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पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत की विदेश नीति के लक्ष्यों में प्रशांत द्वीपों से सहयोग (PIC) की सोच को नज़रअंदाज़ कर दिया गया लेकिन महामारी के बाद की विश्व व्यवस्था में ये बदल रहा है.
मई महीने के आख़िर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहली बार पापुआ न्यू गिनी के दौरे पर जाने वाले हैं. प्रधानमंत्री के इस दौरे को लेकर भारत का एजेंडा कई प्राथमिकताओं से भरा हुआ है. कूटनीतिक दायरे में उम्मीदें बहुत ज़्यादा हैं क्योंकि ये अभूतपूर्व दौरा है, पहली बार कोई भारतीय प्रधानमंत्री पापुआ न्यू गिनी के दौरे पर जा रहा है. भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर के मुताबिक़ प्रधानमंत्री की यात्रा के एजेंडे में दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों की सीमा और पहुंच का विस्तार करना सबसे ऊपर है. इस दौरे का सामरिक महत्व उस समय और भी बढ़ जाता है जब यूरोप की धरती पर चल रहे युद्ध की वजह से कई तरह की चुनौतियां खड़ी हो गई हैं जैसे कि तेल की क़ीमत में तेज़ी, महंगाई, आर्थिक मंदी, राजनीतिक लड़ाई, सतत विकास लक्ष्य के एजेंडा 2030 को पूरा करना, इत्यादि.
पीएम मोदी का दौरा फोरम फॉर इंडिया-पैसिफिक आईलैंड कोऑपरेशन (FIPIC) के तीसरे शिखर सम्मेलन के दौरान हो रहा है. पापुआ न्यू गिनी की राजधानी पोर्ट मोरेस्बी में पापुआ न्यू गिनी के साथ मिलकर भारत इस सम्मेलन की मेज़बानी कर रहा है
पीएम मोदी का दौरा फोरम फॉर इंडिया-पैसिफिक आईलैंड कोऑपरेशन (FIPIC) के तीसरे शिखर सम्मेलन के दौरान हो रहा है. पापुआ न्यू गिनी की राजधानी पोर्ट मोरेस्बी में पापुआ न्यू गिनी के साथ मिलकर भारत इस सम्मेलन की मेज़बानी कर रहा है. FIPIC शिखर सम्मेलन के दौरान अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन के भी क्वॉड शिखर सम्मेलन में शामिल होने के लिए पापुआ न्यू गिनी आने की उम्मीद जताई जा रही है. क्वॉड शिखर सम्मेलन 24 मई को हो रहा है. इस दौरान बाइडेन प्रशांत देशों के नेताओं के साथ बातचीत करेंगे. पापुआ न्यू गिनी में एक साथ बाइडेन और मोदी की मौजूदगी ‘ऐतिहासिक रूप से पहली’ है. पापुआ न्यू गिनी के प्रधानमंत्री जेम्स मरापे इसकी व्याख्या “प्रशांत महासागर के सबसे बड़े देश में दुनिया की महाशक्तियों के बीच भविष्य की बैठक के लिए आगे बढ़ने” के रूप में कर रहे हैं.
मेलानेशिया, माइक्रोनेशिया और पॉलीनेशिया नाम के द्वीपों के तीन बड़े समूहों से मिलकर बना पैसिफिक आईलैंड कंट्रीज़ (पीआईसी) दक्षिणी प्रशांत में सामरिक रूप से स्थित द्वीप हैं. इस इलाक़े में दुनिया की कुल आबादी का लगभग छठा हिस्सा रहता है. कई दशकों से ये द्वीप बड़ी महाशक्तियों जैसे कि अमेरिका, फ्रांस, जापान, ऑस्ट्रेलिया और यूनाइटेड किंगडम (UK) के लिए असर और दिलचस्पी के सामान्य क्षेत्र बने हुए हैं.
