अफगानिस्तान में जैसे ही सांझ ढलती है और अंधेरा घिरने लगता है, तो यह समय देशभर के हजारों परिवारों, अमीरों और गरीबों, शिक्षित और अशिक्षित, बूढ़े और जवान सभी के लिए मनोरंजन का होता है। वे लोग अपने बच्चों को चुप कराते हैं और निगाहें टेलीविज़न सेट की स्क्रीन पर टिका कर बैठ जाते हैं। कोई पूछ सकता है कि इसमें कौन सी अजीब बात है। दरअसल वे लोग कोई लोकल टीवी या स्थानीय कार्यक्रम नहीं देख रहे होते हैं, इसकी बजाए वे अपनी स्थानीय भाषाओं में डब किए गए भारतीय टेलीविज़न धारावाहिकों का मज़ा ले रहे होते हैं। इस युद्धग्रस्त देश के कोने-कोने में ऐसा रोजाना होता है। भारतीय सोप ओपराज़ का आनंद लेने के लिए लाखों अफगान रात होने का इंतजार करते हैं। यहां तक कहा जाता है कि सशस्त्र आतंकवादी भारत के कुछ जाने-माने सीरिल्स को देखने के लिए अपनी लड़ाई तक रोक देते हैं।
भारतीय फिल्में — खासतौर पर बॉलीवुड की फिल्में भी यहां बहुत लोकप्रिय हैं। अब, जबकि अफगानिस्तान भी अपनी क्रिकेट टीम तैयार कर रहा है, ऐसे में भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी भी लाखों अफगान खेल प्रेमियों के दिलों पर राज़ करते हैं। भारत-पाकिस्तान किक्रेट प्रतिद्वंद्विता और पाकिस्तान पर भारत की जीत अफगान भी देखना चाहते हैं।
ज्यादातर अफगानी भारत में पढ़ने का ख्वाब देखते हैं, हालांकि कुछ बेहद अमीर और खुशकिस्मत अफगानों को ही यह सौभाग्य प्राप्त होता है।
ये अफगानिस्तान में भारत की सॉफ्ट पॉवर के व्यापक प्रभाव के बिंदु हैं और दोनों देशों की जनता को उनके धार्मिक और भौगोलिक फासले के बावजूद आपस में जोड़ने की अपार संभावनाएं हैं।
हकीकत तो यह है कि धर्म, क्षेत्रीय निकटता, नस्ली संबंधों (पश्तूनों के साथ) जैसे अफगानिस्तान के साझा हित भारत की बजाए पाकिस्तान के साथ ज्यादा हैं और पाकिस्तान 1980 के दशक से ही लाखों अफगान शरणार्थियों को शरण दे रहा है। इन सभी कारकों के बावजूद, ज्यादातर अफगान पाकिस्तान समर्थक होने की बजाए, भारत समर्थक क्यों हैं? इस प्रश्न का उत्तर भारत की सॉफ्ट पॉवर में मौजूद है।
भारत ने अफगानिस्तान में परियोजना-आधारित व्यापक निवेश किए हैं, और वह इस देश में स्थायित्व एवं समृद्धि लाने में योगदान देने वाले प्रमुख देशों की कतार में शामिल हो चुका है। अफगान अधिकारियों के अनुसार, भारत यहां 2 बिलियन डॉलर से ज्यादा सहायता देते हुए अफगानिस्तान में पांचवां सबसे बड़ा दानदाता देश बन चुका है, जबकि पाकिस्तान का स्थान इसके 10 शीर्ष दानदाता देशों में भी नहीं आता। भारत ने यहां धन दिया है और हेरात प्रांत में सलमा बांध का निर्माण, दोशी-चारिकर में पॉवर सब-स्टेशन्स और काबुल में संसद भवन परिसर का निर्माण जैसी तीन प्रमुख ढांचागत परियोजनाओं सहित विविध विकास परियोजनाओं में अपना उत्तरदायित्व निभाया है। भारत द्वारा निर्मित अफगान संसद, महज कोई इमारत भर नहीं है, बल्कि भारतीय लोकतंत्र के प्रमाण का प्रतिबिम्ब है। इसलिए अफगानिस्तान की जनता के लिए, यह मित्रता और परोपकारी सहायता का प्रमाण है, जिसकी बदौलत भारत ने अफगान लोगों के दिलों को जीत लिया है।
करजई सरकार की बदौलत, जो भले ही पूरी तरह पश्चिम की कठपुतली रही, लेकिन उसने मीडिया को उल्लेखनीय सहायता और समर्थन प्रदान किया । समाचार और राजनीतिक चर्चाएं आमतौर पर अफगान टेलीविज़न पर देखी जाती हैं। हालांकि अफगान चैनलों पर शायद ही कोई स्वेदशी टेलीविज़न धारावाहिक प्रसारित होता हो। ज्यादातर चैनल प्रसारण के लिए बाहरी स्रोतों पर निर्भर हैं। प्रोग्राम के कंटेंट की इसी कमी को भारतीय सोप ओपेरा और बॉलीवुड की फिल्में दूर कर रहे हैं, जो बेहद लोकप्रिय हैं। इनके बाद तुर्की के टेलीविज़न धारावाहिकों का नम्बर है। भारतीय सोप ओपरा इस हद तक पसंद किए जा रहे हैं कि किसी समय टेलीविज़न को शैतान मानने वाले “बेहद रूढ़ीवादी” अफगान लोग भी इसकी ओर आकर्षित हो रहे हैं। काबुल में 60 साल की एक धार्मिक महिला का कहना है, “मैं इन्हें पसंद करती हूं, क्योंकि यह हकीकत है और आजकल घर-घर में यही हो रहा है।” उनका इशारा लोकप्रिय हिंदी धारावाहि क्योंकि सास भी कभी बहू थी की ओर था।
