जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने की रेस में कई सरकारों ने भविष्य के परिवहन साधन के तौर पर इलेक्ट्रिक गाड़ियों (EV) को अपनाना शुरू कर दिया है. EV से धुआं नहीं निकलता है और कुल मिलाकर इनका कार्बन फुटप्रिंट (वातावरण में निकला कार्बन डाइऑक्साइड) बहुत कम है क्योंकि ये गैसोलीन के जलने के बदले लिथियम बैटरी से चलती हैं. हाई पावर डेंसिटी, जल्दी रिचार्ज और रीसायकल होने के स्वभाव के साथ लिथियम को EV के लिए सबसे अच्छा बैटरी मटेरियल माना जाता है. रिसर्चर्स लिथियम के विकल्प को विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन लिथियम के संभावित विकल्प व्यावसायिक रूप से व्यावहारिक होने के लिए वर्तमान में काफी भारी या काफी बड़े हैं.
भारत में पिछले दिनों खोजे गए लिथियम के भंडार को लेकर चर्चा जैसे-जैसे शांत होती जा रही है, वैसे-वैसे भारत को इस बात पर विचार करना चाहिए कि वो कैसे इस भंडार से लाभ बढ़ा सकता है और संभावित जोखिमों को कम कर सकता है.
लेकिन हरित क्रांति के लिए आवश्यक लिथियम की मात्रा ने ग्लोबल सप्लाई चेन को इधर-उधर हाथ-पैर मारने के लिए मजबूर कर दिया है. कार बनाने वाली कंपनियां अब मौजूदा खदानों के साथ कॉन्ट्रैक्ट पर दस्तखत करने की दौड़ में लगी हुई हैं और नए खदान इस अंतर को भरने के लिए तेज़ी से काम कर रहे हैं. लेकिन मांग में अचानक आई तेज़ी पहली नज़र में जहां आर्थिक विकास के लिए एक अवसर पेश करती है वहीं विकासशील देशों में लिथियम का खनन एक दोधारी तलवार की तरह साबित हुआ है. भारत में पिछले दिनों खोजे गए लिथियम के भंडार को लेकर चर्चा जैसे-जैसे शांत होती जा रही है, वैसे-वैसे भारत को इस बात पर विचार करना चाहिए कि वो कैसे इस भंडार से लाभ बढ़ा सकता है और संभावित जोखिमों को कम कर सकता है.
शोषण का इतिहास
लिथियम भंडार वाले क्षेत्रों को अक्सर वो हालात देखने पड़ते हैं जिनमें बेहतरीन भविष्य के उनके सपनों को शोषण की वजह से रौंद दिया जाता है, ख़ास तौर पर ग्लोबल साउथ (विकासशील देशों) में. चीन और ऑस्ट्रेलिया के अलावा सबसे बड़े लिथियम उत्पादक देश दक्षिण अमेरिका के अर्जेंटीना, बोलीविया और चिली हैं जिन्हें लिथियम ट्राएंगल के नाम से जाना जाता है. अमेरिका और चीन की कंपनियां अर्जेंटीना और चिली में सबसे ज़्यादा खनन करती हैं. ये कंपनियां विशाल नमकीन क्षेत्रों से लिथियम निकालती हैं और रिफाइन करने के लिए उन्हें दूसरी जगह भेजती हैं. इस तरह उत्पादक देशों को प्रोसेस के सबसे लाभदायक हिस्से से दूर रखा जाता है. इसके अलावा, ये कंपनियां खदानों के आस-पास रहने वाले मूल निवासियों की ज़रूरतों और चिंताओं के प्रति अक्सर असंवेदनशील होती हैं. खदानों के पास रहने वाले लोग कहते हैं कि माइनिंग की गतिविधियों ने उनके इलाके की ज़मीन और जल संसाधनों को संकट में डाल दिया है. स्थानीय लोगों की वकालत करने वाले कहते हैं कि अर्जेंटीना में सालार डी होम्बर म्यूर्टो खदान ने उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन किया है.
बोलीविया में लिथियम इंडस्ट्री को इसके विपरीत समस्या का सामना करना पड़ा है. बोलीविया ने अपने लिथियम भंडार का राष्ट्रीयकरण किया है और मूल निवासियों के संगठनों ने अतीत में इस सेक्टर में प्राइवेट कंपनियों को लाने की कोशिशों का विरोध किया था. लेकिन चूंकि सरकारी सेक्टर बोलीविया के लिथियम उद्योग को आगे बढ़ाने में नाकाम रहा है, ऐसे में सरकार ने पिछले दिनों अपने बेकार पड़े लिथियम के रिज़र्व का फायदा उठाने के लिए चीन की कंपनियों के एक समूह के साथ समझौते का मसौदा तैयार किया है. बोलीविया ऐसा देश है जो लंबे समय से अपने लिथियम भंडार के बारे में जानता है, लेकिन उद्योग शुरू करने की धीमी रफ्तार की वजह से अब वो EV बैटरी में आई तेज़ी का लाभ उठाने से चूकने के ख़तरे का सामना कर रहा है. इस तरह ये दो अनुभव, एक में बहुत कम और दूसरे में बहुत ज़्यादा रेगुलेशन, वो रास्ता दिखाते हैं जिन पर विकासशील देशों को अपने प्राकृतिक संसाधनों से फायदा उठाने की कोशिश के दौरान चलना है.
