम आमदनी वाले देश हैं. इन देशों में ब्रिक्स (BRICS) के सदस्य भी शामिल हैं, जो भारत (प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय 2120 डॉलर) से अमीर हैं. 15 सबसे अधिक आबादी वाले कम और कम से मध्यम आमदनी वाले देशों में भारत में ही सबसे ज़्यादा लोगों को कम से कम टीके की एक ख़ुराक दी जा सकी है. ब्रिक्स देशों की बात करें, तो केवल चीन और ब्राज़ील ही हैं, जिनका टीकाकरण अभियान भारत से बेहतर रहा है. हालांकि, चीन में एक और दो डोज़ पाने वालों के स्पष्ट आंकड़े अभी हमारे पास नहीं हैं. दिलचस्प बात ये है कि एक बड़ा वैक्सीन निर्माता होने के बावजूद, टीकाकरण के मामले में रूस का प्रदर्शन भारत से बहुत ख़राब रहा है.
हालांकि, जब हम इन देशों के बीच कोरोना वैक्सीन की दोनों ख़ुराक ले चुके लोगों की संख्या की तुलना करते हैं, तो भारत का प्रदर्शन तुलनात्मक रूप से कमज़ोर दिखता है. भारत की केवल 3.3 प्रतिशत आबादी को ही कोरोना के दोनों टीके लगाए जा सके हैं. वैसे, इतनी कम संख्या के बावजूद कम और कम से मध्यम आमदनी वाले देशों के बीच भारत शीर्ष पर दिखता है. ब्रिक्स देशों के बीच, वैसे तो कुल टीकाकरण के मामले में भारत केवल चीन से पीछे है. लेकिन चीन, रूस और ब्राज़ील की तुलना में भारत में टीके की दोनों डोज़ ले चुके लोगों की संख्या बहुत कम है. ये तीनों ही देश तुलनात्मक रूप से भारत से अमीर हैं. यहां ये बात साफ़ कर देना आवश्यक है कि, इस विश्लेषण का अर्थ ये नहीं है कि भारत अपने टीकाकरण के प्रयासों में सफल रहा है. हम बस ये बात सामने रखना चाहते हैं कि भारत का टीकाकरण अभियान उस वक़्त चल रहा है, जब दुनिया भर में वैक्सीन की भारी कमी है और ग़रीब देशों की तुलना में अमीर देशों को अधिक वैक्सीन मिल पा रही है. भारत के पास इसके सिवा कोई और विकल्प नहीं है कि वो टीकों के घरेलू उत्पादन को बढ़ाए, जिससे कि वो अपने टीकाकरण अभियान को रफ़्तार देने के साथ साथ अन्य विकासशील देशों की भी मदद कर सके.
वैक्सीन के जुगाड़ की वैश्विक होड़
कोविड-19 महामारी से उबरने की कोशिश में हर देश आज कूटनीतिक, सार्वजनिक स्वास्थ्य और अर्थशास्त्र के स्तंभों के बीच उठा-पटक का संघर्ष कर रहा है. ज़ाहिर है मध्यम अवधि में इस समस्या का समाधान कोरोना के टीके ही हैं. हालांकि अब तक दुनिया में 1.91 अरब टीके लगाए जा चुके हैं. फिर भी, दुनिया के तमाम देशों के बीच टीकाकरण में भारी असमानता है और टीकाकरण की गति भी बहुत धीमी है. अब तक दुनिया की केवल 12.5 प्रतिशत आबादी को ही कोरोना का टीका लगाया जा सका है. चीन इस मामले में दुनिया में सबसे आगे चल रहा है. 31 मई तक वो 63.9 करोड़ लोगों को टीका लगा चुका था. चीन के बाद, 31 मई तक 29.5 करोड़ टीके लगाकर अमेरिका दूसरे स्थान पर है. दुनिया में हर रोज़ लगाए जा रहे टीकों का औसत 3.35 करोड़ ख़ुराक है. अगर इसी दर से वैक्सीन दी जाती रही, तो विश्व की 75 प्रतिशत आबादी को टीका लगाने में अभी एक साल और लगेंगे. कोरोना वायरस से वैश्विक रोग प्रतिरोधक क्षमता हासिल करने के लिए कम से कम 75 प्रतिशत लोगों को वैक्सीन देनी ज़रूरी है.
दुनिया भर में अब तक लगाई जा चुकी वैक्सीन की ख़ुराक का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा उच्च और उच्च मध्यम आमदनी वाले देशों में ही लगाया गया है. लेकिन, ये दुनिया की कुल जनसंख्या का 16 प्रतिशत से भी कम है. यहां ये बात भी ध्यान देने योग्य है कि दुनिया के 70 सबसे अमीर देशों में कुल टीकों का 45 प्रतिशत से अधिक हिस्सा लगाया गया है. जबकि इन देशों में विश्व की केवल 23 फ़ीसद आबादी रहती है. स्पष्ट है कि ज़िंदगी बचाने वाली वैक्सीन और अन्य संसाधनों तक पहुंच में न तो निष्पक्षता है और न ही समानता.
