पक्षियों की चहचहाहट को सुनते हुए अहले सुबह जागना, सबसे आनंददायक अनुभव है. सुबह सुबह खिड़की से सुनाई पड़ने वाली पक्षियों की चहचाहट इंसान के कानों एवं उनकी इंद्रियों को काफी सुकून प्रदान करती है एवं प्रसन्नचित्त करती है. भारत में, सदियों से पक्षी हमारी संस्कृति, कला एवं लोक कथाओं का एक अटूट हिस्सा रही है और अब भी हमारे शहरों में पाई जाने वाली सबसे आम वन्यजीवों में से एक है. शहरी पारिस्थितिकी तंत्र में परागण, बीज फैलाव, साफ-सफाई, खरपतवार में कमी एवं कीट नियंत्रण आदि में इनका काफी अमूल्य योगदान है. इसके अलावा, मनुष्य को प्राप्त होने वाली गर्मी एवं आराम में उनके पंखों का योगदान सहज स्वीकृत है. बाहरी गतिविधि के रूप में, बागवानी के अलावा, पक्षी निरीक्षण एक बेहद लोकप्रिय गतिविधि के रूप में उभर कर सामने आई है. निस्संदेह, मनुष्य पक्षियों के प्रति ऋणी है.
दुर्भाग्य की बात ये है कि, साल 2023 में प्रकाशित ‘भारतीय पक्षियों की स्थिति’ नामक रिपोर्ट में पाया गया कि देश के भीतर पक्षियों की प्रजातियों में भारी गिरावट देखी जा रही है.
दुर्भाग्य की बात ये है कि, साल 2023 में प्रकाशित ‘भारतीय पक्षियों की स्थिति’ नामक रिपोर्ट में पाया गया कि देश के भीतर पक्षियों की प्रजातियों में भारी गिरावट देखी जा रही है. लगातार हो रहे शहरीकरण, पर्यावरणीय क्षरण, भौतिकी बुनियादी ढांचों का हो रहा सतत विकास, और जलवायु परिवर्तन आदि की वजह से पक्षियों और उनकी आबादी पर असर पड़ रहा है. इसके लिये कुल 942 पक्षियों की प्रजाति का विश्लेषण किया गया जिसमें से 142 पक्षी अब विलुप्त हो रहे हैं और सिर्फ़ 28 प्रजातियाँ ऐसी हैं जिनकी संख्या बढ़ रही है. ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, व्हाइट बेलीड हेरॉन, बंगाल फ्लोरिकन और फिन वीवर सबसे ज्य़ादा संकटग्रस्त प्रजातियाँ है. वहीं दूसरी तरफ, भारतीय पीफाउल, रॉक पिजन, एशियाई कोयल, और घरेलू कौवों की आबादी में काफी तीव्रता से वृद्धि देखी जा रही है. इस अध्ययन के सारांश में ये पाया गया कि सामान्य प्रजाति वाले पक्षी इस शहरी परीदृश में खुद को काफी सरल तरीके से ढाल पा रहे है एवं काफी अच्छे से रह रहे है.
इसके विपरीत, कुछ खास प्रजाति के पक्षियों को इस बदली हुई परिस्थिति में जीवित रहने एवं अनुकूलन क्षमता विकसित कर पाने में काफी कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है जिसकी वजह से, उनकी आबादी में सतत् गिरावट दर्ज की गई. पक्षियों के जीवित रह सकने का अध्ययन कर रहे, प्रकृति संरक्षण फाउंडेशन के वैज्ञानिकों ने पाया कि शहरों के भीतर के सर्वाहारी जीवों के जीवित रहने की सबसे प्रबल संभावना है, जहां खाद्य भोजन में काफी कम विविधता के बावजूद काफी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है. उन्होंने ये भी पाया कि शहरों में रह रही ऐसी प्रजाति के पक्षी काफी अनुकूल होते हैं और वे शीघ्र ही मानव गतिविधियों एवं शहरीकरण के खतरों संग जीना सीख जाते हैं.
शहरीकरण का प्रतिकूल प्रभाव
पक्षियों की संख्या में गिरावट की तमाम वजहों के बीच, रिपोर्ट में पाया गया है कि तेज़ी से हो रहा शहरीकरण भी एक प्रमुख कारक साबित हुआ है. समय के साथ-साथ, शहरी विस्तारीकरण और लगातार हो रहे निर्माण, प्राकृतिक प्रवासों के अधिक से अधिक विनाश की प्रमुख वजह है. इससे पक्षियों की संख्या एवं उनकी विविधता प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हो रही है. घटे कैनोपी कवर, पौधों की प्रजातियों में दर्ज गिरावट, और वनस्पतियों की घटती सघनता, पक्षियों की विविधता को प्रतिकूल तौर पर प्रभावित करती है. बिल्ली और कुत्तों जैसे पालतू जानवर आदि भी भय का परिदृश्य/वातावरण पैदा करते हैं, इस वजह से कई पक्षी प्रत्येक वर्ष, किए जाने वाले शिकार के माध्यम से मारे जाते हैं. शहरी शोरगुल और आवाज़ भी इन पक्षियों के लिए एक प्रमुख कारक अथवा निवारक है जो इन्हें अपने आवासों को छोड़कर अन्य मुफ़ीद जगह जाने को विवश करते हैं.