इस क्षेत्र के साथ भारत की भागीदारी की शुरुआत 19वीं सदी के आरंभ में ब्रिटिश साम्राज्य के शासन के दौरान हुई. भारत के कामगार यहां खेती का काम करने के लिए गए थे. वर्षों से भारत की विदेश नीति ने प्रशांत द्वीप के देशों की तरफ़ ज़्यादा ध्यान नहीं दिया. प्राकृतिक खनिजों और हाइड्रोकार्बन जैसे संसाधनों से समृद्ध ये द्वीप बहुत ज़्यादा जैव-विविधता, समुद्री जीवन की विविधता और बड़ी संख्या में मैंग्रोव के पेड़ों के लिए जाने जाते हैं. ज़ाहिर तौर पर इस क्षेत्र में संसाधनों को निचोड़ने, दक्षिणी चीन सागर में नौसेना की बढ़ती मौजूदगी और बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत निवेश के रूप में चीन के आने से पड़ोस के देश आशंकित हुए हैं. इसके जवाब में भारत ने धीरे-धीरे ख़ुद को प्रशांत द्वीप के देशों की तरफ़ जाने की शुरुआत की. इसके लिए भारत ने 1991 की अपनी लुक ईस्ट पॉलिसी को 2014 में एक्ट ईस्ट पॉलिसी का नाम दे दिया. फोरम फॉर इंडिया-पैसिफिक आईलैंड कोऑपरेशन (FIPIC) का गठन इसकी एक मिसाल है.
जलवायु लचीलापन, डिजिटल स्वास्थ्य, नवीकरणीय ऊर्जा या रिन्यूएबल एनर्जी और आपदा के जोख़िम को कम करने जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर विकास की साझेदारी को आगे बढ़ाते हुए भारत ने भी अनुदान के तौर पर सालाना मदद बढ़ाकर 2,00,000 अमेरिकी डॉलर करने का वादा किया. भू-सामरिक परिप्रेक्ष्य से FIPIC महत्वपूर्ण है. प्रशांत महासागर के देशों के साथ भारत की भागीदारी को अमेरिका के द्वारा इंडो-पैसिफिक में चीन का मुक़ाबला करने के उपाय के तौर पर देखा जाता है. ताइवान मुद्दे पर निपटते हुए चीन प्रशांत महासागर के इन देशों जैसे कि फेडरेटेड स्टेट्स ऑफ माइक्रोनेशिया का समर्थन हासिल करने के लिए भी उत्सुक है ताकि अमेरिकी असर का मुक़ाबला किया जा सके. माइक्रोनेशिया की सत्ता छोड़ने वाले राष्ट्रपति डेविड पैन्यूलो की तरफ़ से पिछले दिनों जारी एक चिट्ठी में देश की घरेलू राजनीति में ‘रिश्वत और दादागीरी’ के ज़रिये चीन के बढ़ते दख़ल के बारे में बताया गया है.
अभी तक फिजी और पापुआ न्यू गिनी के साथ भारत की साझेदारी अच्छी तरह से स्थापित है लेकिन प्रशांत महासागर के बाक़ी देशों के साथ भारत की साझेदारी उतनी अच्छी नहीं है. फिजी और पापुआ न्यू गिनी में भारतीय मूल के लोगों की अच्छी मौजूदगी को देखते हुए भारत की भू-राजनीतिक भागीदारी का झुकाव दक्षिणी-प्रशांत में और ज़्यादा है. जनसंख्या और क्षेत्रफल- दोनों ही मामलों में पापुआ न्यू गिनी प्रशांत द्वीपों में सबसे बड़ा देश है. पापुआ न्यू गिनी का क्षेत्रफल लगभग 4.63 लाख वर्ग किलोमीटर है जबकि जनसंख्या 71 लाख के क़रीब है. विकास सहयोग के लिए अपने मौजूदा बजटीय आवंटन के तहत भारत ने बुनियादी ढांचे के विकास के लिए 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर के लाइन ऑफ क्रेडिट (कर्ज़ की एक सुविधा जिसे ज़रूरत के मुताबिक़ इस्तेमाल किया जा सकता है) की पेशकश की. इसके अलावा हरित परिवर्तन एवं जलवायु परिवर्तन, तकनीक का ट्रांसफर, क्षमता निर्माण, व्यापार एवं वाणिज्य को बढ़ावा, इत्यादि जैसी अलग-अलग क्षेत्र की चिंताएं इस क्षेत्र में भारत की बढ़ती विकास से जुड़ी साझेदारी के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं.
