Published on Feb 26, 2023 Updated 0 Hours ago

सरकार की ओर से स्टार्टअप इकोसिस्टम अर्थात पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने के लिए हालिया वर्षो में अनेक महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, लेकिन भारत को वैश्विक उद्यमशीलता केंद्र के रूप में उभरने के लिए अभी भी बहुत कुछ करने की ज़रूरत है.

भारतीय स्टार्टअप इकोसिस्टम; 'सनराइज़ क्षेत्र और सामाजिक उद्यमिता का उदय'


विगत एक दशक में भारतीय स्टार्टअप इकोसिस्टम अर्थात पारिस्थितिकी तंत्र ने काफी लंबा सफ़र तय किया है. डिजिटल प्रौद्योगिकियों के उदय और युवा उद्यमियों में हो रहे इज़ाफ़े की वज़ह से भारत अब दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र बन गया है. तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था के साथ ही तकनीकी विकास और प्रतिभाशाली युवाओं की बढ़ती संख्या ने पारंपरिक व्यापार मॉडल को बाधित कर दिया है. इसकी वज़ह से भारतीय स्टार्टअप के लिए ग्रीन एनर्जी अर्थात हरित ऊर्जा, हेल्थ टेक अर्थात स्वास्थ्य तकनीक, डीप टेक और क्लीन मोबिलिटी जैसे सनराइज और सतत अर्थात दीर्घकालीन विकास क्षेत्रों में अपार संभावनाओं के द्वार खुल गए हैं. इसके साथ ही स्टार्टअप इंडिया प्रोग्राम, अटल इनोवेशन मिशन, और प्रोडक्शन-लिंक्ड इनिशिएिटव स्कीम्स (पीएलआई) जैसी सरकारी पहलों से मिलने वाला समर्थन इन संभावनाओं के लिए सफ़लता और विकास के लिए अनुकूल माहौल बनाता हैं.

स्टार्टअप20

भारत की जी20 की प्रेसीडेंसी अर्थात अध्यक्षता के तहत इस ढांचे के सबसे पहले एंगेजमेंट ग्रुप अर्थात संवाद समूह, स्टार्टअप20 की शुरुआत की गई है. इसकी वज़ह से भारतीय स्टार्टअप इकोसिस्टम ने भी वैश्विक मान्यता और अपना प्रभाव छोड़ने की दिशा में अहम कदम बढ़ा दिए हैं. इस पहल ने आर्थिक विकास और नवाचार को बढ़ावा देने में स्टार्टअप्स के महत्व को रेखांकित करते हुए वैश्विक स्तर पर पारिस्थितिकी तंत्र को प्रोत्साहित करने में भारत की प्रतिबद्धता को मज़बूती के साथ उजागर किया है.

स्टार्टअप20 विचारों का आदान-प्रदान करने, पहलों पर सहयोग करने और दुनिया भर में विकास को चलाने के लिए सदस्य देशों के उद्यमशीलता पारिस्थितिकी तंत्र को एक मंच मुहैया करवाता है. इस संवाद समूह का लक्ष्य कारोबार के लिए नीति निर्माताओं और प्रमुख हितधारकों के साथ सहयोग को प्रोत्साहित करने वाले माहौल में इज़ाफ़ा प्रदान करने वाला एक मंच मुहैया करवाना है.

फोकस अर्थात केंद्र बिंदु के क्षेत्र


भारतीय स्टार्टअप विविधताओं से पूर्ण हैं. इनमें हेल्थ अर्थात स्वास्थ्य और जलवायु तकनीक से लेकर स्वच्छ ऊर्जा और डीप टेक तक का समावेश हैं. ये सनराइज क्षेत्रों, अर्थात ऐसे उद्योग जो तेजी से विकसित होने की स्थिति में हैं, की ओर से पेश किए जा रहे अवसरों का लाभ उठाने के लिए बेहतर स्थिति में हैं. ये उद्योग ही देश की आर्थिक प्रगति को चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की क्षमता रखते हैं.

