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Published on Feb 11, 2025 Updated 0 Hours ago

काल्पनिक संघर्ष के लिए दक्षिण कोरिया और जापान को रूस के द्वारा निशाना बनाने की ख़बरों के कारण इस क्षेत्र में सैन्य तेवर में तनाव और खर्च में बढ़ोतरी होने वाली है.

इंडो-पैसिफिक क्षेत्र: रूसी ख़तरों को जापान व दक्षिण कोरिया का मिला-जुला जवाब!

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दिसंबर 2024 के अंत में ऐसी ख़बरें आईं जिनसे पता चला कि रूस की सेना ने एक काल्पनिक संघर्ष के लिए जापान और दक्षिण कोरिया में 160 संभावित लक्ष्यों की सूची बनाई है जो कि 2008 और 2014 के बीच गुप्त दस्तावेज़ों पर आधारित है. ये योजना उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नेटो) से जुड़े युद्ध के पूर्वी एशिया तक फैलने की रूस की कल्पना और जवाब देने की रणनीति के तहत तैयार की गई थी. टारगेट की सूची में 82 सैन्य साइट शामिल हैं जैसे कि कमांड सेंटर, एयर बेस, नौसैनिक प्रतिष्ठान और रडार सुविधाएं. 

वैसे तो युद्ध का अभ्यास एक नियमित कवायद है जिसे दुनिया भर की सेना अंजाम देती है लेकिन रूस की योजना दो महत्वपूर्ण फैक्टर की वजह से अलग है: कल्पना किए गए ऑपरेशन का व्यापक पैमाना एवं दायरा और जापान एवं दक्षिण कोरिया में वास्तविक लक्ष्यों की सटीक जानकारी और लोकेशन का शामिल होना. 

रूस के सामरिक ख़तरों को लेकर जापान की स्थिति और प्रतिक्रिया

जापान में विशिष्ट लक्ष्यों में होकाइदो में ओकुशिरी द्वीप पर एयर सेल्फ-डिफेंस फोर्स का रडार बेस शामिल है जिसकी इमारतों और बुनियादी ढांचे का विस्तृत माप दिया गया था. नागरिक लक्ष्यों में होंशू और क्यूशु द्वीपों को जोड़ने वाली कैनमोन सुरंग और इबाराकी प्रीफेक्चर के टोकाई गांव में एक परमाणु क़ॉम्प्लेक्स शामिल हैं. लीक हुए दस्तावेज़ वैसे तो पुराने हैं लेकिन उन्हें रूस के मौजूदा सामरिक दृष्टिकोण के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है

जापान में विशिष्ट लक्ष्यों में होकाइदो में ओकुशिरी द्वीप पर एयर सेल्फ-डिफेंस फोर्स का रडार बेस शामिल है जिसकी इमारतों और बुनियादी ढांचे का विस्तृत माप दिया गया था. 

लीक हुए रूसी सैन्य दस्तावेजों में जापान के परमाणु ऊर्जा प्लांट समेत महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे को निशाना बनाने की विस्तार से जानकारी दी गई है जो इंडो-पैसिफिक में जापान के सामने मौजूद अनिश्चित सुरक्षा के माहौल पर ज़ोर देते हैं. ये खुलासा रूस को एक सुरक्षा ख़तरा मानने की जापान की सोच को और मज़बूत बनाएगा, विशेष रूप से इसलिए क्योंकि इन योजनाओं में न केवल सैन्य प्रतिष्ठानों बल्कि नागरिक बुनियादी ढांचे को भी निशाना बनाने की बात कही गई है. 

जापान पहले से ही अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति (NSS) के तहत महत्वपूर्ण रक्षा सुधारों को अंजाम दे रहा है. हाल के वर्षों में रक्षा के लिए रिकॉर्ड बजट आवंटन देखा गया है. रूस के टारगेट की सूची में परमाणु ऊर्जा प्लांट और ऊर्जा के बुनियादी ढांचे का शामिल होना महत्वपूर्ण इंफ्रास्ट्रक्चर में जापान की असुरक्षा के साथ मेल खाता है जो इन केंद्रों को सुरक्षित बनाने के लिए रक्षात्मक उपायों पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित करने को आवश्यक बनाता है. जापान के द्वारा लंबी दूरी की क्रूज़ मिसाइल समेत जवाबी हमला करने की क्षमता हासिल करना बचाव की तरफ एक रणनीतिक बदलाव को दर्शाता है जो संभावित हमले का जवाब देने के लिए उसकी तैयारी का संकेत है. इसके अलावा एजिस अशोर जैसे अत्याधुनिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम पर ध्यान को और अधिक ज़रूरी समझा जा सकता है. इसका कारण है रूस के द्वारा Kh-101 क्रूज़ मिसाइल का उपयोग करने की योजना. वैसे ये मिसाइल सिस्टम वास्तविक युद्ध की स्थिति में चुनौतियों का सामना करता है. 

