Author : Ankit Kataria

Expert Speak Raisina Debates
Published on Feb 13, 2024 Updated 0 Hours ago

आधुनिक हथियारों के एकीकरण पर ज़ोर जहां बदलती चुनौतियों को लेकर भारतीय सेना की सक्रिय प्रतिक्रिया के बारे में बताता है वहीं एक व्यापक बदलाव के लिए छानबीन ज़रूरी है.

वर्ष 2024 बन सकता है भारतीय सेना की तकनीक़ी तरक्की का साल!

युद्ध और भू-राजनीतिक समीकरण के बदलते स्वरूप की प्रतिक्रिया में भारतीय सेना (IA) ठोस आधुनिकीकरण की कोशिश के लिए तैयारी कर रही है. 14 लाख सैन्य कर्मियों की मौजूदा क्षमता के साथ सेना कई चुनौतियों का सामना कर रही है. इसकी वजह है युद्ध का अनिश्चित स्वरूप और परंपरागत एवं अपरंपरागत सुरक्षा से जुड़ी चुनौतियों का सामना करने में सेना की व्यापक भूमिका. पिछले दिनों आयोजित सेना की सालाना प्रेस कॉन्फ्रेंस में थलसेना प्रमुख मनोज पांडे ने कहा कि 2024 भारतीय सेना के लिए तकनीक़ को अपनाने का साल होगा. 2023 को ‘कायापलट का साल’ के रूप में मनाने की पहले की घोषणा की तुलना में तकनीक़ को अपनाने पर नया ज़ोर सही दिशा में एक लंबी छलांग है. इस बयान को पिछले साल की कायापलट की प्रतिबद्धता के मददगार के तौर पर देखा जा सकता है. दूसरे शब्दों में कहें तो 2024 का संकल्प ‘कायापलट’ के वादे को जारी रखने और उसे बढ़ाने के लिए है. 

भारतीय सेना अपनी इन्फैंट्री, आर्टिलरी और आर्म्ड बटालियन में ड्रोन और काउंटर-ड्रोन सिस्टम को मिलाने जा रही है जो भविष्य की तरफ नज़रिए वाला रवैया दिखाता है. इसके अलावा संरचनात्मक स्तर पर कमांड साइबर ऑपरेशंस सपोर्ट विंग्स की स्थापना साइबर क्षमता बढ़ाने की प्रतिबद्धता पर ज़ोर देती है.

भारतीय सेना अपनी इन्फैंट्री (पैदल सेना), आर्टिलरी (तोपखाना) और आर्म्ड (बख्तरबंद) बटालियन में ड्रोन और काउंटर-ड्रोन सिस्टम को मिलाने जा रही है जो भविष्य की तरफ नज़रिए वाला रवैया दिखाता है. इसके अलावा संरचनात्मक स्तर पर कमांड साइबर ऑपरेशंस सपोर्ट विंग्स (CCOSW) की स्थापना साइबर क्षमता बढ़ाने की प्रतिबद्धता पर ज़ोर देती है. सेना के महत्वपूर्ण भाग जैसे कि आर्टिलरी में बदलाव के साथ अग्निवीर भर्तियों के ज़रिए ताज़ा मानव संसाधन को शामिल करना उभरते ख़तरों को लेकर सेना के ढलने को उजागर करता है. इसके अलावा सेना प्रादेशिक सेना के माध्यम से विशेषज्ञ अधिकारियों को तैयार करके अपने मानव संसाधन पूल का विस्तार कर रही है. इन विशेषज्ञ अधिकारियों में नागरिक-सैन्य भर्तियों के ज़रिए साइबर एक्सपर्ट्स को तैयार करना शामिल है. बड़े बदलाव के लिए उत्प्रेरक के रूप में तकनीक़ पर ध्यान मौजूदा संरचना के भीतर ड्रोन और काउंटर-ड्रोन सिस्टम को बिना किसी बाधा के चलाने की योजना से स्पष्ट होता है. 