ईवी क्षेत्र : इलेक्ट्रिक व्हीकल अर्थात वाहन (ईवी) उद्योग एक ऐसा सनराइज अर्थात उभरता हुआ क्षेत्र है, जहां भारत का अपने यहां उपलब्ध 30 प्रतिशत वाहनों को 2030 तक बिजली से संचालित करने की महत्वाकांक्षी छलांग लगाने का इरादा है. हरित गतिशीलता को बढ़ावा देने की सरकारी कोशिशों से नए कारोबारी क्षेत्र का दरवाजा खुलता है. इसमें चार्जिंग अवसंरचना, बैटरी पुनर्चक्रण और ऊर्जा भंडारण समाधानों का पता लगाकर उन्हें स्थापित करने की असीम संभावनाएं हैं. ईवी कंपनियों को 2022 में सबसे ज़्यादा फंडिंग मिली हैं. इन कंपनियों की फंडिंग में साल-दर-साल 117 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई हैं. इसके साथ ही फास्टर एडॉप्शन एंड मैन्युफैक्तिचरंग ऑफ (हाइिबड्र एंड) इलेक्तिट्रक व्हीकल्स (एफएएमई) योजना के माध्यम से की गई सरकारी पहल भी ईवी की दिशा में जाने के लिए अतिरिक्त प्रोत्साहन मुहैया करवा रही हैं.

क्लीन एनर्जी अर्थात स्वच्छ ऊर्जा:
क्लीन एनर्जी एक और सनराइज क्षेत्र हैं, जहां कंपनियों के लिए सौर पैनल्स, विंड अर्थात पवन टर्बाइनों और एनर्जी स्टोरेज सिस्टम्स अर्थात ऊर्जा भंडारण प्रणालियों को नया रूप देने के लिए अत्याधुनिक हल विकसित करने का शानदार मौका उपलब्ध हैं. क्लीनमैक्स, रीन्यू पॉवर तथा जॉन क्लीनटेक कुछ ऐसी कंपनियां हैं, जो इसमें सबसे आगे कहीं जा सकती हैं. इन कंपनियों की कोशिशों से क्लीन एनर्जी ग्रोथ अर्थात स्वच्छ ऊर्जा विकास को बढ़ावा मिल रहा हैं.

ड्रोन: स्वदेशी ड्रोन निर्माण और इसके एडॉप्शन अर्थात इसे अपनाने पर बल देते हुए सरकार का इरादा 2030 तक इस उद्योग को 20 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचाने की योजना है. सरकार ने इसके लिए कुछ योजनाओं पर अमल शुरू किया हैं, जिसमें ड्रोन के आयात पर प्रतिबंध लगाने, 120 करोड़ रुपये की पीएलआई स्कीम, हाल के दिनों में लायी गई एक केंद्रीकृत ड्रोन प्रमाणन योजना जैसी कई सकारात्मक पहल इस लक्ष्य को प्रोत्साहन देने का काम कर रही है. विभिन्न क्षेत्रों में ड्रोन के उपयोग की संभावनाओं को देखते हुए कुछ स्टार्टअप कंपनियां ड्रोन का उपयोग सिंचाई, सुरक्षा, सर्विलांस अर्थात निगरानी और परिवहन आदि के क्षेत्र में करने लगी हैं. इस क्षेत्र में पिछले वर्ष की तुलना में 2022 में दोगुनी से अधिक फंडिंग देखी गई, जिसमें आइडियाफोर्ज, गरूड़ा और स्कायलार्क ड्रोन्स सबसे ज़्यादा फायदे में रही और इस क्षेत्र की अग्रणी कंपनियों के रूप में उभर रही हैं.


