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ज़्यादा निजी निवेशकों को सित्तवे पोर्ट का इस्तेमाल करने की दिशा में आकर्षित करने के लिए म्यांमार में बढ़ते संघर्ष और उग्रवाद के मुद्दे का समाधान करना महत्वपूर्ण होगा.
9 मई 2023 को बड़े धूमधाम के साथ पहला भारतीय मालवाहक जहाज़ (कार्गो शिप) MV-ITT LION (V-273) सफलतापूर्वक जाने-माने सित्तवे पोर्ट पर पहुंचा. ये महत्वपूर्ण घटना कलादान मल्टीमॉडल ट्रांज़िट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट (KMMTTP) की परिकल्पना के दो दशकों के बाद भारत और म्यांमार के बीच तेज़ी से बढ़ती साझेदारी में एक मील का पत्थर है. मार्च 2023 में बांग्लादेश को जहाज़ के ज़रिए चावल भेजे जाने की सफल शुरुआत के बाद 5 मई 2023 को कोलकाता के श्यामा प्रसाद मुखर्जी बंदरगाह पर पोर्ट, शिपिंग और जलमार्ग के केंद्रीय राज्य मंत्री शांतनु ठाकुर ने औपचारिक तौर पर 1,000 मीट्रिक टन सीमेंट (20,000 बैग) से भरे पहले आधिकारिक कार्गो शिप को हरी झंडी दिखाई.
मालवाहक जहाज़ को सफलतापूर्वक बंदरगाह पर लाने का काम परिवहन संपर्क में बढ़ोतरी का रास्ता खोलता है. इसका नतीजा कोलकाता से आइज़ोल और पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र तक भेजे जाने वाले सामान की लागत और समय में 50 प्रतिशत कमी के रूप में निकलेगा.
पोर्ट से नियमित कमर्शियल ऑपरेशन का काम इनलैंड वॉटरवेज़ अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने शिपिंग मंत्रालय की निगरानी में 2018 में पूरा किया था और म्यांमार की सरकार की तरफ़ से इसकी मंज़ूरी दी गई है.
मालवाहक जहाज़ को सफलतापूर्वक बंदरगाह पर लाने का काम परिवहन संपर्क में बढ़ोतरी का रास्ता खोलता है. इसका नतीजा कोलकाता से आइज़ोल और पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र तक भेजे जाने वाले सामान की लागत और समय में 50 प्रतिशत कमी के रूप में निकलेगा. इससे इस क्षेत्र में व्यापार में क्रांतिकारी बदलाव आएगा और आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा.
पोर्ट, शिपिंग और जलमार्ग के केंद्रीय मंत्री सर्बानंद सोनोवाल के मुताबिक़ इस महत्वपूर्ण अवसर से न सिर्फ़ सामरिक रिश्तों में मज़बूती आने की उम्मीद है बल्कि ये बंगाल की खाड़ी क्षेत्र के आर्थिक विकास के लिए भी अपार संभावनाएं रखता है. इसलिए ये विश्लेषण ज़रूरी बना हुआ है कि 484 मिलियन अमेरिकी डॉलर के कलादान मल्टीमॉडल ट्रांज़िट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट (KMMTTP) की ऑपरेशनल (परिचालन) क्षमता को दिखाना असरदायक है या नहीं.
सित्तवे पोर्ट एक डीपवॉटर (गहरे पानी) पोर्ट है और ये म्यांमार के रखाइन प्रांत की राजधानी सित्तवे में स्थित है. भारत के द्वारा अपने फंड से विकसित ये पोर्ट सामरिक तौर पर महत्वपूर्ण बंगाल की खाड़ी के पास कलादान नदी के मुहाने (एस्चुअरी) पर स्थित है. ये KMMTTP का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जिसे 2008 में मंज़ूरी मिली थी.
सित्तवे पोर्ट को 20,000 डेड वेट टनेज (DWT) की अधिकतम क्षमता वाले जहाज़ों को जगह देने के हिसाब से ख़ास तौर पर तैयार किया गया है. वैसे तो मौजूदा समय में इतने बड़े जहाज़ यहां नहीं आ रहे हैं लेकिन अगले कुछ वर्षों में भारी जहाज़ों की मांग होगी.
सित्तवे पोर्ट से भारत को निर्यात किए जाने वाले प्रमुख सामानों में फिलहाल चावल, लकड़ी, मछली, सी फूड और पेट्रोलियम उत्पादों के साथ-साथ गारमेंट और टेक्सटाइल हैं. दूसरी तरफ़ इस पोर्ट के ज़रिए भारत से कंस्ट्रक्शन के महत्वपूर्ण सामान जैसे कि सीमेंट, स्टील, ईंट और दूसरे प्रमुख सामान आयात किए जाते हैं.