2,500 सिक्योर आर्मी मोबाइल भारत विज़न (SAMBHAV) हैंडसेट को लाने से संचार की निर्णायक भूमिका हो जाती है. ये तकनीक़ में सेना की आत्मनिर्भरता को दिखाता है. संवेदनशील काम-काज में शामिल अधिकारियों को 35,000 SAMBHAV हैंडसेट बांटने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य सुरक्षित और कार्य-कुशल संचार के चैनल को लेकर प्रतिबद्धता के बारे में बताता है. ये व्यापक रणनीति मानवीय पूंजी को आधुनिक युद्ध की मांगों के साथ जोड़ती है और इस तरह 2024 में भारतीय सेना को तकनीक़ अपनाने वाली सेना के तौर पर पेश करती है. 

भारतीय सेना के लिए 2024 महत्वपूर्ण क्यों है? 

भारतीय सेना के लिए 2024 का महत्व दुनिया भर में हो रहे अहम बदलावों में है जो युद्ध के स्वरूप को निर्धारित कर रहे हैं. चूंकि अलग-अलग देश भू-राजनीतिक बदलाव से प्रेरित सैन्य आधुनिकीकरण के दौर से गुज़र रहे हैं, ऐसे में घातक ऑटोनॉमस सिस्टम, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, हाइपरसोनिक हथियार, डायरेक्टेड एनर्जी वेपन्स, बायोटेक्नोलॉजी और क्वॉन्टम टेक्नोलॉजी युद्ध में निर्णायक बन रहे हैं. भारत के लिए चीन की बढ़ती क्षमता, विशेष रूप से गलवान संघर्ष के बाद गैर-सैन्य रणनीति का इस्तेमाल करके भारतीय सीमा के नज़दीक, अहम चुनौती पेश करती है. पिछले दिनों अपने एक संबोधन में सेना प्रमुख ने कहा कि 'गैर-सैन्य आक्रमण तेज़ी से संघर्ष को अंजाम देने की पसंदीदा रणनीति बनती जा रही है और तकनीक़ी उन्नति की वजह से इसका दायरा बढ़ जाता है." सेना प्रमुख ने परोक्ष रूप से इस बात की तरफ ध्यान दिलाया कि गैर-सैन्य रणनीति चीन और पाकिस्तान- दोनों देश आज़मा रहे हैं. इसको विस्तार से बताते हुए सेना प्रमुख ने ज़ोर देकर कहा कि इस तरह की आक्रामकता के लिए महत्वपूर्ण रक्षा तकनीकों में आत्मनिर्भरता और R&D (रिसर्च एंड डेवलपमेंट) में निवेश की आवश्यकता होती है.

चीन से मंडराते ख़तरे के अलावा भारत मौजूदा समय में पाकिस्तान में पैदा उग्रवाद के नए हाइब्रिड रूप के साथ जूझ रहा है. ये हाइब्रिड उग्रवाद भारत के भीतर और सीमा पर मौजूद है.

चीन से मंडराते ख़तरे के अलावा भारत मौजूदा समय में पाकिस्तान में पैदा उग्रवाद के नए हाइब्रिड रूप के साथ जूझ रहा है. ये हाइब्रिड उग्रवाद भारत के भीतर और सीमा पर मौजूद है. कश्मीर घाटी में ‘हाइब्रिड’ उग्रवाद, परंपरागत और गैर-परंपरागत ख़तरों का एक मिश्रण, में बढ़ोतरी सीमा पर और सीमा के भीतर विघटनकारी तत्वों को पेश करता है. 

