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पहलगाम हमले के बाद भारत की तरफ से सिंधु जल समझौते को निलंबित करने के जवाब में पाकिस्तान ने शिमला समझौते पर रोक लगा दी है. लेकिन ऐसा करके पाकिस्तान ने अपने उद्देश्य और परिणाम- दोनों में मेल की कमी को उजागर किया है.
Image Source: Getty
22 अप्रैल 2025 को पहलगाम हमले के बाद भारत ने जो कदम उठाए, उनमें से एक था 1960 की सिंधु जल संधि (IWT) को स्थगित रखना. इसके जवाब में पाकिस्तान ने ऐलान किया कि वो 1972 के शिमला समझौते समेत भारत के साथ सभी द्विपक्षीय समझौतों में अपनी भागीदारी को स्थगित रखेगा. मुख्य बात ये है कि पहलगाम हमला जहां IWT को लेकर भारत के लिए एक निर्णायक बिंदु था, वहीं पाकिस्तान ने बिना कोई दलील दिए भारत की कार्रवाई की नकल की. समझौते को स्थगित रखने का अर्थ है समझौते के तहत द्विपक्षीय भागीदारी की सभी प्रक्रियाओं को निलंबित रखना जिनमें इस प्रक्रिया में विश्व बैंक की 'मध्यस्थता' भी शामिल है. ये एक कूटनीतिक निर्णय है जो आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान के लगातार अड़ियल रवैये की वजह से लिया गया है. संधि में इस तरह के कदम की अनुमति देने वाले किसी विशेष प्रावधान की कमी भारत की कार्रवाई को कानून के तहत गलत साबित नहीं करती है, जिसका दावा पाकिस्तान ने किया है. इसके उलट पाकिस्तान के द्वारा शिमला समझौते और अन्य द्विपक्षीय संधियों का लगातार उल्लंघन अंतर्राष्ट्रीय कानून और प्रथा की मूल भावना का मखौल उड़ाता है.
संधि में इस तरह के कदम की अनुमति देने वाले किसी विशेष प्रावधान की कमी भारत की कार्रवाई को कानून के तहत गलत साबित नहीं करती है, जिसका दावा पाकिस्तान ने किया है.
IWT हमेशा पाकिस्तान के पक्ष में रही है और कई मायनों में ये संधि आधुनिक तकनीक की वजह से पुरानी हो गई है जिसकी वजह से लंबे समय से इसकी समीक्षा लंबित है. अतीत में दो अवसरों, जनवरी 2023 और फिर सितंबर 2024, पर भारत ने सिंधु जल संधि की "समीक्षा और संशोधन" का अनुरोध किया लेकिन इस पर पाकिस्तान से कोई जवाब नहीं मिला. इसलिए IWT को स्थगित रखना पाकिस्तान तक पानी के बहाव को जहां तक संभव हो, प्रभावी ढंग से रोकने का एक अवसर प्रदान करता है. पहलगाम हमले के बाद सिंधु जल संधि को लेकर भारत की कार्रवाई के बाद पाकिस्तान की तरफ से पहली प्रतिक्रिया के तहत वहां के जल संसाधन सचिव सैयद अली मुर्तज़ा ने अपने भारतीय समकक्ष से संपर्क किया और संधि की उन धाराओं पर चर्चा करने की इच्छा व्यक्त की जिन्हें भारत 'आपत्तिजनक' मानता है.
संधि को स्थगित रखने की भारत की घोषणा से पाकिस्तान परेशान हो गया है क्योंकि इस कदम से संकेत मिलता है कि भारत बिना किसी हिचकिचाहट के एकतरफा कदम उठाने के लिए तैयार है. विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने साफ कर दिया है कि पाकिस्तान के साथ भारत केवल 'आतंकवाद' पर बात करना चाहता है और आने वाले समय में IWT पर कोई चर्चा नहीं होगी. जयशंकर ने कहा, "सिंधु जल संधि को स्थगित रखा गया है और ये उस समय तक स्थगित रहेगा जब तक पाकिस्तान के द्वारा सीमा पार आतंकवाद को भरोसेमंद और अपरिवर्तनीय रूप से रोक नहीं दिया जाता."
जनवरी 2025 में भारत के अनुरोध पर विश्व बैंक के द्वारा नियुक्त ‘तटस्थ विशेषज्ञ’ ने बयान दिया कि किशनगंगा और रतले जलविद्युत परियोजना को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच मतभेदों का निपटारा करने के लिए वो ‘सक्षम’ हैं. भारत ने अभी तक पाकिस्तान के अनुरोध पर विश्व बैंक के द्वारा हेग में “अवैध रूप से गठित” मध्यस्थता न्यायालय की कार्यवाही में भाग नहीं लिया है. तार्किक रूप से IWT के तहत दोनों देशों के बीच सभी कार्यवाही अपने आप स्थगित हो जानी चाहिए. विश्व बैंक के अध्यक्ष अजय बंगा ने पिछले दिनों स्पष्ट किया कि चूंकि बैंक केवल एक मध्यस्थ है, ऐसे में वो भारत के द्वारा संधि को निलंबित करने के मामले में कोई ‘सहायता नहीं करेगा’. ध्यान देने की बात है कि 2016 में विश्व बैंक ने ख़ुद संधि के कामकाज को ‘रोकने’ का फैसला लिया ताकि दोनों देशों अपने मतभेदों का सौहार्दपूर्ण समाधान ढूंढ़ सकें.
ध्यान देने की बात है कि 2016 में विश्व बैंक ने ख़ुद संधि के कामकाज को ‘रोकने’ का फैसला लिया ताकि दोनों देशों अपने मतभेदों का सौहार्दपूर्ण समाधान ढूंढ़ सकें.