भारत के मिज़ोरम और त्रिपुरा राज्यों को इस प्रोजेक्ट से काफ़ी फ़ायदा मिलने की उम्मीद है. त्रिपुरा की सरकार ने कलादान नदी के ज़रिए म्यांमार से संपर्क स्थापित करने के लिए कोशिशों की शुरुआत की है. परिवहन की इन महत्वपूर्ण कड़ियों को तैयार करने के लिए कंस्ट्रक्शन की गतिविधियां शुरू हो चुकी है. कोलकाता से अगरतला तक सड़क के रास्ते जाने पर सामान्य रूप से चार दिन लगते हैं. लेकिन पानी के रास्ते सित्तवे-चटगांव-सबरूम-अगरतला रूट से जाने पर परिवहन का समय घटकर दो दिन हो जाएगा. इस तरह परिवहन की लागत और समय के मामले में काफ़ी बचत के साथ-साथ कार्बन उत्सर्जन में भी कटौती होगी. हालांकि इस मामले में एक उपयुक्त DPR (डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट) तैयार होना अभी बाक़ी है.
सित्तवे पोर्ट से न सिर्फ़ भारत के लैंडलॉक्ड (जहां समुद्र नहीं हैं) राज्यों और भारत के पड़ोसी देशों नेपाल और भूटान को फ़ायदा होगा बल्कि ये रखाइन प्रांत के विकास में भी मददगार है. म्यांमार का रखाइन प्रांत खनिजों और संसाधनों से समृद्ध होने के बावजूद अलग-अलग हथियारबंद जातीय समूहों और सैन्य शासन के बीच चल रहे संघर्ष की वजह से अक्सर मुश्किल हालात से जूझता है. हथियारबंद जातीय समूहों में भी अराकान आर्मी (AA) और सेना के बीच संघर्ष का ख़ास तौर पर ज़िक्र किया जाता है. रखाइन के एक इज़्ज़तदार कारोबारी और रखाइन इकोनॉमिक इनिशिएटिव प्राइवेट कंपनी लिमिटेड (REIC) के उपाध्यक्ष यू खिन मॉन्ग गी ने इस बात पर ज़ोर दिया कि सित्तवे पोर्ट पर भारतीय कार्गो जहाज़ के आने का म्यांमार की पूरी अर्थव्यवस्था पर भी सकारात्मक असर होगा. रखाइन प्रांत को ज़्यादा व्यापारिक आज़ादी देने से आयात और निर्यात कारोबार के लिए कई तरह के फ़ायदे मिलेंगे. इससे रखाइन प्रांत के लिए कृषि उत्पादन को बढ़ाने की कोशिशों की ज़रूरत पर भी ज़ोर पड़ता है क्योंकि कृषि उत्पाद भारत और दूसरे देश में निर्यात होने वाले प्राथमिक सामान हैं.
कलादान प्रोजेक्ट के मल्टीमॉडल हिस्से को इस्तेमाल करने के लिए रोड के काम को पूरा करना महत्वपूर्ण होगा. प्रोजेक्ट का रोड वाला टुकड़ा काफ़ी अहम है क्योंकि ये म्यांमार के पलेतवा को मिज़ोरम के ज़ोरिनपुई से जोड़ने में महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में काम करता है. लेकिन रोड वाला 110 किलोमीटर का हिस्सा कई कारणों से दिक़्क़तों का सामना कर रहा है. सीमा के दोनों तरफ़ की एजेंसियों में तालमेल की कमी है, मुश्किल क्षेत्र है, ज़मीन के मुआवज़े से जुड़े मुद्दे हैं और सबसे महत्वपूर्ण सुरक्षा को लेकर चिंताएं हैं क्योंकि ये पूरा इलाक़ा उग्रवाद प्रभावित है. 2019 में कलादान इनलैंड वॉटरवे पर काम कर रहे भारतीय कामगारों को अराकान आर्मी ने अगवा कर लिया था. महामारी और 2021 में म्यांमार के सैन्य विद्रोह ने काम-काज में और ज़्यादा अड़चन डाला.
सित्तवे पोर्ट से न सिर्फ़ भारत के लैंडलॉक्ड (जहां समुद्र नहीं हैं) राज्यों और भारत के पड़ोसी देशों नेपाल और भूटान को फ़ायदा होगा बल्कि ये रखाइन प्रांत के विकास में भी मददगार है.
जिन इलाक़ों में कंस्ट्रक्शन का काम चल रहा है, वो फिलहाल अराकान आर्मी और म्यांमार की सेना के बीच संघर्ष में उलझे हुए हैं. अराकान आर्मी सक्रिय तौर पर म्यांमार के सैन्य शासन के ख़िलाफ़ संघर्ष छेड़े हुए है, उसका मक़सद स्वायत्तता हासिल करना और लोकतंत्र की फिर से बहाली है. जिन इलाक़ों में बाक़ी के बचे हुए काम को करने की ज़रूरत है, वो हवाई हमले और युद्ध से बुरी तरह प्रभावित हैं.
