अपनी व्यापक और विविध कृषि पारिस्थितिकी की वजह से भारत में अनाज, दाल, तेल, बीज, सब्जी, गन्ना, सोयाबीन समेत अन्य फसलें उगाई जाती हैं, जिसकी वजह से वह अपने नागरिकों के लिए खाद्यान्न और पोषण सुरक्षा उपलब्ध करवाने के साथ उन्हें आर्थिक स्थिरता भी प्रदान कर पाता है. इन फसलों में सबसे प्रमुख कपास, भारत की अंतर्राष्ट्रीय कृषि भूमिका तय करने में एक रणनीतिक भूमिका अदा करता है. भारत दुनिया में कपास का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक होने के साथ ही दूसरा सबसे बड़ा टेक्सटाइल निर्यातक भी हैं. ऐसे में इसके माध्यम से दुनिया की अर्थव्यवस्था में भारत काफी योगदान देता है.
भारत दुनिया में कपास का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक होने के साथ ही दूसरा सबसे बड़ा टेक्सटाइल निर्यातक भी हैं. ऐसे में इसके माध्यम से दुनिया की अर्थव्यवस्था में भारत काफी योगदान देता है.
वैश्विक कपास मूल्य श्रृंखला में कम से कम 60 लाख छोटे से मध्यम आकार के भारतीय कपास किसान और खेत मजदूरों का योगदान शामिल हैं. इसलिए, भारत की यह जिम्मेदारी है कि वह यह सुनिश्चित करें कि वह न केवल वैश्विक कपास व्यापार में अपनी स्थिति को मजबूत करना जारी रखे, बल्कि एक मजबूत, सुरक्षित और टिकाऊ भविष्य की योजना भी तैयार करें. ऐसा करने का एक तरीका यह है कि वह निरंतर विकास को बढ़ावा देने वाली नई उभरती वैश्विक बाजार-आधारित पहलों के हिसाब से बदलना शुरू करें. ऐसा होने पर भारत को वैश्विक रूप से कपास आपूर्ति श्रृंखला में प्रतिस्पर्धी बने रहने में सहायता होगी. और वह अंतरराष्ट्रीय कपास और कपड़ा व्यापार में अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए विकास कूटनीति के दायरे का उपयोग करके इसमें बढ़त भी हासिल कर सकता है.
कपास में स्वैच्छिक स्थायी मानकों का उदय
वैश्विक टेक्सटाइल आपूर्ति श्रृंखला में व्यावहारिक बदलाव हो रहा है. अब यह वैश्विक टेक्सटाइल और होम फर्निशिंग रिटेलर्स यानी गृह सजावट खुदरा कारोबारी की ओर से दीर्घकालीन आवश्यकताओं को हासिल करने के लिए लागू किए गए पर्यावरणीय और सामाजिक उन्नयन का अनुसरण कर रहा है. ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि कपास किसानों और कपास की फसल पर होने वाले जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल परिणामों को कम किया जा सके.
लगभग 0.2 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में लिए जाने वाले जैविक कपास की वजह से वैश्विक जैविक कपास उत्पादन में भारत का योगदान लगभग 50 प्रतिशत हो गया है. इसी प्रकार 1.5 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में होने वाले बेटर कॉटन उत्पादन की वजह से 16.5 प्रतिशत के कुल बेटर कॉटन योगदान के साथ इस क्षेत्र में वह दूसरे नंबर पर आ गया है.
ऐसा स्वैच्छिक स्थिरता मानकों (वीएसएस) का उपयोग करके किया जा रहा है. इसमें प्रमाणीकरण योजना, लेबलिंग कार्यक्रम और निजी मानकों का समावेश हैं. आज जो प्रमुख वीएसएस स्थिर कपास मूल्य श्रृंखला को प्रभावित कर रहे हैं, उसमें बेटर कॉटन इनिशिएटिव (बीसीआई), ऑर्गेनिक यानी जैविक कॉटन, फेयरट्रेड कॉटन और कॉटन मेड इन अफ्रीका का समावेश हैं.
भारत को दोहरा लाभ
स्पष्ट है कि वीएसएस को अपनाना भारत के लिए काफी लाभकारी है. इस वजह से वह वैश्विक कपास आपूर्ति श्रृंखला में प्रतिस्पर्धी बने रहकर निर्यात बाजार में अपनी स्थिति को मजबूत बना सकता है. इसी प्रकार भारत को अपने एसडीजी प्रतिबद्धताओं को हासिल करने में भी इस वजह से सहायता मिलेगी.
भारत ने अधिक टिकाऊ कपास कृषि पारिस्थितिकी तंत्र की दिशा में अपने कदम काफी तेजी से बढ़ाएं हैं. वीएसएस के तहत आने वाली कपास भूमि अब लगभग 1.5 मिलियन हेक्टेयर हो गई हैं. इसकी वजह से अब वैश्विक वीएसएस कपास क्षेत्र में भारत की हिस्सेदारी 24 प्रतिशत हो गई है. लगभग 0.2 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में लिए जाने वाले जैविक कपास की वजह से वैश्विक जैविक कपास उत्पादन में भारत का योगदान लगभग 50 प्रतिशत हो गया है. इसी प्रकार 1.5 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में होने वाले बेटर कॉटन उत्पादन की वजह से 16.5 प्रतिशत के कुल बेटर कॉटन योगदान के साथ इस क्षेत्र में वह दूसरे नंबर पर आ गया है.
