हालिया दिनों में विश्व में महामारी और संक्रामक बीमारियां ज्यादा बढ़ने लगी हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक (डब्ल्यूएचओ डीजी) ने आईएचआर इमरजेंसी कमेटी (ईसी) की बैठक बुलाकर यह पता लगाने की कोशिश की है कि क्या किसी संक्रमण के प्रकोप को पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी ऑफ इंटरनेशनल कन्सर्न (पीएचईआईसी) घोषित किया जा सकता है. यह कमेटी डब्ल्यूएचओ डीजी को आपातकाल और अंतरिम सिफारिशों का सुझाव देती हैं. 2005 में इंटरनेशनल हेल्थ रेग्युलेशन्स यानी अंतर्राष्टीय स्वास्थ्य विनियमन को अपनाए जाने के बाद से अब तक कुल सात पीएचईआईसी घोषणाएं हुई हैं, जिसमें मंकीपॉक्स का भी समावेश है. लेकिन हाल के अनुभव ने किसी संक्रमण को पीएचईआईसी घोषित करने की आईएचआर में मौजूद खामियों को उजागर किया है. उदाहरण के तौर पर 2014 में जब इबोला वायरस जब व्यापक रूप से पैर पसार रहा था तो डब्ल्यूएचओ को इसे पीएचईआईसी घोषित करने में चार माह का वक्त लग गया था.
भारत सहित कई देशों ने यह सुझाव दिया है कि डब्ल्यूएचओ में सुधार काफी समय से लंबित हैं. 2021 में एक नई अंतरराष्ट्रीय संधि पर बातचीत के माध्यम से एक अंतर सरकारी निकाय की स्थापना को वैश्विक प्रणाली की उन्नति में एक अहम कदम माना गया था. ताकि इस निकाय के माध्यम से महामारी की रोकथाम, उसका मुकाबला करने की तैयारी और उससे निपटने के उपाय किए जा सके. पूर्व में भी पीएचईआईसी की ओर से की गई घोषणाएं हमेशा से विवादास्पद रही हैं. इसका कारण यह है कि कभी किसी हितधारक ने इसे जल्दबाजी में की गई घोषणा माना है, तो कभी किसी ने यह कहा है कि यह घोषणा करने में डब्ल्यूएचओ ने देर कर दी थी. कोविड-19 महामारी के दौरान आईएचआर ने डब्ल्यूएचओ को इसे पीएचईआईसी घोषित करने का सुझाव देने में देरी कर दी. फलस्वरूप इससे निपटने की उचित व्यवस्था नहीं की जा सकी. डब्ल्यूएचओ डीजी ने जनवरी 2020 में ईसी की तीन मर्तबा बैठक बुलवाई थी, ताकि यह सुझाव मिल सके कि इसे पीएचईआईसी घोषित किया जाए अथवा नहीं. लेकिन इसके मरीजों की अपर्याप्त जानकारी और विशेषज्ञों के बीच मतभेदों की वजह से कमेटी ने कभी इसे ‘‘बेहद जल्दी’’ की जाने वाली घोषणा बताया, तो कभी यह कहा कि, ‘‘विदेशों में इसके मरीजों की संख्या सीमित है.’’ यह एक ऐसी प्रणाली की आवश्यकता पर जोर देता है जो एक पुन: निर्धारित ढांचे के भीतर वर्तमान मानक प्राधिकरण का पुर्ननिर्माण करें, ताकि वैश्विक स्वास्थ्य माहौल पर समुदायों को महत्वपूर्ण प्रभाव हासिल हो सके.
यह एक ऐसी प्रणाली की आवश्यकता पर जोर देता है जो एक पुन: निर्धारित ढांचे के भीतर वर्तमान मानक प्राधिकरण का पुर्ननिर्माण करें, ताकि वैश्विक स्वास्थ्य माहौल पर समुदायों को महत्वपूर्ण प्रभाव हासिल हो सके.
