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भारतीय नौसेना को लेकर बज़ट की कमी इसके स्वदेशीकरण और नवीनीकरण की प्रक्रिया में बड़ी अड़चन पैदा करता है.
साल 2022-23 के लिए भारत का रक्षा बज़ट देश के बदलते भू-राजनीतिक माहौल और भारतीय सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण के संदर्भ में फिर से गंभीरता के साथ विचार करने की मांग करता है. भारत और चीन के बीच चल रहे सीमा विवाद के कारण भारतीय सेना (आईए) और भारतीय वायु सेना (आईएएफ) पर स्वाभाविक तौर पर ध्यान केंद्रित होने के बावज़ूद यह जांच का विषय है कि क्या भारतीय नौसेना (आईएन) और आत्मानिर्भर मिशन दोनों ही भारतीय नौसेना की हथियार प्रणालियों और प्लेटफार्म के विकास के लिए अपनी भूमिका सही तौर पर अदा कर रहे हैं. वर्तमान भारतीय रक्षा बज़ट के तहत, विशेष रूप से महाद्वीप को लेकर जो प्राथमिकताएं हैं उनसे अलग होते हुए सुरक्षा नीतियों को नए रूप में तैयार किया जा रहा है. गलवान संकट के दौरान मौज़ूदा वार्ता में भारत की स्थिति को मज़बूती देकर भारतीय नौसेना ने भी अहम भूमिका निभाई थी. दूसरा, प्रधान मंत्री मोदी ने देश के विकास और सुरक्षा के दृष्टिकोण को आत्मनिर्भरता या घरेलू सैन्य क्षमताओं को विकसित करने के लिए आत्मनिर्भरता के साथ जोड़ा है. रक्षा अनुसंधान एवं विकास (आरएंडडी) बज़ट में साल 2021-22 के मुक़ाबले 17.57 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. रक्षा अनुसंधान एवं विकास बज़ट का 25 प्रतिशत हिस्सा उद्योग, स्टार्ट- अप और शिक्षा जगत के लिए है. यह आवंटन, नवीनीकरण और स्वदेशीकरण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से किया गया है जो एक प्रगतिशील कदम है.
यह लेख भारतीय नौसेना के आधुनिकीकरण की दिशा में बज़ट में पूंजी आवंटन के पैटर्न को समझने का प्रयास करेगा और बज़ट में भारतीय नौसेना के लिए अधिग्रहण और आधुनिकीकरण के लिए आत्मनिर्भता का पक्ष कैसे परिलक्षित होता है, इसे भी समझने में मदद करेगा.
यह लेख भारतीय नौसेना के आधुनिकीकरण की दिशा में बज़ट में पूंजी आवंटन के पैटर्न को समझने का प्रयास करेगा और बज़ट में भारतीय नौसेना के लिए अधिग्रहण और आधुनिकीकरण के लिए आत्मनिर्भता का पक्ष कैसे परिलक्षित होता है, इसे भी समझने में मदद करेगा. भारतीय नौसेना चीन की आक्रामकता और जुझारूपन का मुक़ाबला करने के लिए भारत की समुद्री सुरक्षा और रणनीति का केंद्रीय आधार है.
साल 2022-23 में भारतीय नौसेना को पिछले वर्ष के बज़ट से 33,253.55 करोड़ रुपए की तुलना में पूंजीगत परिव्यय के रूप में 47,590.99 करोड़ रुपये का हिस्सा आवंटित किया गया है. यह आंकड़ा साल 2021-22 में भारतीय नौसेना के लिए आवंटित पूंजी परिव्यय की तुलना में 2022-23 में पूंजी परिव्यय में 43.11 प्रतिशत की बढ़ोतरी को दर्शाता है.
वित्तीय वर्ष | भारतीय नौसेना को आवंटित बजट (राजस्व और पूंजी दोनों) मूल्य करोड़ में | तीन सेवाओं का कुल बजट (राजस्व और पूंजी दोनों) मूल्य करोड़ में | सेवा-वार आवंटन के मामले में आईएन का प्रतिशत हिस्सा (प्रतिशत में) |
2021-22 | 56,614.23 | 3,47,088.28 | 16.31 |
2022-23 | 72,997.41 | 3,85,370.15 | 18.94 |
स्रोत: Author’s own with figures drawn from the budget data
उपरोक्त तालिका से पता चलता है कि वर्ष 2022-23 के लिए तीन सेवाओं (राजस्व और पूंजी) के आवंटन के कुल योग की तुलना में भारतीय नौसेना सेवा बज़ट (राजस्व और पूंजी) में वृद्धि हुई है. पिछले वर्ष की तुलना में, बज़ट में भारतीय नौसेना के हिस्से के समग्र अनुपात में 2.63% की बढ़ोतरी दर्ज़ की गई है.