जापान के नागरिक बुनियादी ढांचे पर रूस का लक्ष्य अमेरिका-जापान सुरक्षा गठबंधन में जापान की भूमिका को भी मज़बूत करता है. जापान के द्वारा अपनी सुरक्षा रणनीति को संबंधित ऑपरेशन के साथ जोड़ने की बढ़ती इच्छा के साथ इस क्षेत्र में अमेरिका सेना की उपस्थिति जापान और अमेरिका के बीच गहरे होते रक्षा तालमेल पर ज़ोर देती है. इसके अलावा, दक्षिण कोरिया और अमेरिका के साथ जापान अधिक त्रिपक्षीय सहयोग को बढ़ावा, वैसे इस बात की संभावना कम है, देने पर ज़ोर दे सकता है. ये विशेष रूप से इसलिए क्योंकि दस्तावेज़ दोनों देशों के ख़िलाफ़ रूस की अधिव्याप्त (ओवरलैपिंग) रणनीति का संकेत देते हैं. ऐतिहासिक तनावों के बावजूद जापान और दक्षिण कोरिया ने हाल के दिनों में संबंधों को सुधारने की शुरुआत की है. उन्होंने रूस और चीन के द्वारा पैदा साझा ख़तरे को पहचान लिया है.  

जापान का महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा और आधुनिक सैन्य क्षमताएं उसे अमेरिकी गठबंधन और क्षेत्रीय स्थिरता को बाधित करने के उद्देश्य से रूस के लिए एक रणनीतिक लक्ष्य बनाती हैं.

कुरिल द्वीप समूह (जिसे जापान में नॉर्दर्न टेरिटरी के रूप में जाना जाता है) को लेकर अनसुलझा प्रादेशिक विवाद रूस के द्वारा आक्रामकता को संप्रभुता की रक्षा के रूप में पेश करने का एक संभावित कारण है. जापान का महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा और आधुनिक सैन्य क्षमताएं उसे अमेरिकी गठबंधन और क्षेत्रीय स्थिरता को बाधित करने के उद्देश्य से रूस के लिए एक रणनीतिक लक्ष्य बनाती हैं. ये योजनाएं पश्चिमी देशों से गहराते अलगाव के बीच इंडो-पैसिफिक पर रूस की बदलती सामरिक नज़र की तरफ भी ध्यान खींचती है. वैसे तो योजनाएं पुरानी हो गई हैं लेकिन वैश्विक स्तर पर अस्थिर भू-राजनीतिक स्थिति को देखते हुए जापान को इस जटिल संभावित ख़तरे के माहौल में अपनी तैयारी बढ़ाने की आवश्यकता है.  

दक्षिण कोरिया की प्रतिक्रिया 

दक्षिण कोरिया के लिए रूसी टारगेट की सूची में रणनीतिक महत्व के नागरिक और सैन्य प्रतिष्ठान शामिल हैं. इनमें पुल, कमांड एवं कंट्रोल बंकर, सैन्य मुख्यालय एवं अड्डे और बुसान में स्थित पोहांग स्टीलवर्क्स जैसे महत्वपूर्ण औद्योगिक स्थल शामिल हैं. वैसे तो देश में मौजूदा राजनीतिक उथल-पुथल की वजह से ये खुलासा गंभीर चिंता का विषय था लेकिन इसने वैसी राजनीतिक प्रतिक्रिया उत्पन्न नहीं की जैसी जापान में हुई थी. 

इसके बावजूद उत्तर-पूर्व एशियाई क्षेत्र में रूस की बढ़ती सामरिक पैठ के कारण दक्षिण कोरिया चिंतित है. विशेष रूप से जून 2024 में व्यापक साझेदारी की संधि पर हस्ताक्षर करने के बाद उत्तर कोरिया के साथ रूस के बढ़ते सैन्य एवं आर्थिक संबंध दक्षिण कोरिया के साथ उसके द्विपक्षीय संबंधों में परेशानी बन गए हैं.  