24-29 जनवरी, 2022 के बीच हुए कार्यकारी मंडल (ईबी) के 150 वें सत्र में डब्ल्यूएचओ डीजी ने भविष्य में आने वाली महामारी से निपटने के उपाय करने के लिए पांच प्राथमिकता वाले क्षेत्रों की ओर विश्व का ध्यान आकर्षित करने पर बल दिया. ये पांच प्राथमिकताएं हैं:
(i) विभिन्न देशों को स्वास्थ्य और वेल बिइंग यानी कल्याण को बढ़ावा देने और इसके मूल कारणों को दूर करके बीमारी को रोकने की दिशा में तत्काल आदर्श स्थितियों का निर्माण करने में सहयोग देना,
(ii) प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल की दिशा में स्वास्थ्य प्रणालियों में आमूल परिवर्तन का समर्थन करना ताकि इसे सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज की नींव के रूप में देखा जाए,
(iii) महामारी और संक्रामक रोगों से निपटने की तैयारी और इसके रोकथाम की प्रणाली और संसाधनों को तत्काल मजबूती देना,
(iv) अन्य प्राथमिकताओं के महत्वपूर्ण उत्प्रेरक के रूप में विज्ञान, अनुसंधान नवीनीकरण, डेटा तथा डिजीटल तकनीकी की शक्तियों का उपयोग करना तथा,
(v) डब्ल्यूएचओ को तत्काल मजबूत करना.
हालांकि मंकी पॉक्स, कोविड-19 तथा इसके पूर्व की पीएचईआईसी के दौरान सदस्य देशों एवं डब्ल्यूएचओ आईएचआर सुझावों के बीच समन्वय के अभाव की खबरें थी. इसका एक कारण यह था कि निर्णय लेने की प्रक्रिया में विभिन्न क्षेत्र के देशों की हिस्सेदारी की कमी अथवा कम प्रतिनिधित्व था. इसी संदर्भ में ईसी, डीजी, ईबी और विश्व स्वास्थ्य सभा अर्थात वर्ल्ड हेल्थ असेंबली (डब्ल्यूएचए) के सदस्यों के बीच समन्वय सुनिश्चित करने के लिए, ऑस्ट्रिया की सरकार ने महामारी और आपातकालीन तैयारी और प्रतिक्रिया (एससीपीपीआर) पर स्थायी समिति के गठन का प्रस्ताव दिया था. इस प्रस्ताव में तर्क दिया गया था कि एससीपीपीआर जैसी प्रणाली महामारी के दौरान प्रासंगिक होगी. एससीपीपीआर जैसी प्रणाली मंकीपॉक्स जैसी चल रही महामारी में भी व्यवहार्य हैं.
जब मंकीपॉक्स को पीएचईआईसी के रूप में वर्गीकृत करने का निर्णय लिया गया तो डब्ल्यूएचओ डीजी ने दो बैठकों का आयोजन किया, जिसमें से पहली बैठक के दौरान कोई सहमति नहीं बन पाई. लेकिन दूसरी बैठक में डब्ल्यूएचओ डीजी ने अपने अधिकार का उपयोग करते हुए वीटो का इस्तेमाल कर मंकीपॉक्स को पीएचईआईसी घोषित कर दिया.
जब मंकीपॉक्स को पीएचईआईसी के रूप में वर्गीकृत करने का निर्णय लिया गया तो डब्ल्यूएचओ डीजी ने दो बैठकों का आयोजन किया, जिसमें से पहली बैठक के दौरान कोई सहमति नहीं बन पाई. लेकिन दूसरी बैठक में डब्ल्यूएचओ डीजी ने अपने अधिकार का उपयोग करते हुए वीटो का इस्तेमाल कर मंकीपॉक्स को पीएचईआईसी घोषित कर दिया. इसका ईसी के कुछ सदस्यों ने समर्थन किया, जबकि कुछ ने विरोध किया था. ऐसे में साफ था कि डब्ल्यूएचओ डीजी तथा ईसी के बीच सामंजस्य की कमी थी. एससीपीपीआर जैसी प्रणाली, समन्वय और पारिदर्शता सुनिश्चित करते हुए निर्णय लेने में राज्यों को शामिल करने की दिशा में एक अच्छा तर्क साबित हो सकती है. आने वाले परिच्छेदों में हम यह देखंगे कि विभिन्न सदस्य देश एससीपीपीआर को किस दृष्टि से देखते हैं, इसकी समानताएं और विभिन्न दृष्टिकोण क्या हैं तथा एससीपीपीआर की सहायता से कैसे साक्ष्य आधारित निर्णय लेने में सहायता मिलेगी.
