Published on Sep 19, 2022 Updated 0 Hours ago

पिछले तीन दशकों में, 13-ए के लागू होने के बाद से, गैर-तमिल क्षेत्रों में प्रांतीय स्वायत्तता को लेकर ज्यादा रुचि नहीं दिख रही है. अत: वहां सत्ता हस्तांतरण की योजना पर अमल नहीं किया जा रहा है.

भारत का 13-ए संदर्भ पूरे श्रीलंका पर किस तरह से लागू होता है?

जिनेवा में चल रही संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसीकी 51 वीं बैठक में भारत ने श्रीलंकाई संविधान में वहां की जातीय समस्या का ‘राजनीतिक समाधान’ खोजने के लिए किए गए 13 वें संशोधन को लागू नहीं किए जाने पर चिंता व्यक्त की हैहालांकि भारतीय सुझाव को एक व्यापक कैनवास पर देखना चाहिएक्योंकि श्रीलंका के तमिल नागरिक अब 13- को लेकर ज्यादा बात नहीं करते हैअब वहां के लोग एक नए मुद्दे को लेकर अपनी बात कर रहे हैअब वे आतंकवाद निवारण कानून यानी प्रिवेंशन ऑफ टेररिज्म एक्ट (पीटीएको निरस्त कर ‘जवाबदेही के मुद्दे’ को उठा रहे हैयह दोनों ही मुद्दे अमेरिका की अगुवाई वाले पश्चिम के पसंदीदा विषय भी हैं.

नई दिल्ली इस बात को लेकर ‘‘सुसंगत दृष्टिकोण’’ अपनाता आया है कि कैसे ‘‘राजनीतिक समाधान’’ संयुक्त श्रीलंका के संविधान के तहत होना चाहिए. यह समाधान श्रीलंका के तमिलों को न्याय देने, शांति, समान अधिकार और सम्मान देना सुनिश्चित करने वाला होना चाहिए

श्रीलंका को लेकर यूएनएचआरसी में होने वाली परंपरागत बहस में हस्तक्षेप करते हुए भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने कहा था कि, ‘‘भारत 13वें संशोधन के पूर्ण कार्यान्वयनप्रांतीय परिषदों को शक्तियों का हस्तांतरण और इसके माध्यम से जातीय मुद्दे के राजनीतिक समाधानकी अपनी प्रतिबद्धताओं पर श्रीलंका सरकार द्वारा की गई गौर करने लायक प्रगति की कमी पर चिंता का संज्ञान लेता है.’’

भारतीय प्रतिनिधि ने यह भी कहा कि नई दिल्ली इस बात को लेकर ‘‘सुसंगत दृष्टिकोण’’ अपनाता आया है कि कैसे ‘‘राजनीतिक समाधान’’ संयुक्त श्रीलंका के संविधान के तहत होना चाहिएयह समाधान श्रीलंका के तमिलों को न्याय देनेशांतिसमान अधिकार और सम्मान देना सुनिश्चित करने वाला होना चाहिए.’’ सावधानी पूर्वक नई दिल्ली ने यह भी बात दोहराई कि कैसे वह हमेशा से इस बात में विश्वास करता आया है कि ‘‘ उसने यूएन चार्टर के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित मानव अधिकारों और रचनात्मक अंतर्राष्ट्रीय संवाद और सहयोग के प्रचार और संरक्षण के लिए राज्यों की जिम्मेदारी में विश्वास किया है,’’ जबकि पश्चिम एक स्थायी राजनीतिक समाधान की पेशकश के बगैर इस मसले पर केवल हंगामा मचाता रहता है.

नैतिक जिम्मेदारी

जनवरी में सात तमिल दलों ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखकर1987 में नई दिल्ली के सहयोग से हुए भारतश्रीलंका समझौते के तहत किए गए 13- संविधान संशोधन को संपूर्ण रूप से लागू करने में सहयोग करने की मांग की थीनिजी तौर पर श्रीलंका के अनेक तमिल नेताओं और टिप्पणीकारों ने इस बात की ओर इशारा किया है कि कैसे भारत की यह नैतिक जिम्मेदारी है..समझौते के सहलेखक’ के रूप में कि वह इसे संपूर्णतलागू करना सुनिश्चित करें.