विशेषज्ञों ने भविष्यवाणी की है कि अगर दुनिया की बहुसंख्यक आबादी के लिए वैक्सीन दुर्लभ रहती है, तो ये महामारी अगले सात वर्षों तक जारी रह सकती है. विश्व स्वास्थ्य संगठन, गावी (GAVI) वैक्सीन गठबंधन और कोएलिशन फॉर एपिडेमिक प्रिपेयर्डनेस इनोवेशन (CEPI) ने दुनिया के 92 सबसे ग़रीब देशों को कोरोना वैक्सीन की दो अरब ख़ुराक मुहैया कराने का वादा किया था. लेकिन, वो अभी ये वादा पूरा करने की समय सीमा से काफ़ी पीछे चल रहे हैं. इसकी एक वजह टीकों के लिए भारत के सीरम इंस्टीट्यूट पर अत्यधिक निर्भरता है. भारत में महामारी की दूसरी लहर के चलते सीरम इंस्टीट्यूट वैक्सीन उपलब्ध कराने का अपना वादा पूरा करने में नाकाम रहा है. लेकिन, अगर अब वैक्सीन की आपूर्ति श्रृंखलाएं ठीक से संचालित होने भी लगी हैं, तो कोवैक्स के तहत कम और मध्यम आय वाले देशों की 20 प्रतिशत जनसंख्या को ही टीके उपलब्ध कराए जा सकेंगे. जब तक इस महामारी से लड़ने का ये प्रमुख हथियार केवल अमीर देशों के पास रहता है, तो कोरोना वायरस म्यूटेट होकर अपने संक्रमण का दायरा ग़रीब और असुरक्षित लोगों के बीच फैलाता रहेगा. अगर महामारी का प्रकोप जारी रहता है, तो इससे सार्वजनिक स्वास्थ्य के बड़े ख़तरे और क़रीब 9 ख़रब डॉलर की आर्थिक क्षति होने का अनुमान लगाया जा रहा है.
हर्ड इम्यूनिटी हासिल करने का भारत का सफर अभी लंबा है
पिछले महीने लंबे समय तक पूरे देश में वैक्सीन की भारी कमी के चलते हर दिन लगाए जा रहे टीकों के औसत में काफ़ी उतार चढ़ाव देखने को मिला है. दो हफ़्ते पहले ये औसत 14 लाख ख़ुराक प्रतिदिन के निचले स्तर तक गिर गया था. हालांकि, रोज़ के टीकाकरण का औसत अब धीरे धीरे बढ़ रहा है. इस समय सात दिनों का औसत क़रीब 25 लाख डोज़ प्रतिदिन है. हर दिन सबसे अधिक टीके लगाए जाने का साप्ताहिक औसत मध्य अप्रैल में 36 लाख डोज़ प्रतिदिन के सबसे अधिक स्तर पर था.
राज्यों के बीच टीकाकरण की तुलना करें, तो महाराष्ट्र अब तक सबसे ज़्यादा 2.1 करोड़ टीके लगा चुका है. इसके बाद दूसरा नंबर उत्तर प्रदेश और राजस्थान का है. दोनों ही राज्य अब तक क़रीब 1.6 करोड़ टीके लगा चुके हैं. जहां तक आबादी की तुलना में वैक्सीन देने का स्तर है, तो इस मामले में उत्तर प्रदेश और बिहार का प्रदर्शन बहुत ख़राब रहा है. उत्तर प्रदेश में हर एक हज़ार व्यक्ति पर 72 और बिहार में ये औसत 82 का है. स्थायी विकास के लक्ष्य वाली रैंकिंग में सबसे नीचे की पायदान वाले सात राज्यों में बिहार, झारखंड औ उत्तर प्रदेश को देश के कुल टीकों का 24.4 प्रतिशत हिस्सा मिला है. इन राज्यों में देश की लगभग 40 फ़ीसद आबादी रहती है. राष्ट्रीय स्तर पर टीकाकरण के आंकड़ों की एक तस्वीर आपको नीचे दर्ज आंकड़ों में दिख सकती है.
भारत सरकार ने शुरुआत में कोरोना के टीकाकरण के तीसरे चरण को रफ़्तार दी थी. एक मई से 18 साल से अधिक उम्र के हर नागरिक को कोरोना का टीका लगाने की इजाज़त दे दी गई थी. लेकिन, वैक्सीन की कमी और चरमराई हुई स्वास्थ्य व्यवस्था के चलते, देश के 10 से ज़्यादा राज्यों को 18 से 44 आयु वर्ग के लोगों के टीकाकरण की शुरुआत को टालना पड़ा था. टीकों की आपूर्ति को लेकर अभी भी अनिश्चितता बनी हुई है. इस कमी से फौरी तौर पर छुटकारा पाने के लिए, रूस की स्पुतनिक V वैक्सीन की आयातित ख़ुराकों को भी डॉक्टर रेड्डीज़ लैबोरेटरीज़ के साथ साझेदारी में 14 मई से सीमित स्तर पर वितरित किया जा रहा है. इसके अलावा रूस के डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट फंड (RDIF) ने आठ भारतीय दवा कंपनियों के साथ स्पुतनिक V वैक्सीन बनाने का क़रार किया है. इन समझौतों के तहत भारत में स्पुतनिक की 85 करोड़ ख़ुराक बनाकर पूरी दुनिया में उनका वितरण किया जाएगा.