एससीपीपीआर की रूपरेखा
एससीपीपीआर का कार्यक्षेत्र महामारी और आपातकालीन तैयारी और प्रतिक्रिया पर प्रस्तावों से संबंधित मार्गदर्शन प्रदान करना होगा. यह डीजी को पीएचईआईसी काल के दौरान अस्थायी सुझावों पर विचार करने में सहयोग करेगा तथा ईबी एवं डब्ल्यूएचए को पीएचईआईसी घोषित होने पर नीति संबंधी मसलों पर सहयोग करेगा. एससीपीपीआर के पास डब्ल्यूएचओ के सचिवालय तथा विशेषज्ञ समितियों (साक्ष्य आधारित नीति निर्धारण) की ओर से दी जाने वाली वैज्ञानिक सलाह के बीच की खामी को दूर करने की भी क्षमता होगी. इसके साथ ही सदस्यों देशों की नीतियों (साक्ष्य आधारित नीति निर्धारण) की खामी भी यह दूर करेगा, जिसकी वजह से डीजी का मार्गदर्शन करने में सदस्य देशों की भूमिका भी मजबूत होगी. महामारी के दौरान एससीपीपीआर आईएचआर तथा ईबी के बीच आपात कमेटी के बीच की खाई को भी दूर करने में सहायक होगा. वर्तमान प्रणाली में ईसी और ईबी सदस्यों के बीच कोई सीधा संबंध नहीं है. हालांकि, सदस्य देशों की एससीपीपीआर के दायरे और उद्देश्य से संबंधित राय में भिन्नता थी.
ईबी सत्र के दौरान अधिकांश सदस्य देशों ने ऑस्ट्रिया की ओर से एससीपीपीआर के गठन संबंधी प्रस्ताव का समर्थन किया, लेकिन उनकी अपनी कुछ आपत्तियां थीं. उदाहरण के तौर पर कुछ देशों ने इसके ढांचे, कार्य और संदर्भ के शर्तो (टीओआर) की अस्पष्टता को लेकर चिंताएं व्यक्त की. थाईलैंड ने इसके पारदर्शी होने, गैर-दोहरावपूर्ण स्थिति को टालने तथा परिणाम-उन्मुख और सभी के लिए स्वीकार्य होने की आवश्यकता पर बल दिया. स्पेन और हैती ने कोई विशेष आपत्ति नहीं जताई, क्योंकि दोनों ने ही एससीपीपीआर की स्थापना का स्वागत किया था. ऑस्ट्रिया की सरकार ने उठाए गए मुद्दों को संज्ञान में लिया और कहा कि सदस्य देशों की आपत्तियों पर आगे और विचार किया जाएगा तथा इसके टीओआर पर भी पुनर्विचार किया जाएगा ताकि और स्पष्टता सुनिश्चित की जा सके.
थाईलैंड ने इसके पारदर्शी होने, गैर-दोहरावपूर्ण स्थिति को टालने तथा परिणाम-उन्मुख और सभी के लिए स्वीकार्य होने की आवश्यकता पर बल दिया. स्पेन और हैती ने कोई विशेष आपत्ति नहीं जताई, क्योंकि दोनों ने ही एससीपीपीआर की स्थापना का स्वागत किया था.
इसके अलावा, मलेशिया हालांकि प्रस्ताव के समर्थन में था, लेकिन उसने आईएचआर के तहत कार्यरत मौजूदा समितियों और प्रस्तावित उपसमिति के बीच संघर्ष की संभावना को लेकर चिंता व्यक्त की. इसी तरह, घाना ने ईबी सदस्यों (टेबल 1) की ओर से लिए जाने वाले निर्णयों को दरकिनार करने पर चिंता जताई.