इसी तरह से, रोशनी भी इन्हें विचलित कर सकती है, और इमारतों में लगने वाले काँच के आदे के हिस्से इन पक्षियों के लिए काफी खतरनाक, टक्कर करने वाले जाल हैं, जिससे टकरा कर वे जख्म़ी भी होते हैं और मारे भी जाते हैं. साथ ही, सबसे ज्यादा शहरीकृत क्षेत्रों में सबसे कम प्रजातियों की संख्या उपलब्ध होती है. उनके पास दुर्लभ प्रजातियों की सबसे कम संख्या एवं सबसे कम कीटभक्षी प्रजातियां उपलब्ध है. बड़े पैमाने पर, शहरीकरण, पक्षी समुदायों को समरूपीकरण की ओर ले जाता है, क्योंकि रॉक कबूतर, सामान्य मैन, एवं हाउस क्रो समेत पारिस्थितिक स्थानों का दोहन करने में निपुण पक्षियों की बहुतायत बढ़ जाती है।
पक्षियों पर हो रहे शहरीकरण के पड़ते प्रतिकूल प्रभाव एवं शहरों के लिए इनके मूल्यों को ध्यान में रखते हुए, शहरी बस्तियों में इनके सहज प्रवास एवं इनके कल्याण के लिये एक नितांत गहन, सजग एवं सार्थक प्रयास किए जाने चाहिए. पक्षियों के पुनर्निवासन और उनकी सुरक्षा तय करने के लिए शहरों को आम भाषा में तीन सूत्री फॉर्मूले का अनुपालन करना चाहिए: (i) पक्षियों के लिए उत्पन्न खतरे को कम करने के उपाय, (ii) पक्षियों के लिए सुरक्षित एवं अनुकूल आवासों का निर्माण और (iii) पक्षियों के अनुकूल पास-पड़ोस के निर्माण में लोकप्रिय भागेदारी.
पक्षियों पर हो रहे शहरीकरण के पड़ते प्रतिकूल प्रभाव एवं शहरों के लिए इनके मूल्यों को ध्यान में रखते हुए, शहरी बस्तियों में इनके सहज प्रवास एवं इनके कल्याण के लिये एक नितांत गहन, सजग एवं सार्थक प्रयास किए जाने चाहिए.
पक्षियों के संदर्भ में यूएलबी (स्थानीय शहरी निकाय) की सबसे अहम भूमिका है. सबसे महत्वपूर्ण चरण है वृक्षारोपण करना, झाड़ियाँ लगाना एवं यथासंभव तरीके से हरियाली बढ़ाने के अन्य प्रयास करना. शहरी योजनाकार प्राकृतिक बसेरों का संरक्षण करके, जिनमें स्थलीय एवं आद्रभूमि आवास भी शामिल है,और पार्क आदि जैसे सार्वजनिक स्थलों, उद्यान और सड़कों के किनारे देशी पेड़ एवं झाड़ियों का रोपण करके पक्षियों के लिये संपर्क प्रदान कर सकते हैं, जो पक्षियों की विविधता के लिए ज़रूरी बसेरों का निर्माण कर सकता है. शहरों के कोलाहल, शोर एवं प्रदूषण के मध्य, विशाल और लंबे पेड़ और उद्यानों में लगी हुई झाड़ियाँ पक्षियों को उनकी सामान्य गतिविधियों के लिए माकूल और आरामदायक स्थान प्रदान करते हैं. नगरपालिका वृक्ष विभाग के अधिकारियों को इन तमाम बातों पर खास ध्यान देना चाहिए.