कोविड-19 महामारी से पहले पूरी दुनिया में हर साल टीकों की क़रीब तीन अरब ख़ुराक की मांग हुआ करती थी. अब चूंकि वैक्सीन निर्माता तो निजी कंपनियां हैं, तो हर देश में वैक्सीन बनाने की कितनी क्षमता है, इसका आंकड़ा मिल पाना बहुत मुश्किल होता है. लेकिन, अगर हम यूनिसेफ (UNICEF) द्वारा टीके ख़रीदने के स्रोतों का आकलन करें, तो हर साल टीकों की क़रीब दो अरब ख़ुराक ख़रीदे जाने के आंकड़े उपलब्ध हैं (फिगर 6). जैसा कि इस ग्राफ से स्पष्ट है, यूरोप और अमेरिकी महाद्वीपों में उच्च आमदनी वाले क्षेत्रों को छोड़ दें तो दुनिया भर में वैक्सीन की आपूर्ति काफ़ी हद तक भारत पर ही निर्भर थी. अगर भारत सही समय पर शुरुआत करता, तो वो कोविड-19 की वैक्सीन बनाने की क्षमता का विस्तार कर सकता था. इसके लिए उसे तेज़ी से टीके बनाने की नई इकाइयों का निर्माण करने के साथ साथ मौजूदा इकाइयों को कोरोना के टीके बनाने के लिए तैयार
आगे चलकर भारत सरकार को ये उम्मीद है कि वो जून 2021 में राज्यों को कोरोना वैक्सीन की लगभग 12 करोड़ ख़ुराक का आवंटन करेगी. ये टीके स्वास्थ्य कर्मियों और फ्रंटलाइन वर्कर्स के साथ सात 45+ आयु वर्ग (जो सरकारी अस्पतालों से मुफ्त में टीके लगवा सकते हैं) के लोगों को प्राथमिकता के आधार पर दी जाएंगी. इस आंकड़े में वो टीके भी शामिल है जो निजी अस्पताल और राज्य व केंद्र शासित प्रदेश सीधे वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों से ख़रीदेंगे. मई 2021 में केंद्र ने कुल 7.9 करोड़ वैक्सीन का आवंटन किया था.
एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम के अंतर्गत, 2 जून को सुप्रीम कोर्ट ने उसकी टीकाकरण की रणनीति को लेकर कई सवाल पूछे हैं. कोर्ट का मानना है कि सरकार की नीति के इन पहलुओं के चलते टीकाकरण की रफ़्तार और उसकी व्यापकता में व्यवधान पड़ रहा है. इनमें राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए टीकों का अलग मूल्य और कोल्ड चेन भंडारण के संसाधनों के वितरण जैसे पहलू शामिल हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोविड-19 के टीकों को ख़रीदने के लिए सिर्फ़ एक व्यवस्था होनी चाहिए. इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार द्वारा कई दशकों से सफलतापूर्वक चलाए जा रहे, सार्वभौमिक टीकाकरण का उदाहरण दिया था, जिसके चलते संक्रामक रोगों की मृत्यु दर को बहुत हद तक कम किया जा सका है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि वो इन विषयों पर अगले दो हफ़्तों में अपना हलफ़नामा दाख़िल करे. साथ ही सर्वोच्च अदालत ने ये भी कहा कि ऐसे हर मुमकिन प्रयास किए जाने चाहिए जिससे अधिक से अधिक लोगों जल्दी से जल्दी कोरोना की वैक्सीन दी जा सके.
जैसा कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के गोपीनाथ और अग्रवाल कहते हैं कि महामारी की नीति (और इसके चलते बनाई गई वैक्सीन की नीति) ही इस समय असली आर्थिक नीति है. ये महामारी तब तक पूरी दुनिया से ख़त्म नहीं हो सकती, जब तक इसका हर देश से उन्मूलन न हो जाए. टीकाकरण के वैश्विक प्रयासों की सफलता के लिए इसमें वित्तीय संसाधन, एकजुटता और व्यापक स्तर पर निवेश की ज़रूरत है. चूंकि इस वायरस के ख़िलाफ़ लड़ाई में अभी केवल वैक्सीन ही ऐसा हथियार है जो मानवता को विजय दिला सकती है. ऐसे में भारत कैसे और कितनी जल्दी टीकों के वैश्विक उत्पादन के रूप मे पैरों पर खड़ा हो सकता है, ये बात ही ये तय करेगी कि दुनिया कितनी जल्दी वायरस के प्रकोप से उबरकर सामान्य जीवन की ओर लौट सकेगी.
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