वित्तीय वर्ष | भारतीय नौसेना के लिए पूंजीगत व्यय (आंकड़ा करोड़ में) | तीनों सेवाओं के लिए कुल पूंजी परिव्यय (आंकड़ा करोड़ में) | कुल पूंजीगत व्यय में आईएन क हिस्सा (प्रतिशत में) |
2021-22 | 33,253.55 | 1,35,060.72 | 24.62 |
2022-23 | 47,590.99 | 1,52,369.61 | 31.23 |
स्रोत: Author’s own with data drawn from the official defence budget
दूसरी तालिका बताती है कि वर्ष 2022-23 के लिए पूंजी परिव्यय का कुल पूंजीगत परिव्यय (तीनों सेवाओं में से) के अनुपात में भी वृद्धि हुई है. वर्ष 2022-23 के लिए पिछले वर्ष के बज़ट के 24.62 प्रतिशत के मुक़ाबले 31.23 प्रतिशत की हिस्सेदारी देखी गई है.
पूंजीगत परिव्यय में वर्ष 2021-22 के लिए 58.73 प्रतिशत की तुलना में भारतीय सेना को कुल आवंटन (राजस्व और पूंजी सहित) का 65.19 प्रतिशत दिया गया. रक्षा संबंधी स्थायी समिति की 28वीं रिपोर्ट के अनुसार 67,622.96 करोड़ रुपये के बज़ट अनुमान (बीई) के तहत अनुमानित पूंजी परिव्यय के मुक़ाबले आवंटित पूंजी परिव्यय 47,590.99 करोड़ रुपये के बराबर है और इसमें 20,031.97 करोड़ रुपये का अंतर है. इसी तरह, बज़ट अनुमान के अनुसार वर्ष 2021-22 के लिए अनुमानित और आवंटित पूंजी परिव्यय मूल्य के बीच का अंतर 37,667.23 करोड़ रुपये था. यह आंकड़ा पिछले वर्ष की तुलना में 2022-23 में अनुमानित पूंजी और आवंटित पूंजी के बीच अंतर के मूल्य में अंतर को कम करने की कोशिश की ओर इशारा करता है. इस तरह भारतीय नौसेना की पूंजी आवश्यकताओं को पूरा करने के प्रयास हो रहे हैं.
घरेलू रक्षा उद्योगों और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के तहत, कैपिटल प्रोक्योरमेंट (पूंजी ख़रीद) बज़ट का 68 प्रतिशत 2022-23 के बज़ट में घरेलू उद्योग के लिए 2021-22 में 58 प्रतिशत की हिस्सेदारी से निर्धारित किया गया है.
घरेलू रक्षा उद्योगों और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के तहत, कैपिटल प्रोक्योरमेंट (पूंजी ख़रीद) बज़ट का 68 प्रतिशत 2022-23 के बज़ट में घरेलू उद्योग के लिए 2021-22 में 58 प्रतिशत की हिस्सेदारी से निर्धारित किया गया है. रक्षा अनुसंधान एवं विकास बज़ट का कुल 25 प्रतिशत स्वदेशी डिजाइन और विकास और प्रमुख प्लेटफॉर्म और प्रणालियों से संबंधित नई तकनीक को बढ़ावा देने वाले उद्योग, स्टार्ट-अप और शिक्षा के लिए समर्पित हैं. उद्योग के नेतृत्व वाले डिज़ाइन और विकास के लिए रक्षा मंत्रालय (एमओडी) द्वारा 18 प्रमुख प्लेटफॉर्म की पहचान और घोषणा की गई है. भारतीय नौसेना की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए नेवल शिपबोर्न अनमैन्ड एरियल सिस्टम (एनएसयूएएस) और जहाजों के लिए 127 मिमी नेवल गन और इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन इंजन (ईपीई) को डिज़ाइन और विकास को मेक I श्रेणी के तहत पूरा किया जाएगा. तीनों सेनाओं की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए भारतीय मल्टी रोल हेलीकॉप्टर (आईएमआरएस) का स्पेशल पर्पस व्हीकल (एसपीवी) मॉडल के माध्यम से पालन किया जाना है.
मौज़ूदा दौर में उपकरण, प्लेटफॉर्म और सिस्टम पर आत्मनिर्भरता एक रणनीतिक ज़रूरत बन गई है. स्वदेशीकरण और मेक इन इंडिया योजना में भी यही चिंता दिखती है. आत्मनिर्भरता पर राष्ट्रीय प्राथमिकता के तहत भारतीय नौसेना के आधुनिकीकरण के साथ अलाइनमेंट (संरेखण) में, एक 10 वर्षीय एकीकृत क्षमता विकास योजना (आईसीडीपी) को अपनाया गया है. आईसीडीपी ने पहले के 15 वर्षीय मैरीटाइम कैपेबिलिटी पर्सपेक्टिव प्लान (एमपीसीसी) को बदल दिया है. योजना में बड़ा बदलाव समुद्री थिएटर कमांड के विकास को पूरा करेगा और तकनीक में तेजी से बदलाव के संदर्भ में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में अधिक लचीलापन प्रदान करेगा.