बीसीआई की 2020 की इम्पैक्ट रिपोर्ट ऑन इंडिया के अनुसार परंपरागत किसानों के मुकाबले बेटर कॉटन उत्पादक किसान नौ प्रतिशत ज्यादा पैदावार लेने में सफल रहे, जबकि उनके मुनाफे में भी 18 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई. 2018 की द थिंकस्टेप की ओर से मध्य प्रदेश में वीएसएस कॉटन के जीवन चक्र पर किए गए अध्ययन के अनुसार जलवायु परिवर्तन के प्रभाव में 50 प्रतिशत, ब्लू वॉटर खपत में 59 प्रतिशत, इकोटॉक्सीटी में 84 प्रतिशत कमी आयी तथा परंपरागत कपास के मुकाबले जैविक कपास के यूट्रोफिकेशन यानी सुपोषण में 100 प्रतिशत की कमी देखी गई. स्पष्ट है कि भारत में वीएसएस कपास की विकास गाथा (कहानी) उसे एसडीजी लक्ष्यों जैसे शून्य भूख (लक्ष्य 2), स्वच्छ जल एवं स्वच्छता (लक्ष्य 6), जिम्मेदार खपत और उत्पादन (लक्ष्य 12), भूमि पर जीवन (लक्ष्य 15) और जलवायु कार्रवाई (लक्ष्य 16) को हासिल करने में योगदान दे रही है. भारत में एसडीजी लक्ष्यों की गणना करने वाले नीति आयोग की ओर से उल्लेखित प्राथमिकता संकेतकों के अनुसार वीएसएस कॉटन वास्तविक और मापने योग्य परिणाम प्रदान करता है. इन संकेतकों में जल निकायों की सीमा में आए परिवर्तन, उपलब्धता के मुकाबले भूजल निकासी में हुए सुधार और नाइट्रोजन उर्वरक को युक्तिसंगत बनाना शामिल है.
निष्कर्ष
दुनिया भर के कपास क्षेत्रों में आ रहे व्यापक बदलाव और विकास के साथ भारत के कदम से कदम मिलाकर चलने के अनेक कारण हैं. ऐसा होने पर ही भारत वैश्विक विकास मानचित्र में अपनी स्थिति को सुरिक्षत रखने, मजबूत करने और आगे बढ़ाने में सक्षम हो सकेगा. भारत को वीएसएस में वृद्धि करते हुए इसे एसडीजी प्रतिबद्धताओं के साथ संरेखित करना होगा. क्योंकि कपास में वीएसएस एक बेहतर उत्पादन प्रणाली, बीज व्यवस्था और खपत स्वरूप सुनिश्चित करने के साथ ही लाखों लोगों के जीवन को भी प्रभावित करता है. एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था होने के नाते भारत टिकाऊ भविष्य की दिशा में बढ़ने की कोशिश कर रहा है. ऐसे में उसे अन्य तात्कालिक आर्थिक लाभ उठाने के साथ ही यह भी समझना होगा कि वीएसएस और एसडीजी हासिल करने के बीच स्पष्ट संबध है. केवल स्थिर पारिस्थितिकी पर ध्यान देने से ही सभी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं होगी. एसडीजी लक्ष्यों की दिशा में प्रगति को तेज करने के साधन के रूप में वीएसएस का प्रभावी ढंग से उपयोग करने के लिए, व्यवसायों, निवेशकों और सरकारों को साथ मिलकर काम करना ही होगा.
एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था होने के नाते भारत टिकाऊ भविष्य की दिशा में बढ़ने की कोशिश कर रहा है. ऐसे में उसे अन्य तात्कालिक आर्थिक लाभ उठाने के साथ ही यह भी समझना होगा कि वीएसएस और एसडीजी हासिल करने के बीच स्पष्ट संबध है. केवल स्थिर पारिस्थितिकी पर ध्यान देने से ही सभी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं होगी.
सरकार की तो जिम्मेदारी ज्यादा है. उसे वीएसएस को लेकर प्रतिबद्ध आपूर्ति श्रृंखला के हितधारकों को वित्तीय सहायता मुहैया करवाने के अलावा ऐसा पूरक माहौल बनाना होगा जो स्थायी कपास उत्पादन और प्रसंस्करण को बढ़ावा देने वाला हो. स्थायी उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए वर्तमान कृषि नीतियों और योजनाओं पर पुनर्विचार किए जाने की आवश्यकता है. मिश्रित वित्त और प्रभाव निवेश जैसे नए और अभिनव वित्तीय उत्पादों के प्रसार की आवश्यकता है ताकि कपास उत्पादन से जुड़े पर्यावरणीय और सामाजिक जोखिमों को दूर किया जा सके. यदि इन सभी उपायों को अपनाया और लागू किया जाता है, तो भारत अपने कपास को सोने की तरह कीमती बनाने में सफल हो सकता है.
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