यूक्रेन के ख़िलाफ़ रूस की सैन्य कार्रवाई से जुड़ी ख़बरों को ध्यान में रखा जाए तो रूस के बर्ताव को लेकर कई तरह की आशंकाएं हैं लेकिन दक्षिण कोरिया की मुख्य चिंता अस्तित्व को लेकर ख़तरे की किसी सोच के बदले उत्तर कोरिया के साथ रूस के गहराते सैन्य संबंध से पैदा होती है. इसलिए उसका उद्देश्य दोनों के बीच बढ़ती साझेदारी का हल निकालना रहा है जिसकी वजह से वो अपने सहयोगी अमेरिका और जापान के साथ घनिष्ठ संबंध बना रहा है. हाल के वर्षों में अमेरिका और जापान के साथ दक्षिण कोरिया की साझेदारी द्विपक्षीय (दक्षिण कोरिया-जापान संबंध) और त्रिपक्षीय तंत्र (त्रिपक्षीय सुरक्षा सहयोग) के ज़रिए व्यवस्थित रूप से आगे बढ़ी है. इसके अलावा दक्षिण कोरिया ने नेटो और पूर्वी यूरोपीय देशों जैसे कि पोलैंड और यूक्रेन के साथ सहयोग और तालमेल के अपने तौर-तरीकों को भी बढ़ाया है, विशेष रूप से रूसी ख़तरे को देखते हुए. 

लेकिन जापान के विपरीत रूसी ख़तरे के नैरेटिव को दक्षिण कोरिया की राजनीति में बहुत अधिक लोगों ने गंभीरता से नहीं लिया है. इसका कारण ये है कि जब रूस और चीन से ख़तरे की बात आती है तो विपक्ष और सत्ताधारी पार्टी की एक जैसी राय नहीं होती है. लोकतांत्रिक प्रशासन के तहत रूस को एक गंभीर राष्ट्रीय सुरक्षा ख़तरा मानने को लेकर इस अलग-अलग सोच के साथ सहयोगियों के बीच तालमेल का दायरा पारंपरिक रूप से सीमित रहा है. वैसे तो रूस के टारगेट को लेकर इस तरह की जानकारी दक्षिण कोरिया में कई लोगों के लिए परेशान करने वाली है लेकिन इसके बावजूद तत्काल ख़तरे की इसकी सूची में अभी भी इसे कम प्राथमिकता मिली हुई है.  

वैसे तो रूस के टारगेट को लेकर इस तरह की जानकारी दक्षिण कोरिया में कई लोगों के लिए परेशान करने वाली है लेकिन इसके बावजूद तत्काल ख़तरे की इसकी सूची में अभी भी इसे कम प्राथमिकता मिली हुई है.

देश में जारी राजनीतिक घमासान के बीच विदेश नीति को लेकर मौजूदा बंटवारा खुलकर सामने आ गया है. विपक्ष ने आरोप लगाया है कि यून प्रशासन मूल्य आधारित कूटनीति का अभ्यास कर रहा है और क्षेत्रीय भू-राजनीतिक संतुलन की अनदेखी कर रहा है. 

निष्कर्ष

अगले चार वर्षों में ट्रंप 2.0 के दौरान उत्तर-पूर्व एशिया में रूस की चुनौती का समाधान सैन्य तेवर, आर्थिक लाभ और कूटनीतिक दबाव के मिले-जुले रूप के माध्यम से होने की संभावना है. दायित्व को साझा करने पर ज़ोर देते हुए ट्रंप जापान और दक्षिण कोरिया को रक्षा खर्च बढ़ाने या स्वतंत्र सैन्य क्षमताओं को विकसित करने के लिए दबाव डाल सकते हैं. इसके साथ-साथ इस क्षेत्र में अमेरिकी सेना की मौजूदगी भी बढ़ा सकते हैं जिसके तहत नौसेना की तैनाती और साझा अभ्यास तेज़ करना शामिल है. वैसे तो ट्रंप ने ऐतिहासिक रूप से रूस के साथ अच्छे संबंधों की वकालत की है लेकिन किसी भी तरह की पहल शायद अमेरिकी हितों के लिए लाभदायक रियायत हासिल करने पर केंद्रित हो सकती है. हालांकि रूस से ख़तरे को लेकर अमेरिका, दक्षिण कोरिया और जापान की अलग-अलग सोच झगड़े की एक वजह बन सकती है जो एक बिंदु के आगे सहयोग को बाधित करेगा. 


प्रत्नाश्री बासु कोलकाता में ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक डिप्लोमेसी और स्ट्रैटजिक स्टडीज़ प्रोग्राम (इंडो-पैसिफिक) में एसोसिएट फेलो हैं. 

अभिषेक शर्मा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में रिसर्च असिस्टेंट हैं. 

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Authors

Pratnashree Basu

Pratnashree Basu

Pratnashree Basu is an Associate Fellow, Indo-Pacific at Observer Research Foundation, Kolkata, with the Strategic Studies Programme and the Centre for New Economic Diplomacy. She ...

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Abhishek Sharma

Abhishek Sharma

Abhishek Sharma is a Research Assistant with ORF’s Strategic Studies Programme. His research focuses on the Indo-Pacific regional security and geopolitical developments with a special ...

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