उनकी राय है कि विदेशी कार्यक्रमों का प्रसारण अफगान धर्म, सांस्कृतिक मूल्यों और विश्वासों के लिए खतरा उत्पन्न करता है, क्योंकि वे हिंदु की प्रथा-मूर्ति पूजा को अधर्म मानते हैं।
हिज्ब-ए-इस्लामी के नेता और लड़ाके गुल्बुद्दीन हिमतयार ने पिछली मई में कहा था, “यूरोप में, महिलाओं को हिजाब पहनने की इजाजत नहीं है और वे हमेशा उम्मीद करते हैं कि हम हिजाब हटा दें और निर्वस्त्र हो जाएं।” उन्होंने कहा, “हमारे समाज और हमारे धर्म के मुताबिक हिजाब नहीं हटाया जा सकता।” संकीर्ण अफगान समाज में, महिलाओं के लिए टेलीविज़न पर काम करने को अनुचित और अश्लील समझा जाता है। टेलीविज़न ड्रामा और फिल्मों में अफगान टेलीविज़न के पिछड़ने का एक कारण यह भी है।
बॉलीवुड और असरदार भारतीय विज्ञापनों के बदौलत, भारत अब अफगान परिवारों के लिए इलाज कराने की सबसे बेहतर जगह बन चुका है। हनीमून मनाने वालों के लिए भी यह आदर्श जगह है और खरीददारी के लिए भी उचित है। और तो और बहुत से शीर्ष अफगान अधिकारियों के परिवार भारत में रहते हैं। मिसाल के तौर पर अफगानिस्तान के चीफ एक्जीक्यूटिव डॉ. अब्दुल्ला अब्दुल्ला का परिवार भारत में ही रहता है।
भारत सरकार की एक अन्य महान पहल यह है कि वह युवा अफगानों को भारत में पढ़ने के लिए प्रोत्साहन दे रही है। अफगान छात्रों को भारत में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए हर साल 1000 छात्रवृत्तियां दी जाती हैं। यह दोनों देशों के बीच मजबूत रिश्तों और आपसी हितों के सबसे कारगर तरीकों में से एक है। उदाहरण के लिए, भारत में शिक्षा पाने वाला अमूमन हर अफगान छात्र भारत का समर्थन करता है और उसे अपना दूसरा घर समझता है। शिक्षित नागरिक अफगानिस्तान के लिए भी बहुत उपयोगी हैं। अफगान कुलीन भी अपने बच्चों को पढ़ने के लिए भारत भेजते हैं। भारत में शिक्षा पाने वाले अफगानों के अफगान सरकार में शीर्ष पदों पर आसीन होने की संभावना होती है, जो आगे चलकर भारत-अफगान संबंधों को मजबूत बनाएंगे। इसकी एक अच्छी मिसाल अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई हैं। उन्होंने भारत में शिक्षा प्राप्त की थी और पाकिस्तान के नेताओं की जगह भारत के नेताओं के साथ उनके गहरे दोस्ताना संबंध थे।
यह लगभग नामुमकिन है कि किसी भी अफगान ने देश में आंतकवादियों को सहायता देने के लिए भारत की आलोचना की हो। इसके विपरीत, जैसे ही कोई आतंकी घटना होती है, बिना किसी जांच-पड़ताल के ही, अफगान जनता और सरकार उस घटना के तार पाकिस्तान से जोड़ने लगते हैं। हैरानी की बात तो यह है कि ज्यादातर मामलों में वे गलत नहीं होते। राष्ट्रीय सुरक्षा निदेशालय के अनुसार इस साल 31 मई को काबुल में हुए भीषण विस्फोट, जिसमें 100 से ज्यादा लोगों की जान गई थी और 500 से ज्यादा लोग घायल हुए थे, उसकी साजिश पाकिस्तान में हक्कानी नेटवर्क ने ही रची थी। इसके जवाब में, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के सलाहकार सरताज अजीज ने कहा था, “बेवजह पाकिस्तान को दोषी ठहराना अफगानिसतान के हित नहीं होगा।”
अफगानिस्तान-भारत संबंध, दोनों देशों के आपसी हितों साथ ही साथ भारत की सॉफ्ट पॉवर के प्रति आकर्षण द्वारा निरंतर टिके हुए हैं।
जहां अफगान सरकार पाकिस्तान पर अफगानिस्तान में आतंकवादियों की सहायता करने का आरोप लगाती है, वहीं इसके विपरीत,भारत अफगानिस्तान के बुनियादी ढांचे के निर्माण में निवेश कर रहा है। इसके अलावा, अफगानों द्वारा भारत की सराहना और बेशक, अगर अफगान राष्ट्रीय हित के लिए खतरा न पेश करती हो, तो उसकी संस्कृति को अपनाए जाने में भारत की सॉफ्ट पॉवर की बड़ी भूमिका है।
दिलचस्प बात यह है कि एक बेहद लोकप्रिय धारावाहिक क्योंकि सास भी कभी बहू थी की नायिकाओं में से एक अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कैबिनेट में केंद्रीय मंत्री हैं।
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