कृषि: भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का अहम स्थान है. इस क्षेत्र की महत्ता के बावजूद यह क्षेत्र मिट्टी की उर्वरता में गिरावट, पानी की कमी और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव सहित कई चुनौतियों का सामना कर रहा है. ऐसे में भारतीय कारोबारी सस्टेनेबल अर्थात वहनीय कृषि समाधानों को बढ़ावा देकर सतत विकास में योगदान कर सकते हैं. वर्तमान में केवल 1.5 फीसदी पैठ के साथ एजी-टेक स्टार्टअप्स, अगले चार वर्षों में 24 बिलियन अमेरिकी डॉलर के मौके वाला क्षेत्र बनकर उभर सकते हैं. एग्रोस्टार और बीजक तथा भारतएग्री जैसी कंपनियां स्थायी कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देने वाले नवीन समाधानों तक पहुंच प्रदान करके कृषि क्षेत्र में उन्नति और प्रगति का नया द्वार खोलने की क्षमता रखती हैं.

सामाजिक उद्यमिता


सोशल आंत्रप्रेन्योरशिप अर्थात सामाजिक उद्यमिता का अर्थ यह है कि ऐसे कारोबार का निर्माण करना जो न केवल सकारात्मक सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव डालने का उद्देश्य पूरा करते हैं, बल्कि साथ में मुनाफ़े का सौदा भी साबित होते हैं. विशेषत: भारत में, इस प्रकार की उद्यमिता ज़्यादा टिकाऊ और न्यायसंगत भविष्य की दिशा में प्रगति को चलाने में अहम भूमिका अदा करती है. हालिया वर्षो में भारत में सामाजिक उद्यमिता में वृद्धि हुई है, क्योंकि ज़्यादा से ज़्यादा लोग देश के कुछ सबसे अधिक आवश्यक सामाजिक और पर्यावरणीय मुद्दों के रचनात्मक समाधान की ज़रूरत को महसूस करने लगे हैं.

सस्टेनेबल अर्थात टिकाऊ समाधानों को लेकर बढ़ रही जागरूकता ही सामाजिक उद्यमिता के विकास के प्रमुख कारकों में से एक है. गरीबी, असमानता और पर्यावरणीय गिरावट जैसी चिंताओं की अहमियत बढ़ जाने की वज़ह से बहुत से लोग अभिनव समाधानों की ख़ोज में जुट गए हैं. इम्पैक्ट एंटरप्राइजेज ने भारत में 6.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की फंडिंग हासिल की है. इसमें भी क्लायमेट टेक अर्थात जलवायु तकनीक की हिस्सेदारी सर्वाधिक हैं. इस तरह के उपक्रम, व्यक्तियों को ऐसे व्यवसाय बनाने की प्रेरणा देते हैं जिनका वित्तीय रिटर्न बेहतर होने के साथ ही समाज पर सकारात्मक प्रभाव भी पड़ता है.

अब उद्यमियों का समर्थन करने में निजी क्षेत्र भी तेजी के साथ से महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. अनेक कंपनियां प्रत्यक्ष निवेश या कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) पहल के माध्यम से सामाजिक उद्यमों में पैसा झोंक रही हैं.

हालांकि, सामाजिक उद्यमिता की दीर्घकालिक सफ़लता सुनिश्चित करने के लिए भारत में अभी भी महत्वपूर्ण चुनौतियों का समाधान करना ज़रूरी है. सामाजिक उद्यमों को अक्सर निवेश हासिल करने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है. इसका कारण यह है कि अनेक निवेशक आज भी अप्रयुक्त व्यापार मॉडल और प्रौद्योगिकियों में निवेश करने को लेकर आशंकित हैं. सामाजिक उद्यमों में निवेश की यह कमी उनके संचालन को बढ़ाने और उनके समाधान को बाज़ार में लाने की क्षमता को प्रभावित कर रही है. इस वज़ह से उनका असर भी सीमित ही होता है.