शहरों में इन पेड़ों के अन्य लाभकारी योगदानों के अलावा, वन्यजीव संरक्षण में इन शहरी वृक्षों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण है. ये पक्षियों को उनके आराम एवं प्रवास के लिये ज़रूरी घोंसले आदि बनाने की जगह प्रदान करते हैं, और साथ ही ज़रूरी भोजन के लिए वे एक महत्वपूर्ण खाद्य स्रोत भी है. उनकी टहनियाँ एवं पत्तियों में कीड़े, घास एवं लार्वा आदि पलते हैं जिनपर कई पक्षियों की प्रजातियाँ, अपनी जीविका के लिये आश्रित होती है. उनकी शाखाएं एवं पत्ते आदि उन्हें शिकारियों एवं खराब मौसम आदि से बचाने के लिये किसी आवरण के तौर पर एक कवच प्रदान करती है. वे पक्षी प्रवास के लिए जरूरी पक्षी प्रजातियों एवं शिल्प गलियारों में विविधता लाने में मदद करते है. इसके अलावा, पक्षी अंडे देने एवं उन्हे बड़ा करने के लिए अपने घोंसले, ज्य़ादातर पेड़ की शाखाओं पर बनाना चाहते हैं. नगर पालिका द्वारा आयोजित सामुदायिक भागीदारी कार्यक्रम द्वारा स्वयंसेवकों को एकजुट करके शहर भर में वृक्षारोपण करने एवं उनकी देखभाल करने के प्रयास को पूरा किया जा सकता है.
हरित अवसंरचना योजना को प्रोत्साहित करते हुए, यूएलबी को शहरी विकास परियोजनाओं में पेड़ों एवं हरित स्थानों को एकीकृत करना चाहिए. जहां तक संभव हो यूएलबी को समान संस्कृति के वृक्षारोपण या फिर सजावटी पेड़ों को लगाने से बचना चाहिए. देसी किस्म एवं विविध प्रकार एवं प्रजाति के पेड़, खास कर के फल देने वाले एवं फूलों वाले पेड़, स्थानीय पक्षियों की आबादी के लिए एक उपयुक्त बसेरा और खाद्य स्त्रोत सुनिश्चित करते हैं. घोंसलों के लिए आदर्श के तौर पर बरगद और पीपल के वृक्ष सरीखे पेड़ों को वरीयता दी जानी चाहिए. शहरी हरे क्षेत्रों के विकास, जिनमें पार्क और जल निकायों को बनाने एवं बढ़ाने के साधारण कदम, इन पक्षियों को सुरक्षित आवास मुहैया करा सकेगी और मानव एवं प्रकृति के बीच एक गहरा संबंध स्थापित कर सकती है.
इसके अलावा, वनस्पति उद्यान, रूफ़ गार्डन, शहरी वन क्षेत्र, और जल निकायों के इर्द गिर्द के वनस्पति को वैश्विक स्तर पर कई शहरी पक्षियों को समर्थन प्रदान करने वाली संवेदनशील/ महत्वपूर्ण आवास के तौर पर देखा गया है. यूएलबी को ऐसे झीलों और उद्यानों के निर्माण से परहेज़ करना चाहिए जहां देसी वनस्पति को विदेशी पौधों एवं हरे लॉन से बदल दिया गया है. इन जगहों पर लगाए गए वनस्पति शुद्ध देसी होनी चाहिए और उसकी डिज़ाइन का उद्देश्य जैव विविधता को बनाए रखने की होनी चाहिए.
हालांकि, सभी हरे क्षेत्र समान नहीं होते है. उदाहरण के लिए, छोटे एवं मैनीक्योर अथवा कृत्रिम तौर पर तैयार किए गए उद्यानों की तुलना में अधिक पक्षियों के रहने के लिए उपयुक्त आवास एवं विशिष्ट भोजन एवं घोंसले बनाने की ज़रूरत को दर्शाया गया है. हरे भरे क्षेत्रों के इर्द-गिर्द स्थित जल निकाय आदि भी पक्षियों की विविधता को बढ़ाने में सहायक होती है. मृत और सड़ रहे वृक्षों का सौन्दर्य मूल्य काफी सीमित हो जाता है, परंतु वे कीट पतंगों का भक्षण करने वाले पक्षियों को आसानीपूर्वक कैटरपिलर एवं कीड़े मकौड़े आदि उपलब्ध कराते हैं. इस तरह के पेड़ उल्लू, तोता, मैना, बार्बेट और कठफोड़वा आदि पक्षियों के लिए आदर्श है क्योंकि उनके लिए इन्हें आवास का आकार देना अथवा तराशना काफी आसान है. पक्षी आदि भी सुरक्षा एवं घोंसलों के लिए ऐसे मृत लकड़ीवाले क्षेत्रों अथवा पेड़ों की उपलब्धता को पसंद करते हैं.