जैसे-जैसे यह अभियान महानगरीय कोलंबो की दिशा में बढ़ेगा, इसे लेकर हो रहा प्रचार हंगामा कम होता जाएगा, लेकिन यह मजबूत सामाजिक आंदोलन अरागलया विरोध का मार्गदर्शक बन गया है. दक्षिण सिन्हाला में यह विपरीत असर डालने वाला साबित हो सकता है

श्रीलंका में चल रहे सामूहिक संघर्षजिसने एक सरकार को उखाड़ फेंका और दूसरे को सत्ता सौंप दीके कारण भी अब ध्यान स्थानांतरित हो गया हैअब तमिल नेता कहने लगे है कि सरकार बदलने के बावजूदसत्ता हस्तांतरण को लेकर उनकी स्थिति में कोई विशेष बदलाव नहीं आया है.

इस परिणाम के साथजैसा कि दिखता हैअब उत्तर और पूर्व में तमिल राजनीतिक खतरनाक पीटीए को निरस्त करने की मांग उठाने लगे है. यह अब ‘सिन्हाला साऊथ’ समेत संपूर्ण राजनीतिक विपक्ष के लिए भी एक लोकप्रिय मुद्दा बनता जा रहा है. तीन दलों के तमिल राष्ट्रीय गठबंधन यानी तमिल नेशनल अलायंस (टीएनएने पीटीए के खिलाफ एक हस्ताक्षर अभियान शुरू किया हैयह अभियान उत्तर तमिल से शुरू होकर तमिल और सिन्हालाज् दोनों के लिए धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण सबसे दक्षिण में स्थित कादरगामा तक चल रहा है.

जवाबदेही के मुद्दे

जैसेजैसे यह अभियान महानगरीय कोलंबो की दिशा में बढ़ेगाइसे लेकर हो रहा प्रचार हंगामा कम होता जाएगालेकिन यह मजबूत सामाजिक आंदोलन अरागलया विरोध का मार्गदर्शक बन गया हैदक्षिण सिन्हाला में यह विपरीत असर डालने वाला साबित हो सकता हैक्योंकि वहां के लोग अब भी टीएनए तथा पीटीए को खतरनाक एलटीटीई के साथ जोड़कर देखते हैंऐसा इसके बावजूद है कि वे अरागलया प्रदर्शनों का समर्थन करते है और इसमें शामिल भी होते है.

यूएसएआईडी के प्रशासक सामंथा पावर के साथ अपनी मुलाकात में तमिल नेताओं और सिन्हाला विपक्ष के समकक्ष नेताओं ने 2009 से चल रहे श्रीलंकाई सेना के कथित ‘युद्ध अपराध’ से जुड़े जवाबदेही मुद्दे को लेकर काफी जोर डालाटीएनए के प्रवक्ता एवं सांसद एमसुमंथिरन ने कोलंबो बैठक के बाद ट्वीट किया कि, ‘‘अन्य विपक्षी नेताओं के साथ हुई इस मुलाकात में अच्छी बातचीत हुईमैंने उनका ध्यान जवाबदेही के मुद्दे की ओर आकर्षित किया और कहा कि यूएनएचआरसी समेत अन्य मंचों पर इसका अनुसरण होना चाहिए.’’