इस क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए सरकार की ओर से की जा रही पहलों के बावजूद कई उद्यमों को अभी भी काम करने और कारोबार को संचालित करने के लिए आवश्यक अनुमोदन और लाइसेंस प्राप्त करने में विनियामक वातावरण में परेशानी उठानी पड़ती है. अत: यह परेशानी इस क्षेत्र में प्रवेश करने के इच्छुक लोगों के समक्ष एक प्रमुख बाधा हो सकती है. इसकी वज़ह से अपने समाधान को बाज़ार में पेश करने को तैयार उद्यम की क्षमता सीमित होकर रहने की संभावना बढ़ जाती है.

बुनियादी ढांचे की कमी इस क्षेत्र के समक्ष मौजूद एक और चुनौती है. विश्वसनीय और किफ़ायती बुनियादी ढांचे के अभाव में सामाजिक उद्यमों की अपने लक्षित ग्राहकों तक पहुंचने और उनके समाधान बाज़ार में लाने की क्षमता प्रभावित हो सकती है. उदाहरण के लिए, स्वच्छ ऊर्जा में अनेक उद्यमों को ग्रिड तक पहुंचने में पापड़ बेलने पड़ते हैं. इससे ऐसे उद्यमों के लिए ग्रिड को अपनी अतिरिक्त ऊर्जा बेचना और व्यापक ग्राहक आधार तैयार करने का काम चुनौतीपूर्ण हो जाता है.

अंत में, इस क्षेत्र के कारोबारियों के सामने जो सबसे बड़ी चुनौती है वह इस क्षेत्र में काम करने के लिए कुशल कामगारों अथवा श्रमिकों से जुड़ी है. ऐसे उद्यमों को अपने समाधानों का विस्तार और विकास करने के लिए इंजीनियरिंग और तकनीकी ज्ञान, जैसे खास कौशल और विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है.

निष्कर्ष


आर्थिक विकास और तकनीकी प्रगति की तेज गति के चलते पर्यावरणीय गिरावट, प्राकृतिक संसाधनों की कमी और सामाजिक और आर्थिक असमानताएं भी बढ़ गई है. इस वज़ह से दुनिया के लिए सतत अथवा दीर्घकालीन विकास एक अहम मुद्दा बन गया है. भविष्य में सनराइज और टिकाऊ स्टार्टअप के प्रभाव और स्केलेबिलिटी अर्थात मापनीयता का दायरा बहुत विस्तृत है. हाल के वर्षो में भारत में स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र को प्रोत्साहित करने के लिए काफ़ी कदम उठाए गए हैं. लेकिन अब भी भारत को वैश्विक उद्यमशीलता केंद्र के रूप में उभरने के लिए काफ़ी कुछ करने की आवश्यकता है. ड्रोन और किसान शक्ति को तेजी से अपनाने और अन्य क्षेत्रों में भी उभरती प्रौद्योगिकियों को शामिल करने के लिए प्रोत्साहन योजनाओं का विस्तार किया जाना चाहिए. उभर रहे क्षेत्रों में काम करने वाली कंपनियों का मार्गदर्शन करने वाली नीतिगत रूपरेखाओं को तय किए जाने से निवेशकों की आशंकाएं दूर होंगी. इसके साथ ही यह संकेत भी जाएगा कि सरकार इस क्षेत्र के विकास को गति देने का इरादा रखती है. फिलहाल, स्टार्टअप ज़्यादातर शहरी परिदृश्य तक ही सीमित दिखाई देते हैं. लेकिन सरकार समर्थित समर्पित फंड और कौशल विकास कार्यक्रम इन्हें टीयर 2, टीयर 3 शहरों के साथ ग्रामीण क्षेत्र तक पहुंचा सकते हैं. ऐसा होने पर ग्रामीण क्षेत्र को भी इस स्टार्टअप की लहर का लाभ लेकर अपनी स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को बढ़ावा देने का मौका मिल सकेगा. वे इनका उपयोग करते हुए अपनी समस्याओं का समाधान भी ख़ोज पाएंगे. भारतीय स्टार्टअप नवीन समाधान और नए व्यापार मॉडल विकिसत करके सभी के लिए अधिक टिकाऊ भविष्य बनाने में सहायक साबित हो सकते हैं.

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