अगर पश्चिमी देशों और यहां तक कि चीन से भी तुलना की जाए तो विकास से जुड़े सहयोग को लेकर भारत का नज़रिया अलग और अनूठा है. विशेषज्ञों ने देखा है कि चीन या पश्चिमी देशों से हटकर भारत की साझेदारी का मॉडल लाभदायक है. ये मॉडल प्रशांत महासागर के विकासशील द्वीपों को आकर्षित करेगा. इसके अलावा, जैसा कि विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने बताया है कि भारत की विदेश नीति अब तेज़ी से ‘विकास के लिए कूटनीति’ की धारणा के इर्द-गिर्द तैयार की जा रही है. विदेश नीति की ये ‘भारतीय राह’ ज़्यादातर विकासशील देशों के ढांचे में फिट बैठती है. 2021 में दिल्ली में आयोजित ब्रिक्स एकेडमिक फोरम के दौरान भारत के विदेश मंत्री ने महामारी के बाद की विश्व व्यवस्था की विशेषता के रूप में ‘मानव केंद्रित वैश्वीकरण’ को जगह देने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया. वहां उन्होंने कहा: “भारत विकासशील देशों में साझेदार देशों के साथ विकास के अनुभव को साझा करके; मानवीय सहायता और आपदा राहत अभियान, ख़ास तौर पर महामारी के दौरान, चलाकर; अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन या इंटरनेशनल सोलर एलायंस और आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढांचे के लिए गठबंधन या कोयलिशन फॉर डिज़ास्टर रेज़िलिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर जैसी पहल के ज़रिये; और अपने कूटनीतिक माहौल में सबसे पहले जवाब देने वाले (वैक्सीन मैत्री के ज़रिये) और सुरक्षा प्रदान करने वाले के तौर पर काम करके ऐसी अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था बनाने के लिए एक रचनात्मक योगदानकर्ता है.”
मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने बताया है कि भारत की विदेश नीति अब तेज़ी से ‘विकास के लिए कूटनीति’ की धारणा के इर्द-गिर्द तैयार की जा रही है. विदेश नीति की ये ‘भारतीय राह’ ज़्यादातर विकासशील देशों के ढांचे में फिट बैठती है.
प्राकृतिक खनिजों से संपन्न होने और एशिया के कई देशों में 8 मिलियन टन लिक्विफाइड नैचुरल गैस (LNG) के निर्यात के बावजूद पापुआ न्यू गिनी की लगभग 40 प्रतिशत आबादी ग़रीब है. पापुआ न्यू गिनी में कई तरह की समस्याएं हैं जिनमें लोकतंत्र पूरी तरह से नहीं होना, स्वास्थ्य देखभाल के लिए संसाधन की कमी, भ्रष्टाचार, जलवायु परिवर्तन और महिलाओं एवं लड़कियों के ख़िलाफ़ हिंसा शामिल हैं. महामारी के बाद इन समस्याओं में और भी बढ़ोतरी हुई है. बेशक इससे भारत के लिए इस क्षेत्र में कनेक्टिविटी, स्वास्थ्य देखभाल, तकनीक, सतत कृषि, क्षमता निर्माण और ट्रेनिंग के क्षेत्र में आगे बढ़ने का संभावित रास्ता खुलता है. G20 की अध्यक्षता से विश्व की राजनीति में भारत एक महत्वपूर्ण अर्थव्यवस्था के रूप में फ़ायदा उठा रहा है, ऐसे में FIPIC को उभरती विश्व व्यवस्था के साथ ख़ुद को जोड़ने के मामले में भारत के लिए एक सही अवसर के रूप में देखा जा सकता है. साथ ही भारत के लिए ये सही समय है कि वो अपनी एक्ट ईस्ट पॉलिसी पर फिर से विचार करे और इसे एक्ट इंडो-पैसिफिक में बदले.
डॉ. स्वाति प्रभु सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक डिप्लोमेसी (CNED) में एसोसिएट फेलो हैं.
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Dr Swati Prabhu is Associate Fellow with the Centre for New Economic Diplomacy at the Observer Research Foundation. Her research explores the interlinkages between development ...
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