इन चुनौतियों का जवाब देते हुए भारतीय सेना को न केवल पुरानी पड़ चुकी क्षमताओं और हथियारों की जगह तकनीक़ी तौर पर आधुनिक विकल्प रखना चाहिए बल्कि रणनीतिक क्षमताओं को भी बढ़ाना चाहिए. इसमें अच्छी तकनीकों जैसे कि अनमैन्ड एरियल व्हीकल, एंटी-ड्रोन सिस्टम और इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर में विशेषज्ञता रखने वाली विशेष यूनिट पर ज़ोर देना चाहिए. सैटेलाइट तस्वीरों, ड्रोन और आधुनिक सेंसर समेत अत्याधुनिक निगरानी तकनीकों का इस्तेमाल करना महत्वपूर्ण है. साइबर सुरक्षा से जुड़े उपाय गैर-सैन्य रणनीति के साथ जुड़े डिजिटल ख़तरों से सेना के अपने अहम इंफ्रास्ट्रक्चर की सुरक्षा करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं. 

तेज़ दौड़ के बदले एक मैराथन 

भारतीय सेना के लिए युद्ध की तकनीक़ में नवीनतम प्रगति को अपनाने का काम तेज़ दौड़ के बदले मैराथन की तरह होना चाहिए. वैसे तो अत्याधुनिक सैन्य तकनीकों के इर्द-गिर्द शोर से इनकार नहीं किया जा सकता लेकिन उन्हें लागू करने की प्रक्रिया और उन्हें अपनाने का काम धीरे-धीरे होता है जिसमें समय लगेगा. सैन्य तकनीक़ के हमेशा बदलते परिदृश्य के साथ चलना एक निरंतर चुनौती है जिसके लिए दीर्घकालीन प्रतिबद्धता की आवश्यकता है. भारतीय सेना के द्वारा तकनीक़ को अपनाने के लिए लगातार प्रयास की आवश्यकता है. इसमें ऐसे सैन्य इकोसिस्टम से मदद मिलती है जो सक्रिय रूप से सेना के काम-काज के तंत्र में बिना किसी बाधा के तकनीक़ के एकीकरण को बढ़ावा देता है.

इनोवेशन फॉर डिफेंस एक्सीलेंस (iDex) जैसी पहल की स्थापना के साथ संचालन और रणनीतिक चुनौतियों के इनोवेटिव समाधान के लिए नागरिक क्षेत्रों, विशेष रूप से अकादमिक जगत और उद्योगों, के साथ सेना की भागीदारी तारीफ के लायक है लेकिन इसके बावजूद एक ऐसे ढांचे के भीतर व्यवस्थित और दीर्घकालीन पहलों की आवश्यकता है जो अस्थायी नहीं है और जो AI की ज़रूरत की रफ्तार के साथ मज़बूत और स्वतंत्र रक्षा औद्योगिक अड्डे को बढ़ावा देता है. इस तकनीक़ी कुशलता की पहचान करने के लिए ख़ास ट्रेनिंग और शिक्षा की ज़रूरत होती है. मानव संसाधन के विशेष और अलग कैडर की स्थापना एक रणनीतिक निवेश के रूप में उभरती है जो लंबे समय में सार्थक परिणाम देगी. पिछले दिनों सेना ने एक नई नीति की शुरुआत की जिसके तहत AI, रोबोटिक्स और ड्रोन जैसी तकनीकों में विशेषज्ञता रखने वाले लेफ्टिनेंट कर्नल को कर्नल के तौर पर  प्रमोशन के साथ इस क्षेत्र में रहने की इजाज़त दी गई. ये कमान संभालने की भूमिका के स्टैंडर्ड तौर-तरीकों से हटकर है. ये दूसरे प्रमुख क्षेत्रों में भी लागू है. हालांकि इन अधिकारियों को इसके एवज में कमांड के कार्यभार और ख़ास करियर कोर्स को भूलना होगा. इस नीति का मक़सद थलसेना के भीतर विशेषज्ञता को बढ़ावा देना है लेकिन इस रास्ते को चुनने वाले अधिकारी भविष्य में प्रमोशन के लिए योग्य नहीं होंगे. इस नीति के असर का पता लगाने के लिए तीन साल के बाद इसकी समीक्षा की जाएगी. 