भारतीय लिथियम उद्योग
ऐतिहासिक रूप से भारत में लिथियम उद्योग नहीं के बराबर रहा है. इसके बदले भारत हॉन्ग कॉन्ग और चीन से आयात पर निर्भर था. भारत ने अर्जेंटीना की खनन कंपनियों के साथ ज्वाइंट वेंचर बनाने के बारे में भी पता लगाया था. लेकिन ये हालात फरवरी में उस वक्त बदल गए जब जम्मू-कश्मीर में विशाल लिथियम भंडार की खोज की गई. 5.9 अरब टन का अनुमानित भंडार भारत को दुनिया में लिथियम के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक बना देगा. भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) अभी भी टेस्टिंग के शुरुआती चरणों में है लेकिन लिथियम की क्वालिटी को लेकर शुरुआती नतीजे भरोसा देने वाले हैं. सरकार इस खोज को लेकर बेहद उत्साहित है और साल के अंत तक ब्लॉक में साइट की नीलामी की योजना बना रही है.
खदानों के पास रहने वाले लोग कहते हैं कि माइनिंग की गतिविधियों ने उनके इलाके की ज़मीन और जल संसाधनों को संकट में डाल दिया है. स्थानीय लोगों की वकालत करने वाले कहते हैं कि अर्जेंटीना में सालार डी होम्बर म्यूर्टो खदान ने उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन किया है.
लिथियम की खोज एक बहुत बड़ा अवसर पेश करती है लेकिन इसके साथ जुड़े कई जोखिम भी हैं. जम्मू-कश्मीर में लिथियम का भंडार कठोर चट्टान (हार्ड रॉक) के रूप में है, दक्षिण अमेरिका में सामान्य तौर पर मिलने वाले खारे पानी की तरह नहीं. आम तौर पर पूर्वी गोलार्ध (ईस्टर्न हेमिस्फीयर) में मिलने वाले हार्ड रॉक लिथियम के खनन और प्रसंस्करण के लिए खारे पानी से उत्पादित लिथियम की तुलना में बहुत अधिक पानी और बिजली की आवश्यकता होती है. इसके अलावा, सामान्य रूप से लिथियम माइनिंग और खनिज की माइनिंग ऐतिहासिक रूप से एक शोषण करने वाला उद्योग रहा है जो ग्लोबल साउथ में कच्चे माल का उत्पादन करने वालों के बदले पश्चिमी देशों के उत्पादकों को फायदा पहुंचाता है. भारत को लिथियम से बहुत फायदा उठाना है लेकिन उसे आम लोगों, लाभ और पर्यावरण के बीच सामंजस्य स्थापित करने के लिए लिथियम उद्योग को सावधानी से विकसित करना होगा.
जवाबदेह विकास
अच्छी बात ये है कि भारत ने अपने माइनिंग सेक्टर के विदेशी दोहन से ख़ुद को अलग रखा है. माइंस एंड मिनरल्स (डेवलपमेंट एंड रेगुलेशन) एक्ट के मुताबिक केवल भारतीय नागरिक या भारतीय नागरिकों के द्वारा बनाई गई कंपनियां ही माइनिंग का लाइसेंस या लीज़ पाने के लिए योग्य हैं. ये नीति ऐसी स्थिति में रक्षा के लिए पहली पंक्ति (फर्स्ट लाइन ऑफ डिफेंस) है जो अर्जेंटीना या चिली में देखी गई थी. अर्जेंटीना या चिली में विदेशी कंपनियां लिथियम निकालती हैं और इस खनन का केवल सीमित लाभ ही मेज़बान देश को मिल पाता है. भारतीय हितों को बचाने के लिए घरेलू कंपनियों को भी भारत में निकाले गए लिथियम का प्रसंस्करण करना चाहिए. इससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को और मज़बूती मिलेगी और नव-व्यापारवादी प्रणाली (निओ-मर्केंटिलिस्ट सिस्टम) को रोका जा सकेगा जिसके तहत पश्चिमी देशों की कंपनियां भारत से कच्चा माल तो ख़रीदती हैं लेकिन उसकी उत्पादन क्षमता को नज़रअंदाज़ करती हैं.