पावर ने भी श्रीलंका की अपनी संक्षिप्त यात्रा की समाप्ति के पहले ट्वीट किया कि कैसे, ‘‘श्रीलंका के विपक्षी और उसके नेताओं ने यह बात साझा की कि कैसे श्रीलंकाई सरकार को लंबे समय से प्रलंबित सुधारों को लागू करना चाहिए और मानवाधिकारों की रक्षा करते हुए पारदर्शिता और जवाबदेही के साथ शासन करना चाहिए.’’ यूएसएआईडी की ओर से जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार उन्होंने श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे से भी मुलाकात कीजब उन्होंने इस बात की पुष्टि की कि ‘अमेरिका ने हामी भरी’ है कि वह श्रीलंका के वर्तमान जटिल आपातकाल से निपटने में उसकी सहायता करेगा

चीन कारक

सामंथा पावर ने यह भी कहा कि चीन को श्रीलंका के साथ ऋण पुर्नगठन में सहयोग करना चाहिए क्योंकि इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड की ओर से 2.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर के सहायता पैकेज के माध्यम से हस्तक्षेप करने के लिए यह शर्त रखी गई हैउन्होंने दोहराया कि राजनीतिक सुधार और आर्थिक पुनरुत्थान साथसाथ होना चाहिए

यूएनएचआरसी में भारत के नर्म शब्दों वाले बयान का भी यहां जमीन पर प्रभावी अमल हुआ हैचीन का नाम लिए बगैरलेकिन उसकी ही ओर इशारा करते हुए भारत ने यूएनएचआरसी को बताया कि कैसे, ‘‘श्रीलंका का वर्तमान संकट यह साबित करता है कि कर्ज आधारित अर्थव्यवस्था की कुछ सीमाएं है और इससे जीवन जीने का स्तर कैसे प्रभावित होता है.’’ भारत ने कहा कि, ‘‘यह श्रीलंका के हित में ही होगा कि वह अपने नागरिकों की क्षमता का विकास कर उनके सशक्तिकरण की दिशा में काम करें.’’

.तमिल नेताओं की ओर से प्रधानमंत्री मोदी को की गई अपील को भूला दिए जाने के बावजूद, हकीकत में भारत की चिंताएं इस बात को लेकर भी उपजी थी कि उसका प्रतिद्वंद्वी चीन हाल के महीनों में श्रीलंका के तमिल क्षेत्रों में लगातार आना जाना कर रहा था.

तमिल नेताओं की ओर से प्रधानमंत्री मोदी को की गई अपील को भूला दिए जाने के बावजूदहकीकत में भारत की चिंताएं इस बात को लेकर भी उपजी थी कि उसका प्रतिद्वंद्वी चीन हाल के महीनों में श्रीलंका के तमिल क्षेत्रों में लगातार आना जाना कर रहा था. श्रीलंका के तमिल बहुल उत्तर की पिछले दिसंबर में की गई बहुचर्चित यात्रा पर पहुंचे चीनी राजदूत ची झेनहोंग यूएनएचआरसी की बैठक से कुछ ही दिन पहले बहुजातिय पूर्व की यात्रा पर भी गए थे.

ऐसा इसलिए किया गया थाक्योंकि भारत ने इस वर्ष श्रीलंका के अभूतपूर्व और औचक आर्थिक संकट के दौरान उसे मानवीय सहायताजिसमें अनाजईंधन और औषधि शामिल थीमुहैया करवाया थाऐसा किसी और देश ने नहीं किया थाराष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने संसद के भीतर और बाहर दोनों ही जगह इसकी पुष्टि और सराहना की थी

सूक्ष्म लेकिन महत्वपूर्ण

नई दिल्ली ने कहा‘‘जमीनी स्तर पर सत्ता का हस्तांतरण पूर्व निर्धारित शर्त हैं.’’ भारत ने ऐसा करते हुए यह निष्कर्ष निकाला था कि, ‘‘यह श्रीलंका के हित में ही होगा कि वह अपने नागरिकों की क्षमता का विकास कर उनके सशक्तिकरण की दिशा में काम करेंऔर इसके लिए जमीनी स्तर पर सत्ता का हस्तांतरण एक पूर्व निर्धारित शर्त है.’’