वैसे तो समय-समय पर सिद्धांत की इस तरह की समीक्षा उचित है लेकिन इससे ज़्यादा महत्वपूर्ण एक ऐसा सिद्धांत है जो सिद्धांत को संचालित करने वाली प्रौद्योगिकी के बदले तकनीक़ी आधुनिकता और उसके मुताबिक ढलने को प्रेरित करता है.   

वैसे तो तकनीक़ी बदलाव को अपनाना और उसके मुताबिक ख़ुद को ढालना महत्वपूर्ण है लेकिन इस तरह का परिवर्तन भारतीय सेना की सैद्धांतिक सोच में भी दिखना चाहिए. 2018 में जारी आख़िरी ज़मीनी युद्ध का सिद्धांत, जिसे भारतीय सशस्त्र बलों के 2017 के साझा सिद्धांत के साथ पढ़ना चाहिए, भारत के लिए बिना संपर्क वाले और हाइब्रिड स्वरूप की चुनौतियों पर प्रकाश डालता है. हालांकि आख़िरी सैद्धांतिक समीक्षा, जिसने भारतीय संदर्भ में ज़मीनी युद्ध के बदलते आकार पर विशेष रूप से ध्यान दिया था, के बाद युद्ध की रूप-रेखा में महत्वपूर्ण बदलाव हुए हैं. गलवान संघर्ष और रूस-यूक्रेन युद्ध भारतीय सेना के लिए युद्ध और तकनीक़ के क्षेत्रीय और वैश्विक संदर्भ में सीखे गए सबक को अपनाना ज़रूरी बनाता है. वैसे तो समय-समय पर सिद्धांत की इस तरह की समीक्षा उचित है लेकिन इससे ज़्यादा महत्वपूर्ण एक ऐसा सिद्धांत है जो सिद्धांत को संचालित करने वाली प्रौद्योगिकी के बदले तकनीक़ी आधुनिकता और उसके मुताबिक ढलने को प्रेरित करता है.   

निष्कर्ष

2024 में भारतीय थलसेना के द्वारा तकनीक़ को अपनाने की तरफ बदलाव भरोसा और छानबीन दोनों पैदा करता है. वैसे तो आधुनिक औजारों जैसे कि ड्रोन और साइबर सुरक्षा के एकीकरण पर ज़ोर बदलती चुनौतियों को लेकर एक सक्रिय जवाब के बारे में बताता है लेकिन एक व्यापक कायापलट के एजेंडे से परिवर्तन के लिए सोच-समझ कर विचार करने की ज़रूरत है. वैश्विक सैन्य रुझानों के द्वारा लाई गई तात्कालिकता और चीन की बढ़ती क्षमताओं से नज़दीकी एक तेज़ तकनीक़ी अनुकूलन की आवश्यकता को रेखांकित करती है. लेकिन संभावित कमियों जैसे कि तकनीक़ी एकीकरण की अंतर्निहित जटिलताओं और आवश्यक दीर्घकालीन प्रतिबद्धता को कम नहीं आंकना चाहिए. चूंकि सेना परंपरा और इनोवेशन को संतुलित करते हुए इस रास्ते पर चल रही है, ऐसे में निगाहें हर हाल में चौकन्नी होनी चाहिए, नतीजों की समीक्षा होना चाहिए और ये सुनिश्चित करना चाहिए कि तकनीक़ी कौशल का लक्ष्य बिना किसी दिक्कत के राष्ट्रीय सुरक्षा की ज़रूरतों के साथ मिले. इस रणनीतिक बदलाव की सफलता न केवल तकनीक़ को अपनाने पर निर्भर करेगी बल्कि सेना की इस योग्यता पर भी कि वो इस तरह के बदलाव की यात्रा के साथ आने वाली मुश्किलों और चुनौतियों से कैसे पार पाती है.   

अंकित के. दिल्ली में रहने वाले विश्लेषक हैं जिनकी युद्ध और रणनीति में विशेषज्ञता है.

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