ऐसे में सवाल उठता है कि भारत की कार्रवाई का आधार क्या है. 1969 में तैयार संधियों के कानून पर वियना सम्मेलन (VCLT) इस मुद्दे पर कुछ मार्गदर्शन प्रदान करता है. अनुच्छेद 62 संधि पर हस्ताक्षर के समय से “परिस्थितियों में आए मूलभूत परिवर्तन” को संधि समाप्त करने का वैध आधार बताता है. तकनीकी प्रगति और जलवायु परिवर्तन समेत कई कारणों ने IWT की मूल शर्तों को अमान्य कर दिया है. इसके अलावा पाकिस्तान के द्वारा आतंकवाद को प्रायोजित करना और भारत पर इसका लगातार प्रभाव इस दलील को मजबूत करता है कि भारत के द्वारा इस सम्मेलन के अनुच्छेद 62 (3) को लागू करना सही है जिसमें कहा गया है कि “कोई पक्ष परिस्थितियों में मूलभूत बदलाव को संधि समाप्त करने या उससे बाहर होने के आधार के रूप में इस्तेमाल कर सकता है; वो बदलाव को संधि के संचालन को निलंबित करने के आधार के रूप में भी इस्तेमाल कर सकता है.” यही कारण है कि 2023 और 2024 में भारत ने पाकिस्तान को नोटिस भेजकर संधि में फेरबदल करने के लिए उसका सहयोग मांगा. इसमें जनसंख्या में बदलाव, पर्यावरण से जुड़े मुद्दे, स्वच्छ ऊर्जा के विकास की आवश्यकता के साथ-साथ सीमा पार आतंकवाद के असर को लेकर चिंताओं को उजागर किया गया था.
ये चिंताएं बदले में नदियों के पानी को अधिकतम सीमा तक जमा करने और उपयोग करने की भारत की क्षमता को बढ़ाने का मुद्दा खड़ा करती हैं जिससे पाकिस्तान तक पानी के बहाव को सीमित किया जा सके. रतले जलविद्युत परियोजना समेत कई प्रोजेक्ट जारी हैं और इनकी वजह से समय के साथ पाकिस्तान तक पानी का बहाव कम हो जाएगा. लेकिन नदी के पानी के बंटवारे को लेकर पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों के बीच विवाद से राष्ट्रीय हित को नुकसान होने का ख़तरा है. एक और प्राथमिकता सिंधु बेसिन की सभी परियोजनाओं की प्रगति पर निगरानी रखने के लिए एक अधिकार प्राप्त समिति का गठन होना चाहिए. इसका कार्यक्षेत्र परियोजना की निगरानी करना, समय पर परियोजना को पूरा करने को सुनिश्चित करना, पानी जमा करने की क्षमता को बढ़ाना और सिंचाई की क्षमता को व्यवस्थित करना होना चाहिए. ये एक ऐसा कदम है जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तुरंत उठा सकते हैं, जल शक्ति मंत्री समिति के अध्यक्ष के रूप में काम कर सकते हैं.
लगता है कि पाकिस्तान इस भ्रम में है कि जवाबी कार्रवाई के रूप में भारत के साथ की गई सभी संधियों को निलंबित करके वो सिंधु जल संधि को स्थगित करने के भारत के फैसले का मुकाबला करेगा. 1972 में हस्ताक्षरित शिमला समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय संबंधों के संचालन का आधार प्रदान करता है. इसको निलंबित करने का मतलब ये है कि दोनों पक्ष नियंत्रण रेखा (LoC) को मान्यता नहीं देते हैं. ये पाकिस्तान के अनुकूल है क्योंकि वो आतंकवादियों को LoC के पार भेजता है और इसके साथ-साथ दावा करता है कि अंतर्राष्ट्रीय सीमा के कुछ हिस्से महज़ एक ‘काम-काजी सीमा’ हैं. इस प्रकार के विश्वासघात का सबसे अच्छा इलाज अनदेखा करना है. भारत के लिए शिमला समझौता के निलंबन से अपनी सुविधा के अनुसार सैन्य तरीके से LoC में फेरबदल या बदलाव करने का रास्ता खुल गया है. हालांकि ये एक और विश्लेषण का विषय है.
1972 के बाद वो पाकिस्तान ही था जिसने जम्मू-कश्मीर और भारत के दूसरे हिस्सों में आतंकवादियों को भेजकर शिमला समझौते का अनुच्छेद 1 (VI) के तहत बल प्रयोग न करने के प्रावधान का उल्लंघन किया. इस तरह भारत का ये कहना उचित है कि पाकिस्तान के साथ बातचीत में केवल आतंकवाद का मुद्दा चर्चा करने के लायक है. एक और मुद्दा जो बातचीत की मेज पर उठना चाहिए, वो है पाकिस्तान अधिकृत जम्मू-कश्मीर (PoJK) से पाकिस्तान का पीछे हटना.
भारत की तरफ से IWT में संशोधन की अपील व्यावहारिक विचारों पर आधारित है. इसी तर्क के आधार पर भारत को अब शिमला समझौते में संशोधन की मांग पर भी विचार करना चाहिए.
वैसे तो भारत और पाकिस्तान के बीच कई द्विपक्षीय समझौते हैं लेकिन शिमला समझौता और IWT सबसे महत्वपूर्ण बने हुए हैं. भारत की तरफ से IWT में संशोधन की अपील व्यावहारिक विचारों पर आधारित है. इसी तर्क के आधार पर भारत को अब शिमला समझौते में संशोधन की मांग पर भी विचार करना चाहिए.
भाष्यम कस्तूरी राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय के पूर्व निदेशक हैं.
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Bhashyam Kasturi is former director, National Security Council Secretariat. ...
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