रक्षा मंत्रालय ने स्वदेशी उत्पादन के लिए वस्तुओं सहित तीन आयात प्रतिबंध सूचियाँ जारी की हैं. इसने भारतीय रक्षा पारिस्थितिकी तंत्र के लिए घरेलू रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के मिशन के अनुसार काम करने का रोडमैप तैयार किया है.
रक्षा मंत्रालय ने स्वदेशी उत्पादन के लिए वस्तुओं सहित तीन आयात प्रतिबंध सूचियाँ जारी की हैं. इसने भारतीय रक्षा पारिस्थितिकी तंत्र के लिए घरेलू रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के मिशन के अनुसार काम करने का रोडमैप तैयार किया है. मोटे तौर पर स्वदेशीकरण में उन प्रमुख प्लेटफॉर्म को शामिल करने और अपग्रेडेशन शामिल होगा जिन्हें पहले अनुबंधित किया गया था और इसमें विकास के तहत परियोजनाएं भी शामिल होंगी.
भारतीय नौसेना ने हाल के महीनों में ध्रुव एमके III नाम की एक प्रमुख एएलएच प्रणाली को शामिल किया है, जो एक परफॉर्मेंस बेस्ड लॉजिस्टिक्स (पीबीएल) प्रावधान के साथ हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) द्वारा स्वदेशी रूप से डिज़ाइन और विकसित हेलीकॉप्टर है. ध्रुव एक असरदार दो इंजन वाला, मल्टी रोल, मल्टी-मिशन नई पीढ़ी का हेलीकॉप्टर है. इसी तरह, डीआरडीओ ने एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन (एआईपी) भी विकसित किया है जो एक महत्वपूर्ण तकनीक है. जिसे एक बार अपग्रेड करके पनडुब्बियों में फिट करने के बाद उनकी सबसरफेस एंड्योरेंस को बढ़ाता है, जिसके परिणामस्वरूप परिचालन क्षमता बेहतर होगी. साल 2025 तक कलवरी श्रेणी की गैर-परमाणु पनडुब्बियों को अपग्रेड किया जाना है. इसके अलावा एक अन्य महत्वपूर्ण विकास परियोजना 75 आई स्कॉर्पीन वर्ग की छह पारंपरिक पनडुब्बियों की हैं जिनकी क़ीमत 5.78 बिलियन अमेरिकी डॉलर है. इस श्रृंखला में पनडुब्बियों के विकास से आईएनएस वाग्शीर में स्वदेशी सामग्री में 40 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हुई है. इसके अलावा, भारत में पहली बार एक समुद्री डीजल इंजन विकसित किया जा रहा है. स्कॉर्पीन श्रेणी की इन पनडुब्बियों में उन्नत स्टील्थ फीचर्स, लंबी दूरी के निर्देशित टॉरपीडो के साथ-साथ उनकी परिचालन क्षमताओं के बीच एक एंटी-शिप मिसाइल सेंसर सूट भी होंगे.
साल 2022-23 के पूंजीगत बज़ट व्यय के हिस्से के रूप में, बहुप्रतीक्षित स्वदेशी विमान वाहक विक्रांत है जिसमें स्वदेशी सामग्री का एक बड़ा हिस्सा लगाया जाना है. एंटी सबमरीन वारफेयर मेजर्स (पनडुब्बी रोधी युद्ध उपायों) के संदर्भ में, भारतीय नौसेना ने गार्डन रीच एंड शिपबिल्डर्स लिमिटेड (जीआरएसई) का अधिग्रहण करने की योजना बनाई है जो स्वदेशी रूप से निर्मित एएसडब्ल्यू जहाजों को रूसी अभय-श्रेणी के कॉर्वेट को बदलने के उद्देश्य से बनाया गया है.
मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड (एमडीएसएल) और गार्डन रीच एंड शिपबिल्डर्स लिमिटेड (जीआरएसई) में प्रोजेक्ट 17ए के नीलगिरि-श्रेणी के उन्नत स्टील्थ फ्रिगेट का निर्माण किया जा रहा है , जिसमें सात जहाज शामिल हैं. इस परियोजना में स्वदेशी सामग्री लगभग 75 प्रतिशत है, जो रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए आत्मनिर्भर भारत अभियान को बढ़ावा देती है. रक्षा मंत्रालय ने बाय (इंडियन), बाय एंड मेक (इंडियन) और बाय इंडियन (आईडीडीएम) श्रेणियों के तहत 76,390 करोड़ रुपये की वस्तुओं की ख़रीद के लिए अधिग्रहण योजना शुरू की है. इसमें से भारतीय नौसेना के लिए आठ स्वदेशी नई पीढ़ी के कॉर्वेट (एनजीसी) के विकास के लिए लगभग 36,000 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की गई है.