टेबल 1: एससीपीपीआर पर सदस्य देशों के बयान
शैनन और वीवर्स के संवाद के मॉडल के अनुरूप, लेखक साक्ष्य-सूचित महामारी सहायता प्रणाली (ईआईपीएसएस) ढांचे की वकालत करते हैं जो डब्ल्यूएचओ-डीजी, ईसी, डब्ल्यूएचए और ईबी सदस्य देशों (फिगर 1) के बीच संबंधों और सम्प्रेषण को मजबूत करने में सहयोगी साबित होगा. यह जानकारी के आदान-प्रदान अर्थात फीडबैक लूप की एक प्रणाली है, जो प्रगति की दिशा को इंगित करती है और आवश्यकता वाले मामलों में नीतिगत सुधार पर तत्काल ध्यान आकर्षित करवाती है. स्थायी समिति का प्रतिनिधित्व करने वाले सदस्य देश वर्तमान ईबी सदस्यों की सलाह से सफाई और सुझाव (लिखित में) दे सकते हैं, जिसकी वजह से पारदर्शिता बढ़ेगा और निर्णय लेने में सुविधा होगी. हमारा मानना है कि यह ढांचा आईएचआर के ईसी, डब्ल्यूएचओ के डीजी तथा डब्ल्यूएचए के बीच आंतरिक संबंध (इंटरलिंक) को जोड़कर स्पष्टता और दक्षता लाएगा. ईआईपीएसएस ढांचा साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण से लेकर साक्ष्य-सूचित नीति निर्धारण और परिणामों तक सभी हितधारकों के बीच प्रभावी सम्प्रेषण की सुविधा प्रदान करेगा. उदाहरण के लिए, सदस्य देशों के प्रतिनिधित्व वाला ईआईपीएसएस, महामारी और आपातकालीन तैयारियों और प्रतिक्रिया योजनाओं पर नीति प्रस्तावों से संबंधित चल रहे कार्य में आईएचआर के ईसी और डब्ल्यूएचओ के डीजी को सहयोग प्रदान कर सकता है.
फिगर 1: साक्ष्य-सूचित महामारी सहायता प्रणाली (ईआईपीएसएस) ढांचा.
संकट के दौरान, एससीपीपीआर की वजह से आरएचआर, डीजी और ईबी सदस्यों के बीच भरोसा और समन्वय स्थापित किया जा सकता है. ईआईपीएसएस ढांचे में, एससीपीपीआर को डब्ल्यूएचए की ओर से निर्धारित संवाद के तय नियमों का पालन करना होगा और इस वजह से ईबी सदस्यों की उपेक्षा नहीं होगी.
निर्णय लेने की सीमित क्षमता रखने वाली एससीपीपीआर मुख्यत: एक सहयोग प्रणाली है, जिसका उपयोग बेहतर समन्वय एवं संवाद के लिए हो सकेगा. इसकी भूमिका आईएचआर की अस्थायी सिफारिशों के अनुरूप ईबी सदस्यों और डब्ल्यूएचए के बीच आम सहमति बनाने के लिए उप-समिति की सुविधा प्रदान करना है.
जी20 की अध्यक्षता: एक अवसर
हाल के दिनों में, जी20 संयुक्त वित्त और स्वास्थ्य कार्य बल (जेएफएचटीएफ) स्वास्थ्य आपात स्थितियों को रोकने, उनका पता लगाने और उसे प्रतिक्रिया देने के प्रयासों पर चर्चा करने के लिए एक प्रमुख वैश्विक मंच के रूप में उभरा है. जी20 की भारत को मिलने वाली अध्यक्षता को विश्व स्वास्थ्य प्रणाली को और अधिक लोकतांत्रिक तथा साक्ष्य-सूचित बनाने का एक अवसर हो सकती है. बहुसदस्यीय संस्थानों को सुशासन के लिए भविष्य की पहल के लिए सुधारों को अनुकूलित करने की आवश्यकता है. क्योंकि साझा वैज्ञानिक अंतर्दृष्टि को साक्ष्य-सूचित वैश्विक नीति मानकों में ढालने का बोझ इन संस्थानों पर ही हैं. दुनिया भर की सरकारों के पास कोविड-19 जैसी महामारी से अपने नागरिकों की रक्षा करने का एकमात्र रास्ता संवाद का प्रभावशाली तंत्र विकसित करना ही है. और अंत में, एससीपीपीआर ही एक ऐसा उदाहरण है, जिसके माध्यम से एक ऐसी कमेटी का गठन किया जा सकता है, जिसमें सदस्य देशों को प्रतिनिधित्व दिया जाए. ऐसा करने पर ही हम केवल विषय विशेषज्ञों की ओर से लिए जाने पर फैसलों पर निर्भरता कम कर पाएंगे. पीएचईआईसी की स्थिति में ईसी को साक्ष्य-सूचित फैसले लेने में सहयोग करने के लिए हमें बेहतर सहयोग और समन्वय की आवश्यकता है. ऐसे में सदस्य देशों को प्रतिनिधित्व देने से साक्ष्य-सूचित फैसले लेने में सहायता ही होगी.
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