आगे की राह
इमारतों के बाहरी आवरण में इस्तेमाल होने वाले कांच और कांच की खिड़कियां एक ऐसे शहरी डिज़ाइन है जो कि शहरी पक्षियों का विनाश कर रहा है. ये खिड़कियां पक्षियों को पेड़ एवं आकाश के होने का भ्रम देते है. ये डिजाइन पक्षियों को ऐसा आभास देते है जहां वे ये समझते हैं कि वे उस के आर-पार अथवा दूसरी तरफ उड़ सकते है. ज्य़ादातर पक्षी, खासकर के प्रवासी पक्षी, जो आमतौर पर रात के वक्त उड़ रही होते हैं, इन इमारतों से टकरा कर दुर्घटना का शिकार होते हैं या हताहत होते हैं. शहरों को इमारतों के ऊपर लगाए जाने वाले कांच की संख्या में कमी बरतनी चाहिए, साथ ही पक्षियों को दिखने वाले शीशों पर निशान छोड़ना चाहिए अथवा प्रतिबिम्बों को रोकने के अन्य तरीके खोजा जाना चाहिए. उदाहरण के लिए, इन कांच के दीवारों को ढकने के लिए शटर एवं शेड्स का उपयोग किया जाना चाहिए ताकि खिड़कियों से निकालने वाले रोशनी की ओर वे आकर्षित न हो.
शहरी जलवायु कार्य योजनाओं के महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को हासिल कर पाना तब काफी कठिन एवं चुनौतीपूर्ण हो जाएगा, जब तक कि वे शहरी भारत में पक्षियों की विविधता के संरक्षण एवं उनके नये जीवन पर अपना ध्यान केंद्रित नहीं करते हैं.
सामुदायिक स्तर पर, पक्षियों को आकर्षित करना काफी सरल है अगर उन्हें उनकी ज़रूरत की जल, भोजन और आवास उपलब्ध कर दिया जाए. चिड़ियों को बेहतर तरीके से तराशना, या भोजन, जल एवं आश्रय से सुसज्जित छोटे, पक्षियों के अनुकूल पिछवाड़े के बाग अथवा बागीचे बना कर, इन पक्षियों को आकर्षित करना एक काफी बेहतर विचार है. इसी तरह से, पक्षियों के खाने के लिए भरे हुए प्राकृतिक भोजन से भरपूर लटकते पक्षी फीडर, पक्षियों को तुरंत से आकर्षित करते हैं, चूंकि शहरों के सामने इन प्राकृतिक भोजन के स्रोतों की काफी सीमित पहुँच है. सभी पक्षियों को अपने पंखों को साफ करने एवं नहाने के लिए, जल की ज़रूरत है. डिश या मिट्टी के बर्तनों में भरे स्वच्छ जल इन्हें पानी पीने एवं खुद पर छिड़काव करने की अनुमति देते हैं. एक कदम आगे बढ़ते हुए पेड़ों, दीवार या फिर की खिड़कियों तक पर पक्षियों के घरों एवं रूसटिंग घरों की स्थापना करने की है. कई दुर्लभ प्रजाति के पक्षियों को संरक्षित करने के लिए वनस्पति से लिपटे हरे रंग की छतों एवं ऊंची इमारतों का सफलतापूर्वक इस्तेमाल सिंगापुर में किया गया है.
हरित शहरी विकास मानव एवं पक्षियों दोनों ही के लिए काफी लाभकारी है, और उसे पूरे ज़ोर शोर से प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. 2020 के बॉम्बे प्राकृतिक इतिहास सोसाइटी सर्वेक्षण द्वारा ये पता चला कि मुंबई महनगरी की लगभग 85 प्रतिक्षत पक्षियों की आबादी, बढ़ती कॉक्रिटीकरण की वजह से अत्याधिक प्रतिकूल प्रभावों का सामना करते हुए सबसे ज्य़ादा प्रभावित हुई है. भारत के अन्य महानगरीय क्षेत्रों, जिनमें राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्रों , चेन्नई, हैदराबाद, और कोलकाता आदि में पक्षियों की विविधता को हो रहे शहरीकरण से इसी प्रकार का खतरा है. स्थानीय पारिस्थितिकी एवं पर्यावरण को बिना संज्ञान में लिए हो रहा शहरीकरण, हमारे शहरों को पक्षियों में विविधता की कमी का शिकार बनाएगी जिसके बाद वे उन चंद विशिष्ट प्रजाति के पक्षियों के हावी होने के भय से ग्रस्त हो जाएंगे जो कठोर, चतुर या फिर पनपने के लिए काफी अनुकूल है. शहरी जलवायु कार्य योजनाओं के महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को हासिल कर पाना तब काफी कठिन एवं चुनौतीपूर्ण हो जाएगा, जब तक कि वे शहरी भारत में पक्षियों की विविधता के संरक्षण एवं उनके नये जीवन पर अपना ध्यान केंद्रित नहीं करते हैं.
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