भारतीय नौसेना का शीर्ष नेतृत्व भी रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ), हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) और एरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी (एडीए) की साझेदारी में स्वदेशी रूप से विकसित किए जा रहे ट्विन-इंजन डेक-आधारित लड़ाकू विमान (तेजस का एक नौसैनिक संस्करण) प्राप्त करने की दीर्घकालिक आधुनिकीकरण योजना को आगे बढ़ाने के लिए उत्सुक दिखता है.
मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड (एमडीएसएल) और गार्डन रीच एंड शिपबिल्डर्स लिमिटेड (जीआरएसई) में प्रोजेक्ट 17ए के नीलगिरि-श्रेणी के उन्नत स्टील्थ फ्रिगेट का निर्माण किया जा रहा है , जिसमें सात जहाज शामिल हैं. इस परियोजना में स्वदेशी सामग्री लगभग 75 प्रतिशत है
इसके अलावा उद्योग, अकादमिक और स्टार्ट-अप जैसे घरेलू हितधारकों को शामिल करने के लिए, डिफेंस इनोवेशन ऑर्गेनाइजेशन (डीआईओ) और नेवल इनोवेशन एंड आर्गेनाइजेशन (एनआईआईओ) के बीच एक मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए गए हैं जिससे “स्प्रिंट” (सपोर्टिंग पोल वॉल्टिंग इन रिसर्च एंड डेवलपमेंट, इनोवेशन फॉर डिफेंस एक्सीलेंस (आईडीईएक्स), नेवल इनोवेशन एंड इंडिजिनाइजेशन ऑर्गेनाइजेशन (आईडीईएक्स), और टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट एक्सीलरेशन सेल (टीडीएसी) पर काम किया जा सके. इस पहल का उद्देश्य देश के भीतर रक्षा स्वदेशीकरण और इनोवेशन की संस्कृति को बढ़ावा देना है.
भारतीय नौसेना को ऑपरेशनल तैयारियों को पूरा करना है और पाकिस्तानी नौसेना और बड़ी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेवी (पीएलएएन) से मुक़ाबला करने की तैयारी करनी है. इसके अतिरिक्त, भारत को बज़टीय बाधाओं के तहत तेजी से तकनीकी परिवर्तनों के साथ तालमेल भी बिठाने की ज़रूरत है. भारतीय नौसेना एक तकनीक पसंद सेना होने के नाते अपनी परिचालन और आधुनिकीकरण योजनाओं को पूरा करने के लिए अतिरिक्त संसाधन की मांग करती है. हालांकि पिछले वर्ष की तुलना में भारतीय नौसेना की पूंजी परिव्यय की हिस्सेदारी में वृद्धि तो हुई है, फिर भी अनुमानित राशि और पूंजीगत परिव्यय बज़ट में आवंटित राशि के बीच भारी अंतर मौज़ूद है.
दूसरा, भारतीय नौसैनिक जहाज निर्माण उद्योग में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों का एक तरह से एकाधिकार है. यहां तक कि रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (डीएपी) रक्षा मंत्रालय और सेवा मुख्यालय (एसएचक्यू) के माध्यम से स्वदेशी डिज़ाइन के साथ नौसेना के जहाजों और पनडुब्बियों के अधिग्रहण और किसी दिए गए परियोजना के लिए मौज़ूदा बुनियादी ढांचे के आधार पर भारतीय शिपयार्ड के चयन के लिए एक हिस्से को समर्पित करती है. लेकिन यह स्वदेशीकरण की राह में एक बड़ी बाधा है क्योंकि यह घरेलू निजी खिलाड़ियों को बढ़ने नहीं देता है और महत्वपूर्ण प्रणालियों और उप-घटकों के लिए विदेशी विक्रेताओं पर निर्भरता को बढ़ावा देता है. हाल में रक्षा बज़ट में बढ़ोतरी और प्रमुख संरचनात्मक सुधार जहाज निर्माण क्षेत्र की इस तरह की सीमितताओं को कम करने की दिशा में एक प्रगतिशील कदम है और यह बेहतर और समग्र स्वदेशीकरण की दिशा में निजी क्षेत्र की क्षमता को बढ़ाने की इच्छा का प्रतिनिधित्व करते हैं.
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Rahul Rawat is a Research Assistant with ORF’s Strategic Studies Programme (SSP). He also coordinates the SSP activities. His work focuses on strategic issues in the ...
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