भारत ने कहा कि, ‘‘इस संबंध में जल्द चुनाव करके प्रांतीय परिषदों का क्रियान्वयन जरूरी हैक्योंकि तभी श्रीलंका के तमाम नागरिक अपने समृद्ध भविष्य की आकांक्षाओं को हासिल करने में सफल हो सकेंगे.’’ इसे 13- के संदर्भ को तमिल उत्तरपूर्वी क्षेत्र तक सीमित  रखते हुए इस द्वीप देश के संपूर्ण क्षेत्र तक विस्तारित करने की भारत की सुक्ष्म लेकिन महत्वपूर्ण कोशिश कहा जाएगा.

यहां यह याद रखा जाना चाहिए कि भारतश्रीलंका समझौते ने मुख्यतवहां के जातिय मुद्दों और श्रीलंकन तमिल (एसएलटीसमुदाय के सशक्तिकरण पर ध्यान केंद्रित किया था और इसमें से ‘अपकंट्री तमिल ऑफ रिसंट इंडियन ओरिजिन’, जिन्हें आम तौर पर ‘इंडियनओरिजिन तमिल्स’ (आईओटीअथवा ‘ईस्टेट तमिल्स’ कहा जाता हैको बाहर रखा थालेकिन समझौते के बाद किए गए 13 वें संशोधन के प्रावधानों में शामिल 1987 का प्रांतीय परिषद कानून (पीसीए) संपूर्ण श्रीलंका पर लागू होता है

यह कानून संपूर्ण देश में बनने वाले नए प्रांतोंजिसमें वर्तमान में अब नौ प्रांत हैपर लागू होता है और इसमें सभी प्रांतों को समान रूप से सत्ता का अधिकार देने का भी प्रावधान हैलेकिन हकीकत में गैर तमिल प्रांतोंजिसमें पूर्व के बहुजातीय प्रांत भी शामिल हैंइसे स्वीकार नहीं करतेऐसा इस वजह से था क्योंकि वहां दो जेवीपी विद्रोह (1971 और 1987) हुए थे और आतंकवादी संगठनएलटीटीई की वजह से दशकों तक ‘जातिय युद्ध चला था.

चुनावी वादों पर अमल नहीं 

सिन्हाला बुद्धिस्ट राजनीति के सभी बहुसंख्यक वर्गो ने हमेशा से ही चुनावों में दो वादे किए हैंएक है सर्वशक्तिशाली कार्यकारी राष्ट्रपति पद को खारिज करने का और दूसरा 13- को तमिल क्षेत्रों में संपूर्णतलागू करने काभले ही यह चुनिंदा क्यों  हो.

अत्यधिक केंद्रीकरण के मसले को केंद्रबिंदु में लाने वाले अरागलया प्रदर्शनों के बावजूद जमीन पर हकीकत कुछ और ही है. 13- लागू होने के 35 वर्षो के बाद भी गैर तमिल क्षेत्रों में प्रांतीय स्वायत्ता को लेकर ज्यादा उत्सुकता नहीं देखी जातीजिसका वादा 13- में किया गया थाऐसे में सत्ता का हस्तांतरण अब तक लागू नहीं हुआ हैइस संबंध में तमिल राजनीतिक हल्कों से ही तीखी और विचलित करने वाली मांग उठ रही है.

अक्तूबर के अंत में समाप्त होने वाले यूएनएचआरसी सत्र में एक और प्रस्ताव पेश होने की संभावना हैइसमें भी ‘जवाबदेही के मुद्दों’ पर ही ध्यान केंद्रित किया जाएगालेकिन अब इसके दायरे में युद्ध के बाद होने वाली घटनाओं और उत्थान के साथसाथ युद्ध के बाद हुए अरागलया आधारित गिरफ्तारियां एवं पीटीए नजरबंदी भी शामिल होगी.

प्रांतों का सशक्तिकरण

जिनेवा सत्र में अपनी प्रारंभिक प्रतिक्रिया मेंश्रीलंकाई सरकार ने स्पष्ट रूप से मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामले में किसी भी स्वतंत्र जांचजिसमें विदेशी जांचकर्ता या मार्गदर्शन शामिल हैको लेकर&

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.