भारत के लिथियम प्रोसेसिंग सेक्टर को विकसित करने के लिए बाहरी देशों की विशेषज्ञता की ज़रूरत पड़ सकती है, ख़ास तौर पर तब जब सरकार चाहती है कि हाल ही में खोजी गई जम्मू-कश्मीर की खदानें EV बैटरी में मौजूदा तेज़ी का लाभ उठाने के लिए समय पर उत्पादन करने लगें. ऑस्ट्रेलिया, जिसके साथ भारत की व्यापक सामरिक साझेदारी है, दुनिया का सबसे बड़ा लिथियम उत्पादक है. ऑस्ट्रेलिया का लिथियम उद्योग भारत की तुलना में काफी ज़्यादा तैयार है और उसका लिथियम रिज़र्व उसी हार्ड रॉक के रूप में है जैसे कि भारत में लिथियम का भंडार है. हार्ड रॉक लिथियम के प्रसंस्करण में ऑस्ट्रेलिया की विशेषज्ञता दोनों देशों के बीच तकनीकी आदान-प्रदान और एक-दूसरे के लिए फायदेमंद राजनीतिक संबंधों में व्यापक मज़बूती के लिए एक मौका पेश करती है.
भारत को प्रोसेसिंग के चरण के पर्यावरण पर संभावित असर को लेकर भी सावधान रहना चाहिए. लिथियम अयस्क प्रोसेसिंग में कार्बन उत्सर्जन के लिए सबसे बड़ा योगदान पावर ग्रिड की कार्यक्षमता ही है. भारत की विशाल नवीकरणीय ऊर्जा की क्षमता के बावजूद भारतीय पावर ग्रिड में अभी भी प्रति यूनिट उत्पादित बिजली के मामले में अपेक्षाकृत अधिक कार्बन गहनता (इंटेंसिटी) है. इसलिए लिथियम प्रोसेसिंग प्लांट को मौजूदा हालत में पावर ग्रिड के साथ जोड़ने का नतीजा इस पूरी प्रक्रिया में सामान्य से बहुत अधिक कार्बन उत्सर्जन के रूप में निकलेगा. रिन्यूएबल ऊर्जा के अपने लक्ष्य के अलावा सरकार तुलनात्मक रूप से हरित (ग्रीन) पावर ग्रिड वाले भारत के क्षेत्रों में प्लांट के निर्माण को बढ़ावा देकर पर्यावरण पर लिथियम के उत्पादन के असर को कम करने की कोशिश भी कर सकती है.
एक मज़बूत भारतीय EV बैटरी सेक्टर उस वक़्त देश की मदद कर सकता है जब वो इलेक्ट्रिक गाड़ियों की तरफ बढ़ रहा है और निर्यात से प्रेरित आर्थिक विकास में योगदान कर सकता है.
आख़िर में, EV बैटरी के उत्पादन से भारत को ख़ुद फायदा हो सकता है. एक मज़बूत भारतीय EV बैटरी सेक्टर उस वक़्त देश की मदद कर सकता है जब वो इलेक्ट्रिक गाड़ियों की तरफ बढ़ रहा है और निर्यात से प्रेरित आर्थिक विकास में योगदान कर सकता है. सरकार ने इस साल के आरंभ में मेक इन इंडिया पहल के हिस्से के रूप में नेशनल प्रोग्राम ऑन एडवांस्ड केमिस्ट्री सेल (ACC) बैटरी स्टोरेज की शुरुआत करके पहले ही इस नये-नवेले सेक्टर को प्रोत्साहित करना शुरू कर दिया है. कार्यक्रम के तहत EV का उत्पादन करने वाली कंपनियों जैसे कि ह्यूंडई मोटर इंडिया, रिलायंस लिमिटेड, ओला इलेक्ट्रिक और राजेश एक्सपोर्ट्स को इंसेंटिव के रूप में 2 अरब डॉलर से ज़्यादा का ग्रांट (अनुदान) मिलेगा. लिथियम लाइफसाइकिल (जीवनचक्र) में हर कदम के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था को तैयार करना ये सुनिश्चित करने का सबसे अच्छा तरीका है कि भारत में लिथियम खनन का फायदा भारत को ही मिले.
न्यायसंगत निरंतरता
लिथियम खनन के अपने जोखिम हैं लेकिन जलवायु संकट को देखते हुए इस पर आगे बढ़ने में नाकामी अधिक विनाशकारी हो सकती है. दक्षिण अमेरिका से सबक लेते हुए भारत सरकार के पास लिथियम उद्योग को ऐसे रास्ते पर ले जाने के लिए अपार क्षमता है जो कि टिकाऊ और आर्थिक रूप से लाभकारी- दोनों हैं. अगर जम्मू-कश्मीर में लिथियम के भंडार को ज़िम्मेदारी से निकाला जाता है तो इससे भारतीय EV बैटरी उद्योग को तेज़ी से आगे बढ़ाया जा सकता है और दुनिया भर में कार से कार्बन उत्सर्जन को कम करने में मदद मिल सकती है. वैसे तो भारत के लिथियम का दुनिया भर में असर होगा लेकिन उसे ये सुनिश्चित करना चाहिए कि लिथियम के खनन को लेकर कोई भी चर्चा उसके लोगों और उसके पर्यावरण के हितों को पहले रखे.
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