अराकान आर्मी और तमडो (म्यांमार की सेना) के बीच मौजूदा संघर्ष के नतीजतन जनवरी-फरवरी 2023 के दौरान रखाइन प्रांत में काफ़ी संख्या में लोगों को बेघर होना पड़ा है. रखाइन के 11 शहरों में कुल मिलाकर 73,458 लोगों को अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा है. इसके अलावा चिन प्रांत के पलेतवा शहर में 4,632 और लोग बेघर हुए हैं. इस तरह कुल मिलाकर 78,090 लोग संघर्ष की वजह से बेघर हुए हैं.
लोगों में सद्भावना बढ़ाने और प्रोजेक्ट पर निशाना साधने वाले उग्रवादी समूहों के डर को कम करने के लिए रोड के हिस्से पर काम करने वाली कंपनी इरकॉन इंटरनेशनल ने म्यांमार में स्थानीय ठेकेदारों को काम में लगाने का फ़ैसला लिया है. हालांकि सार्वजनिक तौर पर ठेकेदार को चुने जाने के बारे में कोई एलान नहीं किया गया है. ठेके की शर्तों के तहत सड़क का काम पूरा करने के लिए 40 महीने का समय निर्धारित किया गया है लेकिन इसमें पर्यावरण, राजनीति और सुरक्षा से जुड़ी किसी अप्रत्याशित घटना की वजह से होने वाली देरी पर समय में छूट देने का भी प्रावधान है. ठेके की शर्तों में ये भी कहा गया है कि पिछले ठेकेदार के द्वारा किए गए काम की समीक्षा की जाएगी और अगर ज़रूरत पड़ी तो तैयार हिस्से को भी फिर से बनाया जाएगा. मौजूदा हिंसा, लगातार सैन्य अभियानों और हथियारबंद संगठनों के द्वारा लगातार हमलों ने प्रोजेक्ट को लेकर काफ़ी अनिश्चितता पैदा की है, इसकी वजह से ये बताना मुश्किल हो गया है कि काम कब तक पूरा होगा.
सित्तवे पोर्ट पूर्वोत्तर क्षेत्र (NER) तक सामानों, गैस या तेल के रणनीतिक परिवहन के ज़रिए म्यांमार के साथ व्यापार की काफ़ी संभावना रखता है लेकिन इसके बावजूद पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए किफ़ायती और नियमित परिवहन के रूट के तौर पर इसकी व्यावहारिकता अनिश्चित है. इसका मुख्य कारण है बार-बार बल्क ब्रेकिंग (कंटेनर के बदले अलग-अलग सामानों को भेजना) और एक जहाज़ से दूसरे जहाज़ में सामानों को लादने की वजह से लागत में बढ़ोतरी की आशंका. इसके अलाना पलेतवा टर्मिनल का काम पूरा हो जाने के बावजूद यहां से काम शुरू होना इस बात पर निर्भर करता है कि सित्तवे और पलेतवा के बीच कलादान नदी पर जहाज़ के आने-जाने के हिसाब से ड्रेजिंग (नदी में जमा कीचड़ को मशीन से साफ़ करना) का काम कब पूरा होगा. जब तक ड्रेजिंग का काम पूरा नहीं होगा तब तक कार्गो जहाज़ सिर्फ़ सित्तवे पोर्ट तक ही सामान पहुंचा पाएंगे.
ज़्यादा निजी निवेशकों को इस रूट का इस्तेमाल करने की दिशा में आकर्षित करने के लिए म्यांमार में बढ़ते संघर्ष और उग्रवाद के मुद्दे का समाधान करना महत्वपूर्ण होगा. सैन्य विद्रोह या संघर्ष की तीव्रता में बढ़ोतरी पूंजी के खर्च पर “मुनाफ़े” के बदले ज़्यादा “जोखिम” पैदा करती है. इसलिए कोई भी निजी निवेशक “शासन व्यवस्था में कमी” से जूझ रही अर्थव्यवस्था में अपना पैसा लगाने से पहले दो बार सोचेगा.
वैसे तो पोर्ट की सफल शुरुआत से कई अवसर पैदा होते हैं लेकिन सड़क के हिस्से का काम पूरा करने के लिए संघर्ष का समाधान ज़रूरी होगा क्योंकि सड़क तैयार होने पर ही पूरे प्रोजेक्ट का काम सही ढंग से शुरू हो पाएगा और वास्तव में KMMTTP की क्षमता का प्रदर्शन हो पाएगा.
श्रीपर्णा बनर्जी ORF के स्ट्रैटजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में एक जूनियर फेलो हैं.
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Sreeparna Banerjee is an Associate Fellow in the Strategic Studies Programme. Her work focuses on the geopolitical and strategic affairs concerning two Southeast Asian countries, namely ...
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